Mohan Bhagwat RSS: संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नरेंद्र मोदी को लक्षित कर वह सब कहा, जिसकी कल्पना नहीं थी। और भागवत ने एक शब्द गलत नहीं बोला। लेकिन नरेंद्र मोदी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। उनका मोहन भागवत और संघ की उपेक्षा का वह रूख कायम है, जो चार-पांच वर्षों से है। इस रूख को खुद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव के अधबीच में यह कहते हुए जाहिर किया था कि बीजेपी को ‘अब संघ की जरूरत नहीं है। बीजेपी राजनीतिक फैसले लेने में सक्षम है’!
उनका बयान न केवल संघ को औकात दिखाना था, बल्कि मोहन भागवत और उनके पदाधिकारियों को पहले से ही दो टूक मैसेज था कि चुनाव नतीजे कुछ भी आएं मोदी को संघ से विचार की जरूरत नहीं है। और नरेंद्र मोदी को बाद में संघ तो क्या भाजपा में भी अपने को वापिस नेता चुनाने की जरूरत नहीं हुई। क्यों? इसका जवाब मोहन भागवत के झारखंड के बिष्णुपुर में कहे गए इन शब्दों से जाहिर हैं, ‘मनुष्य की भूख है जो वह सुपरमैन, अलौकिक, अति मानव, देव, देवता और भगवान बनना चाहता है।.. और भगवान कहता है कि मैं तो विश्वरूप हूं।.. विश्व में व्याप्त बिना आकार का रूप हूं। वो असली मैं हूं’।…
और निःसंदेह नरेंद्र मोदी मूर्खों की दुनिया के भगवान हैं। याद करें 14 मई 2024 को वाराणसी में उन्होंने क्या कहा? अपनी अजैविक दिव्यता की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया, ‘पहले जब तक मां जिंदा थी मुझे लगता था कि शायद बॉयोलोजिकल मुझे जन्म दिया गया है। मां के जाने के बाद मैं कन्विन्स हो चुका हूं कि परमात्मा ने मुझे भेजा है। ये ऊर्जा बायोलॉजिकल शरीर से नही मिली है, मैं एक इंस्ट्रूमेंट हूं…. और इसलिए मैं जब भी कुछ करता हूं तो मैं मानता हूं शायद ईश्वर मुझसे करवाना चाहता है’।…
अब जब नरेंद्र मोदी स्वंय ईश्वर या ईश्वरीय दूत हैं तो उनके आगे भला मोहन भागवत और संघ के प्रचारकों की क्या औकात। उन्हें तो घंटा बजाना ही है। इसलिए मोदी यदि संघ को मनुष्यों की एक डफर जमात मान उन्हें तुच्छ, अज्ञानी समझें तो क्या गलत। मोदी लौकिक और अलौकिक दोनों मायनों में मोहन भागवत और संघ को अपना भंडारा मानते होंगे। लौकिक मायने में इस कारण क्योंकि नरेंद्र मोदी में यह भी अहंकार होगा कि यदि वे संघ में ही रहते तो वे अभी सर संघचालक होते और भागवत उनके अधीनस्थ। इसलिए मोहन भागवत और उनकी टीम तो वैसे भी उनकी जूनियर! इनसे क्या सलाह करना। अलौकिक पहलू यह है कि वे भगवान हैं और भागवत को उनकी भागवत कथा पढ़नी चाहिए न कि अहसानफरामोशी में मीनमेख निकालना।
हां, मोदी का यह अहंकार सही है कि उनकी कृपा से मोहन भागवत और प्रचारकों की सुरक्षा है। सत्ता का रूतबा है। वे सत्ता भोग रहे हैं। सत्ता का जलवा है। साक्षात भगवान की कृपा है तभी तो अंबानी ने भागवत को भी बुलाया। खाना खिलाया। इस सबके बदले इन अहसानफरामोशों को नागपुर के अपने मुख्यालय में नरेंद्र मोदी की मूर्ति लगवानी थी या नहीं? उन्हें भगवान घोषित कर उनका प्रचार करना था या नहीं?
