हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना जाना-समझा कि कुछ किया जाना है और वह जल्द से जल्द होना चाहिए।
उसी बैठक में भविष्य में होने वाले सीओपी के लिए नियमों का निर्धारण हुआ।तयहुआ कि सन 2023 में विश्वस्तर पर हालात का एक बार फिर जायजा लिया जाएगा। देखा जायेगा कि 2015 में हुए समझौते के व्यापक लक्ष्यों के निकट पहुंचने के लिए क्या किया जा चुका है और क्या नहीं किया जा सका है।
अब उसी सिलसिले में आज दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधि यूएई के दुबई में सीओपी28 के लिए एकत्रित हुए हैं जहां यह चर्चा होगी कि हमने क्या हासिल किया है और जलवायु संकट का मुकाबला करने के प्रयासकिस दिशा में जा रहे हैं।
हाल में 2023 की यूएनईपी गेप रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सभी देश पेरिस समझौते के अंतर्गत जो कुछ उन्हें करना है, उसे पूरी तरह से कर दें तभी हम औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि 2.9 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित रखने की दिशा में ही आगे बढ़ सकेंगे, जो पेरिस में निर्धारित किए गए और 2021 में ग्लासगो में दुहराए गए 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड के लक्ष्य की तुलना में बहुत कम होगा। यहाँ यह याद रखा जाना चाहिए कि 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि भी इतनी अधिक है कि वह अरबों लोगों का जीवन दूभर कर देगी।
बहरहाल, अनिश्चितता के हालात बने हुए हैं। वैश्विक औसत तापमान में 2.9 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि से विनाशकारी प्राकृतिक आपदाएं आएगीं जिनके व्यापक दुष्प्रभाव होंगे। इस पृष्ठभूमि और ज्ञात इतिहास के सबसे गर्म साल में विश्व की अपेक्षा है कि सीओपी 28 में यह आह्वान किया जायेगा कि हम नयी राह पर चलें क्योंकि अभी हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वह हमें कहीं नहीं ले जाएगा।
वैश्विक तापमान में वृद्धि को औद्योगिकरण के पूर्व के तापमान की तुलना में 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड की अधिकतम ‘सुरक्षित’ सीमा से कम रखने के लिए हमारी दुनिया पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। पिछले वर्ष हुए जलवायु सम्मेलन में सभी देश ‘अकुशल फॉसिल फ्यूल्स पर अनुदान’ घटाने पर सहमत हुए थे लेकिन पूरी दुनिया की सरकारों द्वारा इसके लिए दिया जाने वाला अनुदान सन् 2022 में अब तक के सर्वोच्च स्तर 1700 अरब डालर तक पहुंच गया।
दुबई में भले ही नए, बेहतर लक्ष्य निर्धारित न किए जाएं परंतु जलवायु संबंधी वर्तमान लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी सब देशों को मिलकर पूरे जोश से काम करना होगा। यूएई की सरकारी तेल कंपनी के चीफ एग्जीक्यूटिव सुल्तान अल जेबर, जो सीओपी28 की अध्यक्षता करेंगे, पर बड़ी ज़िम्मेदारी है। उन्हें भविष्य में कार्बन उर्त्सजन में कमी लाने संबंधी नए समझौते करवाने हैं, ग्लोबल वार्मिग से हुई हानि की भरपाई के रूप में किए जाने वाले भुगतान का मामला देखना है और गरीब देशों को जलवायु संबंधी वित्तीय सहायता दिए जाने की एक अधिक न्यायपूर्ण व्यवस्था कायम करने पर ध्यान देना है, यह वित्तीय सहायता अधिकतर उच्च ब्याज दर वाले ऋण के रूप में होती है।
विकासशील देशों का कहना है कि यदि विकसित देशों ने क्योटो समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर लिया होता तो वे भी फॉसिल फ्यूल्स के उपयोग में कमी लाकर ग्रीन हाउस गैस उर्त्सजन को घटाने में अपनी ‘उचित भागीदारी’ का प्रयास करते। किंतु हालत यह है कि सन 2050 तक तेल और गैस के जो नए कुँए बनेंगे, उनमे से अधिकांश पांच धनी देश – अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, नार्वे और यूके – बनाएंगे।
सीओपी28 ऐसे समय में हो रहा है जब हमारे सामने गंभीर खतरे हैं। मगर अवसर भी हैं। इस सम्मलेन में वर्तमान हालात का जायजा लिया जा सकता है और जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तीव्र गति से अधिक बड़े पैमाने पर कदम उठाने का निर्णय लिए जा सकते हैं। या यह ऐसा एक और ऐसा सम्मेलन साबित हो सकता है जिसमें वायदे, संकल्प और प्रतिज्ञाएं तो होंगी मगर अंतिम नतीजा सिफर होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)