सतारा। रोम की तरह सतारा भी सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है।और रोम की तरह सतारा भी शक्ति, समृद्ध परंपरा व लंबा इतिहास में भरापूरा हैं। फर्क केवल यह है कि सतारा उतना जाना-माना नहीं है, जितना कि रोम। यहां इतिहास और सांस्कृतिक विरासत सब बिखरा हुआ है। पर जो भी हैसतारावासी उस पर गर्वित हैं। लोगों से बात करते तो उनका मराठा गर्व साफ-साफ झलकता है। मगर समय के साथ सतारा अपनी चमक खोता गया है।इस चुनाव में सतारा की सीट पर सबकी नजर है। यहां मुद्दा मराठा गौरव को फिर से हासिल करने का है। महाराज को वापिस गद्दी दिलवानी है।
सतारा से श्रुति व्यास
सतारा से छत्रपति शिवाजी महाराज की 13वीं पीढ़ी के वंशज उदयनराजे भौंसले भाजपा के उम्मीदवार हैं। उन्हें सभी लोग महाराज कहते हैं। महाराज दो बार एनसीपी के टिकट पर सतारा से चुनाव जीत चुके हैं। मगर 2019 में एनसीपी के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद महाराज भाजपा की गोदी में कूद गए। उन्होंने न केवल अपनी गद्दी खोई वरन् लोगों में सम्मान भी।
सतारा निवासी विनय गावकड़े सन् 2019 के लोकसभा उपचुनाव को याद करते हैं जब मूसलाधार बारिश के बीच भी 76 साल के शरद पवार ने चुनावी सभा में भीगते हुए भाषण दिया था।उसका फोटो देशभर के मीडिया में छपा था। “उस 5 मिनट की सभा ने महाराज को हरा दिया और शरद पवार को हीरो बना दिया,” विनय कहते हैं।
मैंने सवाल किया-: ‘‘महाराज का हारना क्या आपको ठीक लगा‘? खड़े हुए सभी लोगों ने कहां- हां।
38 साल के नितिन भांडे कहते हैं, “हमने उन्हें वोट दिया, उन्हें अपना एमपी बनाया और वो जाकर मोदी की गोदी में बैठ गए”।
सतारा के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बड़ी संख्या में लोग नितिन जैसी ही सोच रखते हैं। परंतु इसके साथ ही यह भी सच है कि लोग भले ही महाराज के पार्टी बदलने से नाराज हों मगर व्यक्तिगत रूप से उनसे किसी को शिकायत नहीं है।58 साल के भोंसले की जनता में पैठ है। वे बिंदास और सभ्य-शिष्ट आदमी माने जाते हैं जो लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। कभी वे आटो में सवारी कर आटो वालों का दिल जीतते हैं तो कभी किसी गरीब के घर भोजन कर गरीबों की वाह पाते हैं। वे कतई महाराज की तरह व्यवहार नहीं करते। मगर वे महाराज तो हैं। और यह युवाओं के लिए अहमियत रखता है।
एक भले आदमी की अपनी छवि के बाद भी उनकी राजनीति के कारण भौंसले लोगों की निगाहों पहले जैसा मान नहीं पाए हुए हैं।तुषार 30 साल के हैं और ठेले पर फल बेचते हैं। वे परेशानहाल हैं और कहते हैं, “यहां कोई फैक्ट्री ही नहीं है जिसमें हम को काम मिल सके”।
सतारा एक अविकसित शहर है। आधुनिक शहरों जैसा कुछ भी नहीं है। पुणे और कोल्हापुर के बीच स्थित सतारा औद्योगिक विकास में काफी पिछड़ गया है। सतारा एमआईडीसी में कुछ ही कंपनियां बची हैं और रोजगार के अवसर सिकुड़ते जा रहे हैं।एक स्थानीय व्यवसायी की माने तो सतारा पेंशनयाफ्ताओं का शहर बन गया है। उनका कहना है कि अपनी नौकरियां खोने के बाद और नए अवसरों के अभाव के चलते अधिकांश युवा बड़े शहरों में चले गए हैं। सतारा में अब केवल बूढ़े और पेंशनर रहते हैं।
मराठा साम्राज्य की इस पूर्व राजधानी में हाल में जो सबसे बड़ा विकास कार्य हुआ है वह है ग्रेड सेपरेटर का निर्माण। सतारा शहर के निवासियों के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि है जिस पर वे बहुत गर्वित हैं। यह सेपरेटर जमीन के नीचे बनाया गया है और इसका कारण यह है कि छत्रपति शिवाजी की मूर्ति से ऊंचा कोई फ्लाईओवर बनाया ही नहीं जा सकता था!
