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भगवान श्री मोदी की ‘गारंटी’!

हिंदुओं के भगवान हिंदुओं को ‘गांरटी’ नहीं देते हैं लेकिन सन् 2024 के चुनाव में हम हिंदुओं को एक ऐसा भगवान मिला है जो ‘गारंटी’ देता है। मतलब मैं भारत को सोने की चिड़िया बना दूंगा, मैं विकसित भारत बना दूंगा आदि, आदि। सोचें, सहस्त्राब्दियों में ब्रह्मा-विष्णु-महेश और राम-कृष्ण हिंदुओं के लिए जो नहीं कर सके वह नरेंद्र मोदी कर देंगे। सतयुग, त्रेता, द्वापर युग के अपने देवी-देवताओं पर सोचें और उनकी तुलना करें मौजूदा कलियुगी भगवान नरेंद्र मोदी से!

क्या रामजी ने अयोध्या के लोगों को इस तरह से गारंटी दी थी? श्रीकृष्ण ने महाभारत में कोई गारंटी दी थी, लेकिन नरेंद्र मोदी ‘गांरटी’ दे रहे हैं और आस्थावान हिंदू (खासकर उत्तर भारत की गोबर पट्टी में पैदा हुए लोग) भगवानश्री मोदी को सिर आंखों पर बैठाए हुए हैं। मेरे जैसे बामण उन्हें कल्कि अवतार बतला रहे हैं। क्षत्रिय उन्हें रघुकुल परंपरा का मान रहे हैं तो पिछड़े उन्हें मसीहा और दलित-आदिवासी घर-घर मोदी, हर-हर मोदी की स्तुति करते हुए। अन्यथा कोई तर्क है जो पूरा देश मोदी की ‘गारंटी’ और चार सौ पार सीटों से राजतिलक की चारण वंदना में गूंजता हुआ हो!

तभी सन् 2024 का लोकसभा चुनाव सामान्य चुनाव नहीं है, बल्कि 140 करोड़ लोगों और खासकर उत्तर भारत के हिंदुओं की वह परीक्षा है, जिससे प्रमाणित होना है कि बतौर मनुष्य हम हिंदू जन अपने दिमाग में बुद्धि और विवेक लिए हुए हैं या नहीं? क्या नरेंद्र मोदी की गारंटियां ईश्वरीय सत्ता से भी ऊपर का पॉवर, अहंकार (या झूठ) नहीं है? हां, उत्तर भारत में लोग कैसी-कैसी बातें करते होते हैं? मोदी है तो मुमकिन है। मोदी है तो मुसलमानों पर परशुराम का फरसा चलेगा। मोदी है तो पाकिस्तान और चीन थर-थर कांप रहे हैं। मोदी है तो भारत सोने की चिड़िया हो रहा है। मोदी है तो भारत विश्व गुरू है। मोदी है तो भारत विकसित देश बन रहा है! मोदी है तो दुनिया को लड़ाइयों, समस्याओं, विपत्तियों से बचाने वाला भारत का एक दैवीय प्रधानमंत्री है!

कोई न माने इस बात को लेकिन लोगों की मनोदशा का यह सत्य है जो वे मोदी को ईश्वर मानने के कारण ही मनुष्य योनि में पैदा राहुल गांधी या विपक्ष के किसी भी नेता को लायक नहीं समझते हैं। कथित पढ़े-लिखे लोग, अफसर-प्रोफेसर-डॉक्टर, एलिट वर्ग के दलाल और हूज एंड हू चेहरे सभी के दिमाग मोदी की माया के आगे ऐसे मूर्ख-गंवार बने हैं कि वे सवाल करते है मोदी को (क्योंकि वे मानों भगवान रूपी) वोट नहीं दें तो क्या राहुल को, केजरीवाल, ममता, उद्धव याअखिलेश को वोट दें? ऐसे सोचना, ऐसे पूछना इसलिए है क्योंकि अवतारी ईश्वर के इलहाम के आगे भला कोई मनुष्य चुनने लायक कैसे?

मतलब राहुल गांधी या विपक्षी एलायंस ‘इंडिया’ की जमात इसलिए छोटी, बाबा लोगों की पप्पू जमात है क्योंकि ये लोग छोटी, इंसानी बातें करते हैं। नौकरी, महंगाई, गरीबी, शिक्षा, किसानी जैसी छोटी-छोटी बातें, मुद्दे लिए हुए हैं जबकि भगवानश्री मोदी के वचनों में अमृतकाल है। विश्व गुरूता है। अच्छे दिन, स्वच्छ भारत, आत्मनिर्भर भारत, विकसित भारत जैसी गारंटियां हैं!

तभी लड़ाई कैसे बराबरी की होगी? भक्त वोट हिप्नोटाइज, सम्मोहित, मूर्ख बने हुए हैं तो वह बुद्धि-विवेक में इतना जागा हुआ हो ही नहीं सकता है कि हम इंसान हैं तो मनुष्य को मनुष्य के साथ तौलो। दस सालों की सच्चाई देखो। ऐसा संभव नहीं सो, विपक्ष बेचारा है। राहुल गांधी पप्पू है। वह बिना पॉवर है। पॉवर था तब भी राहुल अपना पॉवर दिखलाते हुए नहीं था जबकि नरेंद्र मोदी पॉवर की दसियों लीलाएं लिए हुए है। ऐसे में भला उनके आगे विपक्ष की क्या औकात! राहुल से न मुमकिन है और न राहुल अपनी जुबान से कोई गारंटी, कोई अमृतकाल दिखला सकता है।

