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फिर बनेंगी ‘बावर्ची’, ‘मिली’ और ‘कोशिश’

ऋषिकेश मुखर्जी की ‘बावर्ची’ व ‘मिली’ और गुलज़ार की ‘कोशिश’ जब बनी थीं तो मुख्यधारा के सिनेमा का हिस्सा नहीं थीं। मगर अपने यहां समांतर और मेनस्ट्रीम सिनेमा के बीच भी एक धारा रही है। ऋषिकेश और गुलज़ार का सिनेमा इसी तीसरी धारा का प्रतिनिधित्व करता है। यह ऐसी फिल्मों की धारा थी जो बहुत ज्यादा नहीं चलती थीं, पर अपना काम चला लेती थीं। इनकी खूबी यह थी कि वे कमर्शियल यानी मुख्यधारा के दर्शकों की तरह समांतर सिनेमा के प्रशंसकों को भी पसंद आती थीं। वास्तविकता तो यह है कि कमर्शियल सिनेमा के बहुत से दर्शक इसी धारा से होकर समांतर सिनेमा तक पहुंचे। इस धारा ने अपने फिल्म इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण फिल्में दी हैं। इन्हीं में से तीन फिल्मों ‘बावर्ची’, ‘मिली’ और ‘कोशिश’ को फिर से बनाने की घोषणा हुई है।

असल में इन तीनों फिल्मों के निर्माता एनसी सिप्पी थे। उनके पोते समीर राज सिप्पी ने ही जादूगर फिल्म्स के साथ मिल कर इनके रीमेक का ऐलान किया है। ‘बावर्ची’ में राजेश खन्ना, ‘मिली’ में अमिताभ बच्चन और ‘कोशिश’ में संजीव कुमार नायक थे, मगर इन तीनों ही फिल्मों की हीरोइन जया बच्चन थीं। जादूगर फिल्म्स के अबीर सेनगुप्ता और अनुश्री मेहता के मुताबिक वे इन फिल्मों को नए कलेवर और नई शैली में बनाएंगे। समीर राज सिप्पी मानते हैं कि इन क्लासिक फिल्मों को आज के परिप्रेक्ष्य और आधुनिक नजरिये में ढालने का समय आ गया है।

पता नहीं वह कौन सा समय होता है जब किसी पुरानी मशहूर फिल्म को फिर से बनाने की जरूरत पैदा हो जाए। और ऐसा करके कोई क्या हासिल कर सकता है? संजय लीला भंसाली ने एक भव्य ‘देवदास’ बना दी, मगर क्या वह शरतचंद्र, बिमल रॉय और दिलीप कुमार की ‘देवदास’ का विकल्प हो सकती है? हर फिल्म और हर कहानी का शायद अपना एक समय होता है। उसका समय बार-बार नहीं आता। नए परिप्रेक्ष्य और आधुनिक नजरिये से उन्हीं कहानियों को दोबारा बना कर कहीं हम उन मूल फिल्मों से जुड़ी यादों को धूसरित तो नहीं कर देंगे जो लोगों ने दशकों बाद भी एहतियात से संजो कर रखी हैं?

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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