justin trudeau: जब उम्मीदें बहुत ही चमकीली, बहुत ही उजली नजर आएं तो जान लीजिये कि वे कभी पूरी नहीं होने वाली।
इसके गवाह जस्टिन ट्रूडो हैं।
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वे युवा, सौम्य और आकर्षक थे। वे राजनीति में सुंदरता लाए। उन्होंने कैनेडियनों और दुनिया के एक बड़े हिस्से का मन मोह लिया।
हालीवुड के हीरो जैसा चेहरा-मोहरा, किशोर जैसी मुस्कान और बालक जैसे जोश वाले प्रधानमंत्री ट्रूडो, नारीवाद समर्थक, शरणार्थियों का स्वागत करने वाले और प्रगतिशील राजनीति के जीवंत प्रतीक माने जाते थे।
तब किसी ने यह नहीं सोचा था और ना ही किसी को इस बात का इल्म था कि एक दशक बाद ट्रूडो की लगभग अपमानजनक हालातों में विदाई होगी।
पिछली रात ट्रूडो ने अपना पद छोड़ने का फैसला लिया। आंसू भरी आँखों और टूटे दिल के साथ ट्रूडो अपनी उम्र से काफी बड़े नजर आ रहे थे।
वे ऐसे हालात में पद छोड़ रहे हैं जब उनके देश के भारत से रिश्ते तनावपूर्ण हैं, अमेरिका से कारोबार संबंधी टकराव का खतरा मंडरा रहा है और देश की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है।
वे जब पद छोड़ रहे हैं तब उनकी लिबरल पार्टी भी कमजोर स्थिति में है और देश में अगले चुनाव, जो अक्टूबर में हो सकते हैं, में उसकी जीत की संभावना लगभग शून्य है।
पिछले एक साल का ट्रूडो का कार्यकाल इतना निराशाजनक रहा कि बहुत से कैनेडियन लोकलुभावन रूख अपनाने वाले राजनैतिक दलों की ओर झुक गए।
और यह संभव है कि पियरे पोलीवरे के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव पार्टी, जिसका रवैया काफी आक्रामक हो गया है, और जिसका ‘कनाडा कमजोर हो गया है’ का नारा लोकप्रिय हो रहा है, को आने वाले चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल हो।
आखिर ट्रूडो से गलती कहां हुई?
सन् 2015 में उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता हासिल थी। उन्हें मतदाताओं के बहुत से वर्गों का समर्थन मिला, जिनमें नौकरीपेशा, मूलनिवासी और पहली बार मतदान करने वाले शामिल थे।
इसके चलते उनकी लिबरल पार्टी, जो पहले तीसरे स्थान पर थी, अकेले बहुमत हासिल करने में कामयाब रही। उन्होंने “क्योंकि यह 2015 है” के नारे के साथ देश की पहली लैंगिक दृष्टि से संतुलित मंत्रिपरिषद बनाई।
इस खबर ने सारी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं। सन् 2019 और 2021 में भी ट्रूडो सत्ता पर काबिज रहे, लेकिन उनका समर्थन घट गया।
उन्हें अल्पमत सरकार बनानी पड़ी। लेकिन फिर भी देश में और देश के बाहर ट्रूडो की लोकप्रियता कायम रही। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में उनसे साक्षात्कार लेने के लिए होड़ मची रहती थी।
कैनेडियाई एक ऐसा प्रधानमंत्री पाकर प्रसन्न थे जिसकी दुनिया में एक सितारे जैसी छवि थी।
2016 में जापान में हुए जी-7 के सम्मेलन में जापानी मीडिया ने उन्हें ‘इकेमेनशुनशो’ (मज़बूत कद-काठी वाला और महिलाओं को आकर्षक लगने वाला पुरुष) का उपनाम दिया। उनके प्रशंसक उनकी एक झलक पाने के लिए बैचेन रहते थे।
नशा उतरते देर नहीं लगती
लेकिन नशा उतरते देर नहीं लगती। जब हकीकत का अहसास होता है, तब सब कुछ छिन्न-भिन्न हो जाता है।
उनकी राजनैतिक स्थिति तब कमजोर हो गई जब लिबरल महामारी के बाद के हालातों से पटरी बिठाने में असफल रहे क्योंकि मतदाताओं की प्राथमिकता महंगाई, आवास और माइग्रेशन जैसे मुद्दे हो गए।
मध्यम वर्ग के बहुत से कनाडावासी – जिनके लिए काम करने का वायदा उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ते समय किया था – उनसे चिढने लगे। प्रवासियों का मुद्दा भी ट्रूडो के लिए एक मुसीबत बन गया।
सन् 2023 में पहली बार कनाडा की जनसंख्या चार करोड़ से ज्यादा हो गई। जनसंख्या में हुई लगभग पूरी वृद्धि देश के बाहर से लोगों के आने के कारण हुई।
सन् 2022 में विदेशों से 4।32 लाख लोग कनाडा आकर बस गए, जो एक साल में आने वालों की सबसे बड़ी संख्या थी। और डोनाल्ड ट्रंप के दुबारा सत्ता में आने के बाद से कनाडा और अन्य देशों में भी राजनैतिक नौटंकी बड़े पैमाने पर शुरू हुई।
सत्ताधारी दलों में टूट होने लगी। पिछले माह अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने कनाडा से आने वाले हर माल पर 25 प्रतिशत का प्रवेश शुल्क लगाने के इरादे की घोषणा की जिससे कैनेडियाई डालर के मूल्य में जबरदस्त गिरावट आई।
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इसके अलावा भारत से रिश्ते तनावग्रस्त होने और बिगड़ने का मसला भी है। जब ट्रूडो ने भारत पर कूटनीतिक हमले किए तब उन्हें अपने देश में आलोचना का सामना करना पड़ा।
कुछ दक्षिणपंथियों ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने आधी-अधूरी गुप्तचर सूचनाओं को इसलिए सार्वजनिक कर दिया ताकि घरेलू राजनैतिक संकटों से लोगों का ध्यान हटाया जा सके।
दो कैनेडियाईयों को 2018 में चीन में जासूसी के झूठे आरोपों में गिरफ्तार किए जाने और लगभग तीन साल तक कैद रखे जाने से इन दोनों देशों के रिश्ते भी बिगड़ गए।
मार्च 2023 में यह सलाह मांगी गई कि क्या कनाडा के चुनावों में चीन के हस्तक्षेप की जांच की जानी चाहिए?
मौटे तौर पर कहा जा सकता है कि 2015 में ट्रूडो ने बहुत सी उम्मीदें जगाईं थीं लेकिन अपनी प्रपंचपूर्ण राजनैतिक पैंतरेबाजी से इन्हें गंवा दिया।
भले ही ट्रूडो के शासनकाल में पिछले दस वर्षों में प्रगतिशील और उदारवादी नीतियों पर अमल किया गया हो परंतु आज वहां मोहभंग के हालात हैं।
और अक्टूबर में कनाडा न सिर्फ प्रधानमंत्री के रूप में एक नए व्यक्ति को चुनेगा बल्कि वह विश्व का एक और ऐसा हिस्सा बन जाएगा जहाँ लोग बंटे हुए हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)