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पोलैंड ने दुनिया को रास्ता दिखाया है

शायद आपकी पोलैंड में रूचि न हो, शायद आपको पोलैंड से कोई लेना-देना न हो, खासकर तब जब आपका ध्यान दुनिया में चल रहे दो युद्धों और हमारे अपने देश में चल रहे राजनीतिक तमाशों पर केंद्रित हो। किंतु पोलैंड महत्वपूर्ण है और उसकी ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। वह इसलिए क्योंकि पोलैंड ने हाल में निरंकुश लोक-लुभावनवाद को हराया है और वह भी एक ऐसे चुनाव के बावजूद, जो निष्पक्ष तो कतई नहीं था।

लेकिन पहले पृष्ठभूमि पर कुछ चर्चा। पोलैंड में पहले कम्युनिस्ट शासन था, उसके बाद निरंकुश लोक-लुभावन शासन था और इस पूरे दौर में वह एक असहिष्णु और अनुदार लोकतंत्र बना रहा। यही वजह थी कि वह अपने पड़ोसियों जितनी तरक्की नहीं कर सका। लेकिन 15 अक्टूबर को वहां के नागरिकों ने एक मुक्ति, एक बदलाव और एक नई शुरुआत के लिए वोट दिया। आठ साल के नेशनलिस्ट लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) के शासन के बाद पोलैंड के मतदाताओं ने तीन विपक्षी दलों को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटों पर जीत दिलवाई और यह सन् 1989 के चुनावों के बाद एक ऐतिहासिक मौका था।

सन् 1989 के चुनावों के बाद पोलैंड में पहली गैर-कम्युनिस्ट सरकार बनी। चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए की गई धांधली, दशकों तक चले कम्युनिस्ट समर्थक और गैर-कम्युनिस्ट विरोधी प्रचार, सत्ताधारियों के पुलिस, सेना और खुफिया तंत्र पर नियंत्रण के बावजूद लोकतंत्र समर्थक विपक्ष की विजय हुई और उसने वे सारी सीटें जीतीं जिन पर लड़ने की अनुमति उसे दी गई थी। अगले दस वर्षों में पोलैंड में धीरे-धीरे सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ और लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुईं। लेकिन 2015 में नेशनलिस्ट-कंजरवेटिव पार्टी लॉ एंड जस्टिस (पीआईएस) सत्ता पर काबिज हुई और उसने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए वह सब कुछ किया जो वह कर सकती थी।

उसके शासनकाल में सरकारी टेलीविजन चैनल सरकार के भोंपू बन गए, सरकारी संस्थानों के धन का उपयोग राजनीतिक अभियानों के लिए हुआ और प्रशासन का राजनीतिकरण हुआ। यहां तक कि चुनाव के ठीक पहले तक, तिकड़मबाजियां जारी रहीं। चुनाव कानूनों में फेरबदल किए गए और अत्यंत गोपनीय सैन्य दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया, और यह सब चुनाव जीतने के लिए हुआ। विपक्ष को डर था कि यदि पीआईएस इस चुनाव में भी जीत हासिल कर लेगी तो उसका सत्ता पर नियंत्रण इतना मजबूत हो जाएगा कि लोकतंत्र उसी तरह का ढकोसला बनकर रह जाएगा जैसा विक्टर ओर्बन के शासनकाल में हंगरी में था। चुनाव अभियान निहायत निर्मम, असभ्य और कटुतापूर्ण था। पीआईएस के नेता यारोस्सोव काजोवेंस्की ने कहा कि विपक्षा का ‘नैतिक रूप से सफाया कर दिया जाना चाहिए’ और उन्होंने डोनाल्ड टस्क- जो चुनाव में विजयी हुए- को खालिस शैतान कहा था। डोनाल्ड टस्क सबसे बड़े विपक्षी गठबंधन, द सिविक कोएलिशन के नेता हैं, जिसका मुख्य आधार है सिविक प्लेटफॉर्म पार्टी, जिसकी स्थापना 2000 के दशक की शुरुआत में हुई थी और वे जिसके सह-संस्थापक थे। काजोवेंस्की को उम्रदराज मतदाताओं का समर्थन हासिल था तो टस्क युवाओं में लोकप्रिय थे। नतीजा हुआ रिकार्ड तोड़ 74 प्रतिशत मतदान, जो 1989 से 10 प्रतिशत ज्यादा था। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार 29 वर्ष से कम उम्र के मतदाताओं ने 60 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं की तुलना में बहुत अधिक मतदान किया, जिसका साफ मतलब यह है कि पोलिश युवाओं को अंततः समझ में आ गया कि इस चुनाव में उनका भविष्य दांव पर लगा है। साथ ही महिलाओं ने अधिक संख्या में मतदान किया, क्योंकि उन्हें प्रतिक्रियावादी, पितृसत्तात्मक पार्टी के खिलाफ वोट देना था, जिसने यूरोप के सबसे कड़े गर्भपात-विरोधी कानून लागू किए। यह उनके लिए 1989 जैसा क्षण था, लोकतंत्र का क्षण और 1989 की तरह यह क्षण भी पोलैंड की जनता के लिए ‘अच्छे’ बदलाव का क्षण है।

