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चीन में सुलिवन को इतना महत्व!

क्या जो बाइडन अपने उत्तराधिकारी की राह आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं? यह हो भी सकता है।

क्या चीन, अमेरिका की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता है? यह भी हो सकता है।

अमेरिका के दोस्त देशों के साथ चीन के टकराव की आशंकाएं हैं और इनमें अमेरिकी सेना के उलझने का खतरा भी है। ऐसी ही एक घटना फिलिपीन्स व चीन के बीच विवादित सबीना शेओल के निकट हुआ टकराव था, जहां चीनी तटरक्षक जहाजों ने फिलीपीनी जहाजों को टक्कर मारी और उन पर पानी की बौछारों से हमला किया। ऐसा ही एक दूसरा चिंताजनक मसला ताईवान का है।

कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन, जो पिछले चार सालों से वाशिंगटन की चीन  नीति के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, तीन दिन की यात्रा पर चीन गए। वहां उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और वे चीन के सेन्ट्रल मिलिट्री कमीशन के उपाध्यक्ष झांग यूक्सिया से भी मिले, जो एक दुर्लभ मुलाकात थी। जैसा कि सुलिवन ने भी कहा “कोई अमेरिकी पिछले आठ वर्षों में ऐसा नहीं कर सका है”।

दोनों देशों के बीच तनाव घटाने की कोशिशों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में सुलिवन की यह पहली बीजिंग यात्रा थी। अमेरिकी अधिकारियों ने दोनों देशों के संबंधों को “अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक” बताया।

ग्रेट हॉल ऑफ द पीपुल में हुई मुलाकात में सुलिवन और शी ने कई विषयों पर चर्चा की, जिनमें चीन और ताईवान के राजनैतिक और आर्थिक रिश्ते, रूस-यूक्रेन युद्ध और दक्षिण चीन सागर से संबंधित मसले शामिल थे।

इस बीच राष्ट्रपति शी ने उम्मीद जताई कि अमेरिका, चीन के विकास को सकारात्मक दृष्टि से देखेगा और चीन के साथ मिलकर दोनों बड़े देशों के बीच मैत्री को बढ़ावा देगा। शी ने जोर देकर यह भी कहा कि चीन और अमेरिका दो बड़े देश हैं जिनकी ऐतिहासिक दृष्टि से, दोनों देशों की जनता के प्रति, और दुनिया के प्रति भी बड़ी जिम्मेदारी है और इन्हें विश्व शांति की खातिर, दुनिया के साझा विकास की प्रेरणा और स्थिरता का आधार बनना चाहिए।

शी ने जो कहा उसमें आक्रामकता बिल्कुल भी नहीं थी और इसे आधिकारिक रूप से सार्थक एवं उपयोगी बताया गया। दोनों पक्ष इस बात के लिए भी राजी हुए कि आने वाले समय में शी तथा जो बाइडन के बीच फोन पर बातचीत करवाई जाए।

लेकिन सुलिवन की झांग यूक्सिया से मुलाकात एक बड़ी घटना थी। ऐसी पिछली मुलाकात 2018 में अमेरिका के तत्कालीन रक्षा मंत्री जैम्स मैटिस और तत्कालीन उपाध्यक्ष जनरल शू किलिंग के बीच हुई थी। सुलिवन और झांग की बैठक उनके बीजिंग प्रवास के तीसरे और अंतिम दिन हुई, जिसका उद्धेश्य दोनों देशों के बीच चल रही होड़ को काबू में रखना था। झांग चीनी राष्ट्रपति शी के नजदीकी माने जाते हैं और उन्हें रक्षा मंत्री से अधिक ताकतवर बताया जाता है।

यह बैठक दोनों ताकतों के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यापार और भू-राजनीति को लेकर विवादों के बीच भी चर्चा जारी  रखने का प्रयास था। इसे सैन्य मामलों पर चर्चा को धीरे-धीरे दुबारा शुरू करने की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जो दो साल पहले अमेरिकी संसद की तत्कालीन स्पीकर नैन्सी पैलोसी की ताईवान यात्रा के बाद से बंद हो गयी थी।

सैन्य मामलों में अमरीका का तर्क है कि दोनों देशों की वायुसेना और नौसेना के बीच कोई गलतफहमी न हो इसके लिए और अधिक खुला संवाद जरूरी है क्योंकि दोनों देशों की सेनाएं नियमित रूप से विवादग्रस्त इलाकों जैसे ताईवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर में गश्त लगाते रहते हैं।

चीनी विदेशमंत्री वांग ने सुलिवन से यह भी कहा कि स्वतंत्र ताईवान, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने अमेरिका से मांग की कि वह ताईवान को हथियार देने की बजाए चीन से उसके शांतिपूर्ण एकीकरण का समर्थन करे। इसके जवाब में सुलिवन ने ताईवान पर लगातार डाले जा रहे आर्थिक एवं सैन्य दबाव के प्रति चीन को आगाह किया। उन्होंने रूस के सैन्य उद्योग को चीन द्वारा दी जा रही सहायता और दक्षिण चीन सागर में फिलिपीन्स से चल रहे विवाद में उसकी अस्थितरता उत्पन्न करने वाली कार्यवाहियों को लेकर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने हाल में चीनी लड़ाकू विमानों द्वारा जापानी वायुक्षेत्र का उल्लंघन किए जाने का मुद्दा भी उठाया।

यह पहले से ही अपेक्षित था कि बैठक के दौरान तीखी बातें होंगी, क्योंकि दोनों बड़ी ताकतों के बीच की प्रतिस्पर्धा में गठबंधनों को लेकर खींचातानी भी शामिल है। लेकिन जो हम सबने देखा, उसकी अहमियत कम नहीं है। हाथ मिलाना, लम्बी बैठकें, राष्ट्रपतियों की फोन पर बातचीत करवाने का निश्चय –  इन सबसे इस यात्रा को दुनिया को इस बात का भरोसा दिलाने के एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है कि वे चीन और अमेरिका उनके बीच टकराव के खतरे को कम करने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। लेकिन यह भी साफ था कि  रणनीतिक मामलों में उनके बीच मूलभूत मतभेद हैं। आखिरकार बड़ी ताकतें सिर्फ हाथ मिलाने और मीठी-मीठी कूटनीतिक चर्चाओें की वजह से अपने निर्णय नहीं बदलतीं। लेकिन सुलिवन की यात्रा से पद छोड़ने जा रहे राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए बेहतर वातावरण बना है। वे चाहेंगे कि पद छोड़ते समय दोनों बड़ी ताकतों के बीच रिश्ते कलहपूर्ण न रहें। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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