राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

न करूणा, न संवेदना!

हम सात अक्टूबर से जो खबरें पढ़ रहे हैं,जो तस्वीरें देख रहे हैं, वे निहायत डरावनी और वीभत्स हैं। मौत, बर्बादी और खूनखराबा देखकर हम सब दहले हुए हैं। लेकिननम आंखे सभी पीड़ितों, सभी घायलों, सभी मरने वालों के लिए समान नहीं हैं। कुछ लोग एक पक्ष का शोक मना रहे हैं तो अन्य लोग दूसरे पक्ष के हालतों पर द्रवित हैं। परस्पर विरोधी आख्यानों और बदलते प्रतिमानों के बीच नजरिए एकपक्षीय हो गए हैं।करूणा और सहानुभूति जैसी संवेदनाओं को भुला दिया गया है।संवेदनाओं का प्रकटीकरण धर्म, नस्ल और विचारधारा के अनुरूप होता है। यह भयावह है तो आश्चर्यजनक भी।

इजराइल-हमास युद्ध से साफ हो रहा है कि हम कितने बंटे हुए है। कैसे निष्ठुरवक्त में रह रहे हैं। युद्ध भले ही पृथ्वी के एक कोने में है लेकिन पृथ्वी के हर कोने में रहने वाले लोग आपस में युद्धरत हैं। पिछले हफ्ते मैंने गाजा के पत्रकार वहील दहदू, जिनका पूरा परिवार इजराइल के हवाई हमलों में मारा गया, के बारे मेंलिखा।उस पर बुझे कोसा गया। गालियों की बौछार हुई। मानों में हमास से सहानुभूति रखने वाली, आतंकवाद समर्थक हूं।निहिलिज्म, नास्तीवाद और लोकलुभावनवाद के इस दौर में, अंधभक्ति के जमाने में, मेरे अंदर का पत्रकार ऐसी बातों के लिए तैयार रहता है।

दरअसल, हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जिसमें आदर्श और प्रतिमान ताश के पत्तों के महल की तरह ढह रहे हैं। जिस वैचारिक ढ़ांचे, जिन विचारधारात्मक प्रतिमानों के सहारे दुनिया थी, उसके प्रतिमान और वे आदर्श किरच-किरच हैं, बिखर रहे हैं, ध्वस्त हो रहे हैं। प्रतिमान और आदर्श, यथार्थ के संपर्क में आते ही उसी तरह भस्म हो रहे हैं जैसे कोई अंतरिक्षयान धरती के वातावरण में प्रवेश करते ही जलकर खाक हो जाता है।

याश्का माउंक अपनी पुस्तक ‘द आइडेंटिटी ट्रेप’में लिखते हैं कि नई उभरती विचारधारा ने दुनिया के लोगों को दो परस्पर विरोधी खेमों में बांटा है – जो उपनिवेश स्थापित करतेहैं और जो उनमें रहते है; जो दमन करते है और जो दमित होते हैं। और यह विभाजन अक्सर नस्लीय आधार पर होता है। दुनिया इतनी ध्रुवीकृत हो चुकी है कि हमारी राजनैतिक वफादारियां, हमारी राय में वह निर्धारक हैं जबकि होना इसके ठीक उलट चाहिए था। यह सिर्फ भारत की बात नहीं है। पूरी दुनिया में भावनाओं के बाडे है। मेरे इंस्टाग्राम मित्र इसका उदाहरण हैं। उनमें से कुछ केवल इजराइल में 7 अक्टूबर को हुए खून-खराबे की भयावह तस्वीरें बार-बार, लगातार शेयर करते हैं। कुछ अन्य केवल फिलिस्तीन की खबरें पोस्ट करते हैं और केवल गाजा की व्यथा दर्शाने वाले फोटो और वीडियो दिखाते हैं जैसे अपने बच्चों की लाशों पर रोते माता-पिता।

इस बाड़ेबंदी में सोशल मीडिया के ईकोचैम्बर गूंजता है।  इससे भी खराब बात यह है कि मन को व्यथित और द्रवित कर देने वाले वीडियो कई बार किसी दूसरे देश, किसी दूसरे युद्ध या कभी-कभी किसी वीडियो गेम तक केहोते हैं। ऑनलाइन मिथ्याप्रचार दुनिया का एक बड़ा मसला बन गया है। हर वैश्विक संकट के दौर में समस्या और गंभीर रूप अख्तियार कर लेती है। बाल्टीमोर के जॉन होपकिंस विश्वविद्यालय के पीटर पोमेरांटसेव ने लिखा है कि युद्ध के दौर में लोग केवल अपने पूर्वाग्रहों की पुष्टि के आधार ढूँढ़ते हैं, उन्हें तथ्यों से कोई लेनादेना नहीं होता।

