अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और एकनाथ शिंदे की शिव सेना को अपने पोस्टर्स से शरद पवार और बाला साहेब ठाकरे की फोटो हटाने की हिम्मत नहीं है। इससे दो अर्थ निकलते हैं- अपने नाम, अपने फोटो से वोट मिलने का विश्वास उन्हें नहीं है और नरेंद्र मोदी के नाम से चुनाव जीतने की गारंटी भी नहीं है।दूसरी बात सामने आ रही है कि भाजपा के कार्यकर्ता और अनेक नेताओं को भाजपा का राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ जाना पसंद नहीं है। वे इसके लिए उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को जिम्मेदार ठहराते हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में प्रमुख राजनीतिक दलों का वोट बैंक टूटता दिखाई दे रहा है। भाजपा के हिंदुत्व वोट बैंक से मराठी मानुस अलग हो रहा है। उसे साथ रखने की क्षमता मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना में नहीं है। मराठा वोटर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार और अजित पवार गुट), भाजपा और शिव सेना के उद्धव और शिंदे कैंप में बंटा हुआ है। दलित और ओबीसी सभी दलों के साथ रहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू महाराष्ट्र में चलता तो शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी टूटने का कोई कारण ही नहीं होता। लेकिन मोदी के हिंदुत्व का मराठी मतदाताओं पर कोई असर नहीं है यह जानने के बाद ही ‘ऑपरेशन कमल’ किया गया और दो क्षेत्रीय दलों को तोड़ा। लेकिन अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और एकनाथ शिंदे की शिव सेना को अपने पोस्टर्स से शरद पवार और बाला साहेब ठाकरे की फोटो हटाने की हिम्मत नहीं है। इससे दो अर्थ निकलते हैं- अपने नाम, अपने फोटो से वोट मिलने का विश्वास उन्हें नहीं है और नरेंद्र मोदी के नाम से चुनाव जीतने की गारंटी भी नहीं है।
दूसरी बात सामने आ रही है कि भाजपा के कार्यकर्ता और अनेक नेताओं को भाजपा का राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ जाना पसंद नहीं है। वे इसके लिए उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को जिम्मेदार ठहराते हैं। इसका अर्थ स्पष्ट है कि भाजपा के वोट अजित पवार गुट की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ ट्रांसफर नहीं हो सकते। भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस 1999 से चुनाव में प्रतिस्पर्थी रहे हैं तभी सत्ता के लिए नेता एक हो सकते है लेकिन उनके कार्यकर्ता और समर्थक मतदाता एक नहीं हो सकते।
महाराष्ट्र में नरेंद्र मोदी, अमित शाह, देवेंद्र फड़नवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार में वो क्षमता नहीं है, जो किसी जमाने में मायावती और कांशीराम में थी। उनका वोटर उनके कहने से किसी को भी मतदान करता था। यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी के कहने से भाजपा का वोटर अजित पवार या एकनाथ शिंदे को वोट कर देगा या शिंदे और पवार के कहने से उनका समर्थक भाजपा को वोट कर देगा।
दूसरी ओर कांग्रेस का अपना सॉलिड वोट बैंक नहीं है। उसका मराठा-दलित-मुसलमान वोट बैंक बिखर गया है। ये पार्टी किसी जमाने में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी के नाम से चुनाव जीतती थी। अयोध्या और मंडल आंदोलन के बाद इनके पास ना ऐसा कोई नाम है, ना नेता है, जिसके चेहरे से पार्टी ने चुनाव जीता। कांग्रेस 1999, 2004 और 2009 में जीती लेकिन हालात ने, परिस्थिति और समीकरण की वजस से वह सत्ता में आई।
शरद पवार आज भी महाराष्ट्र में जाना-पहचाना नाम हैं। उनके नाम से राष्ट्रवादी कांग्रेस को 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 में वोट मिले। अभी उनकी पार्टी टूटी है। भाजपा की मदद से अजित पवार शरद पवार को और एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे को अगले चुनाव में कितना नुकसान पहुंचाते हैं ये आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। लेकिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह अच्छी तरह से जानते हैं की महाराष्ट्र ना गुजरात है ना उत्तर प्रदेश। इसलिए उन्होंने आपना दांव अजित पवार पर लगाया। अच्छे विभाग जैसे वित्त, कृषि, सहकारिता उन्हें दे कर उनके समर्थकों को संदेश दिया है।
लेकिन शरद पवार का कद अजित पवार के पास नहीं है। शरद पवार गावों में मराठा नेता दिखते हैं, मुंबई में कॉरपोरेट सेक्टर उनके प्यार में है और दिल्ली में वे कद्दावर नेता, स्टेट्समैन दिखाई देते हैं। महाराष्ट्र में कला, साहित्य, नाट्य, क्रीड़ा में उनके चाहने वाले हैं। लेकिन ढलती उम्र और स्वास्थ्य उनके लिए माइनस प्वाइंट हैं।
नरेंद्र मोदी किसी भी कीमत पर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाना चाहते है और गुजरात, उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र पर उनकी उम्मीद है। लेकिन टूटते वोट बैंक, राजनीतिक अस्थिरता, महाराष्ट्र से गुजरात में उद्योग ले जाने की उनकी नीति आदि का उलटा असर हो सकता है। इसके अलावा महाराष्ट्र के चुनावी रण में बहुत से चमत्कार होने हैं। इसमें कद्दावर ओबीसी नेता छगन भुजबल अपने येवला क्षेत्र से हार सकते हैं। इसके तीन कारण बताए जा रहे हैं। मराठा आरक्षण का उन्होंने विरोध किया था। पाठशालाओं में सरस्वती वंदना की जगह सवितीबाई फुले की वंदना करने की मांग की थी। और तीसरा उनके राज्य का गृह मंत्री रहते बाला साहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया गया था। इन तीनों कारणों से मराठा, भाजपा और शिव सेना (उद्धव व एकनाथ शिंदे गुट दोनों) के वोट मिलने में उन्हें दिक्कत होगी।