पाटन। नरोद सिंघोद और उनके यार-दोस्त चाय पर चर्चा में व्यस्त हैं। जगह है छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गृह क्षेत्र और विधानसभा सीट पाटन। सांकरा गाँव में चाय की इस दुकान पर मैं पहुंची तो पहले से लोग चुनावी गपशप करते हुए…बहस हो रही है कि मुफ्त की सुविधाएँ और बिना काम किए पैसा देने के जो वायदे दोनों पार्टियों ने किए हैं, उनमें से कांग्रेस का पैकेज बेहतर है या भाजपा का? अख़बारों के हवाले से उन्हें अच्छी तरह पता है कि कौनसी पार्टी सरकार बनाने पर उन्हें क्या-क्या देने वाली है? बहस में बीच बगल में एक छोटा लड़का पटाखे फोड़ रहा है। उसके लिए चुनाव की बाते बिना मतलब के है।
कुछ किसान हैं और कुछ नरोद सिंघोद की तरह भूमिहीन खेतिहर मजदूर। उनमें कुर्मी हैं, यादव हैं, और एक सतनामी भी हैं।मेरे जाने के बाद और एक-दो सवाल से चर्चा का रुख बदलता है।मैंने सवालकिया- चाचा भारी है या भतीजा? चाचा मतलब राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और भतीजा मतलब उनके भतीजे विजय बघेल, जो दुर्ग से सांसद भी हैं। दोनों पाटन से उम्मीदवार हैं। नरोद सिंघोद का ज़वाब गोलमोल है: “मामला टाइट है मगर चाचा पॉपुलर है”।रावन बंटा उनसे सहमत हैं। परन्तु वहां मौज़ूद इकलौते सतनामी अपनी अलग पसंद बताते हैं। वे अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के साथ हैं और उनका वोट अमित जोगी को जायेगा।
दरअसल रायपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर के पाटन में मुकाबला दिलचस्प है।हर कोई उम्मीदवारों को जानता हुआ है। हर उम्मीदवार का अपना आभामंडल है, अपना प्रभावक्षेत्र और जलवा है। अपने-अपनेसमर्थक है। अनुयायी हैं। इसके चलते कुछ लोग,खासकर रायपुर में कहते हैं कि पाटन से चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं। मतलब भूपेश बघेल के लिए भी मुकाबला कड़ा हैं। मगर फिर वह चुनाव ही क्या जिसमें अफवाहें और चंडूखाने की गप हम जैसे रिपोर्टरों की समझ को धुंधला न करे!
पाटन इलाका मुख्यमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने के कारण सरकार का लाड़ला है। रायपुर से वहां जाने वाला हाईवे चौड़ा और जगमग है। गांवों की सडकें भी पक्की हैं। गाँव साफ़सुथरे हैं और बिजली-पानी की कोई कमी नहीं है। परन्तु फिर भी लोगों के पास शिकायतें तो हैं – शराब पानी की तरह बह रही है और बिजली के बिल भारी हैं। बघेल सरकार ने वायदा किया था कि बिजली के बिल आधे कर दिए जाएंगे। शराब की खपत घटाने के प्रयास होंगे।…देशी शराब की बोतल की कीमत पहले 60- 80 रुपये थी अब100 रुपये हो गयी है। शराब महंगी है मगर हर गाँव और घर-घर की जरूरत बन गई है।पाटन में तो कोरोना काल में भी शराब मिलती रही। लोगों ने अपने इलाके की उपलब्धि बताते हुए बताया – कोविड लॉकडाउन के समय पूरे राज्य में केवल जामगाँव की शराब भट्ठी (ठेका) खुला रहा।दूर-दूर से लोग शराब लेने जामगाँव आते थे। सचमुचपाटन विधानसभा क्षेत्र में जामगांव की भट्टी की ख्याती और रौनक-भीड देखने लायक है।
भूपेश बघेल जब-तब पाटन जाते-आते रहे है। इसी दशहरा वे अपने गाँव कुरुदडीह में थे। गांव में रहते हुए वे अपने साथ सुरक्षा के तामझाम नहीं रखते। गांव के एक साधारण व्यक्ति के तरह लोगों से मिलते हैं और उनका हालचाल जानते हैं। उनके भतीजे विजय बघेल में वो बात नहीं है। शोभाराम, जो बघेल चाचा-भतीजा की तरह कुर्मी हैं, कहते हैं कि विजय पाटन कम ही आते है। दुर्ग की तरफ अधिक रहते है। वे अपने गाँव उरला भी कभी-कभी जाते हैं। पाटन निर्वाचन क्षेत्र में बतौर सांसद विजय बघेल ने क्या किया है, यह पूछने पर कोई जवाब नहीं आता। विजय बघेल के चुनाव प्रचार का काम देख रहे एक स्थानीय नेता ने पिछले विधानसभा चुनाव के आंक़डों पर मुझे समझाया कि क्यों विजय बघेल हावी रहेंगे? पाटन में कोई दो लाख वोट है। सीट पर अस्सी प्रतिशत मतदान होता है सो एक लाख साठ हजार लोगों के मतदान में दस प्रतिशत वोट अन्य को चले जाते है। बीस प्रतिशत सतनामी वोट है और अमित जोशी के खड़े होने से वे ये वोट लेंगे। इसलिए कोई एक लाख तीस हजार वोटों में ही दोनों के बीच मुकाबला होना है। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटियों की लोग अनदेखी नहीं सकते है। फिर भूपेश बघेल के राज में शराब और सट्टे को लेकर भी गुस्सा है।
पाटन में विजय बघेल के भाई से यह गणित जान हम उनकी कार के साथ गांव कसही पहुंचे। दो-तीन समर्थक उनका इंतजार करते हुए थे। वे भाजपा कार्यकर्ता के घर में जा बैठे। संभवतया रणनीति बनाने। मैं गांव घूमने लगी। गांव मुख्यमंत्री के इलाके का प्रतिनिधी लगा। विकास था। कांग्रेस के प्रचार से भरा-पूरा भी। मुख्य सडक के किनारे दुकान पर बैठे तीन चार लोगों से बात की तो कहना था न चाचा-भतीजा में कोई मुकाबला है और न त्रिकोणीय संर्धष (अजित जोगी के बेटे अमित जोगी के उम्मीदवार होने से।) होगा।अरे यह कसही नहीं “भूपेश बघेल की काशीहै।“…. भूपेश बघेल का गढ़ है।
सो भाजपा हाईकमान ने पाटन से भतीजे विजय बघेल को लड़वाकर कांग्रेस के मुख्यमंत्रीको घेरने तथा अमित जोगी से सतनामी वोटों की गणित बिगाडने के चाहे जो प्रबंधन किए हो पाटन कोई उलटफेर कर दें यह संभव नहीं लगता। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)