भोपाल। बीजेपी की चुनाव प्रबंधन के लिए कई समितियों की अधिकृत घोषणा नहीं किया जाने के बाद भी बैठक में जिम्मेदारी के साथ रणनीति बनाए जाने का काम शुरू हो चुका है.. तो दूसरी ओर चुनाव घोषणा पत्र के साथ संचालन और अभियान समिति का भी इंतजार अभी भी खत्म नहीं हुआ है.. चुनावी मोड में पार्टी के नीति निर्धारक दिल्ली के हस्तक्षेप के बाद टेक ऑफ के लिए तैयार लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी बुलंद हौसलों की अस्पष्टता के चलते रफ्तार पर सस्पेंस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा..मोदी, शाह , नड्डा मध्यप्रदेश को लेकर संजीदा, जिनके चुनावी दौरे सभा रोड शो को लेकर लाइन आगे बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव और सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव का वीकेंड पर भोपाल आना जाना शुरू हो गया.. संसद की व्यस्तता के बावजूद संगठन के फोरम पर मध्य प्रदेश के नेताओं के बीच तालमेल बनवाने की कोशिश जारी.. जिम्मेदारियां जिन नेताओं को सौंपी जा रही उनमें वो चेहरे भी शामिल है..
जो चुनाव लड़कर विधानसभा में पहुंचे और एक बार फिर चुनाव जीतने की ललक उन्हें अपने क्षेत्र विशेष की ओर खींच ले जाती है.. तो जिन्होंने भाजपा के कई नेताओं और पार्टी को चुनाव जिताया ऐसे संगठन शिल्पी और रणनीतिकार भी प्रबंधन के मोर्चे पर तैनात कर दिए गए.. जबकि कई अनुभवी ऐसे चेहरे जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा और ना आगे उनके चुनाव लड़ने की संभावना ऐसे लोगों को कमी नहीं इन्हे आज भी काम की तलाश है.. 3 महीने की इस मशक्कत को लेकर पार्टी के मैनेजर भाजपा प्रबंधन समिति का हिस्सा जरूर बन चुके लेकिन फिलहाल लिव इन रिलेशनशिप में जो बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान में फिलहाल सामंजस्य बनाने को मजबूर हैं.. या तो संकट भरोसे का या फिर सुधार की गुंजाइश का विकल्प छोड़ते हुए सामंजस्य की कमी को नए सिरे से दुरुस्त करने की कवायत अभी भी जारी है.. जो इन चेहरों को आजमाया जा रहा.. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संगठन के फोरम पर चुनावी कमान संभालने से पार्टी में चहल पहल जरूर बढ़ गई ..फिर भी खुद चुनाव लड़ने का मन बना चुके कई नेता अपनी भूमिका और भविष्य को लेकर सोचने को मजबूर हुए.. ऐसे में करंट और किलियरटी की अभी भी मिशन 2023 के लिए पार्टी को दरकार है..
समय के साथ नए संदेश भी निकल कर सामने आ रहे.. मुख्यमंत्री शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा पर सस्पेंस और समय अभाव को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय अंचलों में नए सिरे से छत्रपों के साथ सत्ता संगठन और दिल्ली में दखल रखने वाले दिग्गज नेताओं की सामूहिक यात्रा की कयास बाजी के बीच चर्चा में शिवराज पर केंद्रित विकास यात्रा राजधानी से दूर भाजपा की मौजूदगी का एहसास जरूर करा रही..पार्टी नेतृत्व जब चुनाव, चेहरा, चुनौती के लिए रणनीति बना रहा तब शिवराज जनता के बीच माहौल बना रहे..भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव के मध्य प्रदेश चुनाव की कमान संभालने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर भी विधानसभा चुनाव 2023 की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन चुके हैं.. मुख्यमंत्री शिवराज को पार्टी स्तर पर गहन चिंतन मंथन के लिए भरोसेमंद नरेंद्र मिल गए.. जो अध्यक्ष महामंत्री और दूसरे पदाधिकारियों के सीधे संपर्क में आ गए हैं.. जिसने मुख्यमंत्री को आए दिन पार्टी फोरम की बैठकों में माथापच्ची से राहत मिली और उनके मतदाताओं के बीच जाने का रास्ता और साफ हो गया.. इस वक्त शिवराज के लिए इससे बड़ा सपोर्ट और क्या हो सकता है..
