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राष्ट्रवाद इस बार तीसरे नंबर पर

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछला यानी 2019 का लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा था। चुनाव की घोषणा से ऐन पहले पुलवामा कांड हुआ, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के एक काफिले पर भीषण आतंकवादी हमला हुआ था। उस हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद भारत सरकार ने बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक किया। सो, पूरा चुनाव एक इसी मुद्दे पर शिफ्ट कर गया था। प्रधानमंत्री मोदी की सभाओं तक में शहीद जवानों की फोटो लगा कर वोट मांगे गए थे। राष्ट्रवाद का ऐसा ज्वार उठा कि पांच साल के शासन में जो कुछ भी सत्ता विरोधी माहौल बना था वह उसमें बह गया।

राष्ट्रवाद की इस लहर पर जीत कर आई नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का बड़ा फैसला किया। न सिर्फ इस अनुच्छेद को खत्म करके जम्मू कश्मीर का दर्जा बदला गया, बल्कि राज्य का विभाजन कर दिया गया। यह आमतौर पर माना जाता था कि अनुच्छेद 370 खत्म नहीं हो सकता है। लेकिन भाजपा की सरकार ने वह कर दिखाया। उसके बाद सिर्फ यह प्रचार नहीं होता है कि भाजपा ने अनुच्छेद 370 समाप्त किया, बल्कि इसको ऐसे कहा जाता है कि भाजपा ने जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाया। हाल में तमिलनाडु के दौरे पर गए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वहां की रैली में कहा कि मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाया। भाजपा ऐसे प्रचार करती है, जैसे कश्मीर पहले पूरी तरह से भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन मोदी सरकार ने वह कर दिखाया।

इस बार भी यह संभावना जताई जा रही है कि चुनाव से पहले कुछ ऐसा हो सकता है, जिससे राष्ट्रवाद का ज्वार उठे। चीन के साथ लगती सीमा पर जिस तरह से तैयारियां चल रही हैं या जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के साथ साथ एनआईए की जैसी कार्रवाई चल रही है, उसे देखते हुए सीमा पर किसी बड़ी कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रवाद को भाजपा का सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा मानने वाले कई लोग यह अनुमान भी लगा रहे हैं कि बुरी तरह से कमजोर पड़ रहे पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी स्ट्राइक हो सकती है। सोशल मीडिया में इस बात की चर्चा चलती है कि पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में मिलाया जा सकता है। हालांकि चुनाव से पहले इस तरह की दुस्साहसी कार्रवाई नुकसानदेह भी हो सकती है। वैसे हिंदुत्व और नरेंद्र मोदी की विश्वगुरू वाली छवि इतनी मजबूत बनाई जा रही है कि शायद इस बार राष्ट्रवाद के किसी उकसाने वाले मुद्दे की जरूरत नहीं लगे। तभी इसके तीसरे स्थान पर रहने की संभावना है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति, आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई, अमृतपाल जैसे सिख कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई आदि के ऐसे मुद्दे हैं, जो चुनाव के समय प्रचार के केंद्र में रहेंगे। मोदी को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी और विपक्षी नेताओं को देशविरोधी ठहराने का प्रचार चलता रहेगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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