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जलवायु की मार और देश बेसुध!

Climate Change ConferenceImage Source: ANI

Climate Change Conference: जलवायु संकट देश, नस्ल, धर्म और जाति के भेद के बिना सभी को मार रहा है, बरबादी की और ले जा रहा है लेकिन देशों और नेताओं के लिए अभी भी मुद्दा नहीं बना है।

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वर्ष 2024 रिकार्ड बना रहा

वर्ष 2024 रिकार्ड बना रहा है। रोजाना जबरदस्त गर्मी और विनाशकारी तूफान की खबरें आ रही है। लोगों की जिंदगी और जीविका के साधन ताश के पत्तों के ढेर की तरह ढहते दिख रहे है।

इस साल गर्मी के मौसम में ऐसे मौके भी आए जब सब कुछ नष्ट होना लगभग अवश्यंभावी दिख रहा था। मौसमी उन्माद के साथ-साथ बीमारियों में भी बढ़ोतरी है। बीमारियां अजीब और अप्राकृतिक है।

हाल में हमारे पारिवारिक चिकित्सक ने बताया कि इस प्रकार का डेंगू फैल रहा है जिसमें सिर्फ प्लेटलेट्स की संख्या ही नहीं घटती बल्कि एक दिन बुखार आता है और उसके बाद कई दिनों तक नहीं आता और एसजीपीटी और एसजीओटी (लीवर की स्थिति बताने वाले दो हारमोन) के स्तर में तेज वृद्धि होती है।

इसलिए यदि आपको आज बुखार है तो मेहरबानी करके कल ही अपनी जांच करवा लें। जोखिम उठाना ठीक नहीं।

काफी जटिल स्थितियां का दौर

काफी जटिल स्थितियां का दौर है। और कोई भी इन जटिलताओं की मूल वजह – जलवायु में बदलाव – को गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है। न तो राजनैतिक बहस-मुबाहिसों में और न चुनावी चर्चाओं में इसका ज़िक्र होता है।

पिछली गर्मियों में हुए हमारे आम चुनाव के दौरान जलवायु संकट चर्चा का मुद्दा नहीं था। इन दिनों दो राज्यों में चुनाव हो रहे है, लेकिन किसी भी छोटे-बड़े राजनैतिक दल या उसके किसी नेता ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है।

महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जिसे जलवायु परिवर्तन का घातक प्रभाव झेलना पड़ा है – ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार पड़ने वाले सूखे से लेकर शहरी इलाकों में आने वाली बाढ़ तक। लेकिन वहां भी नौकरियाँ, आरक्षण, मुफ्त अनाज और साम्प्रदायिकता ही मुख्य मुद्दे हैं।

भी तो धन की व्यवस्था ही नहीं

यदि हम अपेक्षाकृत बड़े कैनवास पर  बात करें तो ट्रंप के दुबारा चुनाव जीतने से सीओपी29 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) और भविष्य में होने वाले जलवायु सम्मेलनों पर अनिश्चिता के काले बादल घिर आए हैं।

फिलहाल वर्ष का वह समय है जब दुनिया भर के नेता, वैज्ञानिक, उद्योगपति, स्वयंसेवी संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अजरबेजान के बाकू शहर में एकत्रित होकर धरती पर आपके और हमारे भविष्य के बारे में विचार  कर रहे हैं।

वे शुद्ध पानी और विशुद्ध वाइन की चुस्कियां लेते हुए वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उर्त्सजन कम करने के बारे में चिंतन-मनन कर रहे हैं।

सीओपी की यह बैठक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें धन और निवेश जुटाने का मुद्दा प्रतिनिधियों के सामने होगा। सन 2009 में अगले 15 सालों में क्लाइमेट चेंज संबंधी काम के लिए 100 अरब डॉलर आवंटित किये गए थे। (Climate Change Conference)

इस आवंटन को खर्च करने की सीमा 2024 के अंत में समाप्त हो जाएगी। जाहिर है कि विकासशील देशों को हरित ऊर्जा स्त्रोत विकसित करने और अपेक्षाकृत गर्म धरती के साथ तालमेल बिठाने के लिए धन उपलब्ध करवाना ज़रूरी है। और अभी तो इसके लिए धन की व्यवस्था ही नहीं है।

बड़ा समझौता होने की उम्मीद कम

कोई बड़ा समझौता होने की उम्मीद बहुत कम है। पहले से ही सीओपी में कड़वाहट घुल चुकी है। पापुआ न्यू गिनी ने यह कहते हुए सीओपी29 का बहिष्कार करने की घोषणा की है कि ‘यह समय की बर्बादी है’।

उसका तर्क है कि ‘साल दर साल बड़ी मात्रा में प्रदूषणकारी गैसों का उर्त्सजन करने वाले देश अपने वायदों पर खरा उतरने में असफल हैं। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के भी सम्मेलन में शामिल नहीं होने की संभावना है।

आशंका है कि जिन नेताओं के बड़े फैसलों की उम्मीद की जा रही थी, वे नहीं हो पाएंगे। इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप की जीत का असर भी दिखेगा जो जलवायु परिवर्तन को ‘एक कोरी धमकी’ बताते हैं और ऐसी अपेक्षा है कि वे राष्ट्रपति का पद संभालते ही अमेरिका के ऐतिहासिक पेरिस समझौते से हटने के अपने पिछले कार्यकाल में लिए गए निर्णय को दुहराएंगे।

जलवायु संकट एक ऐसी समस्या…. (Climate Change Conference)

कुछ दिन पहले सीओपी29 के मुख्य कार्यकारी अधिकारी इल्योर सोल्तानोव, जो अजरबेजान के ऊर्जा उपमंत्री भी हैं, की एक रिर्काडिंग सामने आई थी जिसमें वे जलवायु सम्मेलन में फोसिल फ्यूल्स (मुख्यतः पेट्रोलियम और कोयला) के आगे भी उपयोग किये जाने के मुद्दे पर समझौते के लिए सहमत होते सुने जा सकते हैं।

जलवायु संकट एक ऐसी समस्या है जो नस्ल, धर्म और जाति के भेद के बिना सभी को प्रभावित करती है। इसके बावजूद यह एक ज्वलंत मुद्दा, राजनैतिक स्तर पर चिंता उत्पन्न करने वाला मुद्दा नहीं बन सका है।

जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों पर होने वाला खर्च अब बोझ बनता जा रहा है। सीओपी29 में कोई कड़े फैसले नहीं होंगे। होगा सिर्फ यह कि विभिन्न राष्ट्र आगे भी विचार-विमर्श जारी रखने पर राजी हो जाएंगे। वक्त कम है और उम्मीद की लौ बुझती जा रही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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