भोपाल। अमित शाह की मौजूदगी में हुई बैठक के बाद नवागत चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव की अगुवाई वाली बैठक से प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने दूरी बनाई या वह आमंत्रित नहीं थे.. वजह जो भी रही हो लेकिन मुरलीधर उस बैठक का हिस्सा नहीं बने..जो अमित शाह की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए व्यवस्था और चुस्त चौकस ,प्रभावी और असरदार बनाने के लिए बुलाई गई थी..इस महत्वपूर्ण और बदलती भाजपा के बदलते चुनावी रोड मैप की पहली बैठक में नजर नहीं आने वाले राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जमवाल पहले भी शाह के साथ बैठक का हिस्सा नहीं बने थे.. कारण दिल्ली द्वारा तय किया गया क्राइटेरिया और संघ की पृष्ठभूमि और उनकी अपनी जिम्मेदारी मानी जा रही.. जिसने शायद प्रबंधन से दोनों को दूर रखा..प्रदेश प्रभारी मुरलीधर जरूर अमित शाह की बैठक थे.. मुख्यमंत्री शिवराज और अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के अलावा भाजपा में संघ के नुमाइंदे के तौर पर संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा जरूर चुनावी एजेंडे की रणनीति की महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए..
चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने के बाद पार्टी दफ्तर की इंटरनल पॉलिटिक्स यदि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के इर्द-गिर्द घूमने लगी है.. तो राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने जरूर दो दिन सभी महत्वपूर्ण बैठक का हिस्सा बनकर अपनी धमक का एहसास कराया है.. कार्यकर्ता की नब्ज और चुनाव की जरूरत को पहचानने वाले शिवराज सिंह और नरेंद्र सिंह की पुरानी जोड़ी के साथ चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव यदि समीक्षा बैठक और नई प्लानिंग के साथ सक्रिय हो चले हैं.. तो प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव उनकी सहयोगी सह प्रभारी पंकजा मुंडे ने यदि अघोषित तौर पर मध्यप्रदेश से दूरी बना ली तो दूसरे से प्रभारी रामशंकर कथेरिया अभी तक अपनी मौजूदगी का एहसास नहीं करा पाए.. चुनावी रोड मैप के लिए जरूरी रणनीति के तहत प्रबंधन को हर मोर्चे पर पुख्ता बनाने की कवायद के बीच जब पूरा फोकस मीडिया खासतौर से सोशल मीडिया पर नजर आ रहा..तब सोशल मीडिया की सबसे ज्यादा चिंता करने वाले प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव और उनका निजी प्रबंधन और निजी रुचि से आगे उनके चर्चित प्रयोग,उपयोग ही नहीं समय-समय पर विधायक मंत्रियों को दी जाने वाली सख्त चेतावनी अब उनकी गैरमौजूदगी में सवाल खड़े कर रहे हैं..
सवाल इसलिए क्योंकि प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने शिवराज की सरकार और विष्णु की भाजपा की दशा और दिशा का आकलन कर राष्ट्रीय नेतृत्व और प्रदेश के बीच निर्णायक भूमिका निभाई है.. सत्ता संगठन के बीच बेहतर समन्वय का अभाव हो या उपजी समस्या का समय रहते समाधान नहीं निकाल पाना यह मुरलीधर से छुपा नहीं .. पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने यदि ऐसी तमाम चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भूपेंद्र और अश्विनी को अमित शाह के साथ भेजा तो क्या समय रहते हो मुरलीधर क्या इन समस्याओं से पार्टी को बाहर नहीं निकल पाए थे.. भूपेंद्र यादव ने नरेंद्र सिंह और अश्वनी वैष्णव, विष्णु दत्त की मौजूदगी में मीडिया प्रवक्ताओं से संवाद और सवाल-जवाब के बीच जो सवाल खड़े किए वह यह बताने के लिए काफी है कि अभी तैयारियां आधी अधूरी है.. चाहे फिर वह मुद्दों की समझ हो, परिचय का तौर तरीका, भाजपा और कांग्रेस द्वारा बनाए जा रहे नैरेटिव, भ्रष्टाचार का मुद्दा, मोदी का एजेंडा, भोपाल से आंकड़ों के साथ शुरू की गई मुहिम.. भोपाल के प्रिंट मीडिया से जुड़े अखबारों का सरकुलेशन, टीवी चैनल के डिस्कशन उसमें शामिल होने वाले प्रवक्ताओं की समझ और भी बहुत कुछ समझाइश की आड़ में भूपेंद्र यादव ने आईना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.. अखबारों में संपादकीय वह भी भाजपा से जुड़ी की जानकारी मांग कर भूपेंद्र ने इशारा कर दिया कि न सिर्फ मुद्दों की समझ विकसित करना होगी बल्कि अखबार और न्यूज़ चैनलों में समुचित स्थान दिलवाकर उस पर संपादकीय और टीवी की बहस भी सुनिश्चित कराना होगी.. मीडिया टीम में परफॉर्मेंस के आधार पर शायद पुराने अनुभवी के साथ नए चेहरों को शामिल करने का समय आ गया है..