तभीध्रुवीकृत दुनिया में अब मित्रलोग भी राजनैतिक वफादारियों के आधार पर अपनी राय बनाते हैं, जबकि उन्हें अपनी राय के आधार पर बनानी चाहिए अपनी राजनैतिक वफादारियां। एक समय था जब पश्चिम यहूदीवाद की ओर झुका हुआ था। उसके प्रति सहानुभूति रखता था। परंतु अब यहूदीवाद ‘पोग्राइज्म‘ में बदलता जा रहा है। पोग्राइज्म से आशय है यह मान्यता, जोकि पूरी दुनिया के यहूदी समुदायों में आम है, कि प्राचीन इतिहास में हुएयहूदियों के हत्यकांडों से लेकर 19वीं सदी में उनके कत्लेआम और उस से लेकर होलोकॉस्ट और फिर हमास के हमले तक एक सीधी रेखा खींची जा सकती है -अर्थात ये सब एक ही श्रृंखला के हिस्से हैं। यह परिप्रेक्ष्य यहूदियों को बताता है कि एक समुदाय के रूप में वे हमेशा से नफरत का शिकार रहे हैं और यह भी कि यहूदी-विरोध हमेशा से दुनिया की सोच का हिस्सा रहा है।

इस परिप्रेक्ष्य में सच्चाई हो सकती है परंतु यह भी सही है कि हालात बहुत बदले हैं। पिछले 75 सालों में इजराइल एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में उभरा है। यहां तक कि उसे अमेरिका की ताकत का प्रतीक, उसका अवतार माना जाने लगा है। जिस तरह से इजराइल पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी में नए-नए इलाकों पर कब्जा करता गया है, उसके चलते कम से कम अब तो यहूदी हाशियाग्रस्त पीड़ित समुदाय नहीं लगते। बल्कि इसके उलट अब फिलिस्तीन के मुद्दे का जोर है और वह काफी प्रभावी है।

अब फिलिस्तीनियों को कमजोर और असहाय तथा इजराइल को ताकतवर और सशक्त माना जाता है। इजरायली कतई अपने को पीड़ित नहीं बतला सकते। होलोकास्ट हुए बहुत साल बीत चुके हैं।र इसी बदलते हुए दृष्टिकोण का नतीजा है दुनिया भर में सात अक्टूबर के बाद से यहूदियों पर हमलें बढ़े है। गाजा की दुर्दशा को लेकर पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन और वाद-विवाद हैं। कलाकारों सहित विशिष्ट हस्तियों ने अनेक खुले खत लिखकर गाजा पर बमबारी और पश्चिमी नेताओं की उस पर चुप्पी की आलोचना की है। फिलिस्तीन के समर्थन में रैलियां हो रही हैं। ये रैलियां जबरदस्त हैं। भारत इसका अपवाद है। यहां के लोगों की सहानुभूति शायद इजराइल के साथ है। यहां तक कि एक जाने-माने चैनल – जिसके अंधभक्त दीवाने हैं –की उतनी ही जानी-मानी एंकर के एक हालिया शो का विषय था “क्या यहूदी दरअसल यादव हैं?”।

जाहिर है ऐसे लोग न इतिहास जानते हैं, न तथ्यों से उनका कोई लेनादेना है और ना ही तार्किकता में उनकी कोई आस्था है। वे सिर्फ वही पढ़ते हैं जो सोशल मीडिया पर लिखा होता है और उसे ही ध्रुव सत्य मानते हैं।अभी तक का ट्रेंड यही है कि भारत, इजराइल के साथ है। इसकी केवल एक वजह है –और वह है मुस्लिम विरोधी भावना। याश्का माउंक इस स्थिति की व्याख्या करने के लिए हमें एक नई शब्दावली और एक नई विचारधारा उपलब्ध करवाते हैं।

विश्वदृष्टि पहले ही निरंकुश और पोपुलिज्म, निहिलिज्म की गिरफ्त में है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमिर पुतिन, अर्दोआन और मोदी जैसे स्ट्रांगमैन सुपरहिट हैं। जटिल मुद्दों का साधारणीकरण किया जा रहा है। उन्हें अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जो लोग ‘सही’पक्ष के पक्ष में होते हैं, उनके चारों ओर एक आभामंडल निर्मित कर दिया जाता है। उन्हें सद्गुणी बताया जाता है।जबकि सच यह है कि अधिकांश मामलों में कोई भी और कुछ भी सही नहीं होता। और हर कोई और सबकुछ गलत ही होता है।

तर्क होता है कि हम नैतिकता, सत्यनिष्ठा और सज्जनता का व्यवहार इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि हमारा दुश्मन हमें नेस्तनाबूत कर देना चाहता है।सो बेरहम दुश्मनों से निपटने के लिए हमें भी बेरहम नेता चाहिए, बेरहम होना है। तभी तो जो बाइडन हमास को ‘द अदर टीम’बताते हैं।वही ऋषि सुनक विश्वास से कहते है कि इजराइल ‘युद्ध जीत जाएगा’। क्या दुनिया में एक भी नेता है जिसके मन में करूणा के लिए थोड़ी सी भी जगह हो?

इसलिए इजराइल और गाजा के घटनाक्रम का एक सबक साफ है। तस्वीरों और खबरों के अनवरत ज्वार, ध्रुवीकृत विचारधाराओं, कुत्सित सोच, राह से भटके जनमत और भूराजनैतिक टकरावों का एक एकदम नया स्वरूप हम देख रहे हैं। इसमें करूणा और नैतिकता के लिए कोई जगह नहीं है। अगर उन्होंने दस बच्चे मारे हैं तो हम बीस बच्चे मारेंगे। जाहिर है21वीं सदी में शायद ही कोई राह सहानुभूति और दया की ओर जाती हो।(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

Tags :

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *