अमरावती। अमरावती का चुनावी घमासान दिलचस्प है। चाहे दिल्ली का मीडिया हो या राजनीति के स्व-घोषित पंडित, सभी अमरावती में दिलचस्पी लिए हुए है। अमरावती में भी शोर है। और वर्धा या अकोला या चुरू के विपरीत, अमरावती में वाकई लगा कि चुनाव हो रहे हैं। इसका अकेला कारण हैं नवनीत राणा।इस महिला नेत्री ने अमरावती के बीचों-बीच एक बड़ा मैदान किराए पर लिया है जिसमें एक शानदार मंच है और चारों ओर भाजपा नेताओं के आदमकद कटआउट हैं।
पूरा मैदान सजाधजा है। फिर, एक ट्रक है जिसमें पुणे से लाया गया आधुनिक म्यूजिक सिस्टम फिट है। सुबह से लेकर शाम तक यह ट्रक घूम-घूम कर शहर में गाने बजा रहा है। ध्यान से सुनने पर पता चलता है कि ये गाने, दरअसल, धार्मिक हैं। वॉल्यूम इतना तेज है कि गानों की आवाज़ अमरावती के शायद हर कोने में पहुँच रही होगी। राम के झंडे फहराती मोटरसाइकिलों का काफिला ट्रक के साथ चलता है।शायद वे सोचती है कि जितना शोर मचाएंगे, उतने ही सुने जाएंगे। और सुनते-सुनते शायद लोगों का मूड और सोच बदल जाए! वोट पके हो जाए।
नवनीत राणा खूब शोर मचा रहीं हैं। उनका प्रचार बहुत तीखा है। वे भाजपा का ग्लैमरस चेहरा हैं।उन्होने नाटकीयता और जुमलेबाजी में शायद कंगना रनौत, हेमा मालिनी और यहाँ तक कि स्मृति ईरानी को भी पीछे छोड़ दिया है।
मगर शोर से दूर, अमरावती लोकसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पहुंचेंगे तो एक अलग तरह का शोर सुनाई देता है। इस शोर में गुस्सा है, कटुता है और निराशा भी। अस्सी साल के रामदास वाघमारे बिना किसी लागलपेट के कहते हैं, “काम कोई नहीं करता, सब घोटाला करते हैं।”
यह भी पढ़ें: प्रकाश अम्बेडकर है तो भाजपा क्यों न जीते!
“घोटाला? क्या घोटाला?” जवाब में 37 साल के गणेश कुरालकर राणा के नकली जाति प्रमाणपत्र के मुद्दे का ज़िक्र करते हैं। बम्बई हाईकोर्ट ने 8 जून 2021 को अपने फैसले में कहा था कि नवनीत राणा ने मोची जाति का होने का जो प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया है, वह धोखाधड़ी से और जाली दस्तावेजों के आधार पर हासिल किया गया है। अदालत ने उन पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। राणा ने बम्बई हाईकोर्ट के इस फैसले, जिसमें उनका जाति प्रमाणपत्र रद्द कर दिया था, को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सबसे बड़ी अदालत ने उनकी अपील पर फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। इस बीच चुनावों की घोषणा हो गयी और भाजपा ने पिछले चुनाव में निर्दलीय जीती राणा को अमरावती (जो आरक्षित सीट है) से अपना उम्मीदवार बना दिया।
शंदुल्का (Shandulkha)बाज़ार में उनके प्रमाणपत्र का मामला चर्चा में है। इस मुद्दे पर लोग विभाजित हैं। एक पान की दूकान पर राणा का पोस्टर लगा है, जिसमें उन्हें ‘हिंदू शेरनी’ बताया गया है। मगर वहां खड़े लोग उनसे नाराज़ दिखे। नाराज़गी गहरी है तभी अमरावती का मुकाबला राणा के लिए कठिन है।इन पंक्तियों को लिखने तक खबर है कि बुधवार को प्रचार के आखिरी दिन अमित शाह अमरावती पहुंच रहे है और उस मैदान में उनकी सभा होने की बात है जो पहले से अपंगों की चिंता करने वालीप्रहर जनशक्ति पार्टीने अपनी सभा के लिए तय की हुई थी। सो संभव है प्रचार के आखिरी दिन आज बवाल हो।
अमरावती से महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार कांग्रेस के बलवंत बसवंत वानखेड़े हैं। जनता में उनकी पैठ है। उन्हें महाराष्ट्र की पूर्व महिला और बाल विकास मंत्री और विधायक यशोमती ठाकुर का समर्थन हासिल है। यशोमती, जिन्हें यहाँ के लोग स्नेह से ‘ताई’ कहकर बुलाते हैं, चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
मगर मुकाबला केवल राणा बनाम वानखेड़े में ही नहीं है इनके साथ वंचित बहुजन अघाड़ी, रिपब्लिकन सेना और प्रहर जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार भी मैदान में है। इसलिए बहुकोणीय लड़ाई है। ये सभी दोनों बड़ी पार्टियों के वोट काटने पर उतारू हैं।
यह भी पढ़ें: कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन!
इस चुनाव क्षेत्र में 28 फीसद मतदाता आदिवासी और दलित हैं, 22 फीसद मराठा और कुनबी हैं, 35 प्रतिशत कुनबी से इतर ओबीसी हैं, नौ फीसद मुसलमान हैं और तीन प्रतिशत अन्य (अर्थान सामान्य श्रेणी के) हैं। पिछली बार राणा ने यहाँ से आजाद उम्मीदवार बतौर जीत हासिल की थी। इसका कारण था चुनावी गणित का उनके पक्ष में होना, विशेषकर मेलघाट की आदिवासी पट्टी में।मगर इस बार नवनीत राणा के लिए अमरावती सीट की गणित सही नहीं है। दलित-आदिवासी,मुसलमान, मराठा, कुन्बी-पिछडी जातियों के कुल वोटोंके हिसाब में शिवसेना-कांग्रेस-पवार एनसीपी की एकजुटता हैरानी वाली है। ध्यान रहे सन् 2019 के चुनाव में नवनीत राणा ने इस सीट को तिकाने मुकाबले में सिर्फ 3.3 प्रतिशत वोटों (37 हजार वोट) के अंतर से जीता था। उन्होने तब उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार को हराया था। शिवसेना इस सीट पर कई सालों से जीत रही थी। पर इस बार उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस को सीट दी क्योंकि कांग्रेस के बलवंत बसवंत वानखेड़े इलाके में रसूख वाले व्यक्ति है।
इसलिए नवनीत राणा पर गणित और केमिस्ट्री दोनों ज्यादा मेहरबान नहीं है। स्थानीय खबरनवीसों के मुताबिक, कांग्रेस में एकता है और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी दोनों कांग्रेस का भरपूर साथ दे रही हैं। दूसरी ओर, भाजपा में बाहरी नवनीत राणा की उम्मीदवारी से असंतोष है। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि भाजपा के हर 1,000 कार्यकर्ताओं में से 990 राणा के खिलाफ हैं। इस तरह, महायुती भी उनके खिलाफ काम कर रही है। और यह दिखता भी है। मोजरी के एक भाजपा कार्यकर्ता राणा के अहंकारपूर्ण व्यवहार की शिकायत करते हैं। और वे अकेले नहीं हैं। राणा के रूखे व्यवहार और उनके घमंडी होने की बात हर दूसरा आदमी कहता है।
मगर – और यह एक अहम मगर है – एक समय संतरे के उत्पादन और आयल मिलों के लिए जानी जाने वाला अमरावती धार्मिकता में सराबोर है। और यहाँ के नेताओं ने शायद ही कभी उसे राजनैतिक दृष्टि से जागरूक बनाने का प्रयास किया हो।
इसके अलावा, अमरावती एक ‘ताई जिला’ है। यहाँ महिलाओं का राज है। करीब डेढ़ साल पहले तक यहाँ की हर हस्ती – आमदार, खासदार, जिला कलेक्टर, पुलिस कमिश्नर और मेयर – महिला थी। और देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल अमरावती से लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं।
यह भी पढ़ें: पांच सीटों का यूपी से ज्यादा वजन!
भले ही राणा के पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते हों और उनके प्रति लोगों में गुस्सा हो मगर 78 साल के एसवी देशमुख नेयह बात पते की कही “मोदी को लाना है, तो नवनीत राणा को लाना पड़ेगा,” वे कहते हैं।
जब मैंने 35 साल के हेमंत बोधे से पूछा कि राहुल गाँधी और मोदी में से वे किसे चुनना चाहेंगे, तो उन्होंने पलक झपकते ही कहा, मोदी। मगर जब मैंने उनसे ताई और मोदी के बीच चुनाव के बारे में पूछा, तो उन्होंने चुप्पी साध ली।
कुल मिलाकर, नवनीत राणा का शोर तो है मगर उनके प्रति जोश नहीं है। लेकिन चूँकि नवनीत राणा को अंतिम क्षणों में भाजपा में शामिल किया गया है इसलिए यह सीट भाजपा और विशेषकर मोदी और शाह के लिए प्रतिष्ठा का विषय है। मोदी 19 अप्रैल को वर्धा आये थे और वर्धा के अलावा, उसके पड़ोसी जिले अमरावती पर भी असर डालने की दृष्टि से उन्होंने अपने भाषण में कहा कि, “वर्धा और अमरावती में हमें जो समर्थन मिल रहा है, उससे लगता है कि विकसित महाराष्ट्र और विकसित भारत का लक्ष्य हमारी पहुँच में है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)