मौजूदा दौर तनी हुई मुट्ठियों और चढ़ी हुई भौंहों का है।दुनिया के हर हिस्से में नाराजगी है, गुस्सा है -परसिवाय जम्मू-कश्मीर के।जाहिर है बात चौकाने वाली है। लेकिन हकीकत है कि दुनिया के सबसे हिंसक और अतिवाद से सबसे ज्यादा ग्रस्त रहे इलाकों में से एक माने जाने वाले जम्मू-कश्मीर में कुछ समय से अमन-चैन है। पहले यह नामुमकिन लगता था, विशेषकर धारा 370 हटाए जाने के बाद। लेकिन जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अपना लोहा मनवा लिया है। उनका कार्यकाल जुनून और जज्बे से भरा रहा है और नतीजे में एक नया जम्मू-कश्मीर शक्ल ले रहा है। कश्मीर अपनी कहानी नए सिरे से लिख रहा है।
सन् 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद से यह क्षेत्र आहत था, बैचेन था। गिरीश चन्द्र मुर्मू के नौ महीने के छोटे से कार्यकाल में हालात और बिगड़े।लोग गुस्से से उबल रहे थे और उन्हें मनाना और शांत करना आसान नहीं था। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए कश्मीर एक तनावपूर्ण चुनौती बन गया था।शुरूआती असफलता से उन्हें अहसास हुआ कि कश्मीर को एक सख्त राजनीतिज्ञ की जरूरत है, जो लोगों से संवाद स्थापित कर सके।इसीके चलते हिन्दी पट्टी के खांटी,जमीनी राजनीतिज्ञ मनोज सिन्हा को मैदान में उतारा गया। उनको जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल चुननाअप्रत्याशित था।प्रदेश के राजनैतिक-सत्ता गलियारों में इस फैसले की जम कर आलोचना हुई। लोगों को नए उपराज्यपालपर बहुत कम भरोसा था। कश्मीर के पत्रकारों, नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों का मानना था कि सिन्हा का कार्यकाल सतपाल मलिक से भी छोटा और कड़वाहट भरा होगा।उनकी नियुक्ति से कयास लगाए जाने लगे थे कि जल्दी ही वहां चुनाव होंगे।
अब हम समय को फ़ास्ट फॉरवर्ड कर आते हैं 2023के मौजूदा वक्त पर।जल्द चुनाव होने की कोई संभावना नहींदिख रही है। और मनोज सिन्हा के पॉवर पर कोई रोकटोक नहीं है। हालांकि उन्हें हटाए जाने की अफवाहें होती रहती हैं, अनिश्चितता भी है और एक तबके में गुस्सा भी। बावजूद इस सबके हीमनोज सिन्हा एवं उनके प्रशासन के संबंध में अच्छी बातें भी कही जा रही हैं। उनकी तारीफ हो रही है और कश्मीर के लोग उन्हें सराह रहे हैं। जाहिर है जिन्हें नफरत ही करना है, वे तो करेंगे ही।जिन्हें असहमत ही रहना है, वे तो रहेंगे ही।और आलोचक, आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। लेकिन इस सच को कोईनज़रअंदाज़, नकार नहीं रहा है कि कश्मीर में बदलाव आया है। कश्मीरियों ने बदलाव की ओर कदम बढाए हैं।
मैं श्रीनगर, कश्मीर घाटी आती-जाती रही हूं। और इन चार वर्षों में जम्मू और कश्मीर में जिस तरह का बदलाव आया है उसके बारे में पहले कल्पना नहीं कर सकती थी।पुराने श्रीनगर में पत्थरबाजी खत्म है। वहा भी लोग और खासकर नौजवान तेजी से बढ़तेपर्यटन में अपने अवसर तलाश रहे है। कारोबार फल-फूल रहा है। जो पुराना था वह नया हो रहा है और जो नया था वह और बेहतर हो रहा है। कश्मीर बदल रहा है और जम्मू नया रूप ले रहा है। जहाँ कश्मीर में प्राचीन धार्मिक स्थलों को नया कलेवरदिया जा रहा है, वहीं जम्मू में नए मंदिरों का निर्माण हो रहा है। जम्मू और कश्मीर दोनों को अलग-अलग एम्स की सौगात मिली है। सरकारी योजनाओं का लाभ निचले तबके तक पहुंचा है।और भी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ। जी-20के सम्मेलन का आयोजन सफलतापूर्वक हुआ।34 सालों में पहली बार शिया मुसलमानों को श्रीनगर के बीच के इलाके में मोहर्रम का जुलूस निकालने की इज़ाज़त दी गई।