श्रीनगर से श्रुति व्यास
श्रीनगर में चुनाव का भूत सिर चढ़ कर बोल रहा है। चारों ओर राजनीति पर चर्चा है। शहर के रहवासी अपनी शिकायतों की फेहरिस्त सुनाने की बजाए कौनसा उम्मीदवार सबसे बेहतर है, इस बारे में बातचीत करने और कयास लगाने में अधिक मशगूल हैं। अफवाहों का बाजार गर्म है। हर मिनट एक नई बात, एक नई अटकल सामने आ रही है। हवा भी गर्म है। इस बार सितंबर में घाटी आश्चर्यजनक और असामान्य रूप से गर्म है। लोग नतीजों का पूर्वानुमान लगा रहे हैं। उत्सुकता है और उत्तेजना भी। लोगों में चुनावों में भागीदारी का जज्बा है। चुनावी माहौल वैसा ही है जैसा कि आजकल होता है – शोरगुल कम है और यह अनुमान लगाना मुश्किल कि किसके पक्ष में मूड़ है।
घाटी का कौना-कौना रंग-बिरंगा और खूबसूरत है। माहौल आकर्षक और लुभावना है। मिसाल के तौर पर डल झील पर 22 सितंबर की दोपहर नेशनल कान्फ्रेंस ने शिकारा रैली की। सामान्यतः डल झील और उसके आसपास बड़ी संख्या में पर्यटक जमा रहते हैं। लेकिन आज वहां चुनावी हलचल और उससे जुड़ा तामझाम नजर आ रहे थे। श्रीनगर में ऑटोरिक्शों पर झंडे और पोस्टर नहीं होते बल्कि डल झील में तैर रहे शिकारों पर लगे होते हैं।
सुबह 11 बजे, डल झील के घाट नंबर 7 पर रैली में भाग लेने वाले और उसकी खबर देने वाले लोग जमा हो चुके हैं। लाल, सफेद और नीले रंग के शिकारों पर नेशनल कान्फ्रेंस का लाल झंडा लहरा रहा था और उन पर पार्टी के सदस्य, कार्यकर्ता, समर्थक और मीडियाकर्मी सवार होते हुए। साफ लगा आज शिकारों का सफर अलग ही होना है।
उमर अब्दुल्ला, दिल्ली में नेशनल कान्फ्रेंस के तेजतर्रार चेहरे आगा सैयाद रूहुल्ला मेहंदी, अपने बचपन के मित्र शम्मी ओबेराय, अपने दोनों पुत्रों जमीर और जहीर, ज़ादिमल से पार्टी के उम्मीदवार तनवीर सादिक और अन्य लोगों के साथ ‘हैवन इन लेक’ (झील में जन्नत) नाम के शिकारे पर सवार हैं। आसमानी नीले रंग के इस शिकारे में वाकई उसके नाम के अनुरूप सारी सुख-सुविधाएं मौजूद हैं। लकड़ी की दो कुर्सियां और एक मेज है, जिस पर प्लास्टिक के फूल सजे हुए। एक पिकनिक बास्केट है जिसमें डेविडऑफ कॉफी और अन्य छोटी-मोटी चीज़ें रखी हैं। ऐसा लगता है कि उमर अब्दुल्ला जहां भी जाते हैं, कॉफी उनके साथ होती है। बताया जाता है कि इस पूरे चुनावी अभियान के दौरान उनका पहला काम होता है अपने लिए एक कप स्ट्रांग काफी तैयार करना। ब्लू टोकाई उनकी पहली पसंद है। उसकी महक और स्वाद का आनंद लेकर ही वे अपना चुनाव अभियान शुरू करते हैं। हो सकता है यह उनका अंधविश्वास हो, इसे वे भाग्यशाली मानते हों या यह दिखावा हो।
बहरहाल जो भी हो, उमर अब्दुला ने अपनी शिकारा रैली की शुरूआत भी गर्म कॉफी के एक कप के साथ की। इसके बाद उन्होंने शिकारे की यात्रा का आनंद लिया। वे शिकारे के आगे की ओर आए, उन्होंने नेशनल कान्फ्रेंस का झंडा लहराया, मीडिया कर्मियों को तस्वीरे खींचने का मौका दिया, वे हंसे, उन्होंने बातचीत की और हल्की-फुल्की चर्चा की। उन्होंने यात्रा का मज़ा लिया तो मीडिया ने भी। उनके शिकारे के पीछे अन्य शिकारे थे जिन पर एनसी के झंडे लहरा रहे थे और संगीत बज रहा था। घाट 7 से चार चिनार तक शिकारे डल झील के मटमैले और गहरे पानी में गए।
आसमान में सूर्य चमक रहा था और रास्ते में कई हाउसबोट, काफी शेक और आईस्क्रीम की छोटी-छोटी दुकानें थी। मेरा शिकारा, जिसमें मीडियाकर्मी स्त्री-पुरूष थे, जैसे ही ‘हैवन इन लेक’ की सीध में आया, मैंने आगा सैयद रूहुल्ला मेहदी से सवाल किया कि चुनाव जीतकर सत्ता में आने पर शुरूआती 100 दिनों में एनसी की सर्वोच्च प्राथमिकता क्या होगी? जवाब था “जम्मू और कश्मीर विधानसभा केन्द्र सरकार के अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करेगी”. इस बीच मीडियाकर्मी उमर अब्दुल्ला को डल झील में कूदकर तैरने के लिए प्रेरित कर रहे थे जैसा उनके पिता डॉ. फारूख अब्दुल्ला ने 2001 में किया था।
पर हालात बदल गए हैं, न डल पहले जैसी साफ है और न कश्मीर अब पहले जैसा स्वच्छ है, उसकी कालजयी खूबसूरती में बढ़ती व्यापारिक गतिविधियों के चलते गिरावट है। लेकिन राजनेता पहले जैसे ही हैं। तीसरी पीढ़ी के नेता उमर अब्दुल्ला परिवार की चौथी पीढ़ी के साथ चल तो रहे हैं, लेकिन उनकी सोच अतीत में अटकी हुई है। वे खोखले हो चुके अनुच्छेद 370 का मुद्दा उठा रहे हैं जब कि लोग महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान हाल हैं। यह शिकायत मुझे कश्मीर में हर जगह पुरूषों और महिलाओं से सुनने को मिली। लेकिन उमर और उनकी पार्टी अतीत की बातों में ही उलझी हुई है। जब मेरा शिकारा बाकी काफिले से अलग होकर दक्षिण दिशा में मुड़कर वापिस घाट 7 की ओर बढ़ने लगा, तब मुझे शिकारों की एक और पंक्ति नजर आई जिसमें इंजीनियर राशिद का प्रचार किया जा रहा था। उसमें तेज संगीत के साथ दूसरे नैरेटिव की चर्चा थी।
सवाल है करीब तीन दशकों तक चली हिंसा और फूहड़ राजनीति के बाद, अनुच्छेद 370 हटाने और अमन-शांति के आभास के बीच, भविष्य कैसा नजर आ रहा है?
मैं जब शिकारे से उतर रही थी और डल झील सूरज की पीली रौशनी से चमक रही थी तब मेरे मन में विचार आया कि क्या अभी भविष्य बूझना संभव है? अभी नहीं। चुनावी जोश और उत्तेजना का यह दौर नए भविष्य का इस्तकबाल करे, यह भी नहीं लगता तो फिर पुराना दौर लौट आए, यह भी नहीं लगता। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)