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जेलेंस्कीः साल पहले तब और अब

सन् 2022 में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की दुनिया के चमकते सितारे थे, वैश्विक नायक थे। पूरी दुनिया उनकी मदद करने हाथ बांधे खड़ी थी। आखिरकार वे बुराई के खिलाफ अच्छाई की लड़ाई लड़ रहे थे! उन्हें प्रोत्साहित करना सबका पावन कर्तव्य था। उनका बेहद सम्मान था और सभी तरफ उनकी सराहना होती थी। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में उनका जबरदस्त स्वागत होता था। इसका चरम था अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में जोरदार हर्षध्वनि के बीच उनका अभिनन्दन।

लेकिन 2023 में दुनिया का ध्यान इजराइल-हमास युद्ध की ओर केन्द्रित हो गया। इससे यूक्रेन और जेलेंस्की का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंसा है। पैसा खत्म हो रहा है, रूस को पराजित करने की इच्छाशक्ति कम हो गई है और पुतिन को हटाने का संकल्प कमजोर पड़ा है।

इसी के चलते जेलेंस्की वाशिंगटन की एक और यात्रा कर रहे हैं। निराशापूर्ण माहौल में भी उन्हें उम्मीद की एक हल्की किरण नजर आ रही है कि दुनिया उनकी ओर ध्यान देगी, फिर से उनकी बात सुनेगी और वे रूस द्वारा उनकी धरती पर ढाये जा रहे जुल्मों की याद दुनिया को दिला सकेंगे।हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद के लिए उपलब्ध रकम करीब-करीब खत्म हो चुकी है। यूक्रेन को दिए जाने वाले हथियारों में कमी आ रही है। लेकिन बाइडन द्वारा बार-बार यह चेतावनी देने के बावजूद कि वैश्विक व्यवस्था और अमेरिका की सुरक्षा, यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता पर निर्भर है, वे सितंबर से अब तक कांग्रेस को अधिक धनराशि की स्वीकृति देने के लिए राजी करने में असफल रहे हैं। रिपब्लिकन सीनेटरों ने 106 अरब डालर की सहायता के प्रस्ताव में बाधाएं खड़ी कर दी हैं जिसमें से अधिकांश यूक्रेन को और उसका एक छोटा हिस्सा इजराइल को दिया जाना है। उन्होंने इस खर्च को अमेरिका के अप्रवासन संबंधी उपायों से जोड़ दिया है। प्रशासन ने चेतावनी दी है कि वर्ष के अंत तक सारी रकम खत्म हो जाएगी।

जेलेंस्की महत्वपूर्ण सांसदों और जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं। यूक्रेन के जवाबी हमले के असफल होने से यूक्रेन की जनता की हिम्मत टूट रही है और देश के बाहर इस उद्देश्य की प्राप्ति के प्रति जोश कम हो गया है। पिछले माह यूक्रेन के कमांडर इन चीफ वलेरी ज़ालुज़्नी ने गतिरोध की स्थिति बनने की बात स्वीकार की और चेतावनी दी कि “इस बात की संभावना बहुत कम है कि कोई बड़ी और स्वागत योग्य सफलता हासिल होगी।” अब यह एक लम्बा खिंचने वाला युद्ध बन गया है। जनरल ज़ालुज़्नी के ये शब्द न केवल उनकी कुंठा दर्शाते हैं बल्कि राजनैतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच के टकराव का प्रमाण भी हैं। अमेरिका भी अब पहले की तुलना में अधिक खुलकर मतभेदों की चर्चा कर रहा है, प्रमुखतः जो सैन्य रणनीति से संबंधित हैं किंतु भ्रष्टाचार जैसे अन्य मुद्दों को लेकर भी हैं।

यूरोप में भी लंबे यूक्रेन युद्ध के खिलाफ माहौलबनने का खतरा है जबकि कीव यह प्रयास कर रहा है कि ईयू का समर्थन बना रहे।14 और 15 दिसंबर को होने जा रहे यूरोपीय सम्मेलन में 50 अरब यूरो (54 अरब डालर) के अतिरिक्त अनुदान की स्वीकृति होने की उम्मीद है और औपचारिक रूप से यूक्रेन के ईयू में शामिल होने की अंतिम वार्ताएं शुरू होने की भी। लेकिन हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने इन दोनों ही मामलों में वीटो करने की धमकी दी है। यद्यपि जेलेंस्की ने ब्यूनस आयर्स में ओरबान से मुलाकात की, जहां वे दोनों अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई के पदग्रहण के अवसर पर गए थे। लेकिन दोनों के बीच चर्चा (जिसे जेलेंस्की ने ‘खरी-खरी’ बताया) के बावजूद ओरबान के नजरिए में कोई खास बदलाव नहीं आया।

पश्चिम के घटते समर्थन के साथ-साथ जेलेंस्की को गंभीर रूप लेती घरेलू समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है। यूक्रेन का जवाबी हमला रूसी नियंत्रण रेखा को पीछे खिसकाने में असफल रहा है। आर्थिक संकट, जो  यूक्रेन की विद्युत प्रणाली पर ड्रोन और मिसाइलों के जरिए सर्दी के मौसम में दुबारा किए जा रहे हमलों के बीच मंडरा रहा है और आंतरिक राजनैतिक फूट। इनमें से किसी भी मोर्चे पर स्थिति बिगड़ने से दूसरी समस्याएं और गंभीर रूप धारण कर लेंगीं।

हकीकत यह है कि 2022 में जो जोश था, वह बहुत कम हो गया है। यह कभी भी अनंत काल तक कायम नहीं रह सकता था। आखिरकार युद्ध से न केवल संसाधन बल्कि हौसले में भी गिरावट आती है। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि कीव को अब उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। एक साल पहले, राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कांग्रेस को संबोधित करते हुए कहा था, “आप जो धन दे रहे हैं, वह दान नहीं है। वह एक निवेश है।।।वैश्विक सुरक्षा और लोकतंत्र में”।डेविड केमरून सही कहते हैं।‘‘यदि कीव को अब अकेला छोड़ दिया जाता है तो केवल दो लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट होगी। एक, रूस में व्लादिमिर पूतिन और दूसरे बीजिंग में शी जिनपिंग।” उन्होंने एस्पेन सिक्युरिटी फोरम में कहा, “मैं आपके बारे में नहीं जानता लेकिन मैं इन दोनों में से किसी को भी क्रिसमस का तोहफा नहीं देना चाहता”। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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