भोपाल। राजनीति में व्यापक परिवर्तन आया है पहले जैसी सहजता सरलता अब नहीं रही। अब मैनेजमेंट का युग है। इसका सबसे ज्यादा असर चुनाव पर पड़ा है। हर चुनाव पैटर्न बदल कर आ रहा है। वहीं उम्मीदवार और दल सफल हो रहा है जो संभावित चुनावी पैटर्न की तैयारी करता है अब तो टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक हर जगह पैटर्न बदलती राजनीति ने नेताओं की मुस्लिम बढ़ा दी है।
दरअसल, इस वर्ष के अंत तक प्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव होने जा रहे हैं जिसको लेकर राजनीतिक दलों की तैयारियां तेज हो गई हैं। बूथ पर जमावट सर्वे के माध्यम से जीतने वाले उम्मीदवारों की तलाश और आकर्षक चुनावी वादों पर फोकस किया जा रहा है। एक – दूसरे के खिलाफ आरोप – प्रत्यारोप के साथ-साथ पोस्टरवार भी शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर वीडियो और पोस्ट नए अंदाज में पेश की जा रही है सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर चुनावी तैयारी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है।
बहरहाल, प्रदेश में दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी अपना फोकस जिस तरह से बना लिया है उसे समझा जा सकता है चुनाव कितने महत्वपूर्ण है। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व लगातार प्रदेश के दौरे पर है शुक्रवार को खरगोन में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने रोड शो और सभा की तो आज शहडोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंच रहे हैं। अभी 27 जून को ही प्रधानमंत्री भोपाल में थे और 26 जून को जगत प्रकाश नड्डा भोपाल पहुंच गए थे। इतने कम समय में प्रमुख नेताओं का मध्यप्रदेश में आना साफ जाहिर करता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश को लेकर गंभीर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले कुछ महीनों से अथक प्रयास कर रहे हैं। लोक-लुभावन घोषणाएं कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी लगातार दौरे कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व किसी भी प्रकार का रिस्क कर ना लेते हुए सक्रिय हो गया है। इसी तरह कांग्रेस में भी राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश को लेकर कुछ ज्यादा ही गंभीर है। कर्नाटक में जो टीम चुनाव अभियान में लगी थी उसको मध्यप्रदेश में भी लगा दिया है और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लगातार मैदानी दौरे कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी चिंता उनको सता रही है जिन्हें चुनाव लड़ना है क्योंकि अब तक जिस पैटर्न पर पार्टी के टिकट मिलते रहे हैं उस पैटर्न पर टिकट मिलना मुश्किल है। गुजरात और कर्नाटक में भी टिकट वितरण के फार्मूले में अंतर था। इस कारण प्रदेश में कौन सा पैटर्न लागू होगा, कहा नहीं जा सकता। हालांकि जीतने की क्षमता का पैटर्न हमेशा रहता है लेकिन जहां पार्टी अपनी दम पर किसी को भी चुनाव लड़ा कर जीता सकती है वहां पर व्यक्तिगत क्षमता की योग्यता भी कमजोर पड़ सकती है। राजनीति में कई तरह के बदलाव लाने वाले भाजपा के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह मध्यप्रदेश के लिए क्या योजना बना रहे हैं इस पर प्रधानमंत्री के साथ पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और संगठन मंत्री बी.एल. संतोष के साथ चर्चा हो चुकी है और अब आगे से क्रियान्वयन शुरू होगा। जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार और केंद्रीय पदाधिकारी की नियुक्ति में देखने को मिलेगा और उसका असर राज्य पर भी पड़ेगा और इसके बाद ही प्रदेश की राजनीति में चुनावी मोड़ आ जाएगा।
कुल मिलाकर पैटर्न बदलती राजनीति में किसको टिकट मिलेगा किसको नहीं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है। फिर भी हर हाल में जो चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं वे ही पैटर्न बदलती राजनीति में सरवाइव कर सकते हैं। अन्यथा आगे की राह मुश्किल भरी है क्योंकि अब तेरा – मेरा नहीं चलेगा जो अधिकतम समाज में स्वीकार्य होगा वही पाटियों को भी पसंद आएगा चाहे फिर पैटर्न कोई भी हो।