शहर से बाहर निकलकर जैसे-जैसे आप ग्रामीण इलाकों में जाते हैं वैसे-वैसे आपको महाराज का नाम कम सुनाई पड़ता है।उनकी जगह शरद पवार, तूतरी और शशिकांत शिंदे – ये तीन शब्द सबकी जुबानों पर है।
करीब 82 साल के शंकर निकम कहते हैं, “घोटाला नहीं चाहिए”।वही गौरी, जो एक गृहणी हैं, का कहना है कि शिंदे साहब ने काम तो किया है।
60 साल के शशिकांत शिंदे एनसीपी (शरद पवार) के टिकट पर महाराज के खिलाफ खड़े हैं। वे 2020 से महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। जब एनसीपी टूटी और अधिकांश नेता और विधायक अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट के साथ चले गए तब भी वे शिंदे पवार के साथ खड़े रहे।
शरद पवार ने सन् 1999 में कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था। तब से सतारा में एनसीपी का बोलबाला रहा है। उसके पहले सन् 1950 के दशक से लेकर 1990 तक सतारा कांग्रेस का गढ़ था, हालाँकि बीच में कुछ समय तक शिवसेना ने भी यहां अपनी पकड़ बनाई थी।
मैंने पूछा- “नरेन्द्र मोदी पर क्या कहना है? आखिर चुनाव तो लोकसभा के हैं”।
हनुमान जाधव ने कहा, “10 साल हो गया, मोदीजी ने किया क्या? वादे तो बहुत अच्छे किए पर काम कहां हुआ”।35 साल के अमर एक बार फिर 2019 के उपचुनाव की याद दिलाते हुए कहते हैं, “नरेन्द्र मोदी 2019 में महाराजजी के लिए प्रचार करने आए थे। पर जीता कौन”।
नरेन्द्र मोदी ने इतवार को पुणे के साथ सतारा में भी रैली की। पूरे सतारा शहर में नरेन्द्र मोदी के आदमकद पोस्टर लगे हैं जिसमें वे मराठा वेषभूषा में दिखाए गए हैं। उनके चित्र के नीचे लिखा है “माझा देश माझा परिवार”। मगर सतारा के मूड को देखकर तो ऐसा लगता है कि लोग महाराजजी के साथ-साथ मोदीजी से भी नाराज हैं। सतारा में प्रसिद्ध कांदी पेड़ा की दुकान चलाने वाले सुधीर कहते हैं, “लोगों के मूड में बदलाव हो सकता है। मगर यह बहुत मुश्किल है”।इसलिए 2019 में गद्दी गंवा चुके महाराज उसे फिर से हासिल कर पाएंगे या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा।
मगर राजनीति से ज्यादा सतारा अपनी भौगोलिक स्थिति में लाजवाब है। शहर भव्य पश्चिमी घाट की गोद में स्थित है। पुणे से वहां पहुंचने के ढ़ाई घंटे के रास्ते में आपको ढेर सारी हरियाली और चमत्कृत करने वाले दृश्य दिखेंगे। एक समय सतारा शक्तिशाली मराठा साम्राज्य की राजधानी था। हालांकि उन दिनों का कोई अवशेष अब शेष नहीं है। लेकिन उस जमाने का हैंगओवर निश्चित ही है। सतारा वह शहर है जहां सन् 1961 में देश का पहला सैनिक स्कूल स्थापित किया गया था। सतारा जिले का एक गांव अपशिंदे, मिलिट्री गांव के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हमेशा से और अब भी हर परिवार का कम से कम एक सदस्य सेना में है।
सतारा ने देश के स्वाधीनता संग्राम में भी महती भूमिका निभाई थी। सन् 1857 के सिपाही विद्रोह के समय 17 लोग मारे गए थे। सतारा में रैयत शिक्षण संस्था भी है जिसके संस्थापक भाऊराव पाटिल की सोच क्रांतिकारी थी। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा तक सभी की पहुंच होनी चाहिए, विशेषकर उन पददलितों, गरीबों और अनपढ़ों की, जो समाज का सबसे बड़ा तबका हैं। इस संस्था की स्थापना 1919 में की गई थी। आज 105 साल बाद भी इसे एशिया का एक अग्रणी शिक्षण संस्थान माना जाता है। और संस्था के वर्तमान अध्यक्ष है शरद पवार। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)
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