इस वर्ष अधिकमास पड़ने के कारण दो महीने में 8 सावन सोमवार के व्रत रखे जाएंगे। ऐसा दुर्लभ संयोग पूरे 19 वर्ष बाद बना है, जिसमें सावन महीना पूरे 59 दिनों का होगा। सावन महीने में इस वर्ष पूरे 59 दिनों तक भगवान शिव की उपासना की जाएगी। इसमें अधिकमास की अवधि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक होगी। सावन 2023 में पहला सोमवार, दूसरा, तीसरा … आठवां सोमवार क्रमशः 10 जुलाई, 17 जुलाई, 24 जुलाई (अधिकमास), 31 जुलाई (अधिकमास), 7 अगस्त (अधिकमास), 14 अगस्त (अधिकमास), 21 अगस्त और 28 अगस्त को होगा, जिस दिन शिव की विशेष पूजा- अर्चना व विविधाभिषेक की जा सकती है।
4 जुलाई -श्रावण मास प्रारम्भ
भारतीय पंचांग के अनुसार वर्ष का पंचम मास श्रावण अर्थात सावन है। इस महीने में भारत में अत्यधिक वर्षा होने के कारण इसे वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है। श्रावण मास भगवान भोलेनाथ शिव को अत्यंत प्रिय है। पौराणिक उक्तियों में स्वयं भोलेनाथ ने कहा है कि मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य होने के कारण इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए इसे श्रावण संज्ञा प्राप्त है। श्रावण के पूरे महीने में पर्व -त्योहारों, आध्यात्मिक अनुष्ठानों- परम्पराओं, धार्मिक रीति -रिवाजों की भरमार है। कई विशेष पर्व- त्यौहार श्रावण के इस महीने में मनाये जाते हैं।
भारतीय परम्परा में वार, सप्ताह, पक्ष और मास के समान ही ऋतुएं भी पूज्य हैं। वर्षा ऋतु से ही चार महीने के पर्व- त्यौहार आरम्भ हो जाते हैं, जिनका पालन सभी धर्म, जाति और समुदाय अपनी मान्यताओं के अनुरूप करते हैं। सावन का महीना भारत के बहुसंख्यक समाज में भी अत्यधिक महत्व रखता है। भारत में ऋतुओं का समान आकार है। जाड़ा, गर्मी और बरसात तीनों मुख्य ऋतुएं चार- चार महीने के लिए आती हैं। सभी ऋतुएं देश की जलवायु पर विशेष प्रभाव डालती हैं। भारत के कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ वर्षा ऋतु का अत्यधिक महत्व है, और वर्षा ऋतु में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
सावन का महीना शिव की अराधना के लिए समर्पित होता है। भगवान शिव का प्रिय महीना होने के कारण सावन के पूरे महीने शिव की पूजा-अराधना की जाती है, और उनसे सम्बन्धित व्रत रखे जाते हैं। लेकिन इस वर्ष 2023 में सावन महीने में अधिकमास पड़ने के कारण सावन एक नहीं, बल्कि दो महीने का होगा। सावन 4 जुलाई 2023 से शुरू होकर 31 अगस्त 2023 को समाप्त होगा। अधिकमास होने के कारण शिव भक्तों के लिए इस वर्ष सावन का महीना बहुत खास रहने वाला है, जिसमें शिव की दोगुनी कृपा बरसेगी। इस वर्ष अधिकमास पड़ने के कारण दो महीने में 8 सावन सोमवार के व्रत रखे जाएंगे। ऐसा दुर्लभ संयोग पूरे 19 वर्ष बाद बना है, जिसमें सावन महीना पूरे 59 दिनों का होगा। सावन महीने में इस वर्ष पूरे 59 दिनों तक भगवान शिव की उपासना की जाएगी। इसमें अधिकमास की अवधि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक होगी। सावन के महीने में शिवभक्त भगवान की भक्ति में रम जाते हैं। पूरे महीने शिवालयों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। मान्यता है कि सावन में किए गए पूजा-व्रत से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है और भगवान अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। सावन में पड़ने वाले सोमवार का विशेष महत्व होता है। सावन 2023 में पहला सोमवार, दूसरा, तीसरा … आठवां सोमवार क्रमशः 10 जुलाई, 17 जुलाई, 24 जुलाई (अधिकमास), 31 जुलाई (अधिकमास), 7 अगस्त (अधिकमास), 14 अगस्त (अधिकमास), 21 अगस्त और 28 अगस्त को होगा, जिस दिन शिव की विशेष पूजा- अर्चना व विविधाभिषेक की जा सकती है।
