बेंजामिन नेतन्याहू ने सारी दुनिया को अंगूठा दिखा दिया है। उन्होंने साफ कह दिया है कि उस पर भले ही कितना भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव डाला जाए, युद्ध के अपने सभी लक्ष्यों के पूरे होने तक इजराइल रूकेगा नहीं। उन्होंने रफा में इजरायली सेना भेजने की कसम खाई है। रफा में दस लाख से अधिक फिलिस्तीनियों ने शरण ले रखी है। Benjamin Netanyahu
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लेकिन इजरायली सैन्य अधिकारियों के मुताबिक रफा, दरअसल, गाजा में हमास का आखिरी गढ़ है। उनका दावा है कि वहां हजारों आतंकवादी और हमास के वरिष्ठ नेता छुपे हुए हैं। उनका कहना है कि अगर वे रफा में नहीं घुसे तो गाजा के कुछ हिस्सों पर हमास का नियंत्रण बना रहेगा और हमास मिस्रतक जाने वाली सुरंगों का इस्तेमाल कर दुबारा ताकतवर हो जाएंगे। Benjamin Netanyahu
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस गेब्रीएसस ने इजराइल से कहा है कि “इंसानियत की खातिर” वह इस हमले का इरादा त्याग दे। उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि “इस मानवीय त्रासदी को और बिगड़ने नहीं देना चाहिए”। जो बाइडन ने कहा है कि आम लोगों को बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए बगैर रफा पर हमले से भयावह हालात बन जाएंगे।
दुनिया हताश है, बेचैन है। लेकिन नेतन्याहू को रोक नहीं पा रही है। पन्द्रह दिन पहले बाइडन ने घोषणा की थी कि 4 मार्च तक युद्धविराम हो जाएगा, जिसमें संभवतः इजराइली बंधकों और फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई भी शामिल होगी। लेकिन कतर, मिस्रऔर अमेरिकी मध्यस्थों के सघन प्रयासों के बावजूद रमजान के महीने की शुरूआत के पहले युद्धविराम नहीं हो सका। और अब युद्धविराम की संभावना बहुत कम है। Benjamin Netanyahu
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इस पृष्ठभूमि में पश्चिमी देशों में नेतन्याहू को पद से हटाने की बातें होने लगी हैं। वाशिंगटन ने तो नेतन्याहू के प्रति अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से जाहिर की है और वह इजराइल के वैकल्पिक नेतृत्व से रिश्ते कायम करने का प्रयास कर रहा है। इज़रायली वॉर केबिनेट के सदस्य बैनी गैंट्ज पिछले हफ्ते अमेरिका पहुंचे। नेतन्याहू उनकी इस यात्रा के खिलाफ थे। गैंट्ज की मेजबानी कर बाइडन प्रशासन ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह इजरायली प्रधानमंत्री से तंग आ चुका है। नेतन्याहू की युद्ध केबिनेट के तीन सदस्य – उनके रक्षा मंत्री गोएव गेलनट, बैनी गैंट्ज और गादी इजनकोट – ऐसे संकेत दे रहे हैं कि उनका इरादा प्रधानमंत्री पद पर दावा करने का है।
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यह सच है कि इजराइल की जनता के मन में फिलिस्तीनियों के प्रति कोई ख़ास हमदर्दी नहीं है। जनता मानती है कि गाजा की तबाही से यह सन्देश जाएगा कि इजराइल के साथ छेड़छाड़ करना महंगा पड़ेगा। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि इजराइलियों में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भी बेचैनी बढ़ती जा रही है।
इजराइल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट और इजराइल के चैनल 13 द्वारा हाल में कराई गई रायशुमारियों से जाहिर हुआ कि करीब तीन-चौथाई लोग चाहते हैं कि नेतृत्व नेतन्याहू के हाथ में न रहे। इजराइल के सर्वोच्च न्यायालय ने भी उनके न्यायिक सुधार संबंधी संशोधनों को खारिज कर दिया है। यहां तक कि उनकी अपनी लिकुड पार्टी में उनके उत्तराधिकारी को लेकर जोड़तोड़ प्रारंभ हो गई है। उनके गठबंधन की अति-दक्षिणपंथी और अति-रूढ़िवादी पार्टियाँ भी उन्हें चुनौती दे रही हैं।
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इस सबके चलते नेतन्याहू सत्ता पर काबिज बने रहने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे अपने गठबंधन के दलों और इजरायली मतदाताओं के उग्रपंथी तबके का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। साथ ही, वे अमरीका के सब्र का इम्तहान भी ले रहे हैं और अरब देशों को डराने की कोशिश भी कर रहे हैं। इसका गाजा में विपरीत प्रभाव होना तय है और इससे इजराइल के लिए अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना और मुश्किल हो जाएगा।
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सात अक्टूबर की दुःखद यादों के चलते नेतन्याहू के उत्तराधिकारी के लिए सुरक्षा की उपेक्षा करना असंभव होगा। लेकिन उनसे ज्यादा समझदार इजराइली नेता शायद इतना तो समझ सकेंगे कि यदि गाजा में भुखमरी और अराजकता बनी रहती है या इजराइल अनिश्चित समय तक उस पर नियंत्रण रखने का प्रयास करेगा या अगर वह अमरीका की नारजगी मोल लेता है तो इससे इजराइल अधिक सुरक्षित नहीं बनेगा।लेकिन सबसे अहम तो यह है कि अपनी विदाई से पहले नेतन्याहू कितना नुकसान कर चुके होंगे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)