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गुस्साएं 45 करोड अरबी, आशंकित हुक्मरान

अरब लोग नाराज़ हैं।ये दो दर्जन से ज्यादा देशों में फैलेकोई 45 करोड़ है। उनकी सहानुभूति फिलिस्तीन के साथ है। अरबी लोग फिलिस्तीनके पक्ष में खुल कर बोल रहे हैं। वे 24 घंटे टीवी से चिपके रहते हैं और सोशल मीडिया पर कभी खत्म न होने वाली चर्चा में हमास के भयावह हमले, जिसे उन्होंने ‘प्रिजन ब्रेक’ (जेल तोड़ना) का नाम दिया है, पर अपनी-अपनी बात कहते हुए हैं। उनके पोस्ट, बताते हैं कि वे हमास के बर्बर हमले के ज़बरदस्त समर्थक हैं। उनकी निगाह में इजराइल एक ‘युद्ध अपराधी’ है।

वैसे कुछ अरब देशों ने इजराइल के साथ सामान्य संबंध बनाए हुए हैं। इनमें मिस्र और जॉर्डनशामिल हैं। इन्होनेक्रमशः 1979 और 1994 में इजराइल को मान्यता दी थी। फिर 2020 में अब्राहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। लेकिन पिछले हफ्ते अम्मान में इजराइली दूतावास में घुसने की कोशिश कर रहे प्रदर्शनकारियों और जॉर्डन की पुलिस के बीच भिड़ंत हुई। बेरूत मे भी अमेरिका के दूतावास पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। पिछले दो शुक्रवारों से मिस्र में लोग फिलिस्तीनियों को विस्थापित कर दूसरी जगह बसाने की इजराइल की रणनीति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। मोरक्को में हजारों लोगों ने यह नारा लगाते हुए जुलूस निकाला कि इजराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोई भी कोशिश अपराध मानी जाए। रबात में इजराइल का लिईसों आफिस बंद हो गया है। उसके कर्मचारियों को वापस भेज दिया गया है। बहरीन में इजरायली दूतावास की ओर बढ़ रहे प्रदर्शनकारियों को पुलिस को तितर-बितर करना पड़ा। अगर सूडान अपने स्वयं के युद्ध में उलझा न होता तो वहां भी निश्चित रूप से उसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन होते जैसे वहां की सरकार द्वारा सन् 2020 में इजराइल से सामान्य संबंध कायम करने के बाद हुए थे।

इस सब की आशंका पहले से थी। फिलिस्तीनियों की उनकी ज़मीन से बेदखली पूरे मध्यपूर्व में एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा है। इस पर लोगों को गोलबंद करना, उन्हे भड़काना काफी आसान होता है। लेकिन पहले के टकरावों, जैसे गाजा में सन् 2014 में हुए 50 दिन के युद्ध, की तुलना में इस बार पूरे क्षेत्र में अधिक घबराहट है। यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अधिक अस्थिर हो गया है और भावनात्मक ध्रुवीकरण बढ़ा है जिससे अरब देशों की सरकारों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए ये विरोध प्रदर्शन अब सिर्फ फिलिस्तीन के मुद्दे पर केन्द्रित नहीं हैं। बल्कि ऐसे संकेत हैं कि जो गुस्सा पहले दबा दिया गया था, वह दुबारा जोर पकड़ सकता है।

मिस्र एक कमजोर सरकार की कमान में आर्थिक संकट से जूझ रहा है। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने एक पूरे दिन फिलिस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों की अनुमति देकर इस आक्रोश को अपने प्रति समर्थन में बदलने का प्रयास किया था। परन्तु उनका पांसा उल्टा पड़ गया। पूर्व निर्धारित स्थानों को छोड़कर लोग तहरीर स्क्वायर पहुंच गए जहाँ उन्होंने रोटी, आज़ादी और सामाजिक न्याय मांगते हुए वही नारे लगाए जो 2011 के प्रदर्शनों में लगाए जाते थे। तहरीर स्क्वायर एक प्रसिद्ध स्थल है और वहां नारेबाजी से निश्चित ही सरकार घबरा गई होगी।

जोर्डन भी आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो गया है।यहां भी सऊदी अरब की तरह राजतंत्र है और निरंकुश, गैर-जवाबदेह शासन की बेरहमी को संतुलित करने के लिए सरकार तुष्टिकरण, अनुदान, संरक्षण और उत्पीड़न का सहारा लेती है, जो अमूमन इस तरह की सरकारों का आधार होता है। कतर, जहां हमास का राजनैतिक कार्यालय है, अलबत्ता शक्तिशाली है और तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले दशक में वह प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक बना है, और यूरोप को किए जाने वाले निर्यात में रूस का विकल्प बनने के लिए अमरीका से प्रतियोगिता कर रहा है।

अरब इलाके में इजराइल के संरक्षक अमेरिका काअब पहले जैसा प्रभाव नहीं है।तभी दुनिया नेदेखा। कि अमेरिका के चाहने के बावजूद राष्ट्रपति बाईडन जोर्डन में शिखर वार्ता नहीं कर पाएं। एंटोनी ब्लिंकन के प्रति जरा सी भी गर्मजोशी नहीं दिखाई गई। लेबनान पिछले कुछ वर्षों से गंभीरतम आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वह दिवालिया हो चुका है और दुनिया के सबसे अधिक ऋण-जीडीपी अनुपात वाले देशों में शामिल है। लेबनान के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वहां युद्ध होने की संभावना है। लेबनानियों को चिंता है कि शक्तिशाली शिया सैन्य संगठन हिजबुल्लाह इजराइल के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोल देगा, जिससे उनका देश सन् 2006 की तरह एक तबाही लाने वाले युद्ध में फंस जाएगा। इनके अलावा ईरान भी है। खाड़ी के देशों को ईरान की नाराजगी की भी चिंता है क्योंकि उन्हें डर है कि ईरान के मुख़्तार कहीं रियाद या अबूधाबी पर हमलावर न हो जाएँ।

कुल मिलकर यह केवल इजराइल के लिए अस्तित्व का संकट नहीं है बल्कि कई अरब देशों के शासकों को भय है कि उनकी भी यही स्थिति है। अब आक्रोश सिर्फ फिलिस्तीन के इलाके में और सिर्फ उसके मसले तक सीमित नहीं है। वह एक चिंगारी बन गया है। अरब देशों को डर इस बात का है कि इजराइल-हमास युद्ध कहीं इस क्षेत्र में अरब स्प्रिंग -सीजन 2 का मार्ग प्रशस्त न कर दे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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