नरेंद्र सिंह को उनके अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर चुनाव प्रभारी भूपेंद्र , अश्विनी का सपोर्ट से ज्यादा सम्मान सूबे की सियासत में उनके सियासी कद में और इजाफा कर रहा है.. यानी शिवराज के बाद सीएम इन वेटिंग की दौड़ में शामिल दूसरे नेताओं की तुलना में नरेंद्र सिंह तोमर फिर दूसरे नंबर पर आकर टिक गए.. नरेंद्र अपनी इस पुरानी लेकिन नई जिम्मेदारी को लेकर कितने जोश में इस पर सवाल खड़ा किया जा लेकिन उनकी मौजूदगी और गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. केंद्र और प्रदेश भाजपा के बीच की यह महत्वपूर्ण कड़ी कुछ लोगों को खटक जरूर सकती है.. भाजपा में शर्मा बंधुओं की जोड़ी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा हो या फिर संगठन महामंत्री हित आनंद शर्मा दोनों इस बात पर खुश की विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जा रहा है.. यानी प्रबंधन से लेकर टिकट चयन में उन्हें उनकी पसंद की सिफारिश करने का मौका जरूर मिलेगा.. कम समय में बड़ा ओहदा और निर्णायक हस्तक्षेप क्या इस जोड़ी की बड़ी पूंजी साबित होगी.. अनुभव के मापदंड पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं बावजूद इसके इनके पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व से ज्यादा बड़ी ताकत संघ को माना जा रहा.. वह बात और है कि भूपेंद्र,अश्वनी और नरेंद्र की एंट्री के साथ पुरानी पीढ़ी के उपेक्षित नेताओं की सहभागिता का रास्ता प्रशस्त हो चुका है… सम्मान और सहयोग की पार्टी से अपेक्षा रखने वाले ऐसे नेताओं की भड़ास निकलवा देने का काम मेल मुलाकात के साथ नरेंद्र सिंह ने शुरू भी कर दिया है..
यानी अमित शाह की जमावट के साथ मध्यप्रदेश में पुरानी और नई पीढ़ी के बीच टकराहट टालने की कोशिश तेज हो चुकी है.. टिकिट को ले कर वर्चस्व की लड़ाई में भितरघात की समस्या से पार्टी को किस हद निजात मिलेगी यह तो वक्त बताएगा.. दिल्ली के हस्तक्षेप के बाद गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा हो या फिर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी खुश होंगे जो प्रदेश के पार्टी फोरम पर अपनी उपयोगिता साबित करने लगे.. लेकिन चुनावी प्रबंधन से जुड़ी समितियां हो या फिर छोटी-बड़ी टीम जिस चेहरे पर सबकी नजर वह कोई और नहीं कैलाश विजयवर्गीय है.. राष्ट्रीय महासचिव रहस्य प्रदेश में अब नए सिरे से सक्रिय हो चुके कैलाश ने प्रबंध समिति के ऐलान के बाद भाजपा के प्रदेश दफ्तर में जिस तरह और दूसरे राष्ट्रीय नेताओं की तुलना में अपनी मौजूदगी का एहसास कराया वह गौर करने लायक है.. जिनकी चुनाव में भूमिका को लेकर सस्पेंस खत्म नहीं हुआ लेकिन सक्रियता ने उन्हें प्रदेश के गिने-चुने रणनीतिकारों में शामिल कर दिया है.. चर्चा है भोपाल में डेरा डाल कर मालवा की जिम्मेदारी निभाने को तैयार कैलाश अब नरेंद्र तोमर के साथ प्रबंधन के मोर्चे में बड़ी भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे..कोर कमेटी के महत्वपूर्ण सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनावी तैयारियों की महत्वपूर्ण कड़ी बन चुके हैं लेकिन अभी दिल्ली से ही उनका प्रदेश दफ्तर आना और जाना होता है.. सिंधिया को भी चुनाव में किसी बड़ी भूमिका का अभी भी इंतजार है.. राहुल प्रियंका की बढ़ती सक्रियता और उनके मध्य प्रदेश प्रेम के इस चुनाव में भाजपा नेतृत्व सिंधिया को चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर सकता.. सवाल भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व राहुल के सामने उन्हें नए सिरे से पोजीशन लेने की रणनीति पर आगे बढ़ेगा या फिर प्रदेश की राजनीति में शिवराज के इस जोड़ीदार ज्योतिरादित्य को आखिर किस किरदार के साथ चुनाव का प्रमुख चेहरा बनाएगा..
