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‘कैथरिन द ग्रेट’ का पुतिन रिकार्ड तोड़ेंगे?

पुतिन के प्रबल आलोचक अलेक्से नवालनी 6 दिसंबर को अदृश्य हो गए थे। वे कहां हैं, या हैं भी कि नहीं, यह न उनके परिवार को पता था और ना ही उनके वकील को। फिर, 26 दिसंबर को एक्स पर नवालनी ने अपने समर्थकों को आर्कटिक जेल से संबोधित करते हुए उन्हें भरोसा दिलाया कि वे ‘भले चंगे’ हैं। नवालनी को आईके-3 पीनल कालोनी में रखा गया है, जिसे ‘पोलर वुल्फ’ भी कहा जाता है। यह रूस के उत्तरी शहर खार्प में स्थित है, जो मास्को के उत्तरपूर्व में 1,900 किलोमीटर दूर है। आईके-3, यमालो-नेंनेटस स्वशासी क्षेत्र में स्थित है जिसे रूस की सबसे कठोर जेलों में से एक माना जाता है। यहां कैद ज्यादातर लोग गंभीर अपराधों की सजा काट रहे हैं।

नवालनी को आर्कटिक भेजा जाना हैरान करता भी है, और नहीं भी। उन्हें वस्तुतः पुतिन का व्यक्तिगत राजनैतिक कैदी माना जाता है। और चूंकि अगले साल मार्च में चुनाव होने हैं, इसलिए पुतिन यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनकी वापसी अत्यंत सुगमता से हो, बिना किसी झंझट के। पुतिन ने 8 दिसंबर को यह ‘आधिकारिक घोषणा’ कि वे मार्च के चुनाव में उम्मीदवार होंगे। वे पांचवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं। जीतने के बाद वे 2030 तक सत्ता में रह सकेंगे। यह घोषणा उन्होंने किसी मंच से नहीं की वरन् सैनिकों से बातचीत के दौरान उन्होंने अपना इरादा जाहिर किया, जिसे कैमरे में कैद किया गया। पुतिन का मुकाबला स्वयं उनसे ही होगा – संभवतः अपने ही एक अपेक्षाकृत युवा स्वरूप से – क्योंकि उनका कोई सशक्त राजनैतिक विरोधी है ही नहीं। यदि वे जीतते हैं, और पूरे कार्यकाल तक राज करते हैं, तो 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की रूस की शासक कैथरिन द ग्रेट के बाद पुतिन रूस के सबसे अधिक अवधि के शासक बन जाएंगे। इस वीडियो में सेना के अधिकारियों और उनके परिवारजनों से घिरे पुतिन कहते हुए नजर आते हैं, ‘‘मैं छुपाऊंगा नहीं कि अलग-अलग समय पर मेरे मन में अलग-अलग विचार रहे हैं। लेकिन में रूस के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ूंगा”।

मार्च में चुनाव यह दिखाने के लिए करवाए जा रहे हैं कि दो साल पहले यूक्रेन पर आक्रमण करने के उनके फैसले को जनता का समर्थन हासिल है। विश्लेषकों का मानना है कि पुनःनिर्वाचन उनके लिए अपने राज को और अधिक वैधता प्रदान करने का जरिया होगा। अपने पक्ष में अधिक से अधिक मतदान से पुतिन का प्रयास रूस में अपनी लोकप्रियता का भव्य प्रदर्शन करने का होता है। वह समर्थन, जो बहुत से सुशिक्षित रूसियों के देश छोड़कर चले जाने, रूस के नए उभरते नागरिक समाज का गला घोंटे जाने और देश के पश्चिम से अलग-थलग पड़ जाने के बावजूद कायम है। स्वतंत्र रूसी जनमत सर्वेक्षण संस्था लेवाडा सेंटर द्वारा करवाए गए जनमत संग्रह के अनुसार 58 प्रतिशत रूसी चुनावों में पुतिन का समर्थन करेंगे।

यह भी कमाल है – या कहें जादू है – कि चुनावों में पुतिन का सामना जिन स्थितियों से हो रहा है, वे एक साल पहले की तुलना में काफी बेहतर हैं। उनकी सेना यूक्रेन के पूर्व से लेकर दक्षिण तक पूरे अग्रिम मोर्चे पर आक्रामक स्थिति में है और कीव को पश्चिम द्वारा दिए जा रहे हथियार एवं अन्य सहायता कम होती जा रही है। इजराइल-हमास युद्ध के चलते पुतिन की वैश्विक स्थिति बेहतर हुई है क्योंकि फिलिस्तीनियों के हितों के प्रति सहानुभूति रखने वाले पश्चिमी देशों के बीच मतभेद गहरा गए हैं। और रूसी अर्थव्यवस्था भारत, चीन और मध्यपूर्व के देशों से व्यापार जारी रख काफी हद तक पश्चिमी प्रतिबंधों के दुष्प्रभावों का सामना करने में सक्षम हो गई है, जिसके चलते पुतिन रूसी सरकार के खजाने को लबालब रख पाए हैं और उनका आत्मविश्वास आसमान छू रहा है। आप उनसे नफरत करें, उन्हें नापसंद करें, उन्हें युद्ध अपराधी कहें – लेकिन उनकी पिछले दो सालों की उपलब्धियों को कम करके नहीं आंका जा सकता।

मगर 2024 के बाद हालात बदल सकते हैं। यदि डोनाल्ड ट्रंप दुबारा राष्ट्रपति नहीं बन पाते – पुतिन यह उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रम्प वापस आएंगे  – और यदि यूक्रेन को मदद मिलती रहती है – तो उनकी समस्याएं बढ़ने लगेंगीं। अतीत में पुतिन घटते जनसमर्थन का मुकाबला जंग शुरू करके करते रहे हैं। लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। लेकिन यदि और जब तक यह नहीं हो पाता, तब तक नवालनी जैसे उनके मुखर आलोचक दुनिया के एक अंधेरे, ठंडे कोने में सड़ते रहेंगे और पुतिन ईश्वर से यह प्रार्थना करते रहेंगे कि वे उतने ही सक्रिय और फुर्तीले बने रहें जितने 25 साल पहले थे ताकि वे रूस के महानतम जीवित नेता बन सकें। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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