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अपने-अपने रहस्यों का ‘कोहरा’

सुविंदर विकी

हमारी फिल्मों और वेब सीरीज़ में पिछले कुछ सालों से एक बड़ा अंतर आया है। अब कहानी या स्क्रिप्ट पात्रों के चरित्र चित्रण की बारीकियों में, उसकी तहों में जाने लगी है। इसीलिए अब कोई पात्र केवल अच्छा नहीं है और केवल बुरा भी नहीं है। उसके चरित्र की परतें बताती हैं कि वह क्यों अच्छा है और क्यों और कहां बुरा है।

 परदे से उलझती ज़िंदगी

मूल रूप से पंजाबी सिनेमा के कलाकार सुविंदर विकी ने ‘उड़ता पंजाब’ और ‘केसरी’ जैसी फिल्मों में और फिर वेब सीरीज़ ‘कैट’ में भी मार्के का काम किया था। लेकिन नेटफ़्लिक्स पर हाल में आई वेब सीरीज़ ‘कोहरा’ में उनके काम ने पंजाब से लेकर मुंबई तक हलचल मचा दी है। इस सीरीज़ में बरुन सोबती, हरलीन सेठी, रेचेल शैली, वरुण बडोला, मनीष चौधरी आदि भी हैं और ऐसा बहुत कम होता है कि किसी सीरीज़ की स्क्रिप्ट, उसका निर्देशन, उसके कलाकारों का अभिनय और माहौल, सभी कुछ स्तरीय हो।

अब जरा सुविंदर विकी के बारे में सोचिए। इस सीरीज़ को देख अनुराग कश्यप ने उनकी तारीफ़ की। हंसल मेहता ने बाकायदा फोन करके उन्हें बधाई दी और करण जौहर ने तो कहा कि सुविंदर विकी की खामोशी लाखों स्क्रिप्टों को जन्म दे सकती है। यह टिप्पणी जिस अभिनेता के लिए की गई है वह दो दशक से नाटकों और फिल्मों में काम कर रहा है और उनचास बरस का हो चुका है। मगर किसी को पहले से पता नहीं होता कि उसके कौन से काम से उसे क्या मिलने वाला है। खुद सुविंदर अपनी इस प्रशंसा से हैरान हैं और अब उनका मानना है कि सफलता की कोई उम्र नहीं होती।

हमारी फिल्मों और वेब सीरीज़ में पिछले कुछ सालों से एक बड़ा अंतर आया है। अब कहानी या स्क्रिप्ट पात्रों के चरित्र चित्रण की बारीकियों में, उसकी तहों में जाने लगी है। इसीलिए अब कोई पात्र केवल अच्छा नहीं है और केवल बुरा भी नहीं है। उसके चरित्र की परतें बताती हैं कि वह क्यों अच्छा है और क्यों और कहां बुरा है। यही नहीं, उसका कोई तीसरा, चौथा या पांचवां पक्ष भी हो सकता है। फिल्मी कहानियों के पुराने ढर्रे के हिसाब से सोचें तो अब स्क्रिप्ट अपने पात्रों की निजता पर अतिक्रमण कर रही है। उसकी निजता को खंगाल रही है। लेकिन यही तो एक रास्ता है परदे के पात्रों को इन्सान के करीब ले जाने का।

‘कोहरा’ को सुदीप शर्मा ने बनाया है जिन्हें अब तक ‘पाताल लोक’ के लिए जाना जाता था। मगर सबसे महत्वपूर्ण चीज यानी निर्देशन रणदीप झा का है जबकि स्क्रीनप्ले डिग्गी सिसोदिया और गुंजीत चोपड़ा ने लिखा है। कोई एनआरआई परिवार एक शादी के लिए पंजाब के एक गांव में लौटा है जहां उसके बेटे की हत्या हो जाती है और उसका गोरा दोस्त लापता हो जाता है। सुविंदर विकी और बरुन सोबती वे दो, सीनियर और जूनियर, पुलिसवाले बने हैं जिन पर इस वारदात की छानबीन जल्दी खत्म करने का दबाव है। जैसे-जैसे वे मामले की गहराई में उतरते हैं वैसे-वैसे मृतक लड़के के परिजनों और दोस्तों के रहस्यों और परिवार के झूठ का पुलिंदा खुलता चला जाता है।

अपराध के समाजशास्त्र जैसा। लेकिन इस केस और संबंधित परिवार के जितने रहस्य सामने आते हैं उतने ही सुराग इन दोनों पुलिसवालों की निजी जिंदगी के भी पता लगते जाते हैं। असल में, हमने अब जो दुनिया बना ली है उसमें हर व्यक्ति  अपने काम में बेहतर प्रदर्शन करने के दबाव में है। इसी के साथ अपने परिवार और खुद से जुड़े अन्य लोगों की आकांक्षाओं का बोझ भी उस पर है। कुछ लोग इन दोनों ही मोर्चों पर खुद को नाकामी से घिरा पाते हैं। और तब संवाद बौने पड़ जाते हैं। चुप्पी ज़्यादा बोलती हुई लगती है।

इस सीरीज़ के साथ ही डिज़्नी हॉटस्टार पर ‘द ट्रायल – प्यार, कानून, धोखा’ रिलीज़ हुई। यह काजोल की पहली वेब सीरीज़ है जो कि अमेरिकी शो ‘द गुड वाइफ़’ पर आधारित है और इसके निर्माताओं में उनके पति अजय देवगन भी शामिल हैं। एक जज साहब मुकदमों में महिलाओं से सेक्सुअल रिश्वत मांगने में पकड़े जाते हैं और जेल भेज दिए जाते हैं। उनकी पत्नी जिसने परिवार की खातिर दस साल पहले वकालत छोड़ दी थी, उसके लिए पति की इस बेईमानी से बड़ा कोई झटका नहीं हो सकता था। मगर परिवार को चलाने के लिए वह फिर प्रेक्टिस में लौटती है और आखिरकार पति को भी छुड़ा लेती है। काजोल के साथ इसमें जिशु सेनगुप्ता ,  शीबा चड्ढा , ऐले खान ,  कुबरा सैत  और गौरव पांडे भी दिखते हैं। इस सीरीज़ को भी खासा पसंद किया जा रहा है। यह अलग बात है कि हुसैन दलाल और अब्बास दलाल की लिखी इस सीरीज़ में कई जगह कहानी अचानक कई डग एक साथ भर लेती है, जैसे वह कूद कर आगे बढ़ गई हो।

लेकिन इस सीरीज़ की चर्चा एक अन्य वजह से ज़रूरी है। अपने देश में न्यूज़ चैनलों का जो हाल हो गया है उसकी झलक इस सीरीज़ में भी देखी जा सकती है। आज के अपने कई वास्तविक ऐंकरों की तरह इसमें भी एक ऐंकर को अपने पेशे की तमाम मर्यादाएं लांघते हुए दिखाया गया है। यहां तक कि वह अदालत को भी नहीं बख्शता और आखिरकार खुद एक मुकदमे में फंस जाता है। जो कुछ भी उसने किया था उस पर उसे वैसे भी सज़ा मिलनी चाहिए थी। लेकिन अदालत में वह सीधे नहीं हारता। उसे हराने के लिए उसके वकील की एक बीमारी का सहारा लिया गया है। पता नहीं अजय देवगन ने यह कमी क्यों छूट जाने दी। मगर ऐसा करके उन्होंने एक अवसर गंवा दिया।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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