लेकिन उलटे मोहन भागवत उन्हें इंसान बनने की नसीहत दे रहे हैं! तब भगवान ऐसे तुच्छ मानवों की क्यों सुनें! उनकी क्यों चिंता करें।
इसलिए गतिरोध है। और मोदी नाम भगवान की लीला से मोहन भागवत एंड पार्टी फड़फड़ाई हुई है। सत्ता लीला के भगवानश्री मोदी सत्ता के क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर शांत मुद्रा में आराम से लेटे हुए हैं। लक्ष्मी पुत्र अडानी-अंबानी उनके पांव दबा रहे हैं। और हनुमान अमित शाह और गुरू शुक्राचार्य सुरेश सोनी के फन उनकी और से सृष्टि याकि भारत भूमि को संभाल रहे हैं।
लीला की इस कलियुगी तस्वीर में आप सुरेश सोनी के नाम पर चौंक सकते हैं। ये संघ के गुरू घंटाल हैं। व्यापम कांड के समय चर्चित रहे सुरेश सोनी पुराने प्रचारक हैं। कभी सोनी गुजरात में होते थे। और एक वक्त शायद बतौर विभाग प्रमुख उन्हें मोदी रिपोर्ट किया करते थे। सोनी ने सन् 2013 में मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने में अहम रोल अदा किया था। दोनों का सरोकार ओबीसी राजनीति थी और है। और ये दोनों संघ के नागपुर में बैठे ब्राह्मण चेहरों के प्रति क्या भाव रखते हैं, यह मोदी राज की हकीकतों से प्रगट होता हुआ है। कभी सुरेश सोनी का मध्य प्रदेश में दबदबा था। उनका शिवराज सिंह चौहान को स्थापित करने में रोल था। व्यापम घोटाले का जब हल्ला हुआ और बेचारे प्रभारी मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा घिरे तो सुरेश सोनी भी विवादों में आए। तब सुरेश सोनी और शिवराज सिंह में कुछ दुराव बना था। बेचारे लक्ष्मीकांत जेल गए, असामयिक मरे। उनसे मेरी मुलाकात थी। और उनके प्रति निष्ठुरता, यूज एंड थ्रो को सुना और जाना तो एक प्रचारक की मनोवृत्ति पर मैंने बहुत सोचा था।
बहरहाल सुरेश सोनी फिर दिल्ली रहने लगे। पर्दे के पीछे से संघ में मोदी के नाम पर राय बनाने की 2013 की भूमिका के बाद सुरेश सोनी ही अकेले थे जिनका दरबार में चुपचाप गुरू शुक्राचार्य वाला मौन रोल बना। मोदी को ओबीसी राजनीति के पैंतरे बताए। संघ में उनकी यह कुंठा होगी कि वे सह सरसंघचालक भी नहीं बने। वे संघ के सत्ता में भेदिए बने तो मोदी और संघ के बीच सेतु भी। तभी संघ को मोदी-सोनी बहुत सस्ते में निपटाते रहे हैं।
जैसे हाल में मोदी सरकार ने संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने के पुराने आदेश को वापिस लेने का जो टुकड़ा भागवत एंड पार्टी के आगे फेंका, वह सिर्फ इस मैसेजिंग में था कि भागवत जहां इतना बोल रहे हैं वही मोदी सरकार संघ का कितना ख्याल कर रही है। जबकि जानकारों के अनुसार संघ ने इस मामले में कभी बात नहीं की थी। ऐसे ही हाल में अमित शाह की बिना जानकारी के जो मुख्यमंत्री बने, उनमें सोनी का जहां मौन रोल था वही संघ को उन्होंने अंधकार में रखा था।
सुरेश सोनी अभी भी मानते है कि मोदी हैं तो मुमकिन है। वे रियल भगवान हैं। इसलिए उन्हें रिटायर नहीं होना है। 2034 तक राज करना है। वे संघ की मशीनरी का इस्तेमाल करते रहेंगे। पुराने चेहरों को राज्यपाल जैसे पदों पर बैठा कर संघ में नीचे कंफ्यूजन बनाए रखेंगे। तभी मोहन भागवत एंड पार्टी में हिम्मत नहीं है जो वह उद्धव ठाकरे के यहां जा कर चाय पीयें या नितिन गडकरी के पीछे अपना दम लगाएं। कोई न माने लेकिन अपना मानना है कि मोदी भले अमित शाह को अपना हनुमान समझें लेकिन वे चाणक्य सुरेश सोनी को मानते हैं जो सिर्फ और सिर्फ उनके प्रधानमंत्रित्व के लिए संकल्पित हैं। तभी संघ के किसी व्यक्ति के लिए यदि मोदी के दरवाजे खुले हैं तो वह सुरेश सोनी हैं। सोनी ने अपनी मनचाही नियुक्तियां करवाई हैं। सत्य यह भी है कि मोहन भागवत और उनके प्रचारक इन दिनों पूरी तरह सुरेश सोनी पर इस काम के लिए आश्रित हैं कि वे जा कर मोदी से बात करें।
