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अमेरिकी लोकतंत्र में फैलता जहर

हर तरफ जहर ही जहर है। पूरे तंत्र में, उसकी जड़ों तक जहर फैल गया है। वह सर्वव्यापी है। आप और मैं इस जहर से परेशान और क्षुब्ध हैं मगर इससे अछूते नहीं, बल्कि कुछ भी उससे अछूता नहीं है- व्यवसाय, समाज, संस्कृति, काम करने के तरीके, राजनीति सब कुछ बहुत टॉक्सिक हो गए हैं।

शनिवार की शाम डोनाल्ड ट्रंप भी इसी जहर के शिकार हुए। बटलर काउंटी, पेन्सिलवेनिया में एक रैली में बोलते समय उन पर गोली चलाई गई, जो उनके कान को छूती हुई निकली और उनके पास खड़े एक व्यक्ति को लगी। हमलावर को मौके पर ढेर कर दिया गया। घटना के बाद जब पूर्व राष्ट्रपति को सभास्थल से ले जाया जा रहा था तब उनके चेहरे पर बहता खून साफ नजर आ रहा था। लेकिन इन हालातों में भी उन्होंने अपनी मुट्ठी बांधकर, हाथ ऊपर कर यह दिखाया कि वे डरे या घबराए हुए नहीं हैं।

ट्रंप की जान लेने की इस कोशिश से अमेरिका और सारी दुनिया स्तब्ध है। लेकिन यह घटना चौंकाने वाली नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप और उनके लोक लुभावनवाद ने राजनीति को काफी पहले ही जहरीला बना दिया था। केवल इस एक राजनेता द्वारा फैलाए गए जहर का असर सभी आस्थाओं और विचारधाराओं के नेताओं पर पड़ा है। उससे राजनीतिक माहौल बद से बदतर हो गया है।

दरअसल, बीती रात एक जहर का सामना दूसरे जहर से हुआ।

अभी तक यह साफ नहीं है कि ट्रंप पर गोली चलाने वाला कौन था और उसकी कौन सी विषैली राजनीतिक आस्थाएं थीं। ट्रंप सुरक्षित हैं लेकिन राजनीतिक माहौल निरापद नहीं है। अमेरिकी चुनाव, जो पहले से ही अफरातफरी, नफरत, तिरस्कार और खून खराबे (शाब्दिक अर्थ में नहीं) से भरा था, अब और अधिक रक्तरंजित, कुत्सित और भयानक बन गया है।

अमेरिकी लोकतंत्र लंबे समय से हिंसा से पीड़ित रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह हिंसा लगातार बढ़ती रही है। और ट्रंप हिंसक बातें करने में सबसे आगे रहे हैं। उनकी चुनाव रैलियों में अक्सर हिंसा होती रही है या हिंसा करने की धमकी दी जाती रही है। ट्रंप के विरूद्ध प्रदर्शन करने वालों पर हमले हुए हैं और ट्रंप स्वंय ऐसे हमलों के लिए अपने समर्थकों को उकसाते रहे हैं। लेकिन सीधे ट्रंप को निशाना बनाकर कोई हमला अभी तक नहीं हुआ था।

अमेरिका के हाल के इतिहास में राजनीतिक हिंसा की सबसे गंभीर घटना छह जनवरी 2021 को हुई थी जब ट्रंप के समर्थकों ने बाइडेन के हाथों हुई उनकी हार से खीज कर ट्रंप के उकसावे पर संसद पर हमला किया, पुलिस अधिकारियों के साथ मारपीट की और कांग्रेस की बैठक में बाधा डाली। इनमें से कुछ अपने हाथों में फांसी के फंदे और प्लास्टिक की रस्सियां लिए हुए थे और कह रहे थे कि वे हाउस आफ रिप्रेंजटेटिव्स की तत्कालीन अध्यक्ष डेमोक्रेटिक पार्टी की नैन्सी पेलोसी और तत्कालीन उप राष्ट्रपति माइकल पेंस को ढूंढ़ रहे हैं। फिर 2022 में एक अर्धविक्षिप्त आदमी पेलोसी के घर में घुस गया और उसने उनके उम्रदराज पति के सिर हथौड़े से कई वार किए। उसी साल एक व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ब्रेट केवेनो की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

