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गजब! उद्धव ठाकरे भीड़ के चहेते

महाराष्ट्र में सहानुभूति की लहर है। मगर वह शरद पवार के लिए ज्यादा है। उद्धव तो सम्मान पा रहे हैं, प्रशंसा हासिल कर रहे हैं।… वे अपनी नयी विरासत का निर्माण कर रहे हैं, वे अपने नए समर्थक तैयार कर रहे हैं।… वे चाहते हैं कि उनकी शिवसेना केवल एक कट्टर हिन्दू पार्टी न बनी रहे बल्कि एक समावेशी हिन्दू पार्टी बने।

पुणे से श्रुति व्यास

पुणे। वे मंच पर जैसे ही खड़े हुए और अपना भाषण शुरू किया तो सभा स्थल में  शांति और सन्नाटा। श्रोतागण अपनी-अपनी कुर्सियों पर सीधे बैठ गए। और पूरी गंभीरता तथा एकाग्रता से उन्हे सुनने लगे। उन्होंने ऊंची आवाज में जब ‘महाराष्ट्राची अस्मिता’की बात कही तो श्रोताओं ने जोरदार आवाज में उनका समर्थन किया।फिर जब नरेन्द्र मोदी पर वे गरजे तो लोगों ने भी मोदी को हूट किया, सीटियां बजाईं और तालियां भी।उनके शब्दों में उनके दिल की आग झलक रही थी।भीड़ मानों चुंबकीय आकर्षण में बंधी हुई।उन्होंने वाकपटुता के साथ मराठी में लोगों को बताया कि क्या सही है और क्या गलत। स्वंयस्फूर्त जोश, उत्साह और उल्लास का ऐसा वह माहौल जो मुझे दस साल पहले मुझे तब दिखलाई दिया था जब मैंने 2014 में नरेंद्र मोदी को बोलते और लोगों को झूमते देखा था।

वैसा ही नजारा था 30 अप्रैल, मंगलवार की शाम पुणे में आयोजित उद्धव ठाकरे की आमसभा में।

जनसभा उद्धव ठाकरे की बातें ध्यान से सुन रही थी।और मैं मराठी के उनके वाक्यों के साथ लोगों की तालियों, हुंकारों को सुन-देख हैरान थी (साथ खड़े एक मऱाठीभाषी से समझते हुए कि ठाकरे ने क्या कहा जो  लोग ऐसे रिएक्ट है।) कि क्या ये वही उद्धव ठाकरे है जिनके बारे में एक समय लगता था कि वे न तो राजनीति करने के लिए बने हैं और न ही उनमें राजनीति की पेंचीदगियों से जूझने की क्षमता है।

मगर पूणे की सभा में लोगों के साथ उनकी केमेस्ट्री देख साफ समझ आया कि सन् 2022 के सियासी झटकों से एक नए उद्धव ठाकरे का जन्म हुआ है।और मितभाषी व्यक्ति का सौम्य व गंभीर व्यक्तित्व अब न केवल साहसी है बल्कि जबरदस्त आक्रामक भी।

मैंने 30 अप्रैल को जिस उद्धव ठाकरे को देखा, जिसकी मैं साक्षी बनी, वे बिल्कुल भी वैसे नहीं थे जैसे अखबारों या टीवी पर नजर आते हैं। दूर से वे एक निस्तेज राजनीतिज्ञ नजर आते है – एक दब्बू और सौम्य व्यक्ति जिससे यह उम्मीद नहीं की जाती थी कि वह अपने पिता बालासाहेब ठाकरे, जिन्हें महाराष्ट्र में राजनीति का सुप्रीमो, शेर माना जाता था, जैसी ही दृढ़ता और राजनीतिक सख्ती प्रदर्शित करेंगे, वह भी तमाम प्रतिकूल स्थितियों में। मिलनसार और शर्मीले स्कूली छात्र की भाव-भंगिमा वाले उद्धव, जिनका आकर्षक व्यक्तित्व भी राजनीति के लिए अनुपयुक्त नजर आता था, से यह भर अपेक्षा थी कि वे अपने अपने पिता के राजनैतिक उत्तराधिकारी बनेंगे। प्रारंभ में  तब यह भी माना गया था कि उद्धव ठाकरे में यह क्षमता भी नहीं है। वे आज के समय की भौंडी राजनीति की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे। उन्हें राहुल गांधी की तरह अनिच्छुक राजनीतिज्ञ और विरासत का अक्षम उत्तराधिकारी मानकर खारिज किया जा रहा था।

