पाकिस्तानी लोगों ने कमाल किया।देश की सेना और उसके कंट्रोल कीसंस्थाओं, सरकार, चुनाव आयोग तथा अदालत की तिकड़मों,पाबंदियों और खौफ को ठेंगा बताया। अपने वोट से जेल में बंद इमरान खान के समर्थक निर्दलियों की ‘आश्चर्यजनक’ बढ़त बनाई। वे इमरान खान, जो खुद जेल में हैऔर जिनकी पार्टी पर प्रतिबंध है। उनकीतहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह बैलट पेपर पर नहीं था। लेकिन मतदाताओं ने उन उम्मीदवारों को छप्पर फाड़ वोट दिया है जिन्होने इमरान का नाम लेते हुए बतौर निर्दलीय, अलग-अलग चुनाव चिंहों पर चुनाव लडा!
इन पंक्तियों के लिखे जाते समय, चुनाव नतीजों की पूरी तस्वीर साफ नहीं है। इमरान खान समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने की संख्या सबसे ज्यादा है। 92काआंकडा है और पूरे नतीजे आने बाकी है। मतगणना में देरी और धांधली की शुरुआत गुरूवार को ही हो गई थी क्योंकि करीब 20 प्रतिशत फीसदी वोटों की गिनती के बाद मिले शुरूआती रूझानों में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को ‘आश्चर्यजनक’ बढ़त हासिल होती दिख रही थी। फिर मतगणना धीमी हो गई।थ आंतरिक मामलों के मंत्रालय के अनुसार देरी का कारण “संचार सुविधा की कमी” थी और यह कमी “चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था” सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए एहतियाती कदमों का नतीजा है। जबकि पहले के चुनावों में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी और मतदान के दिन ही आधी रात तक साफ हो जाता था कि चुनाव में किसकी जीत हुई है।
मतदानआठ फरवरी को हुआ था।12.8 करोड़ से ज्यादा पाकिस्तानियों ने नेशनल असेम्बली और चार प्रांतीय असेम्बलियां को चुनने के लिए वोट डाले। मतदान के दिनकड़ी सुरक्षा व इंटरनेट को पूरी तरह बंद रखने के बावजूद हिंसा हुई।
पाकिस्तान में सेना सुप्रीमों है।और इसके खिलाफ इमरान खान का विद्रोह हुआ। नतीजतन इमरान को जेल में डाला गया। अदालतों ने उन्हे और उनकी पत्नी को सजा सुनाई। उनकी पार्टी प्रतिबंधित हुई। लेकिन इमरान बदनाम नहीं हुए। उनसे लोगों की सहानुभिति बनी। लोगों ने पाकिस्तान की सेना को खलनायक माना। सेना के इशारों पर नाच रहे नवाज शरीफ और उनकी मुस्लिम लीग (नवाज) या पीएमएल-एन जनता की निगाहों में उतरी। खबरों के मुताबिक मतदान के समय लाहौर और इस्लामाबाद की सड़कों पर मतदाताओं के बगावती तेवर साफ नजर आ रहे थे और सेना-विरोधी भावनाएं चरम पर थीं क्योंकि बहुत से लोगों की मान्यता थी कि जनरलों ने चुनाव का नतीजा पहले से ही तय कर रखा है।
चाहे 1970 के दशक का जुल्फिकार अली भुट्टो का दौर हो या 1990 के दशक में नवाज शरीफ के पुराने कार्यकाल – ‘जीप वाले’ मतलब सेना के अधिकारी पहले आसानी से काबू में आने वाले नेताओं को समर्थन और बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन जब उनमें से कुछ ज़रुरत से ज्यादा स्वतंत्र होने लगते तो सेना ने उन्हें दबाने, अंततः उनसे छुटकारा पाया।
ऐसे ही 2018 में इमरान खान भी सेना के मोहरे थे। लेकिन जैसे-जैसे खान की वाक्पटुता के चलते उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई, इस पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी ने सेना के खिलाफ बोलना शुरू किया। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका के इशारे पर जनरलों ने उन्हें सत्ता से बाहर किया है। इस नैरेटिव से सेना की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।तब गुस्साए जनरलों ने तय किया कि पाकिस्तान की जनता इमरान को दुबारा सत्ता संभालने के लिए न चुन पाए।इमरान पर धोखाधड़ी और बेईमानी के आरोप लगाकर उन्हें आनन-फानन जेल में ठूंस दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी उनकी पार्टी के मकबूल चुनाव निशान – क्रिकेट का बल्ला- के बैलट में इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई।इससे उन लाखों अशिक्षित मतदाताओं के लिए मुश्किल खड़ी हो गई जो चुनाव चिन्ह देखकर मतदान करते हैं।
इमरान समर्थक निर्दलीयों को कटोरा, जूते और चिमटे जैसे चुनाव चिन्ह आवंटित किए गए, जिन्हें पाकिस्तान में अपमानजनक माना जाता है। मीडिया द्वारा इमरान खान के भाषणों या उनकी पार्टी के चुनाव प्रचार का कवरेज करने पर पाबंदी लगाई गई। इमरान खान और उनकी पीटीआई के खिलाफ कठोर कार्यवाहियां करके सेना ने जनता तक यह संदेश पहुंचाने का भरसक प्रयास किया कि वह खान की पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं करे।
पर इसके बाद भी वे खान और पीटीआई को प्रचार करने से रोका नहीं जा सके। लोगों ने खुद उनका प्रचार किया। प्रचार के पारंपरिक तरीके इस्तेमाल हो नहीं सकते थे इसलिए पीटीआई ने नये अनोखे तरीकों का प्रयोग कर पाकिस्तान के मतदाताओं में मैसेज बनवाया। पाकिस्तान के मतदाताओं में 67 फीसद 18 से 45 साल के हैं। नौजवानों में यूट्यूब, फेसबुक और टिकटोक से माहौल बना। एआई क्लोनिंग तकनीकी का प्रयोग कर ऐसे वीडियो बनाये गए जिनमें इमरान चुनावी रैलीयों को संबोधित करते दिख रहे थे जबकि असल में वे उस वक्त जेल में थे।
पीटीआई और पीएमएल–एन के अलावा भुट्टो खानदान के चिराग, बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी भी चुनाव मैदान में थे।खबर अनुसार प्रधानमंत्री पद के दोनों उम्मीदवार – नवाज़ शरीफ और बिलावल भुट्टो ज़रदारी – अपनी सीटों क्रमशः लाहौर और लरकाना से चुनाव जीत गए है।
कुल मिलाकर लगता है पाकिस्तान की जनता ने इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई पर भरोसा जताया है। मगर इस चुनाव में भी, पूर्व के चुनावों की तरह, मतदाता ही हारेंगे।इमरान खान के समर्थकों को जीतने नहीं दिया जा रहा है। सो सेना एक बार फिर अपनी चलाएगी।संभव ही नहीं है जो सेनाजनता की भावना, उनके फैसले को स्वीकार करें। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)