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पैसा बेटे से मां, बाप, बहन की हत्या करा देता है!

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दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी अर्जुन ने अपने पूरे परिवार की निर्ममता से हत्या कर दी। अपने माता-पिता और बहन को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। और वह भी माता-पिता के विवाह की वर्षगांठ के दिन।

दूसरे की थाली में हमेशा ज्यादा घी नज़र आता है, यह बहुत पुरानी कहावत है। और हम सब जानते-समझते हैं कि यह कहावत कितनी गहरी बात कहती है, हमें बताती है। मगर फिर भी, हर बार जब हम अपने किसी रईस रिश्तेदार या मित्र, या किसी मशहूर व्यक्ति या उद्योगपति को देखते हैं तो हममें उनके जैसी जिंदगी जीने और उनके बराबर धन-संपत्ति हासिल करने की तमन्ना जाग उठती है।  हम सफल नहीं – धनी होना चाहने लगते हैं।

अभी हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी अर्जुन ने अपने पूरे परिवार की निर्ममता से हत्या कर दी। उसने दिल्ली में अपने माता-पिता और बहन को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। और वह भी अपने माता-पिता के विवाह की वर्षगांठ के दिन। उसका अरमान मुक्केबाज बनने का था। मगर उसकी निगाहें अपने सेवानिवृत्त मिलिट्री अधिकारी पिता राजेश कुमार की थोड़ी-बहुत धन-संपदा पर गड़ी हुईं थी। उसे डर था कि कहीं उसके पिता अपनी संपत्ति का वारिस अपनी पुत्री (यानि उसकी बहन) को न बना दें। यह आशंका उसके अरमानों पर हावी हो गई। वह अपने परिवार से चिढ़ने लगा। उसका बार-बार अपने पिता से विवाद होने लगा। वह स्वयं को उपेक्षित, अलग-थलग और अपमानित महसूस करने लगा।

फिर उसने हत्या की योजना  बनाई, जो उसकी दृष्टि में ऐसी थी जिसमें हत्यारे का पकड़ा जाना असंभव था – द परफेक्ट मर्डर। उसने पहले अपनी सोती हुई बहन का  गला रेत कर उसकी जान ले ली। फिर वह सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की मंजिल पर गया और अपने पिता के गले में चाकू घोंपकर और मां का गला रेतकर उन्हें भी मार डाला। इसके बाद उसने  खून से सने अपने कपड़े उतारकर अपने जिम के बैग में डाले, दूसरे कपड़े पहने और संजय वन जाकर चाकू और कपड़ों को फेंक दिया। उसके बाद वह दौड़ने चला गया और फिर घर लौटकर अपने किए-धरे पर ही रोने-धोने का नाटक करने लगा। लेकिन उसका झूठ जल्दी ही पकड़ लिया गया। उसके अपने गुस्से और लालच को भले ही मुखौटे से छुपा लिया था ताकि वह लंबे समय तक नौटंकी सफलतापूर्वक कर सके। लेकिन अंततः वह टूट गया और उसने इक़बाल-ए-जुर्म कर लिया।

शायद उसे भी दूसरे की थाली में ज्यादा घी नज़र आ रहा था। और इसलिए उसने अपने ही परिवार का कत्ल कर दिया। यह सब बहुत भयावह लगता है। लेकिन यह सचमुच हुआ है।

पिछले कुछ समय से ओटीटी पर इसी तरह की कहानियां दिखाई जा रही हैं। ‘बिग लिटिल लाईज़ से लेकर ‘व्हाइट लोटसटो’ तक और हाल ही में ‘द  परफेक्ट कपल’ और ‘सक्सेशन’ में लोगान खानदान की कहानी तक – इस तरह की कथावस्तु वाले शो देखने को मिल रहे  हैं जिनमें सभी पात्र धनी हैं, उनके चेहरों पर चमक है, और उनकी इच्छा और धनी, और चमक-दमक वाला बनने की है। ये शो आकर्षक होते हैं और इनकी यर्थाथता दर्शकों को बांधे रखती है। मैं इन्हें देखना इसलिए पसंद करती हूं क्योंकि ये हकीकत के काफी नजदीक होते हैं। ये इंसान का वह पक्ष दिखाते है जो कालिख भरा है, जिसे हम मॉस्क लगाकर समाज से छिपाते हैं – वह पक्ष है पैसे के प्रति जबरदस्त आकर्षण। पैसे से ऐसा लगाव जो हममें तरह-तरह की बुराईयां पैदा कर देता है। दूसरों की शानो-शौकत देकर लोग पागल हो जाते हैं, और उनका लालच उनके मानवीय रिश्तों पर हावी हो जाता है। वे सभी नाखुश हैं, एक दूसरे से नफरत करते हैं, और हमेशा धोखा देने की जुगत में लगे रहते हैं। वे सब परेशानहाल हैं।