भाजपा सरकुलेशन वाले अखबार और न्यूज़ चैनलों की जनता में पहुंच तक सीमित होकर रह गई.. कुल मिलाकर भूपेंद्र सिंह ने अपने इरादे समझ सामने रखकर मीडिया और सोशल मीडिया दोनों को संदेश दे दिया है.. सोशल मीडिया के नीति निर्धारक हो या कर्ता-धर्ता पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत पसंद तक सिमट कर रह गए थे.. उनके अपने फॉलो वर पर भी सवाल खड़े हो चुके.. नरेंद्र सिंह ने जरूर अपने नेता मोदी शाह के उद्बोधन उनके निर्देश उनकी अपेक्षाओं को गंभीरता से लेने का पाठ पड़ा हौसला जरूर बढ़ाया.. यह सब कुछ मुरलीधर की गैरमौजूदगी के बावजूद उनकी प्रदेश भाजपा के प्रति दायित्व पर सवाल खड़ा करने के लिए काफी था..ऐसी सभी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने की कवायद भूपेंद्र द्वारा शुरू की गई.. भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेसी लेकिन कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता जब यह कहते थे कि भाजपा को भाजपा से ही खतरा.. तो प्रदेश स्तर से जिला और मंडल स्तर पर गुटबाजी मनमानी का कारण मत भिन्नता ही माना गया.. मुरलीधर क्या इन स्थितियों से भाजपा को बाहर नहीं निकाल पाए.. तो फिर इसकी वजह क्या.. वह खुद खेमे बाजी को बढ़ावा देकर पार्टी बन गए.. या उनकी किसी ने सुनी नहीं या फिर उनको इससे कोई लेना-देना नहीं वह अपना एजेंडा आगे बढ़ाते रहें.. क्योंकि गाहे-बगाहे ही सही अध्यक्ष महामंत्री हो या अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच मत भिन्नता की जो खबरें सामने आती रही क्या इसके लिए मुरलीधर की नीति और नियत जिम्मेदार मानी जाएंगी..चुनाव की कमान जब भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव के हाथ में तो फिर मुरलीधर के अभी तक के अनुभव उनकी उपयोगिता को क्या संगठन ने नजरअंदाज कर भुला दिया है..
ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर के प्रबंधन की कमान संभालने के बाद भूपेंद्र और अश्विनी की मौजूदगी में हुई बैठकों के इस दौर में मुरलीधर की गैरमौजूदगी आखिर क्या कहती है.. सवाल चुनावी बिसात नए सिरे से बिछाने को आखिर हाईकमान मध्यप्रदेश में मजबूर क्यों हुआ.. बतौर प्रदेश प्रभारी मुरलीधर की भूमिका से अमित शाहऔर नड्डा क्या संतुष्ट नहीं है या फिर भूपेंद्र को अब मुरली की मेहनत और दूरदर्शिता पर भरोसा नहीं रहा.. मुरलीधर राव ने मध्य प्रदेश के दूसरे प्रभारियों की तुलना में एक अलग लाइन पर आगे बढ़ते हुए न सिर्फ यहां अपना स्थाई अलग ठिकाना बनाया .. बल्कि राजनैतिक दांवपेच को ध्यान में रखते हुए चुनावी प्रबंधन की मनमर्जी से एक नई बिसात भी बिछाई.. अपनी सुविधा से वह मीडिया से मिलते रहे और उसका उपयोग भी किया.. एक समय ऐसा आया जब भोपाल के प्रदेश दफ्तर में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस बंद कर दी गई तो प्रदेश के दौरे के दौरान उन्होंने अपने विवादित बयानों से खूब सुर्खियां बटोरी.. राज्य का दौरा भी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण भी नेताओं मंत्रियों को नसीहत भी संदेश यही दिया कि टिकट दिलवाने में उनका क्राइटेरिया और वह निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में वह बात और है कि बतौर प्रभारी जिम्मेदारी से ज्यादा सोशल मीडिया उनकी पहली प्राथमिकता बन गया.. सवाल क्या बदलती व्यवस्था खासतौर से भूपेंद्र की एंट्री के साथअब उनकी उपयोगिता और प्रभाव दोनों संदेह के घेरे में..ये सवाल इसलिए खड़े हो जाते हैं क्योंकि शाह के भरोसेमंद प्रमुख सिपहसालार भूपेंद्र यादव से मुरलीधर की अंडरस्टैंडिंग से ज्यादा प्रतिस्पर्धा चर्चा में है… एक चुनाव प्रभारी तो दूसरा प्रदेश का प्रभारी.. कभी संगठन की टीम में राष्ट्रीय स्तर पर दोनों नितिन गडकरी, अमित शाह, जेपी नड्डा की टीम में कई महत्वपूर्ण पदों के साथ महासचिव की भूमिका निभाते रहे.. मुरलीधर यदि संघ की पृष्ठभूमि के उनकी पसंद तो भूपेंद्र ने मोदी शाह की भाजपा में पहले संगठन और फिर मंत्रिमंडल में अपनी उपयोगिता साबित की..
भूपेंद्र केंद्र में मंत्री और इसके लिए राज्यसभा सांसद ही नहीं बनाए गए बल्कि 2024 को ध्यान में रखते हुए 2023 की जमावट में मोदी शाह और नड्डा ने भूपेंद्र को मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के चुनाव की कमान सौंपी है.. वह बात और है कि भूपेंद्र के अपने राजस्थान भी मध्यप्रदेश के साथ चुनाव है और उनके सहयोगी अश्विनी वैष्णव भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में राजस्थान का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.. छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहते ओम प्रकाश माथुर को राज्य का प्रभारी बना उसी राजस्थान से चुनाव के लिए दूर कर दिया गया.. चुनाव तेलंगाना में भी है जहां का प्रतिनिधित्व मुरलीधर राव करते हैं और मध्य प्रदेश के प्रभारी की भूमिका उन्हें बहुत पहले सौंप दी गई.. लेकिन चुनावी रोड मैप को आगे बढ़ाने के लिए ना तो उन्हें मध्यप्रदेश में ओमप्रकाश की तर्ज पर चुनाव प्रभारी बनाया गया और ना ही उन्हें अभी तक ग्रह राज्य तेलंगाना वापस भेजने का भी ऐलान किया गया है.. भूपेंद्र की अगुवाई वाली पहली बैठक से दूरी बनाए जाने की चर्चा के बीच मुरलीधर राव की नई भूमिका को लेकर नए सवाल खड़े हो रहे हैं.. क्या मोदी मंत्रिमंडल के साथ नड्डा की पुनर्गठित टीम में मुरलीधर मध्य प्रदेश के प्रभारी की भूमिका निभाते रहेंगे या फिर कोई नया दायित्व उन्हें सौंपा जाएगा.. पार्षद से लेकर विधायक और सांसद का कोई चुनाव अभी तक नहीं लड़ने वाले मुरलीधर राव क्या तेलंगाना इलेक्शन में इस बार टिकट हासिल करने की दौड़ में सक्रिय हो चुके हैं.. चुनाव लड़ेंगे या लड़ाएंगे ..आखिर मुरलीधर मध्य प्रदेश के चुनाव प्रबंधन की बैठकों से दूरी क्यों बना रहे.. चुनाव संचालन के लिए अपराधी से के स्तर पर जिन समितियों का ऐलान होना है क्या उसमें मुरलीधर की राय कोई मायने नहीं रखती है.. क्या इससे भूपेंद्र और मुरलीधर के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षाओं की टकराहट यानी पावर पॉलिटिक्स से जोड़कर देखा जाए..