अतः यह निश्चित है कि लोकतांत्रिक विपक्षी दलों को संसद में पीआईएस और उसके संभावित साथी कोंफेड्राकजा पार्टी की मुकाबले स्पष्ट बहुमत हासिल हो जाएगा। इस दूसरी पार्टी के बारे में आशंका थी कि उसे युवा मतदाताओं के बड़े प्रतिशत का समर्थन मिलेगा। यदि वर्तमान अनुमान एकदम गलत साबित नहीं होते तो डोनाल्ड टस्क पोलैंड के अगले प्रधानमंत्री होंगे और हालात दुबारा ठीक करने का सफर शुरू होगा। लेकिन जबरदस्त जीत के बावजूद बदलाव का यह सफर आसान नहीं होगा। वहां से छन कर आ रही खबरों के अनुसार अनुमान है कि गमो-गुस्से में जल रहे काजोवेंस्की कुछ गंदी हरकतें कर सकते हैं। राष्ट्रपति अंड्रेजी डूडा उन्हें पहले सरकार बनाने का न्योता देंगे, यह पक्का माना जा रहा है। इसलिए सत्ता परिवर्तन में कई महीने लग सकते हैं।

लेकिन पोलैंड के समक्ष उपस्थित जिन चुनौतियों का सामना टस्क को करना पड़ेगा, उनके बावजूद इन चुनावों के नतीजों का एक सबक हैं। निरंकुशता अपनी मौत मरती है, और जनाक्रोश किसी का भी अंत कर सकता है। और इसमें जुड़ गया समझदार विपक्ष। डोनाल्ड टस्क ने पीआईएस के निम्न स्तर के प्रचार के बावजूद अपनी गरिमा कायम रखी और आक्रामक राष्ट्रवाद की बजाए संयमित भाषा में देशभक्तिपूर्ण बातें कीं। तीन विपक्षी दलों के मैदान में होने का नतीजा यह हुआ कि मध्य-दक्षिणपंथी और मध्य-वामपंथी तक, मतदाताओं के विभिन्न वर्गों ने जो संदेश उन्हें दिया जा रहा था, उसे समझा। पिछले साल हंगरी में और पिछली मई में तुर्की में लोकतांत्रिक गठबंधनों के राष्ट्रवादी-परंपरावादी सत्ताधारी दलों को पराजित करने में विफल रहने और इजराइल में अतिवादियों का गठबंधन के सत्ता पर काबिज होने के बाद लोगों को भय था कि पोलैंड में भी लोकतांत्रिक पद्धति से बदलाव मुमकिन नहीं है। लेकिन, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पोलैंड के चुनाव ने उन्हें गलत साबित कर दिया है।

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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