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‘कांग्रेस आएबे बारी है, भाजपा जाएबे बारी है’

पूरी तरह साफ़ हो गया है कि साढ़े चार महीने बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव मेंकांग्रेस आएबे बारी है, भाजपा जाएबे बारी है‘ प्रियंका ने अपने भाषण के अंत में जब ग्वालियरचंबल की स्थानीय बोली मेंआएबे बारीजाएबे बारी’ कहा तो लोगों में उन से निजी जुड़ाव का ऐसा उछाह नज़र आया, गोया लहरें आसमान की तरफ़ लपक रही हों। प्रियंका ने अपने भाषण की शुरुआत भी स्थानीय बोली में की। उन्होंने लोगों से कहा – ‘हमारी आप को रामराम।मैं पहले भी यहां आई हती पीतांबरा मैया के दरसन को।

शुक्रवार को ग्वालियर में हुई प्रियंका गांधी की जनसभा में उठी हिलोरों के संकेत जिन्हें नहीं समझने हैं, ख़ुशी-ख़ुशी न समझें, लेकिन अब यह पूरी तरह साफ़ हो गया है कि साढ़े चार महीने बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में ‘कांग्रेस आएबे बारी है, भाजपा जाएबे बारी है‘। प्रियंका ने अपने भाषण के अंत में जब ग्वालियर-चंबल की स्थानीय बोली में ‘आएबे बारी-जाएबे बारी’ कहा तो लोगों में उन से निजी जुड़ाव का ऐसा उछाह नज़र आया, गोया लहरें आसमान की तरफ़ लपक रही हों।

प्रियंका ने अपने भाषण की शुरुआत भी स्थानीय बोली में की। उन्होंने लोगों से कहा – ‘हमारी आप को राम-राम। … मैं पहले भी यहां आई हती पीतांबरा मैया के दरसन को। … इस क्षेत्र की वीरता की कहानियां मोए बचपन से पतो हैं। …’ प्रियंका के एक-एक लफ़्ज़ ने लोगों को दिली तरंगों से जोड़ने का ऐसा काम किया कि उन के उठाए मुद्दे अंतर्मन तक तैरने लगे। प्रियंका ने तमाम बुनियादी मसलों को एक नया आयाम दिया। उन्होंने पूछा कि क्या हमारी समूची राजनीति सिर्फ़ आरोप-प्रत्यारापों में ही फंसी रहेगी? क्या हम इस से आगे कोई बात नहीं कर सकते? क्या हम जनता के मुद्दों पर ठीक से चर्चा नहीं कर सकते?

प्रियंका की कही कुछ बातों पर ग़ौर कीजिए।

‘‘स्वतंत्रता के हमारे आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया था। राजनीति हमेशा से सत्य की लड़ाई है। हमारी परंपरा रही है कि हम नेताओं में सरलता, सादगी, सहजता और सच्चाई ढूंढते हैं। मगर आजकल एक दूसरे की बुराई का नाम राजनीति हो गया है। सब बस अवगुण गिनाते हैं। हम उनके गिनाते हैं, वो हम में अवगुण खोजते हैं। इसमें जनता के असली मुद्दे डूब जाते हैं।’’

‘‘दूसरों की आलोचना करना बहुत आसान है। राजनीतिक सभ्यता को कायम रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की होती है। दो दिन पहले विपक्ष की बड़ी बैठक हुई। लेकिन इस पर प्रधानमंत्री का बहुत आपत्तिजनक बयान आया। उन्होंने विपक्ष के सभी नेताओं और पार्टियों को सब धान ढाई पसेरी जैसा घोषित कर दिया। मणिपुर दो महीने से जल रहा है। महिलाओं के साथ भयावह अत्याचार हो रहे हैं। लेकिन उस पर  प्रधानमंत्री ने 77 दिनों तक कोई बयान नहीं दिया। एक भयावह वीडियो वायरल हुआ तो कल मजबूरी में उन्हें बोलना पड़ा। लेकिन उसमें भी उन्होंने राजनीति घोल दी।’’

‘‘अपने भाषण में मैं भी प्रधानमंत्री की आलोचना कर सकती हूं। शिवराज सिंह चौहान की सरकार के घोटालों की बात कर सकती हूं। आप के क्षेत्र के एक नेता की कैसे पूरी विचारधारा ही पलट गई, इस पर कह सकती हूं। लेकिन मैं ध्यान नहीं भटकाना चाहती। मैं आप के बुनियादी मुद्दों पर बात करने आई हूं। सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई है। मगर महंगाई का राज़ समझिए। महंगाई के बहाने दरअसल आप की कमर तोड़ी जा रही है। सिर्फ़ रोज़मर्रा के खाने-पीने की चीज़ें ही महंगी नहीं हुई हैं। घर की मरम्मत महंगी हो गई है। बच्चों के स्कूल की फीस भरना मुश्किल हो गया है। बरसात में छाता खरीदना मुश्किल है। बहनों पर सब से बड़ा बोझ है। वे किस तरह गुज़ारा कर रही हैं, कहा नहीं जा सकता। रसोई के लिए तेल खरीदना मुश्किल है। सिलेंडर में गैस भरवाना मुश्किल है। घर में कोई बीमार हो जाए तो घबराहट होती है कि दवाई कहां से लाऊं? ये परिस्थितियां जानबूझ कर बनाई गई हैं।’’

