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संघ के भगवान (मोदी) क्या सेना का भी उपयोग करेंगे?

पहली बात जब सभी संस्थाओं अदालत, चुनाव आयोग, संसद, मीडिया आदि से मनमानी की है तो सेना के उपयोग में क्या हर्ज? दूसरी बात नरेंद्र मोदी बतौर भगवान अपने को जब भारत का भाग्य विधाता घोषित कर चुके हैं तो वे कुछ भी करने में समर्थ हैं। इसलिए मैं अफवाह की भी चिंता में हूं। अफवाह का आधार यह रिपोर्ट है कि सेना प्रमुख मनोज पांडे 31 मई को रिटायर होने थे लेकिन कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी ने अप्रत्याशित तौर पर (in an unusual move, In rare move, In a last-minute surprise) उनका कार्यकाल एक महीने के लिए बढ़ाया। हिसाब से, चले आ रहे नियम, कायदे में वरिष्ठ उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी की 31 मई को रूटीन में सेना प्रमुख होना था। इस खबर के साथ अनुमान लगा है कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया है ताकि नई सरकार आ कर फैसला करे।

तो सवाल है, क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार को आता नहीं मान रहे हैं और यदि अपनी ही सरकार बनती मान रहे हैं तो जो नंबर दो है उसे नियमानुसार अभी ही बनाने में क्या हर्ज था? जाहिर है फैसला सामान्य नहीं है। एक खबर अनुसार लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी की जगह सरकार उनके बाद के दक्षिण सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह को सेना प्रमुख बनाना चाहती है। दोनों तीस जून को रिटायर होने है। फरवरी में लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी के उप सेना प्रमुख बनने से उनकी नियुक्ति तय थी पर अब थल सेना प्रमुख मनोज पांडे का कार्यकाल एक महीने बढ़ा कर सरकार ने न केवल अनिश्चय बनाया है, बल्कि थल सेना प्रमुख मनोज पांडे, उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी, दक्षिण सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह तीनों के आगे गाजर लटकाई है कि यदि चार जून को चुनाव के नतीजे गड़बड़ हुए तो कौन कितना वफादार होगा?

जाहिर है सेना प्रमुख के एक्सटेंशन से शंका और सवाल है। सोशल मीडिया पर सामरिक मामलों के दो जानकारों के टिवट् ने मेरे भी कान खड़े किए। बहुत अनुभवी और खबरदार प्रवीण साहनी की टिप्पणी है- मैं 2014 तक मानता था कि दो कारणों से भारतीय सेना कभी पाकिस्तानी सेना के रास्ते पर नहीं जा सकती। 1. पाकिस्तानी सेना में पंजाबी बहुलता है जबकि भारतीय सेना इलाकाई विविधता लिए हुए सेकुलर है। इसलिए संवैधानिक संकट में सेना प्रमुख यदि सरकार की मदद में उतरा भी तो इस काम में आला अफसरों को जोड़ सकना संभव नहीं। 2. भारतीय सेना परंपरागत तौर पर सिविल रूल में ढली रही है जबकि पाकिस्तानी सेना 1947 से अपने बनाए तौर तरीकों में चली आ रही है। भारतीय सेना में तब कुछ बदला जब वाजपेयी सरकार में सेना अधिकारियों को प्राथमिकता दी जाने लगी। मोदी सरकार और आगे बढ़ी। अधिकांश सेनाधिकारी राजनीति और सांप्रदायिक रंग में रंगे। प्रमाण है 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 का बालाकोट तथा ओआरओपी और अग्निपथ स्कीम की वह रजामंदी, जिससे सेना के प्रोफेशनलिज्म और मनोबल पर बुरा असर हुआ।

और अंत में प्रवीण साहनी ने लिखा- इसलिए मैं भी मोदी सरकार की मंशा को लेकर शंकित हूं। क्या सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण होगा या नहीं? इसमें पांडे और अनिल चौहान (चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ) क्या रोल अदा करेंगे? मैंने कभी कल्पना नहीं की थी मैं कभी भारतीय सेना की लीडरशीप पर इस तरह लिखूंगा!