यह स्वयंसिद्ध है कि राजनीति में राजनेता के व्यक्तित्व का बहुत महत्व होता है। बारह साल पहले जब बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उद्धव ने शिवसेना का नेतृत्व संभाला तो लगता था कि वे राजनीति में शायद ही कोई कमाल दिखा पाएं।कई आलोचकों और राजनीतिक पंडितों ने बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद भविष्यवाणी कर दी थी कि शिवसेना का अंत निकट है। लेकिन उद्धव ठाकरे पार्टी को जोड़े रखने में कामयाब रहे, और उनके नेतृत्व में पार्टी सड़कछाप लड़ाकों के समूह से एक परिपक्व राजनैतिक दल में बदली।इसी तरह की भविष्यवाणियाँ 2022 में भी तब की गई थी जब एकनाथ शिंदे ने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर कब्जा कर लिया।मीडिया नैरेटिव में बताया गया था कि उद्धव इस धक्के से नहीं उबर पाएंगे, इस तूफान का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।

लेकिन अब, 2024 के चुनावी समय में उद्धव ठाकरे बहुत चतुराई और कुशलता से राजनीति कर रहे हैं। किसने सोचा था कि सौम्य और शांत व्यक्तित्व के उद्धव ठाकरे भीड़ के चहेते बन पाएंगे?

सहज-सरल चाल-ढाल, और पहले जैसी मधुर मुस्कान प्रदर्शित करते हुए, उद्धव ठाकरे इस चुनाव में भरपूर आत्मविश्वास में नजर आते हैं।उनकी झकास राजनैतिक वाकपटुता,उनका बढ़ता राजनैतिक कद और उनका बिंदास  रवैया सबका ध्यान खींचता है। उन्होंने अपना व्यक्तित्व एंग्री यंग मैन का नहीं बनाया है और ना ही उनके सुर और भाषा में निर्ममता या छिछलापन है। वे पहले जैसे ही हैं। बस बुरे दौर ने उन्हें एक जोशीला, साहसी और खुद्दार राजनीतिज्ञ बना दिया है।

मंच पर उद्धव के साथ भारतीय राजनीति के बुजुर्ग शरद पवार बैठे थे, लेकिन उद्धव का प्रभामंडल भी शरद पवार जितना ही भव्य था। उस शाम वे अंतिम वक्ता थे, और भीड़ धैर्य से बैठकर उनके भाषण का इंतजार कर रही थी। वह उन्हें सुनने को उत्सुक और उत्साहित थी। कई युवा सिर्फ उन्हें सुनने आए थे, कई लोग इसके लिए अपने दफ्तरों से जल्दी निकल गए, और महिलाएं और लड़कियां चूल्हा-चौका छोड़कर उन्हें सुनने के लिए सभा में पहुंची थीं। गरजते हुए मराठी में उद्धव ने वही कहा जो उन्हें कहना चाहिए था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आड़े हाथ लेते हुए मोदी की  शरद पवार पर की गई ‘भटकती आत्मा’ वाली टिप्पणी का जिक्र किया और मोदी को ‘असंतुष्ट आत्मा’ बताया।

उन्होंने भाजपा का मखौल बनाया, मोदी पर तीखे वार किए मगर उन्होंने छिछले शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने भीड़ को हंसाया भी और उसे सोचने पर मजबूर भी किया।

इसके पहले मैंने जनता में इस तरह का जोश, किसी नेता को सुनने का इस तरह का उत्साह, 2014 में देखा था, तब जब नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनैतिक मंच पर प्रकट हुए थे। राजनीति के ज्ञानी और ड्राइंगरूम पत्रकार कह रहे हैं कि उद्धव की ‘मशाल’ को जनसमर्थन इसलिए मिल रहा है क्योंकि लोगों की उनके प्रति सहानुभूति है। मगर मुझे ऐसा नहीं लगा कि केवल हमदर्दी के कारण लोग उनके प्रति इतने आकर्षित हैं। उद्धव ने महाराष्ट्र की जनता के दिलोदिमाग में अपनी जगह बना ली है, ठीक उसी तरह जिस तरह  2014 में मोदी ने बनाई थी।

चुनाव में उद्धव ने अपनी ताकत दिखा दी है। उन्होंने यह साफ़ कर दिया है कि वे राजनीति के मैदान के योद्धा हैं। उन्होंने राजनैतिक युद्ध लड़ने की कला में महारत हासिल कर ली है। जिन चीज़ों में उनकी आस्था है, वे जनता में उन्हीं चीज़ों के प्रति आस्था पैदा कर रहे हैं। वे वटवृक्ष की छाया से बाहर आ गए हैं। हाथों में मशाल पकडे, वे लोगों का नेतृत्व कर रहे हैं।

महाराष्ट्र हमेशा से एक प्रगतिशील राज्य रहा है। मगर वह अपनी संस्कृति पर गर्व करता है।गुजरात और मध्यप्रदेश का यह पड़ोसी राज्य, दक्षिण भारत का सिंहद्वार है। वह कई संस्कृतियाँ और भाषाओँ का मिलनस्थल है। महाराष्ट्र के एक ओर समुद्र है और दूसरी ओर पहाड़। और उसमें दोनों के ही गुण नज़र आते हैं। मराठा संस्कृति और उस पर गर्व ने उसे आधुनिक कला और नए व्यंजनों को गले लगाने से नहीं रोका। पिछले दशकों में उसे अनगनित  राजस्थानियों, तमिलों, बंगालियों और तेलुगू लोगों ने  अपना घर बनाया है। इस बहुवादी समाज में पैदा हुई नयी पीढ़ी ने एक नयी राजनीति को जन्म दिया है। यही कारण है जो 2019 में शिवसेना की मदद से, उसकी 18 सीटों से ज़्यादा  भाजपा प्रदेश में 23 सीटें जीत सकी थी।

चुनाव 2024 में हालात बदले हुए हैं। महाराष्ट्र मोदी की भाजपा के लिए चुनौती बन गया है। वहां की राजनीति अब ‘वोकल फॉर लोकल’ है। और उद्धव को इसका फायदा मिल रहा है। वे और उनकी मशाल वह रोशनी है जो प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद, षड़यंत्र और नफरत की राजनीति – जो महाराष्ट्राची अस्मिता के लिए खतरा माने जाने लगी है – के खिलाफ राह को रोशन कर रही है। वे अपने लोगों को कह रहे हैं कि उन्हें उनकी चिंताओं और परेशानियों का ख्याल है, वे उन्हें यह याद दिलाने से भूलते नहीं कि नकली डिग्री वाला एक बाहरी व्यक्ति उनकी शिवसेना को नकली बता रहा है।

महाराष्ट्र में नयी पीढ़ी प्रगतिशील सोच से उतनी ही लैस है जितनी की पिछली। मगर वह अपने मूल्यों को खोना नहीं चाहती। वह रोज़गार की बात करती है, वह आरक्षण की बात करती है, वह आगे बढ़ना चाहती है, वह रेवड़ियों के खिलाफ है।

इसलिए उत्तर भारत में क्रोध से लालपीले हो रहे हनुमान हैं और असभ्य व अशिष्ट हिंदुत्व है और मोदी की राजनीति के कारण, उनकी देखादेखी उत्तर भारत में विपक्ष भी हार्डकोर हिंदुत्व की पैरोकारी करने पर मजबूर हैं।लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव, बालासाहेब की राजनीति से आगे जा रहे हैं। वे अपने और अपनी पार्टी पर कोई लेबल चस्पा नहीं करना चाहते। वे चाहते हैं कि उनकी शिवसेना केवल एक कट्टर हिन्दू पार्टी न बनी रहे बल्कि एक समावेशी हिन्दू पार्टी बने।

जब उद्धव बोलते हैं तो उनके साथ जो धोखा हुआ, उसका दर्द उभर कर सामने आता है। मगर इसके साथ ही उनका यह संकल्प भी दिखता है कि जो गलत हुआ, वे उसे ठीक करेंगे। उद्धव तनाव में नहीं हैं, वे प्रसन्नचित्त है और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है – मगर इस आत्मविश्वास में न तो अहंकार है और ना ही अकड़।

महाराष्ट्र में सहानुभूति की लहर है। मगर वह शरद पवार के लिए ज्यादा है। उद्धव तो सम्मान पा रहे हैं, प्रशंसा हासिल कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के केंद्र में उद्धव ठाकरे हैं। वे कितनी सीटें जीतेंगे और कितनी हारेंगे यह एक अलग कहानी है। मगर एक बात तय है। जो भी कहानी वे लिखेंगे, वह उनकी पिता की विरासत पर आधारित नहीं होगी। वे अपनी नयी विरासत का निर्माण कर रहे हैं, वे अपने नए समर्थक तैयार कर रहे हैं। वे एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे हैं जो मिलनसार होने के साथ-साथ राजनैतिक कौशल और शक्ति से भी लैस है।

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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