सन् 2024 चुनावों का साल होगा। दुनिया के कोई 76 देशों में चुनावी राजनीति, ध्रुवीकरण, तू-तू मैं-मैं और कहासुनी की बहार होगी। प्रतिद्वंदी पार्टियों के बीच विवाद होगें। सहयोगी पार्टियों के बीच भी।सो जहा युद्ध की राजनीति पृष्ठभूमि में चली जाएगी वही सोशल मीडिया पर, टीवी पर, घरों में और पार्कों में भी बहस-मुबाहिसे होंगे। खूब नाटक-नौटंकी होगी और वह भी पैसा वसूल से।
खबरों के मुताबिक दुनिया की लगभग आधी आबादी 2024 में वोट डालेगी। मतलब यह कि आज तक किसी भी साल में उतने वोट नहीं डाले गए होंगे, जितने अगली साल डाले जाएंगे। दुनिया के दस सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में से आठ – बांग्लादेश, ब्राजील, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका – में 2024 में चुनाव होंगे। और दिलचस्प किंतु साथ ही चिंताजनक तथ्य यह है कि चुनाव वाले इन देशों में लोकतंत्र की परीक्षा भी होगी।
निश्चित है कि बांग्लादेश, मेक्सिको, पाकिस्तान और रूस में चुनाव मात्र एक दिखावा, सिर्फ ढकोसला होंगे, और इनसे सत्ता में कोई बदलाव नहीं होगा। ताईवान में इस चुनाव में यह तय होगा कि वह चीन के चंगुल में रहेगा या उससे मुक्त होगा। चीन से ताईवान के संबंध कैसे होंगे, यह इस चुनाव में निर्धारित होगा। सम्भावना यही है कि स्वतंत्रता-समर्थक डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी राष्ट्रपति पद एवं संसद पर काबिज रहेगी।
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो राजनीति में अपने वंश की जड़ें मजबूत करने में जुटे हैं। इसके अलावा यूक्रेन भी है, जो युद्ध में उलझा रहेगा। राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की ने देश में चुनाव होने की संभावना से इस तथ्य के बावजूद इंकार नहीं किया है कि वहां मार्शल लॉ लागू है जिसके अंतर्गत चुनाव करवाना प्रतिबंधित है। ऐसा चुनाव कभी भी पुर्णतः स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हो सकता जब देश के एक हिस्से पर विदेशी कब्जा है और दसियों लाख यूक्रेनी अपने घर छोड़कर विस्थापित हैं। इन हालातों में यह तय मानना चाहिए कि जेलेंस्की ही राष्ट्रपति पद पर काबिज रहेंगे।
अफ्रीका सबसे अधिक चुनावों वाला महाद्वीप है। लेकिन वहां मतदाताओं का लोकतांत्रिक प्रणाली से मोहभंग हो गया है। वहां हुई रायशुमारियों से पता लगता है कि अधिकाधिक अफ्रीकी सैन्य शासन के पक्ष में होते जा रहे हैं। वहां तख्तापलट की घटनाएं भी बढती जा रही हैं और 2020 से लेकर अब तक इस तरह के नौ सत्ता परिवर्तन हो चुके हैं। सबसे ज्यादा ध्यान दक्षिण अफ्रीका पर होगा जहां एक विभाजित एवं कमजोर विपक्ष होने के कारण भ्रष्टाचार और घोटालों के कई मामलों के बावजूद यह लगभग निश्चित है कि सत्ताधारी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस दुबारा चुनाव जीत जाएगी।
लेकिन सबसे बड़े चुनाव होंगे भारत और अमरीका में। भारत में चुनाव का आकार और उनका कैनवास दुनिया के किसी भी अन्य चुनाव से बड़ा होता है। हमारे यहां चुनाव में जाति, धर्म, अन्य सभी प्रकार के विभाजन, रेवड़ी, अहं का टकराव, अपनी ढपली बजाना आदि सभी की भूमिका होती है। जाहिर है कि भारत में 2024 नए-नए जुमलों और खूब कहा-सुनी का साल होगा। एक ऐसा साल जिसमें ‘संयुक्त विपक्ष’ की शक्ति का मुकाबला नरेन्द्र मोदी की ताकत और उनके प्रति जुनून से होगा। यह चुनाव इंडिया बनाम भारत, लोकतंत्र बनाम लोकलुभावनवाद का होगा। यह एक ऐसा चुनाव होगा जिनमें अन्य रूटीन मुद्दों के अतिरिक्त लोगों के मन में भारत के ‘विश्व गुरू’ बनने का इलहाम होगा। मीडियाकर्मी देश के कोने-कोने में पहुचेंगे, अपने-आप आकलन और धारणाओें का खुलासा करेगें और मोदी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की चर्चा होगी। मगर दीवारों से लेकर आसमान तक सब जगह बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होगा – “मोदी फिर से”।हाँ, भारत में भी बांग्लादेश, मेक्सिको, पाकिस्तान, रूस और यूक्रेन की तरह सत्ता परिवर्तन नहीं होगा। पिछले दस सालों में भारत में भी हालात बिगड़े हैं और यहां के लोकतंत्र में नुक्स पैदा हो गए हैं। लेकिन हमारे पड़ोसियों और रूस की तुलना में, जहां तानाशाही का बोलबाला है और जहां लोकतंत्र का केवल ‘दिखावा’ किया जाता है, भारत में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होंगे (ईव्हीएम हैक किए जाने की बातें कोरी बकवास हैं)। और यदि ईश्वर ने विपक्ष का साथ देने का मन बना लिया तो हो सकता है कि बदलाव भी हो जाए। मगर हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि पिछले कुछ सालों में हमारा राजनैतिक तंत्र कमजोर हुआ है। प्रेस का ज्यादातर हिस्सा वैसी खबरें ही देगा जैसी देने के लिए उसे कहा जाएगा, अधिकारी उसी तरह से काम करेंगे जैसा करने के निर्देश उन्हें दिए जाएंगे। जहां राहुल गांधी भारत की आत्मा की रक्षा का आव्हान करेंगे वहीं नरेन्द्र मोदी भारत की आत्मा की ‘भ्रष्ट इंडिया’ से बचाने का दावा करेंगे। प्रचार की आंधी में लोगों का कॉमन सेंस सूखे पत्ते के तरह उड़ हुआ होगा।
एक अन्य देश जहां ठीक यही होगा वह है संयुक्त राज्य अमरीका। वहां साल के अंत में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होगा। चुनाव प्रचार कटुतापूर्ण, बल्कि ज़हरीला और देशा को ध्रुवीकृत करने वाले होगा और ऐसा होना सारी दुनिया की राजनीति के लिए बुरा होगा। यह स्पष्ट हो चुका है कि इस चुनाव में वही दो बड़े मियां भिड़ेगें, जिनके बीच पिछला चुनाव हुआ था। और वह भी तब जबकि ज्यादातर मतदाता नहीं चाहते कि इन दोनों में से कोई भी उम्मीदवार बने। यह उम्मीद करना बेकार है कि अंतिम क्षणों में रिपब्लिकनों के रूख में ऐसा बदलाव आएगा जिसके नतीजे में ट्रंप का नामांकन न हो। ऐसे व्यक्ति का नामांकन करना जिसने पिछले चुनाव के नतीजों को पलटने का प्रयास किया था, अपने आप में अमरीका के लोकतंत्र के प्रकाशस्तंभ होने की छवि को धूमिल करता है। हालांकि ट्रंप को उनके अपराधों के लिए सजा भी सुनायी जा सकती है लेकिन ऐसा होगा यह सोचना नाउम्मीदी के तूफ़ान में उम्मीद का दीया जलाने जैसा होगा। ट्रंप के चुनाव जीतने की संभावना, जो बाइडन की अलोकप्रियता के कारण चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई है।
जो भी हो, जैसा कि मैंने कहा, 2024 दिलचस्प और चिंताजनक साल होगा। नरेन्द्र मोदी भले ही कितने बड़े मसीहा क्यों न हों, उनकी एक और जीत देश के लिए शुभ नहीं होगी। डोनाल्ड ट्रंप के दुबारा व्हाइट हाउस में प्रवेश के दुष्परिणाम सारी दुनिया को भुगतने पड़ेंगे। ये दोनों चुनाव लोकतंत्र को बचाने का कवायद नहीं होंगे बल्कि प्रबल संभावना यह है कि यह एक ऐसे चुनाव होंगे जिनसे लोकतंत्र घायल ही होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)