अमेरिका में हालात कमोबेश वैसे ही हैं जैसे भारत में। समाज में विभाजन गहरा और चौड़ा होता जा रहा है, ध्रुवीकरण बढ़ रहा है और जो कट्टर तबका नफरत को हवा दे रहा है, उसकी शायद कोई विचारधारा नहीं है या शायद वो सब कुछ बदल डालना चाहता है। जहरीले राजनीतिक प्रोपेगेंडा के वशीभूत लोग एक दूसरे का और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का खात्मा करने पर आमादा हैं। यदि इस सब पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह हमें अराजकता और गृह युद्ध में ढकेल सकता है।

सभी ने ट्रंप पर हुए हमले की कड़ी आलोचना की है। आने वाले दिनों में उन पर हमला करने वाले की पूरी जानकारी सामने आएगी। यह पता चलेगा कि उसका राजनीतिक नजरिया क्या था और ट्रंप के प्रति उसकी नफरत की वजह क्या थी। शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ट्रंप के विरूद्ध हिंसा का समर्थन करने वालों की संख्या  वयस्क अमेरिकियों का 10 प्रतिशत या 2.26 करोड़ है। ट्रंप के हक में हिंसा किए जाने का समर्थन करने वाले 1.80 करोड़ हैं, जो अमेरिका की वयस्क आबादी का 6.9 प्रतिशत हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि ट्रंप विरोधी हिंसक भावनाएं, ट्रंप समर्थक हिंसक भावनाओं से ज्यादा प्रबल हैं।

कुछ ही दिनों में मिलवाकी, विस्कांसिन में होने वाले रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में ट्रंप लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए नामांकित हो जाएंगे। खून से भरे चेहरे और बंधी मुट्ठी वाला हाथ ऊंचा उठाने की ट्रंप की तस्वीरें बार बार मीडिया और सोशल मीडिया में दिखाई जाएंगीं और यही सम्मलेन का नैरेटिव होगा। राष्ट्रपति पद की दौड़ और अंधकारमय, और क्रूर हो जाएगी। पहले से ही ट्रंप राष्ट्रपति चुने जाने की दौड़ में आगे हैं। उनकी हत्या के इस असफल प्रयास से उनकी संभावनाएं और बेहतर हो गईं हैं। उनकी तुलना थियोडोर रूजवेल्ट से की जाने लगी है, जिन्होंने 1912 में छाती पर गोली मारे जाने के बाद भी यह एहसास होने पर कि चोट खतरनाक नहीं है, अपना भाषण जारी रखा था। ट्रंप ने ऐसा तो नहीं किया, लेकिन हमले के बाद सोशल मीडिया पर लिखा “यह आश्चर्यजनक है कि हमारे देश में ऐसा कुछ हो सकता है”। ट्रंप इस क्षण का मजा लेंगे और इससे उत्साहित होंगे। वे इसका पूरा पूरा फायदा उठाएंगे और आग में घी डालते हुए माहौल को और जहरीला बनाएंगे। उनके समर्थक पगला जाएंगे।

दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र आज रक्तरंजित है। वह आज पहले के किसी भी दौर से अधिक हिंसक है, गुस्से से भरा हुआ है। मतदान के ठीक पहले गोलीबारी होना लोकतंत्र के लिए स्वस्थ या अच्छा लक्षण नहीं है। क्या राजनेता होश में आएंगे? क्या माहौल में घुला जहर वहीं रहेगा या सबके व्यापक हित में वातावरण को बेहतर बनाया जाएगा?

अमेरिका के लिए अगले कुछ महीने बहुत ही परेशान करने वाले हो सकते हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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