भोपाल। ताश के 52 पत्तों की तरह राजनीति में भी देहला पकड़ का खेल अब तेज हो गया है। मध्यप्रदेश की सियासत में कांग्रेस ने दिग्विजयसिंह की संगठन शक्ति के चलते भाजपा को तगड़ी चुनौती देना शुरू कर दिया है। इसके चलते 2003 से सत्ता सुख ले रहे भाजपा नेताओं में चिंता की लकीरें देखी जा रही है। महीनों की मशक्कत के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने दिग्विजयसिंह की काट के रूप में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। अत्यंत कठिन दौर, दुविधा और ऊहापोह के बीच उन्हें प्रदेश भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक बनाया गया है। इसे पूरी भाजपा में इसे काफी पॉजिटिव निर्णय माना जा रहा है। तोमर पहले भी दोबार 2008 और 2013 में बतौर प्रदेश अध्यक्ष भाजपा को सत्तारूढ़ कराने में कामयाब हुए थे।
अपने मित भाषी और मिष्ट भाषी होने के गुण के कारण अपने लोगों में मुन्ना भैया के नाम से पुकारे जाने नरेंद्र तोमर का मुकाबला के कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह से होगा। वे जनता और कार्यकर्ताओं में राजा साब के नाम पुकारे जाते हैं लेकिन अपने परिवार में खासतौर से उनकी बड़ी बहन श्रीमती ललित ऋषि,दिग्गी राजा को मुन्नू भैया और छोटे राजा लक्ष्मण सिंह को चुन्नू भैया के नाम से पुकारती थीं। उनके करीबी सब जानते हैं कि दिग्विजय सिंह जब देर रात तक कामकाज में व्यस्त होते थे तब किसी की हिम्मत नही होती थी कि उनसे भोजन का आग्रह कर सके। उस समय बड़ी बहन ही भोजन करने के लिए उठा कर लाती थीं। यह क्रम सिंह के सीएम बनने तक भी जारी रहा था।
भाजपा में कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय तोमर अपनी संजीदगी और तजुर्बे के कारण उपेक्षित नेता-कार्यकर्ताओं में प्रसन्नता और उत्साह का सबब बन रहे है। कार्यकर्ताओं में भरोसा जगा कि प्रदेश ऑफिस से लेकर मंडल तक सबको साथ लेकर चलने, उन्हें जानने, पहचानने वाला एक नेता मैदान में है जो उनकी पीड़ा सुनेगा और उसका समन्वय के साथ स्वीकार्य समाधान करेगा। इस उम्मीद ने ही भाजपा के सन्नाटे को सकारात्मकता में बदलने के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान से उनका तालमेल जग जाहिर है।
जब शिवराज सिंह सीएम बने तब उनकी केबिनेट में नरेंद्र तोमर मंत्री हुआ करते थे लेकिन दोनों के बीच समन्वय को देख कर नेतृत्व ने तोमर को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद चौहान और तोमर की जोड़ी ने 2008 व 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को लगातार सत्ता में बनाए रखा। तब मैने दैनिक भास्कर में ‘भाजपा की जनरेशन नेक्स्ट…’ के नाम शीर्षक वाली खबर में लिखा था कि यदि कुछ आसमानी सुल्तानी नही हुआ तो अब अगले 20-25 बरस तक भाजपा चौहान और तोमर के कानों से सुनेगी और उनकी ही आंखों से देखेगी। कठिन परिस्थितियों में तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाना कुछ इसी तरह के संकेतों की पुष्टि करता हुआ दिखता है।
तोमर के समन्वय के तार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया,राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, विक्रम वर्मा, सत्यनारायण जटिया, प्रभात झा, राकेश सिंह, दीपक विजयवर्गीय, से लेकर मंडल तक के कार्यकर्ताओं से जुड़े हैं। अब तक जो यह बात कही जा रही थी कि भितरघात और बगावत की बलवती सम्भावनाओं के चलते भाजपा को नही बल्कि भाजपा ही हरा सकती है। किसी और में कहां दम है। विजयवर्गीय ने इस बात को कहा था। लेकिन तोमर के संयोजक बनने के बाद हालात बदहाली से बेहतरी की तरफ जाएंगे।
कांग्रेस में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी संगठन को सक्रिय करने और पार्टी में एकता लाने के कारण भाजपा के लिए बड़ी चिंता बने हुए है। लेकिन अब शिवराज सरकार की घोषणाओं को जनता तक ले जाने काम अध्यक्ष वीडी शर्मा की अगुवाई में बेहतर तरीके से कर सकेगा। कुल मिलाकर प्रदेश में भाजपा को फिर सत्ता में वापसी का जो टास्क पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दिया उसे लेकर तोमर की कार्यशैली जल्दी ही रिजल्ट देना शुरू करेगी।
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