nayaindia Iran Presidential Election ईरान में चुनाव और लोग उदास!
श्रुति व्यास

ईरान में चुनाव और लोग उदास!

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इंग्लैंड और फ्रांस के साथ-साथ ईरान में भी चुनाव हो रहे हैं। हालांकि वहां जनता के पास चुनने के लिए कुछ ख़ास है नहीं। खबरों के मुताबिक इस बार वहा चुनावी रंग और भी फीका है। हताशा और निराशा का माहौल है। पहली वजह तो यह है कि ईरानी जनता अभी तक राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की 19 मई को हेलीकाप्टर दुर्घटना में हुई रहस्यमय मौत के झटके से उबर नहीं सकी है। दूसरी बात यह है कि उन्हें जिन उम्मीदवारों में से अपने पसंदीदा व्यक्ति को चुनना है, वे सभी राजनीति के विपरीत ध्रुवों पर विराजमान हैं।बहरहाल,जैसा न्यूयार्क टाईम्स ने अपनी एक रपट में बताया है, लोगों को बुरे और बदतर में से एक को चुनना है।

ईरानियों को महसूस हो रहा है कि चुनावी प्रक्रिया में उनकी कोई भागीदारी नहीं है, वे उससे किसी भी तरह से जुड़े हुए नहीं हैं। उनके लिए चुनाव मात्र एक औपचारिकता है।

ईरान मूलतः तानाशाहों का देश है। वहां चुनाव एक पाखंड, एक प्रहसन से ज्यादा कुछ नहीं होते।28 जून को जब वोट डाले गए तब देश के करीब 6.10 करोड़ मतदाताओं में से 60 प्रतिशत ने वोट ही नहीं दिया। इससे यह चुनाव 1979 की क्रांति के बाद से हुए चुनावों में सबसे कम मतदान प्रतिशत वाला चुनाव बना है। मतदान केन्द्रों के बाहर लोगों की कतारें नहीं थीं। बल्कि मतदान की निगरानी करने के लिए तैनात किए गए अधिकारी सूनी मस्जिदों में अपनी मेजों पर सिर रखकर उंघ रहे थे। जिस बड़े पैमाने पर मतदान का बहिष्कार हुआ है वह सत्ताधारियों और देश के सर्वोच्च नेता आयतोल्लाह अली ख़ामेनेई को जनता का करारा जवाब है। ख़ामेनेई ने कहा था कि चुनाव में डाला गया हर वोट उनके इस्लामिक गणतंत्र के समर्थन में होगा।

दूसरे दौर का मतदान 5 जुलाई को होगा जिसमें ईरानी समाज की दरारें और सत्ताधारियों की कमजोरियां और साफ नजर आएंगी। ईरान में हाईब्रिड राजनैतिक प्रणाली है जिसमें लोकतंत्र भी है और सेना तथा धार्मिक हस्तियों का देश के संचालन में दखल भी। पहले दौर के मतदान में मोहमम्द बकार कालिबफ, मसूद पेजेक्यिन और सईद जलीली उम्मीदवार थे।

मोहमम्द बकार कालिबफ को मौलवियों और सैनिक कमांडरों का समर्थन प्राप्त था। वे इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के बड़े ओहदेदार रहे हैं। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर, मौलवियों की प्रेटोरियन गार्ड (रोमन सम्राटों के व्यक्तिगत अंगरक्षक) है। पहले दौर में उन्हें 33 लाख 80 हजार वोट मिले। वे तीसरे स्थान पर रहे और अब चुनावी दौड़ से बाहर हो गए हैं।

करीब 69 साल के सर्जन मसूद पेजेक्यिन, जो दो दशक पहले सुधारवादी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे और जिन्हें अब भी सुधारवादी माना जाता है, को 1 करोड़ 5 लाख 50 हजार वोट मिले और वे पहले नंबर पर रहे।

सईद जलीली 95 लाख वोटों के साथ उनसे थोड़े ही पीछे थे। जलीली अत्यंत रूढ़िवादी हैं और ईरान की आर्थिक बदहाली के लिए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को दोषी ठहराते हैं। वे अमेरिका से टकराने और रूस व चीन से दोस्ती करने के पक्षधर हैं। वे समाज में खुलेपन का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति को प्रतिक्रांतिकारी बताकर उस पर हमलावर रहते हैं। उन्हें पायदारी (अर्थात स्थिरीकरण) मोर्चे का समर्थन हासिल है, जो उग्र दक्षिणपंथी धार्मिक तत्वों का आन्दोलन है और जिसका समर्थन बढ़ रहा है।

इस तरह 5 जुलाई का मुकाबला सुधारवादी मसूद पेजेक्यिन और अति रूढिवादी सईद जलीली के बीच होगा। अर्थात बुरे और बदतर के बीच। दोनों ईरान के दो परस्पर विरोधी समूहों से जुड़े हैं। अपनी स्थिति मजबूत करने और मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी करने के लिए दोनों उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंद्वी को देश के अस्तित्व के लिए खतरा बताएंगे और देश में व्याप्त ध्रुवीकरण का लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। राजनैतिक नैरेटिव गंदला और विस्फोटक होना तय है।

अतिरूढ़िवादी जलीली, मशहद के निवासी हैं जो ईरान का दूसरा सबसे बड़ा शहर और पवित्रतम शहर है। जलीली को फारसी-भाषी बहुसंख्यकों से उम्मीद है, जिनका शासन-प्रशासन में बोलबाला है। सुधारवादी पेजेक्यिन लंबे समय से उत्तर-पश्चिमी शहर तरबिज से सांसद रहे हैं। यह शहर तुर्कों और कुर्दों दोनों से जुड़ा रहा है। वे अल्पसंख्यकों को अपने पक्ष में करने का प्रयास करेंगे जो फारसी भाषियों के प्रभुत्व से नाराज हैं। जिन स्टेडियमों में पेजेक्यिन के भाषण होते हैं, वे खचाखच भरे रहते हैं। लेकिन ऐसा लगता कि सुधारवादी अधिक सांस्कृतिक आजादी की मांग कर रहे युवाओं को यह भरोसा दिलाने में असफल रहे हैं कि उनके आंदोलन या मतपेटियां के जरिए असली बदलाव लाया जा सकता है। इसलिए यह वर्ग उनके साथ नहीं है। कुछ लोग ईरान के जनरेशन जेड को ‘अराजनीतिक’ बताते हैं और कुछ को यह अहसास है कि ईरान में निर्वाचित राजनीतिज्ञों के हाथों में सत्ता होती ही नहीं है। देश के असली मालिक तो सर्वाच्च नेता और इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्डस कोर हैं।

इसके अलावा, महशा अमीनी की मौत का मातम महिलाएं अभी भी मना रही हैं। महिलाएं चुनाव से जुड़ी गतिविधियों से दूर रहीं और उन्होंने वोट भी नहीं दिया। ऐसा लगता है कि मतदान का बहिष्कार करने वाली महिलाओं का प्रतिशत पुरूषों से कहीं अधिक था। हालांकि पेजेक्यिन ने प्रथम दौर के मतदान की पिछली रात  महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने का आव्हान किया और कहा कि उन्हें यह तय करने की आजादी होनी चाहिए कि वे क्या पहनें, लेकिन बहुत सी महिलाओं ने शायद उन पर भरोसा नहीं किया।

बड़ा सवाल यह है कि ईरानी जनता की उदासीनता के इस माहौल पर – जो साफ नजर आ रहा है – सर्वोच्च नेता की क्या प्रतिक्रिया होगी और वे क्या करेंगे। वे कह चुके हैं कि मतदान का अधिक प्रतिशत सत्ताधारियों के “स्थायित्व, स्थिर शासन, सम्मान और दुनिया में उनकी प्रतिष्ठा का पैमाना होगा”। ईरान के सत्ताधारी अलोकप्रिय हैं और उन्हें बार-बार प्रतिरोध और उपद्रवों का सामना करना पड़ता है।

खामेनेई की चिंता यह है कि चुनावों से कहीं जनता जाग न उठे – क्योंकि जागी हुई जनता ही उनके लिए सबसे बड़ा खतरा है। वहीं बाकी दुनिया की चिंता यह है कि ईरान की विदेश और परमाणु नीति भविष्य में कौन सी दिशा अख्तियार करेगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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