नए सिनेमाघर बन रहे हैं और यहां तक कि ‘ओपेनहाइमर’ जैसी हॉलीवुड फिल्मों के शो भी हाउसफुल जा रहे हैं।पहली बार सड़कों पर होने वाली हिंसा रूकी है।अब हर शुक्रवार को होनेवाली पत्थराबाजी बंद है। पृथकवादियों द्वारा हड़ताल के आव्हान भी नहीं होते, जिससे स्कूलोंऔर कालेजों में पढ़ाई-लिखाई का माहौल बना है।इस तरह घाटी में लंबे समय बाद हालात सामान्य हुए हैं।अब मोबाईल नेटवर्क बंद नहीं किए जातेऔरछोटे-छोटे कैफ़े और फ्रेंच पेस्ट्री व केक की दुकानें, किसी पेंटिंग की तरह सुन्दर इस इलाके को और सुन्दर बना रहे हैं।झेलम रिवरफ्रंट, कश्मीर की चौपाटी बन गया है और पोलो व्यू मार्केट अब वहां का खान मार्केट है।एक समय कश्मीर दुनिया के उन इलाकों में शामिल था जहाँ फौजी बूट चारों तरफ दिखते थे और जहाँ हर तरह के टकराव आम थे।पर अब धीरे-धीरे कश्मीर अपने अतीत से बाहर निकल रहा है…और वह भी शान से।
जहां तक मनोज सिन्हा का सवाल है, मैंने पिछले तीन सालों में जितने भी लोगों से बात की हैउनमें से किसी ने उनके बारे में नकारात्मक बात नहीं कहीं। ना ही उनके प्रति गुस्सा जाहिर किया। मनोज सिन्हा खांटी आत्मविश्वास और करिश्माई व्यक्तित्व का संगम हैं। वे कई काम शुरू और पूरे करवाने में सफल हुए हैं। उन्होंने लोगों का दिल जीता है। वे कश्मीर घाटी में ‘आदाब’ और जम्मू में ‘नमस्ते’ से लोगों का अभिवादन करते हैं। उन्होंने गुरेज़ से पुंछ तक लोगों का भरोसाहासिल किया है और उनके साथ दिल का रिश्ता बनाया है। उन्होंने यह गलतफहमी दूर कर दी है कि बाहर का व्यक्ति कभी इस राज्य और यहाँ के लोगों, विशेषकर कश्मीरियों, की भावनाओं को नहीं समझ सकता। इसलिए कभी भी इस क्षेत्र और यहां के लोगों कोठीक से शासन नहीं दे सकता। उन्होंने एक साल में यहां की नब्ज जितने अच्छे से पकड़ी, वैसी इससे पहले यहां के ही अब्दुल्ला और मुफ्ती भी नहीं पकड़ पाए थे। वे पंडितों को और उनकी पीड़ा को समझते हैं तो सुन्नियों को व उनके अन्दर धधक रहे आक्रोश को भी। और उन्होंने दोनों से ही राजनीतिक दृष्टि से स्वीकार्य परन्तु एक हद तक दूरी बनाकर व्यवहार करने का तरीका खोज लिया है। भाजपा की तरह उनकी प्राथमिकता भी अल्पसंख्यक हैं – कश्मीरी हिन्दू, बकरवाल, पहाड़ी, गुर्जर और शिया। और वे पहले ऐसे उपराज्यपाल हैं जिसने श्रीनगर के सबसे खतरनाक समझे जाने वाले बोटा कदल का दौरा किया और मोहर्रम के दौरान ज़ुल्ज़िनाह पर चादर चढ़ाई। वे हर काम पर खुद नज़र रखते हैं – चाहे वह हजयात्रियों को ले जाने वाले पहले विमान की रवानगी हो या अमरनाथ यात्रा की तैयारियां। उनका ध्यान जम्मू पर भी रहता है जिसकी अतीत में हमेशा उपेक्षा होती थी।
संदेह नहीं कि मनोज सिन्हा प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास के नारे से किसी भी दूसरे राज्य के मुख्य प्रशासक की तुलना में अधिक गहराई से जुड़े हैं।सबके लिए आश्चर्य की बात है कि पूर्वी उत्तरप्रदेश के बाहर की दुनिया के लिए अपरिचित राजनेता से वे आज श्रीनगर के एक ऐसे प्रशासक हैं जिसे काम करना और करवाना आता है, जिसने नामुमकिन को मुमकिन करने की हिम्मत दिखाई है।संभवतया इस बात का भान दिल्ली के सत्ता गलियारों को भी है।तभी उनका नाम इज्ज़त से लिया जाता है और आश्चर्य नहीं जोजम्मू-कश्मीर के सबसे पुराने राजनीतिक दल के वरिष्ठ और वयोवृद्ध नेता को निराशा के अंधेरे में भी आशा की किरण नजर आती है। उन्हें लगता है कि बेहतरीन काम करने के कारण मनोज सिन्हा को जल्दी ही कश्मीर से हटाकर किसी अन्य राज्य में भेज दिया जाएगा!