सोचें, दशकों से सेना और सामरिक मामलों के एक अनुभवी पत्रकार का इन शब्दों में चिंता व्यक्त करना।

दूसरा कमेंट अजय शुक्ला का है। वे भी सैनिक, सामरिक मामलों के सत्यवादी अध्येता हैं। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा- क्या पक रहा है? … क्या सरकार पद पर किसी ऐसे को बैठाना चाहती है जो मनोनुकूल लचीला हो (तब बुरा) या सरकार ने निर्णय अगली सरकार के लिए छोड़ा (तब ठीक)।

कहते हैं सेना प्रमुख की खबर के साथ ही मोदी के इकोसिस्टम वाली पोस्ट में अचानक दूरदर्शन रिकॉर्ड से निकली एक वीडियो क्लीप वायरल हुई। आपातकाल में संजय गांधी के भाषण का 38 सेकेंड का यह वीडियो है, जिसमें वे इमरजेंसी को जस्टिफाई करते हुए कह रहे हैं- भाईयों और बहनों, पिछली जून में यहां इमरजेंसी आई। जैसे ही इमरजेंसी आई एकदम से हिंदुस्तान में पैदावार बढ़ गई। विधार्थी पढ़ने लगे। सब लोग अपने कामों में लग गए।… बढ़ते दाम घटने लग गए।… हिंदुस्तान की आम जनता का तो बहुत फायदा हुआ है। हिंदुस्तान का जो मजदूर है उसका तो फायदा हो गया है!….

सवाल है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेचैनी भरे भाषणों (जेल की रोटी से ले कर मुजरा) की हकीकत में संजय गांधी के भाषण को वायरल किया जाना भला किस मकसद में है?

सोचें, तो सोच सकते हैं ये सब छोटी बातें हैं। बात का बतगंड़ है। भयाकुल नस्ल की शक सुबहा वाली प्रवृत्ति है। सामान्य बात में असामान्यता खोजना है। इसके साथ निजी तौर पर मेरी मान्यता है कि कुछ भी हो नरेंद्र मोदी गुजराती हैं। और गुजराती धंधापरस्त होते हैं। नरेंद्र मोदी का राज कुल मिलाकर मार्केटिंग-ब्रांडिंग के झूठ से एक रुपए की चीज को हजार रुपए में बेचना ही तो है। गुजराती मानस कभी सेना में जाना पसंद नहीं करता। वह लड़ाई, साहस, जोखिम में जान दांव पर लगाने के बजाय पैसे से खरीद फरोख्त, सौदेबाजी से सौदा पटाएगा। इसलिए चुनाव हारने के बाद सेना के जरिए मोदी सत्ता कब्जाएं, यह मुझे जंचता नहीं है।

बावजूद इसके मुझे लिखने की जरूरत हुई तो क्यों? इसकी बड़ी वजह यह है कि नरेंद्र मोदी अब मनुष्य नहीं हैं। वे अपने को मनुष्य, गुजराती मानस से ऊपर उठे भगवान मानते हैं। इसलिए खतरा है कि भगवान यदि भारतीय सेना को अपना सुदर्शन चक्र मान कर जनादेश की गर्दन काटे तो वह अनहोनी नहीं होगी। भगवान की इच्छा। भगवान सही। मतलब मोदी के भगवान हो जाने से खतरा है। यदि भगवान ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, अनिल चौहान (चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ), थल सेना प्रमुख मनोज पांडे, उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी, दक्षिण सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह आदि की बैठक बुलाकर मंत्रणा की, उन्हें कहें कि देश खतरे में है और वे देख रहे हैं कि पाकिस्तान या चीन की ओर से सेना बढ़ रही है इसलिए संकट है और मैं इमरजेंसी लगा रहा हूं।

पाकिस्तान पर धावा बोलो और शांति के लिए दिल्ली में सेना की चार बटालियनें तैनात करें। भगवान की ऐसी दिव्य दृष्टि से अजित डोवाल, मनोज पांडे, उपेंद्र द्विवेदी या अजय कुमार सिंह जैसे मनुष्य भला लोटपोट होंगे या नहीं? फिर इन मनुष्यों को भगवान से यह गारंटी भी है कि वे जितनी सेवा करेंगे, वफादारी दिखाएंगे उतना मेवा।

कोई सोच सकता है कि न तो नरेंद्र मोदी भगवान हैं और न अजित डोवाल, मनोज पांडे, उपेंद्र द्विवेदी या अजय कुमार सिंह सत्य और मनुष्यता को छोड़ कर अंधविश्वासों में भारत का, भारत के 140 करोड़ लोगों का बेड़ा गर्क करेंगे। और भारत को पाकिस्तान बना डालेंगे।

लेकिन दिवार पर लिखें इस सत्य की कैसे अनदेखी करें कि नरेंद्र मोदी अपने को भगवान मानते हैं। नरेंद्र मोदी के इन शब्दों पर गौर करें- जब मेरी मां जीवित थीं, तो मैं मानता था कि मैं जैविक रूप से पैदा हुआ हूं। उनके निधन के बाद अपने सभी अनुभवों पर विचार करने के बाद मुझे यकीन हो गया है कि भगवान ने मुझे भेजा है। यह ऊर्जा मेरे जैविक शरीर से नहीं हो सकती, बल्कि भगवान ने मुझे प्रदान की है…।

