राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

झूठ का और बनेगा बोलबाला!

donald trump effectImage Source: ANI

donald trump effect: दुनिया ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए कमर कस रही है। इस बार सभी की कोशिश है कि ट्रंप उन पर मेहरबान बने रहे।

2021 में संसद भवन इलाके में हुई हिंसा के बाद सभी ने उनका साथ छोड़ दिया था। उनका तिरस्कार था और उनसे दूरी बना ली गई थी – खासतौर से कारोबारी दुनिया के लोगों द्वारा। उद्योग-धंधो से जुड़े सभी लोगों ने राजनीतिक हवा के अनुकूल स्वयं को ढ़ाल लिया था।

मगर अब हालात बदल गए हैं। एपल के टिम कुक और ओपन एआई के सेम अल्टमेन ने ट्रंप के शपथग्रहण कोष में भारी दान दिया है।

अमेजन ने चार करोड़ डालर के बजट से अगली प्रथम महिला के जीवन पर आधारित फिल्म के निर्माण की घोषणा की है। इसके अलावा मार्क जुकरबर्ग ने अपना रूख पूरी तरह पलट दिया है।

also read:  डॉ. मनमोहन सिंह और जिमी कार्टर की अंत्येष्टि का फर्क!

सात जनवरी को जुकरबर्ग ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक क्लिप पोस्ट की जिसमें उन्होंने ट्रंप की जीत को परिवर्तनकारी घटना बताते हुए अपने सोशल नेटवर्क माध्यमों की कंटेंट मॉडरेशन नीति में बदलाव की घोषणा की।

उन्होंने कहा, “बहुत-सी गलतियां हुईं हैं और बहुत सख्ती से कांट-छांट की गई।” उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप की वापसी “बोलने की आज़ादी कायम करने का एक मौका है।” उन्होंने स्वीकार किया कि पहले सेंसरशिप लागू करने में गलतियां हुई।

शायद उनका इशारा पिछले चार सालों की ओर था जब डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान राजनीतिक चर्चाओं पर तरह-तरह की पाबंदियां लगा दी गईं थीं।

उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मिलकर उन विदेशी सरकारों का प्रतिरोध करने का प्रयास करेंगे जो अमरीकी कंपनियां पर अधिक सेंसरशिप लागू करने के लिए दबाव बना रही हैं।

मेटा का नजरिया बदलकर

ये बातें वह व्यक्ति कर रहा है जिसने चार साल पहले डोनाल्ड ट्रंप के फेसबुक और इंस्टाग्राम एकाउंट पर यह कहते हुए दो साल का प्रतिबंध लगा दिया था कि उन्होंने हिंसा भड़काई और 6 जनवरी 2021 को केपीटोल में हंगामा करवाया।

लेकिन आज जुकरबर्ग ने मेटा का नजरिया बदलकर अति दक्षिणपंथी कर दिया है और वे मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (एमएजीए) की जमात में शामिल होने की ओर बढ़  रहे हैं।

आने वाले दिनों में मेटा, फेक्ट चैकर्स से दूरी बना लेगी, सेंसरशिप घटा देगी और अपने सभी प्लेटफार्मों – फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स पर – अधिक राजनीतिक सामग्री पोस्ट होने देगी।

अब से स्वास्थ्य से सम्बंधित मुद्दों या कमज़ोर समूहों के बारे में हानिकारक या खतरनाक झूठी बातें पोस्ट किए जाने की सूचना देने और शिकायत दर्ज करने की ज़िम्मेदारी उपयोगकर्ताओं के कन्धों पर होगी।

उपयोगकर्ताओं द्वारा कंटेंट मॉडरेशन, जैसा कि हमने ट्विटर के मामले में देखा, अत्यंत निष्प्रभावी होता है। लेकिन, अब लक्ष्य यही है क्योंकि इससे अधिक मात्रा में गलत चीज़ें ऑनलाइन उपलब्ध होने लगेगी।

फेसबुक की स्थापना क्यों की

न्यूयार्क टाईम्स और अन्य समाचारमाध्यमों के अनुसार जुकरबर्ग के इस कदम को ”फैक्ट चैकिंग” से पीछे हटने वाला कदम बताना गलत होगा क्योंकि फेसबुक का कभी तथ्यों से कोई लेनादेना न रहा है और न रहना चाहिए।

फेसबुक का उद्धेश्य हमेशा से उसके उपयोगकर्ताओं और विज्ञापनदाताओं को नुकसान से बचाना रहा है।

कारण यह कि कोई भी प्रतिष्ठित कंपनी अपने उत्पाद या सेवा की जानकारी यौन शोषण, हिंसा या कट्टरता दर्शाने वाली किसी वीभत्स तस्वीर के बगल में रखना नहीं चाहेगा।