पिछले चार वर्षों में मैंने, दूर से ही सही, श्रीनगर के अनुभव में मनोज सिन्हा को काम करते, लोगों से मुलाकात करते औरआमसभाओं में भाषण देते देखा है। उनसे मुलाकात भी की है – और इन सभी मौकों पर मैंने उन्हें तनावमुक्त, आत्मविश्वास से भरा हुआ, समर्पित, गर्मजोशी से लबरेज और एकाग्र पाया। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी जड़ें जमा ली हैं और कश्मीर उन्हें अपने घर जैसा लगने लगा है।पिछली मुलाकात के दौरान मैं स्वयं को उनसे यह सवाल करने से नहीं रोक सकी कि क्या उन्हेंइस राजभवन में राजनीति के अपने दिनों की यादें नहीं कचोटतीं।
यह सुनकर उनकी आंखों में चमक आ गई। मुस्कुराते हुए जवाब दिया,“जम्मू कश्मीर में हर बात में, और हर जगह राजनीति ही राजनीति है।” जाहिर कि वे खुल कर बात करने में गुरेज़ नहीं करते।…‘‘हर दिन मुझे कश्मीर की नई समस्याओं, नए मसलों की जानकारी मिलती है। अभी-अभी मुझे पता लगा है कि कश्मीर विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शनशास्त्र नहीं पढ़ाया जाता।”
राजनीति में मौका ताड़कर सही कदम उठाने का बहुत महत्व होता है। कश्मीर में भी ऐसा ही है।और कश्मीर का बार-बार लगातार यश, गौरव और प्रसिद्धि हासिल करने के लिए उपयोग तथा दुरुपयोग किया गया है। नौकरशाह, पत्रकार, नागरिक संगठन और राजनीतिज्ञ – सभी ने मौके का फायदा उठाने और प्रसिद्धि हासिल करने के लिए इसके जख्मों को छेड़ाहै। मनोज सिन्हा इसके अपवाद हैं।उन्होंने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था और उनका कर्म जारी है।
कश्मीर में जो हो रहा है, उसकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।बावजूद इसके यह नहीं कहा जा सकता कि घाटी और राज्य में सब कुछ ‘चंगा सी’। और वे भी इससे सहमत हैं।“सोच को बदलने में समय लगता है”, वे हर मुलाकात में यह दुहराते हैं। हां, समय तो लगेगा, लेकिन अभी कश्मीर के लिए अच्छा समय है– उसका नाम हो रहा है, वह आगे बढ़ रहा है, हवा में ताजगी है और माहौल में अमन है।और इसका श्रेय मनोज सिन्हा को जाता है। राजनीति के मैदान में उनका प्रदर्शन कैसा रहेगा, वे कश्मीर में रहेंगे या चले जाएंगे, राज्य में कितनी शांति रहेगी, अनिश्चितता के हालात कब तक जारी रहेंगे? इन सारे प्रश्नों का उत्तर समय देगा।लेकिन एक बात तय है।मनोज सिन्हा को कश्मीर का इतिहास एक भले आदमी व असरदार प्रशासक के रूप में याद रखेगा।(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)