तो मानव सभ्यता के इतिहास में नरेंद्र मोदी संभवयता अकेले वे भगवान हैं, जिन्होंने अपने को मां की कोख से पैदा भगवान (जैसे प्रभु श्रीराम, श्रीकृष्ण, प्रभु यशु, पैगंबर मोहम्मद) नहीं, बल्कि अबॉयोलॉजिकल, सीधे भगवान का भेजा अवतार घोषित किया है। इसलिए आंशका स्वाभाविक है कि चार जून को यदि उनकी सत्ता डिगी तो वे अपने देवतंत्र के अनुचरों अजित डोवाल, मनोज पांडे, उपेंद्र द्विवेदी या अजय कुमार सिंह को कुछ भी आदेश दे सकते हैं।

इतिहास प्रमाण है कि जो राजा, जो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ‘स्वघोषित भगवान’ हुआ वह सिंहासन के लिए कुछ भी करेगा। पाठकों को पता नहीं होगा कि हिटलर भगवान घोषित था। ऐसा मानने वाले बहुत थे। एक हिंदू सावित्री देवी ने भी अपनी पुस्तक (The Lightning and the Sun) में हिटलर को विष्णु भगवान का अवतार बताया था। ऐसे ही उत्तर कोरिया के मौजूदा राष्ट्रपति के पिता किम इल सुंग ने अपने को भगवान घोषित कर उत्तर कोरिया को तानाशाही का स्थायी टापू बनाया। आज भी उत्तर कोरिया में किम इल सुंग को लोग भगवान की तरह पूजते हैं। 15 अप्रैल का उनका जन्मदिन ‘सूर्य दिवस’ के नाते मनाया जाता है। भगवान के जन्मस्थान सहित उनके जीवन की लीलाओं की सालाना परिक्रमा होती है। अमेरिका के पड़ोस में हैती नाम का एक देश है। उसके एक शासक डुवलियर (Duvalier) उर्फ पापा डॉक ने अपने आपको उम्रपर्यंत राष्ट्रपति बना कर प्रभु यशु के संग का भगवान घोषित किया था।

और नरेंद्र मोदी इन सभी से महान इसलिए है क्योंकि उन्होने बॉयोलॉजिकल जन्म से इत्तर देव ऊर्जा से अपना ईश्वरीय अस्तित्व पाया है। इसलिए सोचें, एक शासक की इस मनोदशा पर मनोवैज्ञानिक चाहे जो विचारें लेकिन नरेंद्र मोदी तो यह मान रहे हैं कि मैं हूं भारत का भगवान। मैंने दस साल लोगों को अनाज बांटा, पैसा बांटा तो सत्ता पर निरंतर बने रहना मेरा अधिकार है या नहीं? जनता क्या होती है मैं जनता का जनार्दन हूं। इसलिए उठो, सेनापतियों, देश संकट में है। इमरजेंसी लगा रहा हूं और चार-पांच बटालियन राजधानी में फलां-फलां जगह तैनात हो ताकि विदेशी साजिशों और पाकिस्तानियों से भारत माता सुरक्षित रहें।

निश्चित ही पागलपन वाली बातें! लेकिन नरेंद्र मोदी यदि भगवान होने की सोच लिए हुए हैं और उनका देवतंत्र तथा इन भगवानजी को पैदा करने वाला राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ उनकी लगातार आरती उतारते हुए जस का तस भक्त है तो भविष्य के सिनेरियो में कुछ भी संभव है।

मुझे अंदाज नहीं है कि इन दिनों मोहन भागवत, दत्तात्रेय होसबोले, कृष्ण गोपाल, मुकुंद, अरूण कुमार आदि पर अपने एक प्रचारक के बतौर भगवान रूप अवतरित होने का क्या प्रभाव है? पर इन सबकी मजबूरी है कि वे भगवानजी की पैदल सेना बने रहें। ये राजतिलक के लिए या भगवानजी ने कहा तो युद्ध का बिगुल बजाने की तैयारियां रखें। जैसा मैं पहले से लिखता आ रहा हूं कि नरेंद्र मोदी जब भी सत्ता छोड़ेंगे वे केवल अपना ही नहीं, भाजपा और संघ का ही नहीं, बल्कि उस पूरे हिंदू राजनीतिक दर्शन और कथित हिंदुत्व का वैसा ही बाजा बजा कर जाएंगे जैसे हैती नाम के देश का बाजा वहा के भगवानश्री पापा डॉक ने बजाया था। हां, हैती आज रसातल में फंसा हुआ एक देश है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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