‘‘हर चुनाव में हर गांव-मुहल्ले में कोई नेता जाता है तो उस से कहिए कि जनता के मुद्दों पर बात करे। उस से पूछिए कि महंगाई क्यों है? बेरोज़गारी क्यों है? देश की पूरी संपत्ति एक दो लोगों को क्यों बेच दी? आप को रोजगार सरकारी कंपनियों से मिलता था। वे सब तो इन्होंने अपने दोस्तों को बेच दीं। आप को रोज़गार खेती से मिलता था, लेकिन किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलती। आप को रोज़गार सेना से मिलता था, लेकिन फ़ौज में भर्ती को मखौल बना दिया। अग्निवीर योजना ले आए। मुझे कई लोगों ने बताया कि इस योजना में भर्ती हुए लोग अपनी ट्रेनिंग अधूरी छोड़-छोड़ कर लौट रहे हैं। उन्हें लगता है कि जब चार साल बाद वापस ही आना है तो इतनी कड़ी ट्रेनिंग क्यों करें? आप को रोज़गार छोटे कारोबार से मिलता था। इन्होंने छोटे व्यवसाइयों को तबाह कर दिया। बड़े व्यवसाइयों को सारे धंधे सौंप दिए। जिस उद्योगपति को देश की सारी संपत्ति दे दी, वह 1600 करोड़ रुपए एक दिन में कमा रहा है और किसान 27 रुपए रोज़ नहीं कमा पा रहा। भौकाल की राजनीति है। देश का सच इसमें डूब रहा है।’’

‘‘मध्यप्रदेश की सरकार के घोटालों की लंबी सूची मेरे पास है। ढाई हज़ार घोटाले हैं इनके। पटवारी के इम्तहान में घोटाला हो गया। महाकाल में भगवान की मूर्तियों तक को नहीं छोड़ा। इन से पूछिए कि 18 साल से सरकार है आप की, कितनी सरकारी नौकरियां दीं आप ने? अब चुनाव के वक्त लंबी-चौड़ी योजनाएं घोषित करने से क्या फायदा है? 18 साल से तो आपने कुछ किया नहीं। 1600 युवा बेरोज़गारी की वज़ह से आत्महत्या कर चुके हैं। आप को आत्मनिर्भर नहीं, सरकार पर निर्भर बनाने का काम हो रहा है। मैं ने बहुत-से लोगों से पूछा कि मुफ़्त का राशन चाहिए या नौकरी? ग़रीब से ग़रीब ने भी कहा कि राशन नहीं चाहिए, नौकरी दो ताकि हम अपने पैरों पर खड़े हों।’’

‘‘जैसे इन्सान की जो नींव होती है, उसी तरह की उस की नीयत होती हे। वैसे ही सरकार का भी होता है। हमारी सरकार गिरा कर इन्होंने सरकार बनाई तो इसकी नींव ही गलत है। पैसे से खरीदी हुई सरकार है। तो वैसी ही नीयत है। सिर्फ पैसा, पैसा, पैसा। 18 साल सत्ता में रहने से अहंकार होता ही होता है। आसपास के साथी अधिकारी भी सच्चाई नहीं बताते। 18 साल में लगने लगता है कि सत्ता तो हमेशा ही अपने पास रहेगी। जब चुनाव आएगा ध्यान भटका देंगे, दूसरी बातें करने लगेंगे, जनता के जज़्बात भड़का देंगे। जनता भूल जाएगी बुनियादी मसले और फिर वोट मिल जाएगा। सत्ता की वजह से अहंकार है, आलस्य है। सत्ता का स्वभाव है कि वह इंसान की असलियत उभार देती है। सत्ता नेक इंसान को दो वह भलाई के काम करेगा। गलत हाथों में दे दो तो इसी तरह की लूट मचेगी जो आज आपके प्रदेश में मच रही है।’’

‘‘आप के प्रदेश में महिलाओं, आदिवासियों, दलितों पर भाजपा के नेता कैसे-कैसे अत्याचार कर रहे हैं। उन की एक-से-एक करतूतें सामने आई हैं। इसलिए आप को भविष्य के लिए बहुत बड़ा निर्णय करना है। आप में से कितनों को रोजगार मिला है? किसान भाई यहां हैं, क्या आप की ज़िंदगी बेहतर हुई है? रेहड़ी-पटरी वाले होंगे, छोटे व्यापारी होंगे, क्या ख़ुशहाली आई है? आप कितनी मेहनत करते हैं, लेकिन आपके हाथ में कुछ नहीं बचता। ये बड़े-बड़े बिजनेस वालों के साथ घूमते हैं। आपकी जेब में एक पाई नहीं बचती। ऐसा इसलिए है कि आपकी जागरूकता में कमी है। आप नेताओं से सही सवाल नहीं कर रहे हैं। आप नेताओं से सवाल कीजिए। पूछिए कि आपने 22 हजार घोषणाएं कीं, इनमें से कितनी पूरी कीं?’’

मैं ने प्रियंका की कही बातें जानबूझ कर इसलिए पूरे विस्तार से आप के सामने रखी हैं कि मुझे ग्वालियर में वे महज़ चुनावी आह्वान करने के बजाय राजनीति के बुनियादी विमर्श को नई दिशा देने की ताब ज़ाहिर करती दिखाई दीं। क्या यह देश के भावी सियासी नक्शे का सुखद संकेत नहीं है?

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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