पार्टी बदलने के बाद सिंधिया के लिए व्यक्तिगत तौर पर यह चुनाव उनके सियासी भविष्य के लिए बहुत मायने रखता है.. चुनावी बिसात पर जब भाजपा नए सिरे से मोहरे तैनात कर रही तब चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के मोर्चा संभालने के बाद रिचार्ज के लिए मजबूर प्रदेश प्रभारी मुरलीधर अपनी रीलॉन्चिंग में खुद जुट गए हैं.. अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए अब मीडिया से तालमेल बनाकर इंटरव्यू का सहारा ले रहे.. बतौर प्रदेश प्रभारी संगठन में उनके योगदान से ज्यादा अब उनकी उपयोगिता पर पार्टी के अंदर चर्चा शुरू हो चुकी है.. क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल की छत्तीसगढ़ में बढ़ती जिम्मेदारी के बीच राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश जिनके पास पिछले 1 साल की बीजेपी की दशा दिशा का पूरा लेखा जोखा मौजूद वो अब भूपेंद्र की इस नई टीम के साथ आगे बढ़ते हुए देखे जा सकते हैं..
एडजस्टमेंट या नरेंद्र सिंह का बढ़ता दखल..
लक्ष्य मिशन 2023 को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश भाजपा ने यूं तो कई समितियों को अस्तित्व में लाकर बैठक बुलाई और कामकाज शुरू भी कर दिया है… हर बैठक से पहले कुछ जरूरी बदलाव लेकिन सूची की अधिकृत घोषणा से बचते हुए पार्टी के नीति निर्धारक दो दौर की बातचीत चुनावी टीम के साथ कर चुके.. समितियों में समायोजित सदस्यों की सहभागिता से चर्चा इस बात की जोर पकड़ने लगी है उमाशंकर गुप्ता से लेकर चेतन कश्यप , राजेंद्र शुक्ला, हेमंत खंडेलवाल जैसे नेता चुनाव लड़ेंगे या फिर पार्टी के रणनीतिकार बनकर चुनाव लड़वाएंगे.. हर हाल में चुनाव लड़ने को तैयार मंत्री नरोत्तम मिश्रा विश्वास सारंग महेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे बड़े चेहरे भी सक्रिय किए गए..टिकिट के दावेदार शैलेंद्र शर्मा आलोक संजर, लोकेंद्र पाराशर, आशुतोष तिवारी ,विनोद गोटिया, युवा उभरता नेतृत्व मुदित शेजवार, मीडिया का जाना पहचाना चेहरा डॉ हितेश बाजपेई, हो या फिर ग्वालियर से उभरता नाम भाजपा के नवागत मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल को क्या टिकट की दौड़ से दूर कर दिया गया है.. डॉक्टर हितेश बाजपेई को संगठन की सोशल मीडिया टीम से जोड़ दिया गया है … भाजपा के पूर्व कार्यालय मंत्री राजेंद्र राजपूत की जरूर पार्टी ने सुध ली और मुख्यधारा में वापसी सुनिश्चित की.. जिन्हें चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाले प्रबंधन और एविएशन और अविएशन के मोर्चे पर तैनात कर दिया गया..
पार्टी की बैठक में किसी का नाम यदि नरेंद्र सिंह ने प्रमुखता से आगे बढ़ाया तो शिव प्रकाश ने भी एडजेस्टमेंट लिस्ट में कुछ चेहरों के महत्व को रेखांकित कर प्रदेश संगठन के नीति निर्धारकों को सोचने को मजबूर किया.. फिलहाल प्रबंधन के मोर्चे पर भाजपा के जिन नेताओं को जिम्मेदारी का एहसास करा कर संगठन की चुनावी टीम में जगह दी गई है.उन्हें भी अभी पार्टी के अधिकृत एलान का इंतजार है.. सवाल क्या भाजपा इनकी योग्यता का मूल्यांकन कर इस टीम को आजमा रही है.. तो क्या आने वाले समय में इनके मार्गदर्शन के लिए कुछ और नए चेहरों को बड़ी जिम्मेदारी के साथ में जोड़ दिया जाएगा तो फिर वह आखिर कौन होंगे.. क्या बैठको का हिस्सा बन रहे इन नेताओं को अध्यक्ष महामंत्री और मुख्यमंत्री की संयुक्त पसंद माना जाए या फिर एडजस्टमेंट.. नरेंद्र सिंह तोमर के बढ़ते दखल का यह नतीजा है.. क्या इसकी महत्वपूर्ण और निर्णायक कड़ी अभी देखने को मिलेंगी..