या फिर पार्टी के अंदर संकट भरोसे का निर्मित हो गया है.. यदि सारी आशंकाएं बेमानी है तो फिर मुरलीधर सोशल मीडिया के फोरम पर अपनी उपलब्धियों को सामने रखने में क्यों चूक गए.. लगभग 2 साल के प्रदेश प्रभारी के कार्यकाल में अपनी उपलब्धियां और चुनौतियों से चुनाव प्रभारी भूपेंद्र को अवगत क्यों नहीं कराते.. क्या सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव को सोशल मीडिया के मोर्चे पर दिल्ली भोपाल के बीच बेहतर तालमेल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है..प्रभारी मुरलीधर ने मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरी चाहे वह अटपटे विवादित बयान हो या फिर उनका अति सोशल मीडिया प्रेम.. वह भी तब जब भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा निजी एजेंसियों के माध्यम से मीडिया प्लान खासतौर से प्रबंधन के मोर्चे पर बहुत आगे बढ़ चुकी है.. इनमें संगठन और सरकार से ज्यादा कुछ नेताओं की विशेष रूचि से भी इनकार नहीं किया जा सकता.. जिसमें अपनों को उपकृत करना भी शामिल माना जा रहा.. मुरलीधर के अपने तेलंगाना में विधानसभा चुनाव को पार्टी नेतृत्व ने जब चुनौती के तौर पर ले रखा है.. तब मुरलीधर का मध्यप्रदेश प्रेम गौर करने लायक है.. प्रदेश प्रभारी के तौर पर मुरलीधर की मध्य प्रदेश भाजपा की दशा और दिशा का आकलन कर चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव और सह प्रभारी अश्वनी वैष्णव दिल्ली लौट चुके हैं.. तो चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने वाले नरेंद्र सिंह तोमर ने भोपाल में डेरा डाल लिया.. भूपेंद्र जब मुरलीधर की गैरमौजूदगी में संगठन के फीडबैक से दिल्ली में अमित शाह को अपनी रिपोर्ट से अवगत कराएंगे..
तो उसके बाद कई फैसले मध्यप्रदेश में सामने आ सकते.. तब देखना दिलचस्प होगा मुरलीधर की जमावट और उनकी अपनी व्यक्तिगत भूमिका किस रूप में इस चुनाव के लिए सामने आती है.. देखना यह भी दिलचस्प होगा भूपेंद्र यादव , अश्विनी वैष्णव की किस फोरम पर और कब शिव प्रकाश और अजय जामवाल से चुनावी चर्चा होती है.. क्योंकि अमित शाह के दौरे और उसके बाद बैठकों के दौर से स्पष्ट संकेत चुनाव के प्रबंधन और उसकी जमावट का जा चुका है.. लेकिन मोदी मंत्रिमंडल के पुनर्गठन और जेपी नड्डा की टीम में मध्य प्रदेश के नेतृत्व की जमावट का भी सभी को इंतजार है.. नरेंद्र तोमर के साथ कैलाश विजयवर्गीय की संगठन के फोरम पर दिलचस्पी और भोपाल में नया ठिकाना जरूर चर्चा में आ चुका है.. अभी प्रहलाद पटेल और नरोत्तम मिश्रा जो अमित शाह के साथ बैठक का हिस्सा बने थे उनकी भूमिका का भी खुलासा होना बाकी है.. शायद इसके बाद ही स्थिति और स्पष्ट हो सकेगी और शिवराज की विकास यात्राओं के बाद चुनावी जमावट रैली प्रदर्शन सभाओं के साथ सामने आएगी ..तो सोशल मीडिया पर मोर्चाबंदी जरूर नई बहस छेड़ चुकी होगी…