क्लाइमेट चेंज से जुड़े मसलों में राष्ट्रपति बाइडन के खास कूटनीतिज्ञ जान कैरी इस समय भारत में हैं। भारत आने से ठीक पहले वे चीन में थे। चीनियों से उनकी चर्चा काफी हद तक असफल रही। सच तो यह है कि शी जिनपिंग और उनके मातहतों ने कैरी से दो टूक कह दिया चीनी अपने हिसाब से, अपनी स्पीड से कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण से निज़ात पाने का काम करेंगे।जाहिर है चीनियों को बीजिंग में बढ़ते तापमान और हीट वेव की फ़िक्र नहीं है, भले जीना दूभर हो। धरती के हालात उनकी प्राथमिकता नहीं हैं। उनकी प्राथमिकता ताकत दिखाना है। दुनिया को यह मानने के लिए मजबूर करना है कि चीन एक बहुत बड़ा और एक बहुत ताकतवर देश है।वह अपने हिसाब से काम करेगा।
दरअसल विकासशील देशों की तरह बीजिंग भी चाहता है कि पहले अमरीका यह माने कि अतीत में उसके द्वारा किया गया प्रदूषण ही क्लाइमेट चेंज के लिए ज़िम्मेदार है।
अमेरिका और चीन के संबंध ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से खराब होने शुरू हुए। ट्रंप ने चीन पर जलवायु को तबाह करने का आरोप लगाया। संबंधों में और कड़वाहट तब घुली जब ट्रंप ने कोविड वायरस को चीनी वायरस कहना शुरू किया। चीन से ट्रेड वॉर में ट्रंप ने चीन के क्लीन एनर्जी उत्पादों पर भारी कस्टम ड्यूटी लाद दी। बाईडन के आने के बाद भी दोनों देशों के रिश्तों में खास बदलाव नहीं आया है। नैंसी पैलोसी की ताईवान यात्रा, चीनी जासूसी गुब्बारों के अमेरिकी आकाश में तैरता पाए जाने, और चीन द्वारा अमरीका को टेक्नोलॉजी निर्यात में बाधाएं खड़ी करने के बाद से दोनों देशों के बीच कटुता बहुत बढ़ गई है।
तभी संबंधों में तनाव की गर्मी में ठंडे दिमाग से बातचीत भला कैसे हो सकती है! दोनों देश सांड़ों की तरह एक दूसरे से उलझे हैं। एक-दूसरे के साथ-साथ सारी दुनिया को चोट पहुंचा रहे हैं।तभी आशा नहीं थी कि जलवायु संबंधी चर्चा के दौरान दोनों देश अपने मतभेदों और नफरत को ताक पर रखकर पृथ्वी की फिक्र करेंगे। चीन का मानना है कि अमेरिका उस पर अपनी शर्तें लाद रहा है और क्या किया जाए, कैसे किया जाए इस बारे में उसे हुक्म के लहजे में बता रहा है। चीन द्वारा आधिकारिक रूप से जारी बातचीत के सकारात्मक विवरण में बताया गया कि वांग यी, जो विदेशी मामलों से संबंधित आला हुक्काम हैं और शी जिनपिंग के सलाहकार हैं, ने जॉन कैरी से कहा कि जलवायु संबंधी मामलों में अमेरिका के साथ सहयोग दोनों देशों के संबंधों के व्यापक कैनवास से अलग नहीं हो सकता।
हालांकि जॉन कैरी चीन से रवाना होते समय ‘आशान्वित’ थे। कैरी ने कहा, ‘‘हमने खुलकर बातचीत की है पर हम यहां एक नयी शुरुआत करने आये थे”।आगे बोलते हुए उन्होंने कहा, “यह साफ़ है कि हमें अभी थोडा और काम करने की जरूरत है।”
कहना गलत नहीं होगा कि ग्लोबल वार्मिंग कितनी होगी यह चीन और अमेरिका द्वारा लिए जाने वाले फैसलों पर निर्भर करेगा। चीन अब दुनिया के लगभग एक-तिहाई प्रदूषणकारी एमिशन के लिए जिम्मेदार है, जो सभी विकासशील देशोंद्वारा किए जा रहे कुल प्रदूषण से ज्यादा है। गर्म होती दुनिया के सबसे खराब नतीजों से बचने के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका, जो मानव इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषक रहा है, चीन के साथ मिलकर कार्बन प्रदूषण में कमी लाए। सीओपी28 के पहले के हफ्तों और महीनों में अमरीका और चीन पर यह दबाव रहेगा कि वे सारी दुनिया के फायदे के लिए अपने तेवरों और मतभेदों में कमी लाएं। आखिरकार ये दोनों दुनिया की दो महाशक्तियां हैं और पृथ्वी पहली ही इतनी गर्म हो चुकी है कि उसमें इन देशों की बीच गर्मागर्मी को सहने की ताकत नहीं है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)