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ईऱानः इधर कुआं, उधर खाई!

ईरान के नए राष्ट्रपति के रूप में मसूद पेजिसकींयान ने 30 जुलाई को शपथ लेने के बाद कहा था कि वे भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। उस शपथ समारोह में हमास नेता इस्माइल हनीयेह सहित 70 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। शपथ के कुछ ही घंटे बाद इस्माइल हनीयेह एक इजरायली हमले में मारे गए। ईरान के सर्वेसर्वा आयतोल्लाह अली खामेनेई ने इसे “इस्लामिक गणतंत्र की ज़मीन पर हुई एक घिनौनी घटना” बताया। ईरान का मानना है कि यह हमला एक भड़काने वाली कार्यवाही है जो दुनिया के इस इलाके में चल रहे संघर्ष को और तेज करने के उद्देश्य से की गई है। ईरान ने बदला लेने की कसम खाई और इसके कुछ ही समय बाद, खामेनेई ने प्रतिशोध लेने के लिए इजराइल पर सीधा हमला करने का आदेश जारी कर दिया।

केवल कुछ ही घंटों में ईरान को शांति एवं समृद्धि के एक नए दौर में ले जाने का सपना संजोने वाले राष्ट्रपति ने स्वयं को संकट और उथलपुथल में घिरा पाया। वे एक ऐसे समय में देश की बागडोर संभाल रहे हैं जब ईरान और इजराइल के सीधे टकराव के हालात बन गए हैं।

पेजिसकींयान, जो इस समय अपनी सुधारवादी मंत्रिपरिषद के गठन की प्रक्रिया में व्यस्त हैं, के चुने जाने के पीछे एक उम्मीद यह भी थी कि उनके राष्ट्रपति बनने से पश्चिम से ईरान के रिश्ते सुधरेंगे जिससे ईरान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था बेहतर होगी और आर्थिक प्रतिबंध हटेंगे। लेकिन अब उनके सामने पहली चुनौती युद्ध में जीत हासिल करने की है।

ईरान इस समय गुस्से से उबल रहा है। वह अपमानित महसूस कर रहा है। इस्माइल हनीयेह की मौत ईरान की सर्वशक्तिमान इस्लामी क्रांतिकारी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के तेहरान स्थित गेस्ट हाउस में हुए एक विस्फोट में हुई। वे ईरान के सबसे नजदीकी और प्रिय कूटनीतिक साथी थे। और इसलिए उनकी हत्या को अत्यंत दुस्साहसी और भड़काने वाला कदम माना जा रहा है। उनकी हत्या करने के लिए कतर, जहाँ वे अपने निर्वासन के दौरान रह रहे हैं, या तुर्की, जहां वे अक्सर जाते रहते हैं, की बजाए तेहरान को चुना गया। ऐसा किस वजह से किया गया, यह एकदम स्पष्ट है। इजराइल जानबूझकर ईरान के साथ तनाव को और बढ़ाना चाहता है और यह दिखाना चाहता है कि इजराइलियों की पहुंच ईरान के तंत्र के कितने अंदर तक है। इजराइल ने दुनिया को दिखा दिया है कि शक्तिशाली आईआरजीसी अपने सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक सहयोगी को अपनी राजधानी तक में नहीं बचा सकता।

ईरान गाजा में दस माह से चल रहे युद्ध से दूरी बनाने रखने का प्रयास करता आ रहा है। उसके साथी देशों या उसके समर्थित संगठनों ने भले ही इजराइल पर हमले किये हों, मगर ईरान ने सीधे कोई आक्रामक कार्यवाही नहीं की।

दशकों से चली आ रही दुश्मनी के बावजूद, पिछले 45 साल में पहली बार इस साल अप्रैल में ईरान ने इजराइल पर अपना सबसे बड़ा और प्रत्यक्ष हमला किया। इस हमले में सैकड़ों मिसाइलों और ड्रोनों का इस्तेमाल किया गया। यह हमला सीरिया के दमिश्क में ईरानी दूतावास के परिसर पर हुए इजरायली हमले का बदला लेने के लिए किया गया था, जिसमें कई ईरानी उच्च सैन्य अधिकारी मारे गए थे। लेकिन ऐसा लगता है कि इजराइल को पहले से ही इसका अंदाज़ा था और इसलिए सैन्य शक्ति का यह प्रदर्शन असफल रहा। इजराइल और उसके साथियों ने मिसाइलों और ड्रोनों को हवा में ही नष्ट कर दिया और इस हमले में इजराइल का बहुत कम नुकसान हुआ।

लेकिन इस बार हालात अलग हैं। ईरान को अपने ही देश में अपमान का घूंट पीना पड़ा है। खामेनेई और आईआरजीएस दोनों की छवि को धूमिल हुई है। ईरान इसका प्रतिशोध किस तरह से लेगा, यह देखा जाना बाकी है। यदि ईरान अप्रैल की तरह सीधे इजराइल पर मिसाइलों से हमला करता है, तो हमलों और जवाबी हमलों का लम्बा सिलसिला प्रारंभ हो जाएगा। यदि क्षेत्र में ईरान का निकटतम सहयोगी संगठन हिजबुल्लाह, जिसके कमांडर फौद शुकुर भी एक इजरायली हमले में मारे गए हैं, उत्तरी इजराइल पर हमले तेज करता है, या हूती, लाल सागर में अधिक हमलावर होते हैं, तो युद्ध क्षेत्र का विस्तार होगा और कई अन्य देश इसमें उलझ जाएंगे। और सबसे अहम यह कि पश्चिम भी इस टकराव का हिस्सा बन जाएगा।

यह सब होने पर पेजिसकींयान की सुधारवादी योजनाओं पर पानी फिर जाएगा। उनकी छवि एक ऐसे व्यक्ति की है जो शांति की राह में बाधाएं खड़ी करने की बजाय व्यावहारिकता से काम लेता है। लेकिन इन परिस्थितियों में उनके सामने इसके सिवा कोई चारा नहीं रहेगा कि वे अपने पूर्ववर्तियों की तरह काम करें। सुधारवादी कदम उठाने के उनके संकल्प और ईरान के अन्य देशों से संबंध सुधारने और प्रतिबंधों को हटवाने के उनके इरादों पर अमल अब संभव नहीं है। अब उन्हें अपने देश की रक्षा का संकल्प लेना होगा और हमलावरों को उनके किए पर पछतावा हो, यह सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना होगा। पेजिसकींयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इजराइल के संबंध में ईरान की वर्तमान आधिकारिक नीतियों का पूरी तरह समर्थन करते हैं और क्षेत्र में सक्रिय उग्रवादी संगठनों के भी साथ हैं। फिर चाहे इसका नतीजा जो भी हो।

पेजिसकींयान, ईरान, इजराइल और पश्चिम एशिया के लिए आने वाले दिन अच्छे नहीं होंगे। बहुत कुछ ऐसा घट गया है जिस पर काबू पाना अब नामुमकिन नजर आ रहा है। अमेरिका अपने सबसे अच्छे मित्र नेतन्याहू के साथ मिलकर हालात बेहतर बनाने के लिए कुछ भी कर पाने में विफल रहा है, जिसके नतीजे में नेतन्याहू का रवैया आक्रामक बना हुआ है और वे एक ऐसे युद्ध को जारी रखे हुए हैं जो कभी भी बेकाबू हो सकता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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