Mahakumbh 2025: क्या आपने महाकुंभ की तस्वीरें देखी हैं? यकीनन देखी होंगीं। उन पर किसी की नजर न पड़े यह मुमकिन ही नहीं है।
सोशल मीडिया उनसे अटा पड़ा है, वे टीवी-मोबाईल समेत सभी स्क्रीनों पर हैं और अखबार उनसे भरे हुए हैं।
मुझे उनमें से सबसे ज्यादा पसंद वह फोटो आई जो काफी ऊंचाई से एक हेलीकाप्टर से खीची गई है और उत्तर प्रदेश सरकार ने जारी की है।
इस फोटो में खंभों पर लगी लाईटें तारों की जगह टिमटिमा रही हैं। धुंध है और ठंड का माहौल है। आकाश धुंधला और अंधकारमय है लेकिन जमीन पर रंग-बिरंगी ज़िन्दगी इठला रही है।
also read: अभिनेता सैफअली खान पर चाकू से हमला, हॉस्पिटल में सर्जरी जारी…हादसा या रंजिश
क्षितिज नजर नहीं आ रहा है, लेकिन आप संगम को देख सकते हैं। लोगों का समुद्र है लेकिन केवल लाल बिन्दुओं के रूप में।
लाल, नीले और पीले रंग की नावों की लाइन नहाने के लिए तय जगह की सीमा खींच रही हैं। इसके आगे पवित्र नदी है, जिसकी पवित्रता कायम है सिवाए तब के जब वीवीआईपी वहां अपने पाप धोने आते हैं।
दसियों लाख लोगों को अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए संगम का एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही उपलब्ध है। कुछ लोग नंगे बदन पवित्र डुबकी लगा रहे हैं।
माहौल जितना देखने लायक है उतना ही आध्यात्मिक भी है। आप आस्था की ख़ुशबू को मानो महसूस कर सकते हैं।
मगर जिस चीज़ ने मेरा ध्यान सबसे ज्यादा खींचा वह था तस्वीर में लाल रंग का वर्चस्व – वह पवित्र लाल रंग जो आपको असीम आनंद और उमंग से सराबोर कर सकता है।
आस्था की उमंग
सन् 2013 में मैंने अपने परिवार को मुझे महाकुंभ में ले जाने के लिए करीब-करीब मजबूर किया था। मैं 12 साल में एक बार वहां बनने वाले विलक्षण माहौल को देखना और महसूस करना चाहती थी।
मैं अखबारों और टीवी पर इसकी खबरें और तस्वीरें देखकर मोहित हो गई थी। मैं संगम के आसपास के मूड और लोगों की श्रद्धा का अनुभव करना चाहती थी।
मैं भीड़-भड़क्का और आस्था की उमंग देखना चाहती थी। मैं आधुनिक दौर के तीर्थयात्रियों और उनकी उस भक्ति भावना का दर्शन करना चाहती थी, जो उन्हें मेले तक खींचकर ले आती है।
यह सब अतिविचित्र था। आस्था की शक्ति से अधिक मैं वहां संगम के ठंडे पानी में डुबकी लगाने वाले हर पुरूष और महिला के बेलगाम उत्साह और प्रसन्नता की साक्षी बनी।
पानी से निकलते समय न तो उनके दांत किटकिटा रहे थे और ना ही उनके बदन कांप रहे थे। बल्कि वे आनंद में डूबे सर से पैर तक एक नए व्यक्ति नजर आ रहे थे, जो उस पल की पवित्रता से भावविभोर था।
महाकुंभ आस्था के सिवाय हर लिहाज से महा
फ्लैशबैक से आज पर वापस आते हैं। कल के शाही स्नान को कवर करने गए एक फोटो पत्रकार से मैंने बात की। वे पहली बारे कुम्भ गए थे। (Mahakumbh 2025)
मैंने उनसे पूछा, “क्या वहां सब कुछ वैसा ही था जैसा आपने सोचा था?” उनके जवाब में ज़रा भी उत्साह और उमंग नहीं थी। वे थके हुए और भूखे थे, कई घंटे विकट सर्दी झेल चुके थे और 13 जनवरी की अलसुबह से जागे हुए थे।
कहीं कोई महत्वपूर्ण चीज़ छूट नहीं जाए इसलिए वे लगातार दौड़ते-भागते रहे। मेरा अगला प्रश्न था, “आस्था का कितना जोश है?” “काहे की आस्था, कहाँ की भक्ति।।
लोग आ रहे हैं, डुबकी लगा रहे हैं, फोटो खिंचवा रहे है और निकल रहे हैं”, उन्होंने जवाब दिया।” वे निराश नज़र आ रहे थे।(Mahakumbh 2025)
मगर मुझे यह सब सुनकर तनिक भी धक्का नहीं लगा। मेरे और आपकी तरह कई लोग यह देख पा रहे हैं कि इस साल महाकुंभ हर लिहाज से महा है, सिवाय आस्था के।
1954 और 2025 का कुंभ
सन 1954 के कुंभ का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहा है, जो ब्लेक एंड व्हाईट में आपको आडंबरहीन दौर में ले जाता है।
लोग बैलगाड़ियों, बसों और यहां तक कि पैदल चलकर पहुंच रहे हैं। महिलाएं और पुरूष डुबकियां लगा रहे हैं, अपनी प्रार्थनाओं में मगन हैं, आनंद में डूबे हैं, शांति चाह रहे हैं।
अब एक बार फिर 2013 के महाकुंभ की बात। वह ऐसा समय था जब पवित्र नदी में डुबकी लगाने की पवित्रता बाकी थी।
युवा लड़के और लड़कियां, इन्फ्यूलेंसर्स, साध्वियां और कंटेट क्रियेटर्स नहीं थे जो लाईक्स और वाईरल होने के लिए सजे-धजे और कुम्भ के अनुरूप कपडे पहने हुए हों।
नए भारत’ का पहला कुंभ(Mahakumbh 2025)
इस बार सोशल मीडिया पर चल रही खबरों से लेकर तस्वीरों तक, महाकुंभ को एक मेले की तरह दिखाया जा रहा है जिसका उपयोग आप वाईरल होने के लिए कर सकते हैं।
लेकिन इससे बढ़कर इसका लेना देना राजनीति से है। ‘नए भारत’ का पहला कुंभ, जो उस शहर में हो रहा है जिसका नाम इलाहाबाद से बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है।
सारे देश में मोदी और योगी के फोटो वाले जो पोस्टर इसके प्रचार-प्रसार के लिए लगाए गए है, उनमें महाकुम्भ को “भारत की कालजयी आध्यात्मिक विरासत की अभिव्यक्ति” बताया जा रहा है।
एक आध्यात्मिक आयोजन को देश की राष्ट्रीय पहचान से जोड़ा जा रहा है। महाकुंभ उत्सव की जगमग में खो रहा है। तब सवालों का जवाब मिल सकना असंभव ही है।(Mahakumbh 2025)
इस बार महाकुंभ में आस्था, आध्यात्म और जवाबों की तलाश या सुकून के अवसर कम ही होंगे। ऐसा ही पिछले साल अयोध्या में लगा था। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)