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पुतिन, किम और शी तीनों भाई-भाई !

दुनिया बदल रही है, पलट रही है और युद्धों में उलझ रही है। वही वह प्रजातंत्र और उसकी भाषा से दूर खिसक रही है। नतीजतन राईट‘ (दक्षिणपंथ) को राईट‘ (सही) साबित करने पर आमादा है। पुराने दोस्त, दोस्ती का लबादा ओढ़े जहां दुश्मनी निभा रहे हैं तो पुराने दुश्मनों में गलबहियां हो रही हैं। दुनिया के लिए, हम सबके लिए, खतरनाक लोग एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। उनकी सोच और इरादे एक से हैं इसलिए वे दोस्त बन नए गठबंधन बना रहे हैं। 

बुधवार की सुबह आप सब अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देख सकेंगे कि एक से डीलडौल वाले उन दो उम्रदराज लोगों को, जो सोच और मिजाज़ में एक से हैं। तब उनके चेहरे और उनकी आँखें चमक रही होंगी। वे या तो एक दूसरे से गर्मजोशी से हाथ मिला रहे होंगे या गले मिल रहे होंगे। उनके नख से शिख तक दुष्टता टपक रही होगी। पश्चिम और सारी दुनिया के लिए उनका एक ही सन्देश होगा, “हम से बच कर रहो”। 

कल व्लादिमीर पुतिन अपने अज़ीज़ दोस्त, अपने प्यारे भाई की धरती प्योंगयांग पर होंगे। पुतिन पिछले 24 सालों में पहली बार उत्तर कोरिया जा रहे हैं। जाहिर है कि रूसी तानाशाह के शानदार स्वागत करने में उत्तर कोरिया का तानाशाह कोई कोरकसर बाकी नहीं रखेंगा। किम योंग यह नहीं भूले होंगे कि रूस की उनकी दो पिछले यात्राओं के दौरान पुतिन ने उनके लिए लाल कालीन बिछाया था।

दोनों नेताओं को एक-दूसरे से जोड़ने वाला एक तार है। और यह तार उन्हें एक दूसरे का पूरक भी बनाता है। दोनों खलनायक हैं और इसलिए दोनों में अच्छी पटेगी। दूसरे, दोनों दुनिया से अलग-थलग है। इसलिए अपने अकेलेपन को दूर करने में एक-दूसरे के मददगार बन सकते हैं। दुनिया दोनों पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगा कर परेशान कर रही है। ऐसे में भला वे मिलकर पलटवार क्यों न करें

उत्तर कोरिया में रूस के राजदूत एलेग्जेंडर मात्सगोर ने शायद भविष्य को ध्यान में रख कर ही कहा है कि यह साल दोनों देशों के बीच भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगा। 

पुतिन की यात्रा, नए आयाम कायम करने की दिशा में पहला कदम है। क्रेमलिन द्वारा जारी एक नोट के अनुसार, दोनों नेता एक दूसरे के साथ अनौपचारिक बातचीत में काफी समय बिताएंगे। वे दोनों देशों पर पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से निपटने के तरीकों और सुरक्षा व अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा करेंगे।  

दोस्ती के सारे नाटक के बावजूद, सच यह है कि दोनों देश एक-दूसरे को फूटी आँखों नहीं सुहाते। मगर इन दोनों के बीच बढ़ता भाईचारा दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है और खतरे की घंटी भी। 

महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि जहाँ रूस से लड़ाई जारी रखने के लिए यूक्रेन को हथियार आदि सप्लाई करने के मुद्दे पर पश्चिम के खेमे में विवाद और मतभेद हैं, वहीं उत्तर कोरिया, रूस के भाई की भूमिका बहुत अच्छे से निभा रहा है। 

यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण मगर सच है कि किम जोंग अपने बड़े भैया पुतिन की हर तरह से मदद कर रहे हैं ताकि वे युद्ध लड़ते रहें और युद्ध का इलाका बढाते रहें। उत्तर कोरिया ने सोवियत संघ के दौर की तोपों और टैंकों में इस्तेमाल होने वाले दसियों लाख गोला-बारूद रूस को उपलब्ध करवाए हैं। साथ ही उसने रूस को बैलिस्टिक मिसाइलें और युद्ध में काम आने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी निर्यात किये हैं। इससे यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान को मदद मिली है। उत्तर कोरिया की केन्द्रीय न्यूज़ एजेंसी के लिए लिखे गए एक लेख में पुतिन ने किम और उत्तर कोरिया की तारीफों के पुल बांधे हैं। उन्होंने कहा है कि उत्तर कोरिया, यूक्रेन में युद्ध में मजबूती से रूस के साथ खड़ा है।

