राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

क्या महसा अमिनी ने ज़िन्दगी यूं ही गँवा दी?

पिछले साल पूरा ईरान तब स्तब्ध रह गया था जब युवा कुर्दिश-ईरानी युवती महसा अमिनी को अपने बाल सार्वजनिक रूप से दिखाने की कीमत हिरासत में मौत के रूप में चुकानी पड़ी थी।उस घटना से ईरान की लड़कियां, किशोरियां और महिलाएं बहुत दुखी और परेशान हुईं। वे सड़कों पर उतरीं, उन्होंने अपना गुलूबंद जलाया और बाल कटवाए। पुरूष भी महिलाओं के समर्थन में आगे आए और इसने कई वर्षों में हुए देश के सबसे बड़े सरकार-विरोधी प्रदर्शनों का रूप ले लिया। जैसा कि अनुमान था, इस प्रतिरोध को सख्ती से दबाया गया। ईरान के सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को पीटा, सैंकड़ों मारे गए और हजारों को गिरफ्तार किया गया। दुनिया ने ईरानियों का समर्थन किया और सरकार की कार्यवाही की निंदा की। लेकिन आज एक साल बाद विरोध बहुत कम हो गया है और सरकार अपने दोस्तों, सहयोगियों और दुश्मनों से हाथ मिलाकर अपनी राजनैतिक और आर्थिक स्थिति बेहतर करने में व्यस्त है।

तेल का निर्यात पहले के स्तर तक पहुंच चुका है और इसी सप्ताह ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भाग लेने के लिए न्यूयार्क पहुंचेंगे। इस बीच ईरान की संसद में एक नया कानून विचाराधीन है जिसके जरिए मोरल पुलिस को पुनर्जीवित किया जाएगा (जिसे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर भंग कर दिया गया था) और वेशभूषा संबंधी नियमों का उल्लंघन करने पर नए दंडों का प्रावधान किया जाएगा।

जो सरकार प्रदर्शनों के शुरूआती दिनों में घबराई हुई थी, उसकी हिम्मत दुबारा बंध गई है।

लेकिन वैश्विक मीडिया के मुताबिक सतह के नीचे अब भी विद्रोह और विरोध जिंदा है। जुलाई में कई ईरानियों ने देश के नेताओं द्वारा आशूरा के मौकेपर आयोजित किए जाने वाले लोकप्रिय धार्मिक जुलूसों का बहिष्कार किया। यह शियाओं का एक बड़ा उत्सव होता है। अभी भी कई महिलाएं सिर ढंकने और सादगीपूर्ण वस्त्र पहनने के कड़े नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। धार्मिक राज्य के प्रति तिरस्कार का भाव, जिसके चलते महिलाओं ने नकाब पहनना बंद कर दिया था, इतना अधिक है कि रूढ़िवादी पिताओं तक ने अपनी बेटियों को उनकी मर्जी के कपड़े पहनने की आजादी दे दी है।

और अधिकाधिक लोग कार्ड के बजाए नकद लेनदेन कर रहे हैं ताकि एक ऐसी सरकार, जिसे वे अवैध मानते हैं, को टैक्स न मिले। विरोध प्रदर्शनों और बगावत के पक्ष में माहौल साफ नजर आता है। सरकार की लोकप्रियता और उसके प्रति समर्थन में गिरावट आई है। लेकिन सरकार इस सबसे बेफ्रिक है और उसका तानाशाहीपूर्ण रवैया बढ़ता जा रहा है। सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खमेनी ने इस्लामिक गणतंत्र का नेतृत्व करने की आकांक्षा त्याग दी है और अब वे केवल एक इस्लामिक सरकार को चलाने की उम्मीद रखते हैं। दूसरी और राष्ट्रपति रईसी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हुए हैं। वे अपने पूर्ववर्तियों और उनके अनुयायियों – चाहे वे सुधारवादी हों या कट्टरपंथी – से दूरी बनाए हुए हैं और सन् 2008 में सुधारो के पक्ष में अभियान चलाने वाले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अभी भी घर पर नजरबंद हैं।

बढ़ते नियंत्रणों, बंदिशों, वेशभूषा संबंधी जुर्मानों और गिरती हुई अर्थव्यवस्था के चलते बहुत से ईरानी देश छोड़ रहे हैं। लेकिन चीन और रूस जैसे देश इस कट्टरपंथी सरकार के साथ गठजोड़ और व्यापार बढ़ा रहे हैं। हाल में ईरान को ब्रिक्स में शामिल होने का न्यौता दिया गया और सबसे कट्टर शत्रु – ईरान और सऊदी अरब – भी एक दूसरे के निकट आ रहे हैं। इसी माह ईरान और सऊदी अरब ने एक-दूसरे के यहां राजदूत नियुक्त किए। यहां तक कि अमेरिका के साथ चल रहे तनावपूर्ण संबंध भी बेहतर हुए हैं। रईसी अमेरिका के दौरे पर हैं और ऐसी चर्चा है कि अमेरिका के साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के संबंध में एक नए समझौते पर बातचीत हो सकती है। ईरानी सरकार अपनी जनता की नाराजगी तो दूर नहीं कर पा रही है लेकिन वह विश्व समुदाय से चल रही तनातनी को कम करने में जरूर सफल रही है। और विश्व समुदाय – जो एक युद्ध और वैश्विक संकट से जूझ रहा है – इस कट्टरपंथी और अधिनायकवादी सरकार को झेल रहा है।

ईरानी जनता लड़ रही है बल्कि यह कोशिश कर रही है कि महसा अमिनी की मौत बेकार न जाए। लेकिन जहाँ एक समय दुनिया ने जनता के साथ उसके व्यवहार के चलते ईरानी सरकार को बहिष्कृत कर दिया था वहीं आज ईरान की जनता अकेली पड़ गई है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

Tags :

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *