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चिली का वह 9/11 ज्यादा जघन्य था!

नई दुनिया के इतिहास में 11 सितम्बर एक अहम तारीख़ है।पर यह 2001 का9/11 नहीं बल्कि आज से पचास साल पहले सन 1973 के 9/11 के दिन की बात हैं। ग्यारह सितंबर 1973 की सुबह लातिनी अमरीका के सबसे स्थिर लोकतंत्र, चिली में जनरल औगस्टो पिनोशे ने तख्तापलट किया। फिर उन्होने कोई 17 साल तक चिली पर राज किया। लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए समाजवादी राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे ने राजधानी सेटिंयागो के बीचों-बीच स्थित राष्ट्रपति के महल लॉ मुनेदा में आत्महत्या की। दुनिया ने तब देखा था कि चिली की वायुसेना ने राष्ट्रपति भवन पर राकेटों से हमला किया। अलेंदे मौत को गले लगाकर लोकतंत्र की खातिर शहीद हो गए। वे पूरी दुनिया में वामपंथ के आइकॉन बने।

इन दिनों चिली की जनता उस तख्तापलट की 50वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में है। उसकी यादें लोगों के दिलों में आज भी ताजा हैं।इन दिनों गेब्रियल बोरिक, जो चिली के युवा वामपंथी राष्ट्रपति हैं, के रूप में देश को एक ऐसा राष्ट्रीय नेता मिला है जो अलेंदे के जबरदस्त प्रशंसक है। अपना कार्यभार संभालने के दिन ही उन्होंने इस दिवंगत नेता को राष्ट्रपति भवन के पिछवाड़े में स्थापित उनकी प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की और अपने भाषण में उन्हें याद किया। गत सप्ताह उनकी सरकार ने उन 1,162 लोगों के शवों की खोज के एक नए अभियान की घोषणा की जो औगस्टो पिनोशे की तानाशाही के दौरान गायब हो गए थे और अभी तक उनके बारे में कुछ भी पता नहीं लगा है। पिनोशे ने तख्तापलट के बाद अपने विरोधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विद्यार्थियों को बंदी बनाकर उन्हें सेंटियागो के नेशनल स्टेडियम और अन्य अस्थायी जेलों में रखा। कोई 30,000 लोगों को यातनाएं दी गईं। और 2,200 से अधिक को मृत्युदंड सुनाया गया। इन गायब हुए लोगों के बारे में कोई भी सुबूत न मिल सके यह सुनिश्चित करने के लिए पिनोशे ने इनके शवों को कब्र से निकालकर समुद्र या ज्वालामुखी के मुहाने में फेंकने का आदेश दिया था।

सन् 1973 में हुए तख्तापलट और उसके बाद के तानाशाही के दौर के बारे में बहुत सी बातें आज भी हमें पता नहीं हैं। पिनोशे और जुंटा सुबूत मिटाने में बहुत कुशल थी। अमेरिका भी उस दौर के बारे में सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने में हिचकिचा रहा है। वे धीरे-धीरे किश्तों में सामने आ रहे हैं। लेकिन चिली के वर्तमान राष्ट्रपति 37 वर्षीय गेब्रियल बोरिक और अलेक्जेंडरिया ओकासियो-कोर्टेज जैसे अमेरिका के प्रगतिशील डेमोक्रेटों के दबाव मे हाल में अमरीका ने दो दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं – तख्तापलट वाले दिन और उसके तीन दिन पहले राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को ख़ुफ़िया एजेंसी द्वारा दी गई ब्रीफिंग। इन दस्तावेजों का निचोड़ यह है कि अमेरिका ने सत्ता पर कब्जा करने में सेना की मदद की थी।

दरअसल अलेंदे के पापुलर यूनिटी एलायंस के नेता के तौर पर 4 सितंबर 1970 को चुनाव जीतने के बाद से ही व्हाईट हाऊस ने निक्सन के सलाहकार हैनरी किसिंजर की अगुवाई में उनसे छुटकारा पाने की साजिश रचना शुरू कर दी थी।  सीआईए ने चुनाव के अगले माह अलेंदे के राष्ट्रपति पद संभालने के भी पहले, एक बगावत की योजना बनाई थी। सीआईए के जासूसों ने सत्ता-विरोधियों को हथियार और नकद मुहैया करवाई। सैन्य सरकार के लिए अमेरिरॉकी सरकार के समर्थन का आश्वासन भी दिया। हालांकि वह बगावत नहीं हो सकी, लेकिन निक्सन प्रशासन ने तख्तापलट के तुरंत बाद सैनिक जुंटा का साथ देना शुरू कर दिया। जब सदमे में अमेरिकी कूटनीतिज्ञों ने कत्लेआम की खबरें भेजीं तो किसिंजर ने अपने सहायकों से कहा ‘‘मेरा मानना है कि हमें अपनी नीति को समझना चाहिए – यह सरकार चाहे कितने भी गलत काम करे यह हमारे लिए अलेंदे से बेहतर है”।पिनोशे को ब्रिटेन में सन् 1979 में चुनाव जीतने वाली मार्गरेट थैचर के रूप में एक और शक्तिशाली मित्र मिला। उन्होंने चिली को उधारी में सामान निर्यात करना शुरू किया और उसे हथियार बेचने पर लगी पाबंदी भी हटा दी। इंग्लैंड ने इस सरकार को जेट लड़ाकू विमान और उसके सैनिकों को प्रशिक्षण की सुविधाएं प्रदान कीं। इसका नतीजा यह हुआ कि पिनोशे की सरकार ने अर्जेंटीना, उरूग्वे, पेरागुए, बोलिविया और ब्राजील की सैन्य सरकारों के साथ मिलकर वामपंथियों और सामाजिक कार्यकर्ताओें की हत्याएं करनी शुरू कर दीं।

हत्याकांडों की इस श्रृंखला को ऑपरेशन कोंडोर का नाम दिया गया। इस ऑपरेशन की अमेरिका के फोर्ड, कार्टर, और रीगन प्रशासन ने प्रशिक्षण और सैन्य सहायता के रूप में मदद की और उसे “कम्युनिज्म के खिलाफ लड़ाई” का हिस्सा बताया।

इस तख्तापलट ने पूरी दुनिया में लंबे समय तक प्रभाव छोड़ा। विशेषकर इसकी दिल दहला देने वाली क्रूरता के कारण। आज भी चिली की जनता तख्तापलट और अलेंदे को लेकर बंटी हुई है। हाल में मोरी द्वारा की गई रायशुमारी में पाया गया कि इसमें भाग लेने वालों में से केवल 42 प्रतिशत यह मानते हैं कि तख्तापलट से लोकतंत्र ख़त्म हुआ और केवल 36 प्रतिशत का यह विचार है कि इससे चिली को मार्क्सवाद से छुटकारा मिला। वाशिंगटन के राष्ट्रीय सुरक्षा  संग्रहालय के वरिष्ठ विश्लेषक पीटर कोर्न्ब्लुह, जिन्होंने अमरीकी सरकार पर तख्तापलट संबंधी दस्तावेज सार्वजनिक करने के लिए चलाए गए अभियान का नेतृत्व किया और चेतावनी दी कि अति-दक्षिणपंथ के उभार के साथ पिनोशे के दौर में हुए अत्याचारों को नकारने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसमें कोई शक नहीं कि चिली में हुए तख्तापलट के सबक आज की दुनिया के लिए भी प्रासंगिक है क्योंकि उसने पूरी दुनिया की बहुत सी उम्मीदों और सपनों पर पानी फेरा था। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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