बदले में रूस ने भी बड़े भैया के कर्त्तव्य निभाए। उसने उत्तर कोरिया को सहायता भी दी और समर्थन भी। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों और उसके बाद महामारी के दौर में पुतिन ने किम का पूरी तरह साथ दिया। रूस के साथ व्यापार के चल्रते उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था में स्थिरता आई। पिछले कुछ महीनों में कृषि, संस्कृति, सुरक्षा और तकनीकी जैसे मामलों के विशेषज्ञों के अनेक प्रतिनिधिमंडलों का दोनों देशों में आना-जाना हुआ है। ऐसा बताया जाता है कि उत्तर कोरिया में पर्यटन भी खूब फलफूल रहा है क्योंकि व्लादिवोस्तोक में ट्रेवल एजेंसियां पूरी दुनिया से कटे उत्तर कोरिया को गर्मी की छुट्टियाँ मनाने के लिए आदर्श स्थल के रूप में प्रचारित कर रही हैं। इस सबसे किम योंग की उनके देश में लोकप्रियता बढ़ी है। 

मगर दोनों देशों की दोस्ती केवल एक-दूसरे की मदद करने तक सीमित नहीं है। उत्तर कोरिया वैश्विक स्तर पर रूस बनाम पश्चिम टकराव में रूस का ख़ास प्यादा है। वह अमेरिका के लिए एशिया में उसकी रणनीति को लागू करना कठिन बनाता आ रहा है तो रूस बहुराष्ट्रीय संगठनों में उत्तर कोरिया की मदद करता है। अभी हाल में रूस ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक प्रस्ताव को वीटो किया था जिसमें उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों की निगरानी करने वाले पैनल ऑफ़ एक्सपर्ट्सके कार्यकाल को बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया था। उत्तर कोरिया के साथ नजदीकी बढाकर, रूस यह सुनिश्चित करना चाहता है कि दक्षिण कोरिया, जो हथियारों का बड़ा निर्माता है, यूक्रेन को सीधे हथियार न सप्लाई कर सके।

पुतिन और किम की भागीदारी भले ही लेनदेन पर आधारित लगे मगर रूस और उत्तर कोरिया के लिए रणनीतिक कारणों से भी एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है।  

कुल मिलाकर, दोनों देश पश्चिम के नेतृत्व वाले गुट, जो नियम-कानूनों पर आधारित उदारवादी वैश्विक व्यवस्था के पक्षधर है, के बरक्स एक वैकल्पिक राजनैतिक, आर्थिक और साझा सुरक्षा पर आधारित गुट खड़ा करने का प्रयास हैं। इसमें चीन और ईरान भी शामिल हैं। भू-रणनीतिक दृष्टि से उत्तर कोरिया के लिए यह अच्छा ही है कि अमेरिका यूक्रेन में फंसा रहे और इस बीच वह अपने मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों को आगे बढ़ा सके। मास्को चाहता है कि कोरियाई प्रायद्वीप अमरीका के लिए चिंता का सबब बना रहे ताकि अमेरिका केवल यूक्रेन युद्ध पर फोकस न कर सके। 

दोनों देशों की बीच नजदीकियां निश्चित तौर पर बढ़ रही हैं। मगर मुद्दे की बात यह है कि क्या पुतिन अपने मित्र की हथियार निर्माण परियोजना और विशेषकर उनके परमाणु कार्यक्रम का पूरी तरह समर्थन करेंगे? बताया जाता है कि किम का मानना है कि रूस और उनके देश के बीच सैन्य सहयोग उतना व्यापक और गहरा नहीं है जितना वे चाहते हैं। कुछ ज्ञानीजनों का मानना है कि पुतिन, किम का इस्तेमाल केवल तब तक करेंगे जब तक यूक्रेन में युद्ध चलेगा और वे उत्तर कोरिया की खातिर बिग ब्रदर चीन को नाराज़ नहीं करेंगे।  

दरअसल, चीन ही यह तय करेगा कि रूस और उत्तर कोरिया के बीच सहयोग कितना व्यापक और गहरा हो। अब तक तो शी जिनपिंग यूक्रेन में लड़ने के लिए रूस को कोई ख़ास फौजी मदद मुहैय्या करवाने से बचते रहे हैं और वे उत्तर कोरिया के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम का भी समर्थन नहीं कर रहे हैं। 

इसके बावजूद, रूस और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ती नजदीकियां और दुष्ट राष्ट्रों का त्रिकोण (अर्थात उत्तर कोरिया, चीन और रूस बनना दुनिया के लिए शुभ नहीं है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया) 

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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