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रंगीले राजस्थान के धोद में लाल परचम!

सीकर।हर तरफ नारंगी, हरे और सफेद झंडों के बीच अचानक यदि लाल झंडे दिखने लगे तो हैरानी होगीही।  हां, राजस्थान में अभी भी लाल झंडे। सीकर से आगे ज्योंहि धोद में घुसते है तो लाल झंडों और होर्डिंगों की बहार आ जाती है।कम्युनिस्ट लाल झंडे, सीपीआई (एम) के झंडे लहराती कारें, ट्रेक्टर और मोटरसाईकिलें गांवों और सड़कों पर घूमती हुई दिखती हैं। ऐसा दृश्य उत्तर भारत में अब शायद ही कहीं औरदेखने को मिलेगा। लेकिन धोद और उसके आसपास कामरेड लोग चुनावी दंगल में जोरशोर से हिस्सा ले रहे हैं। यहाँ तक कि 2023 का इस जगह मुकाबला दो धुर विरोधी विचारधाराओं – कम्युनिस्टों और भाजपा – के बीच है, और कांग्रेस बहुत पीछे, तीसरे नंबर पर बताई जा रही है। धोद के लिए यह असामान्य नहीं है, क्योंकि यह लाल झंडे का गढ़ है, उसका किला है, जहां कम्युनिस्टों ने पिछले दस विधानसभा चुनावों में से चार में जीत हासिल की है।

और जनता में उनके प्रति लगाव है। मेरे धोद पहुंचते ही मेरा सामना युवा और उम्रदराज पुरूषों के एक समूह से हुआ, जिनकी विचारधारा अलग-अलग थी। दिलीप मिश्रा करीब 70 साल के ब्राम्हण हैं और इस क्षेत्र में वामपंथी विचारधारा के अगुआ हैं। वे बताते हैं ‘‘धोद के हर आदमी में कम्युनिस्ट की विचारधारा दौड़ती है…यहां पर ये सब जो हैं इन सब ने अपना पहला वोट सीपीआई (एम) को डाला था…” सुनील बिजारानिया और उनके हमउम्र, जो सभी जाट समुदाय के हैं, हामी भरते हैं। हालांकि इन दिनों युवा वर्ग का झुकाव भाजपा की ओर है लेकिन उनके मन में सीपीआई (एम) के प्रति आदर-सम्मान अभी भी है। ये युवा जानते हैं कि सीपीआई (एम) की विचारधारा एक डूबता हुआ जहाज है और अब समय आ गया है कि अन्य विचारधाराओं और उनके आख्यानों पर चिंतन-मनन किया जाए। रामेश्वर दत्ता कहते हैं, ‘‘हम सीपीआई (एम) को वोट देना चाहते हैं पर हमको पता है कि अगर ये जीत भी गए तो सरकार में इनकी चल नहीं पाएगी।”

बीकानेर, हनुमानगढ़, सीकर जैसे जाट बहुल जिलों के क्रमशः श्रीडुंगरपुर, भादरा और धोद जैसे कुछ विधानसभा क्षेत्र है जहां खत्म होते अस्तित्व के बावजूद सीपीएम मौजूद है। और पिछले चुनाव में श्रीडुंगरपुर और भादरा से तो सीपीएम उम्मीदवार विधायक चुने गए थे।

सीकर का धोद भी दूसरे इलाकों की तरह जलसंकट से जूझ रहा है। खेत सूखे हैं। भूजल स्तर नीचे चला गया है। रामेश्वर दत्ता पहले 180 बीघा उपजाऊ जमीन के मालिक थे। आज उनकी जमीन बंजर हो चुकी है और वे आसपास के इलाके में छोटे-मोटे काम करके अपना गुजारा करने को मजबूर हैं। राजमार्ग के किनारे, दो गांवों के बीच मुझे एक हैंडपंप नजर आया जिसे घेरकर बहुत सी महिलाएं खड़ी थीं। वे 4-5 किलोमीटर दूर गाँव से  पानी लेने आईं थीं। दूसरा मुद्दा है कर्जमाफी। यह इलाका जाट और कृषक बहुल है, और कर्जमाफी का मुद्दा, यही इस इलाके में कांग्रेस के दुबारा मुकाबले की स्थिति में आने के पीछे के मुख्य कारणों में से एक था। लेकिन आज पांच साल बाद अशोक गहलोत की स्थिति आंतरिक राजनैतिक खींचतान के कारण कमजोर हो गई है। वे किसानों को भूल गए हैं और किसान गहलोत सरकार को सजा देने का मन बनाए हुए हैं।

हांलाकि धोद में लाल झंडो का बोलबाला है परन्तु भाजपा के गोर्धन वर्मा भी चर्चा के केन्द्र में हैं। वर्मा धोद के पूर्व विधायक एवं ग्राम प्रधान हैं और उन्हें जनसमर्थन हासिल है।वे सन 2018 में चुनाव हार गए थे मगर इसके बाद उन्होने लगातार जनता की समस्याओं से अपना सरोकार बनाए रखा। इसके विपरीत, वर्तमान विधायक कांग्रेस के परसराम मोरदिया को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, जो इतनी ताकतवर है कि उसके सामने कांग्रेस की सात गारंटियोंकी चर्चा नहीं है। सन् 2018 में कांग्रेस की बदलाव लहर पर सवार मोरदिया, कम्युनिस्ट पार्टी के पेमाराम से केवल 7.50 प्रतिशत मतों के अंतर से जीत पाए थे। इस बार लोग लडाई कम्युनिस्ट बनाम भाजपा की ही मान रहे है।

हालांकि हार-जीत जाट तय करेंगे, क्योंकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट में जाट समुदाय के वोट सबसे ज्यादा हैं। और उनके मूड का अनुमान लगाने पर पता लगता है कि उनके वोट दो हिस्सों में बंटेंगे – कुछ सीपीआई(एम) को मिलेंगे और बाकी भाजपा को। हालाँकि गुर्जरों के विपरीत, जाटों का एक हिस्सा ही भाजपा की तरफ मुड़ा है लेकिन सीकर में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछली बार उसने जिले की आठ में सात सीटें जीतीं थीं, जो बाद में आठ हो गईं थी क्योंकि आईएनडी के महादेव सिंह कांग्रेस में आ गए थे। चाहे लक्ष्मणगढ़ में गोविंद सिंह डोटासरा हो या सीकर में राजेन्द्र पारीख – सभी जीजान से अपनी सीट दुबारा जीतने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

कुल मिलाकर धोद शेखावटी और पश्चिमी राजस्थान के जाट बहुल इलाके की ऐसी सीट है जिसमें पुराना वक्त याद हो आता है। भरोसा नहीं होता धूल भरे धोद में एक ऐसी पार्टी, एक ऐसी विचारधारा का होना, जो अपनी ताकत और लोकप्रियता खो चुकी है, पर वह यहां मजबूती से खड़ी है।धोद में नारंगी, हरे और सफेद झंडों के बीच लाल झंडे शान से ऊंचे लहरा रहे हैं। और यह निश्चित ही रंगीले राजस्थान की सियासी शान काप्रतीक है। वैसे ही जैसे कही बसपा का नीला, बेनीवाल की पार्टी का लाल-हरा तो आदिवासी बीटीपी पार्टी का गहरा नीला,लाल हरा झंडा है।

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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