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सरकार की सांसत: ओबामा की टिप्पणी और मणिपुर में जातीय हिंसा…!

भोपाल । औपचारिकता को आयौजन में बदलने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचार तंत्र की टुकड़ी को अमेरिका यात्रा को अभूतपूर्व बताने वाले भूल गए कि पंडित जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की राजकीय यात्राओ में मेहमानों का स्वागत मोदी जी की अगवानी से कहीं अधिक भव्य हुआ था ! सोशल मीडिया में उनके स्वागत की क्लिपिङ्ग्स खूब अधिक संख्या में प्रचारित हो रही हैं। सबसे पहले तो न्यूयार्क में मोदी जी अगवानी विदेश मंत्रालय के एक नौकरशाह द्वारा किया जाना सबूत हैं। फिर वाशिंगटन में भी ऐसा ही दुहरा दिया गया ! जबकि नेहरू और इन्दिरा गांधी की अगवानी विदेश सचिवों द्वारा की गयी थी ! राजीव गांधी के लिए तो राष्ट्रपति ने छाता पकड़ रखा था, इससे अधिक आत्मीय और क्या हो सकता हैं। हाँ तीनों ही प्रधानमंत्रियों ने अपने स्वागत के लिए आप्रवासी भारतीयों को एकत्रित नहीं कराया था  और ना ही रेडियो और टीवी को निर्देश दिये गए थे की 100 घंटे कवरेज करें ! जो मोदी जी यात्रा में हुआ। इसे कहते हैं बनियों को बांध कर बाज़ार लगाना।

भारत में नौ साल के कार्यकाल में मोदी जी ने पत्रकारों का मुंहा नहीं देखा था  परंतु अमेरिका में स्वतंत्र प्रेस की परंपरा के चलते वे वहां मजबूर हुए उनके सवालों का जवाब देने के लिए। एक अमेरिकी पत्रकार ने भारत में जातीय और धार्मिक समुदायों के प्रति सौतेला व्यवहार किए जाने की घटनाओं पर जवाब मांगा था ! मोदी जी ने रटा रटाया जवाब दे दिया की ऐसा बिलकुल नहीं है। उसके बाद भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बयान दिया की अगर जातीय और धार्मिक अल्प संख्यकों पर ज्यादतिओ को रोका नहीं गया तब यह भारत के विखंडन का कारण बन सकता है !

अब इस बयान के आने के बाद तो सरकार और उसकी पार्टी में इतनी बेचैनी हुई की  बीजेपी की ओर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन और रक्षा मंत्री राजनाथ सिघ के साथ नड्डा और आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत बिसव शर्मा के बने बयान आने लगे। संघ और बीजेपी की प्रचार मंडली ने दो दिनों में ही एक सर्वे भी करा लिया जिसमे ओबामा को भांति – भांति की सीख दी गयी।

निर्मला सीतारमन ने कह दिया कि ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए 6 इस्लामिक देशो में अमेरिका ने बम बरसाए थे ! इनमें उन्होंने यमन और सऊदी अरब को भी जोड़ दिया। जबकि इन दो देशों में ओबामा के कार्यकाल में कोई बम वर्षा नहीं की गयी थी। हाँ अफगानिस्तान में आतंकवादियों – ओसामा बिन लादेन के संगठन के ठिकानों पर हमले किए गए थे। ओसामा को गिरफ्तार करने का काम भी ओबामा के समय ही हुआ था। जब मोदी जी आतंकवाद पर कोई अगर  मगर  नहीं चाहते तब वे कैसे दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी को खत्म करने को  इस्लामी देश पर बम वर्षा बता सकते हैं। पर निर्मला जी ने ऐसा ही किया। अब उन्हें बताना होगा की सीरिया में अमेरिका द्वारा बम वर्षा किए जाने का काम राष्टपति ट्रम्प के समय हुआ था। आम आदमी इस बारीकी को नहीं जान पाता है, इसलिए बीजेपी के प्रचार तंत्र सार्वजनिक रूप से झूठ परोस देता हैं।

जातीय समुदायों के साथ मोदी सरकार के सौतेलेपन का उदाहरण मणिपुर है। पिछले दो महीने से हिन्दू मईति और ईसाई कुकी समुदायों के हिंसक लड़ाई को देख रहा है। अमेरिका के दौरे के समय भी मणिपुर जल रहा था। आज भी केंद्रीय सरकार सिवाय फौज भेज देने और सुरछा बलो की टुकड़िया भेज कर मौन साधे हुए हैं। अगर आरोपी मुसलमान है तो उसके घर को बुल्लडोज़ार से ज़मींदोज़ कर दिया जाता हैं और कुसथी संघ के अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह को पुलिस पाक्सो एक्ट के बावजूद भी नहीं छू पाती। भले ही देश के लिए कुश्ती में ओलंपिक और वर्ल्ड स्पोर्ट्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ियो को हफ्तों दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देना पड़ता है, उन्हें हटाने के लिए पुलिस बल का प्रयोग करती है ! एक बीजेपी सांसद ने इन खिलाड़ियों को कहा कि हरियाणा की जाटनीय है !

इन्दिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने को लोकतन्त्र के इतिहास का धब्बा बताने वाले भूल जाते है कि संविधान में अनुछेद 352 और 353 तथा 354 और 355 में केंद्र सरकार को शक्ति दी गयी है की वह आपातकालीन स्थिति की घोसना कर सकती है। जिस आपातकाल के लिए इन्दिरा जी को गिरफ्तार किया गया, उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त की गयी, उन्हीं के नेत्रत्व में काँग्रेस ने 1980 में पुनः सरकार बनाई  7 बड़े राजनीतिक दलों और दर्जन भर छोटे दलों का जनता पार्टी का गतबंधन धराशायी हुआ था। क्या वह बिना भारत की जनता के समर्थन से संभव हो सकता था ! और इसके लिए उन्होंने सांसदो की खरीद फ़रोख्त नहीं की थी, जैसा बीजेपी ने मध्यप्रदेश और कर्नाटक में विधायकों को खरीद कर कमलनाथ की सरकार को गिराया था।

इसलिए आपातकाल को कलंक कहने वालो अगर हिम्मत है तो संविधान से इन अनुच्छेदों को निरसित कर दें ! अन्यथा आज देश जिस प्रकार अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगया गया है, और पत्रकारों बुद्धिजीवियों को एनएसए में बिना चालान महीनों या सालों तक जेल में रखा गया है, वह अघोषित आपातकाल ही है। जिसका कोई सबूत नहीं है पर पीड़ा और शोषण उजागर है।

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