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इजराइल ने अपना कमाया सब गंवाया!

israel hamas war

कौन सोच सकता था कि इजरायली इतने बेरहम, इतने ज़ालिम हो सकते हैं? और ऐसा मैं भावनाओं में बहकर   नहीं कह रही हूं। एक वक्त के इजराइल के मसीहा बेंजामिन नेतन्याहू ने जब से हमास के खिलाफ युद्ध छेड़ा है (जो दरअसल गाजा निवासियों और फिलिस्तीनियों का कत्लेआम है) तबसे इजराइल एक अपराधी, और नेतन्याहू एक हत्यारा लगने लगे हैं। और यद्यपि यह दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर नेतन्याहू के कारण सभी यहूदी खराब लगते लगे हैं। israel hamas war

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युद्ध शुरू हुए छह महीने गुज़र चुके हैं। क्रिसमस के बाद अब रमजान आ गया है। और तब से लेकर अब तक कत्लेआम जारी है। गाजा पर मौत की काली छाया मंडरा रही है। बच्चे भुखमरी का शिकार हो रहे हैं, महिलाओं का खून बहाया जा रहा है और ब्रेड के एक टुकड़े के लिए भाई, भाई की हत्या कर रहा है। युद्धविराम प्रेस और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा पश्चिम की आलोचना से बचने के लिए रचा गया एक भ्रमजाल बनकर रह गया है – जैसे बच्चे का ध्यान हटाने के लिए लालीपाप।

सीएनएन के हाल के एक वीडियो में इजराइलियों के एक समूह – जिसे चैनल ने क्रुद्ध बताया है मगर असल में जो क्रूर हैं – गाजा में खाद्यान्न एवं अन्य सहायता सामग्री ले जाने वाले ट्रकों को रोकने की कोशिश करते हुए दिखाया गया। वे पुलिस की नाकाबंदी के आगे गाजा भेजी जाने वाली राहत सामग्री को रोकने के लिए अपनी नाकाबंदी कर रहे थे।

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इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व तसाव-9 नामक एक संगठन कर रहा है जो पूर्व रिजर्व सैनिकों, अपह्त लोगों के परिवारजनों और फिलिस्तीन में बसाए गए लोगों का समूह है। शिशुओं को अपने शरीरों से बांधे युवा पुरूष और महिलाएं, और उनके पीछे-पीछे दौड़ते बच्चे, यह मानते हैं कि इन ट्रकों में खाना नहीं बल्कि बंदूक की गोलियां हैं। वे सोचते हैं कि यदि गाजा में लोग भूख से मर रहे हैं तो हमास बंधकों को रिहा क्यों नहीं कर रहा है? इजराइल डेमोक्रेसी इंस्टीटयूट द्वारा करवाई गई एक रायशुमारी से पता चलता है कि दो-तिहाई यहूदी इजरायली, गाजा में मानवीय सहायता पहुँचाने के विरोध को उचित मानते हैं। israel hamas war

यह किसने सोचा था कि इतिहास में एक ऐसा दिन आएगा जब दुनिया यहूदियों की इतनी निर्दयता, इतनी निर्ममता देखेगी। यह भविष्यवाणी किसने की होगी कि एक ऐसा दिन आएगा जब लोग देशों की सीमाओं, नस्ल और जाति की सीमाओं के परे इजराइल और यहूदीवाद के विरोधी हो जाएंगे। आखिर एक करोड़ से भी कम जनसंख्या वाला यह छोटा सा देश, जिसे सारी दुनिया चाहती थी, जो मध्यपूर्व में लोकतंत्र का चमकीला सितारा था, इतना जंगली और पत्थरदिल क्यों हो गया?

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इजराइल के प्रति सहानुभूति और करूणाभाव समाप्त होता जा रहा है। सात अक्टूबर को इजराइल की तकलीफ सारी दुनिया सांझा कर रही थी, सारी दुनिया दुखी थी, सबकी आंखों में आंसू थे। लेकिन ये सारे अहसास अब खत्म हो चुके हैं। आंसुओं की जगह तिरस्कार भाव ने ली है। मानव समुदाय विभाजित हो गया है। देशों और लोगों में विनाशकारी और क्रूर किस्म के जूनून का एक विस्फोट सा हुआ है।

पशुओं की दुनिया इससे ज्यादा रहमदिल होती है। पर हाय री मानव ‘सभ्यता’।मनुष्य खून का प्यासा हो गया है। आंख के बदले आंख। सात अक्टूबर को इजराइल में बच्चों की हत्याओं का बदला गाजा में अभी भी नरसंहार और बच्चों की हत्याएं करके लिया जा रहा है। खून का बदला खून। किसी को युद्धविराम की दरकार नहीं है। युद्ध से सत्ता कायम रहती है। दया-करूणा की भावनाएं विकृति होती हैं। और झूठ ही सच होता है। हमास दुनिया को इजराइल का, यहूदियों का क्रूर चेहरा दिखाना चाहता है। वे गाजा के कोने-कोने में खून बहाना चाहते हैं। वे वृद्धों की मौत चाहते हैं और नहीं चाहते कि युवा जिएं। israel hamas war

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इजराइल भी एक आतंकवादी की तरह पेश आ रहा है, अपना भयावह चेहरा दिखाना चाहता है, अपनी शक्ति और पराक्रम का प्रदर्शन करना चाहता है। वह इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि लड़ाई के जरिए जितने बंधक रिहा हुए हैं उससे बहुत ज्यादा कूटनीति के जरिए मुक्त हुए हैं। बल्कि इजराइली सरकार के अधिकारी बयानबाजी कर रहे हैं कि वे रफा पर हमले की तैयारी कर रहे हैं।

यह हमला पवित्र रमजान के दौरान कभी भी हो सकता है। रफा को इजरायली सेना ने ‘सुरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया था, जिसके नतीजे में गाजा के अन्य हिस्से छोड़ने वाले 15 लाख से अधिक लोग यहां ठुंसे हुए हैं। रफा का क्षेत्रफल लगभग 63 वर्ग किलोमीटर है। वहां जनसंख्या का घनत्व अब 22,200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है। खबरों में दावा किया गया है कि यदि इजराइल रफा पर हमला करता है तो वहां का मानवीय संकट, तुरंत मानवीय त्रासदी में तब्दील हो जाएगा।

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राबर्ट डी कपलन ने 2003 में लिखा था “कोई सभ्यता जितनी विकसित होती जाती है, वह उतनी ही दिमाग से संचालित होने लगती है और उतनी ही लीक पर चलने वाली बनती जाती है। उसके नतीजे में उसकी दबी हुई हताशाएं उतनी ही बढ़ती जाती हैं और वह उतनी ही भयानक हिंसा भड़काती है।”

आज छह माह बाद, क्रिसमस से लेकर रमजान तक, इजराइल द्वारा ढाए जा रहे जुल्मों और हमास की निर्दयता से यह एक बार फिर यह साफ होता है – जैसा कि इतिहास भी हमें बताता है – कि इंसान एक दूसरे से नफरत करने में उल्लास का, परम आनंद का अनुभव करता है। पशुओं की दुनिया ज्यादा रहमदिल होती है। मानव सभ्यता जाए भाड़ में। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया) israel hamas war

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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