फालतू बात है कि मोदी-संघ के बीच अमित शाह वाया मीडिया हैं। मोदी ने संघ पदाधिकारियों को जैसी हैसियत दिखलाई है तो अमित शाह ने बहुत पहले समझ लिया था कि आरएसएस और मोहन भागवत की टीम कागजी है। बिना जुबान के है। कथित अनुशासन की आड़ में भयाकुल व कायरों की जमात है। किसी की भी सत्ता में बैठे सत्ताधारी से जवाब तलब करने की हिम्मत नहीं।
इसलिए मोदी ने संगठन और संघ को लौकिक रूप में अमित शाह के सुपुर्द किया हुआ है तो अमित शाह ने भी इनके प्रति वही व्यवहार बना रखा है जो नरेंद्र मोदी का है। संघ के संगठन मंत्रियों, बीएल संतोष, प्रदेश संगठन मंत्रियों, भाजपा प्रभारी प्रचारकों सभी की अमित शाह के यहा वही हैसियत है जैसे मंदिर (सत्ता के) के बाहर खड़े भिखारियों की होती है। अमित शाह उनके साथ बैठकें कर लेंगे, उन्हें सुन लेंगे, नाम जानेंगे और करेंगे वही जो मोदी कहेंगे या खुद चाहेंगे। तभी लोकसभा के पिछले चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में संघ की ओर से जितने नाम गए उन्हें अमित शाह ने अपने स्तर पर ही कूड़ेदानी में फेंका। सब कुछ मोदी-शाह की प्राइवेट सर्वे टीम से तय हुआ। सामूहिक विचार-विमर्श जैसी कोई बात नहीं।
और नतीजे आए तब भी बात नहीं। समीक्षा नहीं। नरेंद्र मोदी ने बिना संसदीय बैठक के खुद ही अपने आपको नेता बना लिया। न कैबिनेट के लिए और न जेपी नड्डा के बाद अध्यक्ष के लिए संघ की राय जानी।
संदेह नहीं मोदी के दो टर्म पूरे होने और चुनाव नतीजों से मोदी, सुरेश सोनी, अमित शाह और संघ सभी तरफ कई तरह की उधेड़बुन हैं। मोदी के यहां सुरेश सोनी की सलाह बढ़ गई लगती है। विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्रियों के चयन, कैबिनेट, राज्यपालों की नियुक्तियों में सुरेश सोनी की उधेड़बुन झलकती दिखती है तो अमित शाह अपने उन सभी प्रतिद्वंदियों को ठिकाने लगाने के जतन में हैं जो आगे उन्हें बनने नहीं दें। उन्हें योगी आदित्यनाथ को हटाना है तो येन-केन प्रकारेण यह हवा बनानी है कि मोदी के लिए, हिंदुओं के लिए और विरोधियों से लड़ने का किसी में दम है तो वह अकेले अमित शाह में है।
पर मोदी के यहां अमित शाह का सिर्फ उपयोग है। मैं पहले भी लिख चुका है कि गुजराती नरेंद्र मोदी अपने बाद दूसरे गुजराती का प्रधानमंत्री बनना कतई नहीं चाहेंगे। तभी गुजरात की प्रदेश राजनीति में भी आनंदीबेन की चली और वहा सब कुछ अभी भी मोदी द्वारा ही संचालित है। फिर सुरेश सोनी का भी अमित शाह को लेकर रूझान नहीं है। इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनवाने के बाद चुपचाप शिवराज सिंह चौहान में गैस भर कर उन्हें दिल्ली में कृषि मंत्रालय में बैठाया। और अब वे उनकी योगी आदित्यनाथ (जो सीएम बने रहेंगे) से बात करवा रहे हैं तो प्रदेशों में भागदौड़ की जिम्मेवारी भी दिला रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान क्योंकि गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुनादास हैं तो वे मोहन भागवत के लिए भी ठीक होंगे तो सुरेश सोनी के तो चेले हैं ही। इसलिए सोनी हर हाल में अमित शाह के उम्मीदवारों को उड़वा कर शिवराज सिंह चौहान को पार्टी अध्यक्ष बनवाएंगे। उन्हें प्रधानमंत्री बनने की कतार में अमित शाह से आगे करेंगे।
जाहिर है राजनीति है तो कुछ भी संभव है। लेकिन हां, केवल यह संभव नहीं जो नरेंद्र मोदी मनुष्य बन जाएं। वे अपने को भगवान माने रहेंगे। मोहन भागवत जितना बोलेंगे उतना ही मोदी का विश्वरूपी आकार बढ़ता जाएगा। इसलिए क्योंकि 25 सालों से संघ को हैंडल करते-करते उन्हें पता है कि संघ है क्या!
और नोट रखें मोहन भागवत एंड पार्टी में इतनी भी हिम्मत नहीं है जो वे नरेंद्र मोदी का नाम ले कर इतना भी कहें कि राम की मर्यादाओं में चलो न कि रावण के अहंकार में जीयो! या उद्धव ठाकरे के यहां जा कर चाय पी लें।
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