जुकरबर्ग की इस पलटी के बारे में मेरा मानना है कि वे हमेशा से अहंकारी रहे हैं। इसलिए एलन मस्क और उनके एक्स की ओर बहुत अधिक लोगों के आकर्षित हो जाने से वे स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगे।

हमें याद रखना चाहिए कि जुकरबर्ग ने फेसबुक की स्थापना क्यों की थी।(donald trump effect)

जिन लोगों को यह बात पता नहीं है, उनकी जानकारी के लिए इतना बताना काफी होगा कि  फेसबुक का विकास, जुकरबर्ग द्वारा “हॉट ऑर नॉट’ की एक नक़ल, फेसमैश से शुरू हुआ था।

इसमें हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के चुराए गए फोटो रखे गए और फिर उनसे कहा गया कि वे उन्हें ‘हॉटनेस’ के क्रम में जमायें।

उन्होंने इसे बिछड़े हुए मित्रों को मिलवाने के लिए या बेजुबानों को मंच उपलब्ध करवाने के लिए नहीं बनाया था। बल्कि जुकरबर्ग ने फेसबुक को डेटिंग सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए बनाया था।

लेकिन भाग्य ने उनका साथ दिया और समय के साथ फेसबुक सारी दुनिया में प्रचलित हो गया। वे अहंकारी और उन्मादी विचारक बन गए।

विज्ञापनदाताओं के समक्ष कोई विकल्प नहीं(donald trump effect

सवाल यह है कि आखिर अब जुकरबर्ग को अपने विज्ञापनदाताओं की परवाह क्यों नहीं है, खासकर तब जब कि उनकी योजना मेटा को एक सोशल मीडिया कंपनी से एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी बनाने की है।

जिन लोगों को इन बातों की ज्यादा समझ नहीं है – उनकी जानकारी के लिए इतना बताना काफी होगा कि हमारे अंबानियों की तरह जुकरबर्ग के पास इतना अधिक धन है कि उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

वे जानते हैं कि अमेरिका में टिक-टाक को तबाह करने की उनकी मुहिम सफल होती नजर आ रही है और फेसबुक की सफलता से ज्यादातर मीडिया समूहों को मिलने वाले विज्ञापनों में काफी गिरावट आ गई है।

इसलिए विज्ञापनदाताओं के समक्ष कोई विकल्प नहीं है। या हो सकता है कि जुकरबर्ग मेटा की विज्ञापनों पर निर्भरता से आज़ादी दिलवाना चाहते हों

वे नए एआई टूल्स विकसित करेगी और उन्हें कंपनियां और सरकारों को लीज पर देगी या बेचेगी जिससे न केवल उसे स्थायी आय का साधन मिल जाएगा बल्कि उसका राजनीतिक दबदबा भी बढ़ेगा।

मोदी जैसे मित्रों का बोलबाला(donald trump effect)

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने और अमेरिकी सरकार की तीनों शाखाओं पर रिपब्लिकन पार्टी का नियंत्रण कायम होने से फेसबुक के नरेन्द्र मोदी जैसे मित्रों का बोलबाला कायम रहने और जर्मनी, फ्रांस और अन्य यूरोपियो देशों में अतिवादी शक्तियों के सत्ता पर काबिज होने की संभावना के चलते जुकरबर्ग को अब जनता की निंदा या कानूनी प्रावधानों की चिंता नहीं है।

इसका एकमात्र अपवाद संभवतः ब्राजील हो सकता है जहां की लूला सरकार किसी भी शक्तिशाली देश की ऐसी पहली सरकार है जो अमरीकी कंपनियों से जवाब-तलब करने के लिए तत्पर है।

मैं किसी भी तरह से जुकरबर्ग के खिलाफ नहीं हूं। वे वही कर रहे हैं जो करने के लिए वे जन्मे थे – लोगों को भरमाना और पैसा कमाना। उनका हाल का यू-टर्न चौकाने वाला है।

वे उसी रास्ते पर चलेंगे, जहां उन्हें कमाई होगी। यह साफ है कि उनकी नई नीति का व्यापक असर होगा। लेकिन सोशल मीडिया पर न कभी सच का बोलबाला था न होगा। यह झगड़ने और बेवकूफ बनाने का मंच है।

पिछले एक दशक से हमें तथ्यों और सच्चाई से महरूम रखा गया है। तो यदि अगले चार-पांच सालों तक भी हमें तथ्यों से दूर रखा जाए है तब भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

जब तक यह आपको अपने परिवार और मित्रों से विवाद करने का मंच बना रहेगा और  जब तक वह आपको “आसमां पे है ख़ुदा और ज़मीं पे हम” वाला भाव देता रहेगा, तब तक किसे परवाह है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *