एक तस्वीर और एक हज़ार शब्दों के बराबर! हां, एक कोने में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जे़लेंस्की मुंह फुलाये अकेले खड़े और और उनके चारों तरफ बाकी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक दूसरे के साथ हंस बोल रहे हैं। क्या ऐसी तस्वीर उन मतभेदों और दरारों को नहीं दिखलाती जो विल्नुस में नाटो शिखर सम्मेलन के बाद उभरीं है।
दो दिन का नाटो शिखर सम्मेलन खत्म हो गया है। पर विदाई के वक्त में सब खुश नहीं थे। राष्ट्रपति जे़लेंस्की ने वापस जाते समय अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह “अभूतपूर्व और बेतुका” है कि यूक्रेन को जल्द से जल्द नाटो गठबंधन की सदस्यता देने के बारे में कोई साफ़ वादा नहीं किया गया। जेलेंस्की के इस रवैये से ब्रिटेन और अमेरि्का स्तब्ध रह गए।
जे़लेंस्की ने शुरू में ही और साफ़-साफ़ लव्जों में बता दिया था कि नाटो से उनकी क्या अपेक्षा है? वे सम्मेलन में भारी उम्मीदों के साथ पहुंचे थे। वे हमेशा से यह जानते थे – और उन्होंने कभी भी यह दबाव नहीं बनाया था – कि युद्ध समाप्त होने के पहले ही यूक्रेन को नाटो की सदस्यता दी जाए। लेकिन उन्हें नाराजगी इस बात को लेकर है कि नाटो, यूक्रेन को सदस्यता के लिए आवेदन करने हेतु आमंत्रित करने के लिए भी शर्तें लगा रहा है। सम्मेलन के बाद जारी अंतिम विज्ञप्ति के बाद भी नाटो में यूक्रेन के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। गोलमोल कूटनीतिक शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए यूक्रेन को न्योता दिए जाने का वायदा किया गया है लेकिन तभी जब “गठबंधन के सदस्य इसके लिए राजी हों और कुछ शर्तों को पूरा किया जाए”।
इसमें न तो यह साफ किया गया कि यह कब होगा और ना ही शर्तें बताई गईं हैं। यूक्रेन की नाटो के सदस्यता की प्रक्रिया को कैसे वर्णित किया जाए इसे लेकर गठबंधन के सदस्यों के बीच के विवाद, मतभेद और दरार की झलक इस अस्पष्ट और भ्रामक भाषा से मिलती है। इससे जे़लेस्की आगबबूला हो गए, जो ठीक ही था, और उन्होंने विज्ञप्ति के मसविदे की भाषा देखने के बाद ट्विटर पर एक संदेश पोस्ट किया और धमकी दी कि वे नाटो-यूक्रेन परिषद के पहले सत्र में भाग नहीं लेंगे।
जेलेंस्की के इस व्यवहार से यूके और अमरीका नाराज हो गए। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि यूक्रेन को पश्चिम से मिली मदद को लेकर और अधिक कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए और अहंकार नहीं दिखाना चाहिए। इस बीच फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि “उनकी हमसे अपेक्षाएं जायज हैं क्योंकि वे मैदानी लड़ाई लड़ रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा ‘‘हमने वह किया जो हमें करना चाहिए था और हमने यह गठबंधन की एकता को कायम रखते हुए किया”।
सन् 2008 में बुखारेस्ट में हुए नाटो शिखर सम्मेलन में जब सबसे पहले यूक्रेन को सदस्यता दिए जाने का वायदा किया गया था, तब वह वक्तव्य गहरे और लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को छिपाने का तरीका था। तब जर्मनी और फ्रांस यूक्रेन की सदस्यता के सख्त खिलाफ थे जबकि वाशिंगटन कीव की सदस्यता की राह प्रशस्त करना चाहता था। आज सभी देश यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के पक्ष में हैं और “मेम्बरशिप एक्शन प्लान” की कठिन प्रक्रिया नहीं अपनाना चाहते हालांकि यह भी कब और कैसे होगा यह साफ़ नहीं है।
इस सबसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन काफी प्रसन्न और संतुष्ट होंगे। सच तो यह कि रूस को यह पता था कि जब तक युद्ध चलेगा तब तक नाटो यूक्रेन को सदस्यता नहीं देगा। यह भी एक कारण है कि रूस युद्ध जारी रखेगा। भविष्य में किसी देश की सदस्यता के लिए कौनसी शर्तें रखी जाती हैं रूस के लिए यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि यह कि यूक्रेन की रक्षा के लिए क्या ठोस एवं दीर्घकालिक योजना बनाई जा सकती है। इस दिशा में सम्मेलन में सचमुच प्रगति हुई। चार साल पहले इमैनुएल मैक्रों के कहा था कि गठबंधन ‘‘ब्रेन डेड” हो चुका है। लेकिन हाल में उन्होंने मंज़ूर किया कि रूस के यूक्रेन पर हमले ने उसे नयी ज़िन्दगी दी है।
लेकिन सम्मेलन में मतभेद और नाराजगी के अलावा भी बहुत कुछ हुआ। यूक्रेन को लेकर जहां तीखे मतभेद थे वहीं रूस के हमले ने एक बार फिर इस सैनिक जमावड़े के औचित्य का अहसास कराया है। गठबंधन का विस्तार हो रहा है – तुर्की और हंगरी द्वारा उनकी आपत्तियां वापस लिए जाने के बाद फिनलैंड की तरह स्वीडन के सदस्य बनने की राह प्रशस्त हो गयी है। ज्यादा विस्तृत सैन्य योजनाएं तैयार करने के लिए सदस्य सहमत हुए हैं और यूक्रेन के प्रति अधिक वफ़ादारी दिखाई गई हालांकि वह उसकी अपेक्षाओं की तुलना में बहुत कम है।
इसमें शक नहीं कि मजबूरी न कि मर्ज़ी से नाटो को अधिक सशक्त किया जा रहा है, खासकर यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण। यूक्रेन की सदस्यता एक विवादास्पद मुद्दा बना रहेगा। लेकिन अगले वर्ष तक नाटो की मुसीबतें रूस और चीन के अलावा भी होंगीं। सदस्य देशों के अन्दर के हालात में बदलाव की सम्भावना को देखते हुए एक प्लान बी भी तैयार किया जा रहा है, खासतौर पर अमेरिका को लेकर, यदि वहां ट्रंप दुबारा चुनाव जीत जाते हैं तो।
दुनिया गोल है। समस्याएं जटिल हैं। सबको खुश करना संभव नहीं है। और सबको वह मिल जाए जो वे चाहते हैं, यह हो नहीं सकता। विल्नुस में हुआ नाटो शिखर सम्मलेन भले ही पूरी तरह सफल न रहा हो परन्तु दरारों पर प्लास्टर करने की गुंजाईश तो बनी ही है! (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)