पैसा शायद इंसान को ख़ुशी देने वाली सबसे बड़ी चीज है। लेकिन क्या पैसा वास्तव में आपको ख़ुशी देता है।

काफी दिनों पहले हमने दो भाईयों के बीच उस दौलत के लिए घृणित लड़ाई को देखा, जो उनके पिता ने उल्टे-सीधे तरीकों से अर्जित की थी। वह काफी ज्यादा थी – इतनी ज्यादा कि दोनों उसे पूरा-पूरा हासिल करना चाहते थे। नतीजा यह हुआ कि परिवार का आंतरिक मामला सबके सामने आ गया। आम लोगों ने इस विवाद, इससे जुड़ी अफरातफरी और बर्बादी का भरपूर आनंद लिया।

लेव टोलस्टाय अपने उपन्यास आन्ना करेनिना की शुरुआत इस वाक्य से करते हैं: “सभी प्रसन्न परिवार एक जैसे होते हैं, मगर हर दुखी परिवार अपने-अपने तरीके से दुःखी होता है।

लेकिन अब, 21वीं सदी में, जब पैसे के लिए कलह और गलाकाट प्रतिस्पर्धा है, हर दुःखी परिवार सिर्फ और सिर्फ एक वजह से दुःखी है और वह है पैसा। पैसा आज जितनी अप्रसन्नता पैदा कर रहा हैं, वह उन खुशियों से कहीं ज्यादा है जो पहले पैसे से हासिल होती थीं।

एक हंसता-खेलता परिवार अहं को चोट पहुंचने और भाई-बहिन की प्रतिद्वंद्विता के चलते बर्बाद हो गया। मुक्केबाज बनने का सपना देखने वाला एक युवक अपने ही परिवार का हत्यारा बन गया।

सक्सेशन सीरियल में पिता लोगोन रॉय के सामने समस्या यह है कि उन्हें अपनी संतानों – जिन सभी से वे निराश हैं – में से एक को अपना वारिस चुनना है। सभी पात्र वास्तविक लगते हैं। नाटक आपको हंसाता भी और बेचैन भी करता है । सब कुछ अजीब सा लेकिन एकदम खरा और ताजा लगता है। लोगोन रॉय एक साधारण पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने बहुत बड़ा और सफल मीडिया साम्राज्य खड़ा किया है। वे कामधंधे में इतने मसरूफ रहे कि अपने बच्चों को किसी काबिल न बना सके। वास्तविक दुनिया में हम रुपर्ट मर्डोक के परिवार में विवाद देख रहे हैं जो जनता के सामने आ चुका है।  इस सप्ताह मीडिया के इस शहंशाह को अपनी अन्य संतानों – जेम्स, एलिजाबेथ और प्रूडेंस – के बजाए अपने सबसे बड़े बेटे लेचलान, जिसे वे युवराज घोषित कर चुके हैं, को अपना साम्राज्य सौंपने के कानूनी प्रसासों के पहले दौर में हार का मुंह देखना पड़ा। मर्डोक के लिए उनके नियंत्रण वाले मीडिया को दक्षिणपंथी बनाये रखना, अपने परिवार में एका बनाये रखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मुर्डोक अपनी पसंदीदा संतान को उत्तराधिकारी न बना पाने के खिलाफ अपील करेंगे पर उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी – अपनी तीन संतानों से संबंध और ज्यादा बिगड़ जाने के रूप में। हो सकता है कि वे ट्रस्ट में कोई बदलाव करने में नाकामयाब रहें जिससे और बहुत कुछ दांव पर लग जाएगा और उनकी मौत के बाद उनकी विरासत बिखर जाएगी।

पैसा बहुत ताकतवर औजार है। यह आपको समृद्ध बनाता है लेकिन साथ ही दुःख भी देता है। अर्जुन ने अपना परिवार और अपनी आजादी खो दी। जो दो भाई पहले आपस में लड़ रहे थे, अब और ज्यादा, बहुत ज्यादा पैसा कमा रहे हैं लेकिन उनका निजी जीवन कितना आसान है?  क्या वे उतनी चैन की नींद सो पाते होंगे जितनी मैं और आप सो पाते हैं! हमारे सामने और बहुत से ऐसे किस्से और उदाहरण मौजूद हैं जब परिवार के लोग दौलत के लिए एक-दूसरे का कत्ल कर रहे हैं। रोज लड़ाईयां होती हैं जो दिन-रात जारी रहती हैं। कानूनों का दुरूपयोग होता है, दिल का चैन खत्म हो जाता है, लालच की खातिर खुशियों की बलि चढ़ा दी जाती है।  और यह सब इसलिए क्योंकि हमें दूसरे की थाली में ज्यादा घी नज़र आता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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