शिव श्रावण के देवता कहे जाते हैं। भारत में शिव को इस माह में विविध प्रकार से पूजने की प्राचीन परिपाटी है। सम्पूर्ण माह शिवोपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवं शिवाभिषेक का विशेष विधान है। शिव पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व है, जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता है। प्रतिदिन रुद्राभिषेक करने का नियम पालन किया जाता हैं। रुद्राभिषेक करने के लिए सर्वप्रथम जल से शिवलिंग का स्नान कराया जाता है, फिर पंचामृत से क्रमशः दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शक्कर के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराया जाता है। पुनः जल से स्नान कराकर उन्हें शुद्ध किया जाता है। इसके बाद शिव लिंग पर चन्दन का लैप लगाया जाता है। तत्पश्चात जनेऊ अर्पण किया जाता अर्थात पहनाया जाता है। शिव पर कुमकुम एवं सिंदूर नहीं चढ़ाकर उन्हें अबीर अर्पण किये जाने का विधान है। बेल पत्र, अकाव के फूल, धतूरे का फुल एवं फल चढ़ाया जाता है। शमी पत्र का विशेष महत्व होता है। धतूरे एवं बेल पत्र से भी शिव को प्रसन्न किया जाता है। शमी के पत्र को स्वर्ण के तुल्य माना जाता है। इस पूरे क्रम को ॐ नम: शिवाय मंत्र के जाप के साथ किया जाता है। इसके पश्चात माता गौरी का पूजन किया जाता है।
शिवभक्त सम्पूर्ण माह सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान- ध्यान, शिव की पूजार्चना, अभिषेकादि शुभ कार्य निष्पादित करते हैं। महिलायें भी पूरा सावन इस प्रकार के शुभ कार्यों में बढ़- चढ़कर भाग लेती हैं। विवाहित स्त्रियाँ पति, घर -परिवार के लिए मंगल कामना करती हैं। कुंवारी कन्यायें मनोवांछित वर प्राप्ति हेतु शिव की पूजा करती हैं। भारत देश में समारोहपूर्वक उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता है। श्रावण सोमवार का भी शिवोपासना में विशेष महत्व है। सोमवार के स्वामी भगवान शिव हैं। इसलिए वर्ष भर के सभी सोमवार को शिव भक्ति के लिए उत्तम माना जाता है। सोमवार शिव प्रिय होने के कारण श्रावण के सोमवार का महत्व अधिक बढ़ जाता है। श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं, जिनमे एक्श्ना अथवा पूर्ण व्रत रखा जाता है। एक्श्ना में संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किये जाने विधान है। शिव की पूजा का समय प्रदोषकाल में शुभ माना गया है।
श्रावण भगवान शिव का अति प्रिय महीना होने के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है। इस पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष पुत्री सती ने यज्ञ कुण्ड में अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन व्यतीत किया। तत्पश्चात उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे श्रावण महीने में कठोरतप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय है। यही कारण हैं कि इस महीने कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव से प्रार्थना करती हैं। मान्यतानुसार श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकर अपने ससुराल में विचरण किया था, जहाँ अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था। इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया है। एक अन्य मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया। जिसके कारण उन्हें नीलकंठ संज्ञा प्राप्त हुआ। इस प्रकार उन्होंने सृष्टि को इस विष से बचाया और सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था। इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान है। वर्षा ऋतु के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, और इस वक्त सम्पूर्ण सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती है। इसलिए चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास का विधान है।
शिव पुराण के अनुसार श्रावण माह में सोमवार का व्रत करने वाले व्यक्ति की भगवान शिव समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इसलिए सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, काशी, उज्जैन, नासिक समेत भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। सावन का ज्योतिषीय महत्व भी है। श्रावण मास के प्रारंभ में सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य का गोचर सभी बारह राशियों को प्रभावित करता है। सावन मास शिव के साथ माता पार्वती को भी समर्पित है। सावन महीने में सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ शिव से सम्बन्धित व्रत का धारण करने वाले व्यक्ति को शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए भी सावन में शिव का व्रत रखती हैं।