मतलब मोदी यदि गारंटियों से भक्तों को तमाम देवी-देवताओं से भी अधिक पॉवरफुल दिख रहे हैं तो भक्त  मनुष्य योनी के विरोधी नेताओं, राहुल एंड पार्टी पर क्यों सोचें। मोदी का पॉवर प्रजा के आगे ईश्वर से भी अधिक प्रकट है तो विपक्ष पर प्रजा सोचे ही क्यों! जाहिर है नरेंद्र मोदी ने भक्त प्रजा की बुद्धि और विवेक का हर तरह से हरण किया हुआ है। नरेंद्र मोदी अपनी लीलाओं, मायावी जादू-टोनों, प्रवचनों से भक्तों की बुद्धि का हरण करने के ज्ञानी, अनुभवी है।

दस वर्षों सेसत्ता के बूते पॉवर की बिजली कड़काई हुई है तो प्रजा का यह मानना स्वाभाविक है कि मोदी है तो मुमकिन है। मोदी के पास वह दिमाग है, वे लीलाएं हैं, वह जुबान है औरआर्शीवाद-श्राप देने का वह पॉवर है जो जब वे कहे अच्छे दिन आएंगे तो अच्छे दिन आ जाते हैं। जो कहे अमृतकाल आया तो अमृतकाल आया। जो यदि विरोधी को श्राप दे तो वह जेल में बंद और यदि किसी को आशीर्वाद दें तो वह अडानी जैसा कुबेर बन जाए।

इसलिए अब वे यदि कह रहे हैं कि 2047 में विकसित भारत मेरी गारंटी तो उन्हें सिर आंखों बैठाओ। वे कहें भारत विश्व गुरू तो विश्व गुरू। तभी ऐसे आस्थावान हिंदुओं की कमी नहीं है जो इस इलहाम में हैं कि वे हैं तो सब मुमकिन है। और ‘मुमकिन’ का ‘गारंटी’ में परिवर्तित होना सन् 2024 के लोकसभा चुनाव का वह चमत्कार है, जिससे नामुमकिन नहीं जो चार जून 2024 के दिन श्रीनगर से कन्याकुमारी तक भारत मोदीमय प्रमाणित हो। पूरे भारत का हिंदू एक सुर में तब नरेंद्र मोदी को घोषित करेगा, सबका मालिक एक!

कैसी गजब संभावना। बावजूद इसके रविवार के आज के ही दिन भाजपा के नेताओं के हाथों में ‘संकल्प पत्र’ दिखा। भला भाजपा के ‘संकल्प’ क्यों, जब देवों के देव ‘हर-हर मोदी’ की ‘मोदी गारंटी’ घर-घर पहुंची हुई है तो भाजपा को घोषणापत्र का नाम ‘संकल्प पत्र’ की जगह क्या ‘मोदी का गारंटी पत्र’ नहीं रखना था?

सो, क्या यह भाजपा मुख्यालय, अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह आदि का अक्षम्य अपराध नहीं जो उन्होंने मोदी के श्रीमुख की गारंटियों को ‘संकल्प’ माना। नरेंद्र मोदी की गारंटी है कि उनके हाथों 2047 में भारत विकसित होगा तो पार्टी को यह कतई भ्रम नहीं होना चाहिए कि कोई दूसरा गारंटी पूरा करने वाला होगा। यह भ्रम नहीं रखें कि मोदी 2029, 2034, 2039 व 2044 में भारत के प्रधानमंत्री नहीं होंगे। ध्यान रहे भगवान भी लंकाधिपति रावण को नहीं मार सकते थे। भगवान राम को भी जतन करने पड़े थे। तो मोदी यदि हम हिंदुओं के कल्कि अवतार हैं तो न तो वे ‘विकसित भारत’,सोने के भारत के निर्माण के बिना दिवगंत होंगे और न उनका ‘अवतार’ अमित शाह या योगी या जेपी नड्डा या अन्नामलाई या भाजपा व संघ के किसी इहलोकी मनुष्य में ट्रांसफर होगा!

हां, नरेंद्र मोदी 2029 में भी कलियुगी हिंदुओं को वैसे ही आगे की गारंटियां देते हुए होंगे जैसे इन दिनों हर सभा में देते हैं।

तभी भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ को पढ़ने की जरूरत नहीं है। वह कूड़ेदानी में फेंका जाना चाहिए। भक्त-अंधे हिंदुओं के लिए मोदी के श्रीमुख से निकलती गारंटियां सर्वोपरि हैं। ये भक्त मन में धारे बैठे हैं मोदी को। और क्यों न धारे? आखिर पूरे कलियुग को हम हिंदूओंने इलहामों में जीया हैं। हमारा कलियुगी दिमाग न तो हाथ कंगन को आरसी जैसी कसौटी में सत्य जांचता है और न तर्क, तथ्य, अनुभव या सत्य से विचार सकता है। मतलब मोदी विश्व नेता और उनके कारण भारत विश्वगुरू है तो है, उस पर अविश्वास में सोचने की भला जरूरत ही क्या है!

नरेंद्र मोदी हमारे इष्ट देवताओं से भी ऊंचे इसलिए हैं क्योंकि हम ईश्वर के आगे प्रार्थना कर कामयाबी-सफलता-संपन्नता की आस बांधते हैं लेकिन वह यदि फलीभूत नहीं हुई यह मान लेते है यह हमारी नियति या कर्मफल मतलब आराध्य पर विश्वास बना रहता है। ऐसा बाकि धर्मों में नहीं है। इस्लाम और ईसाई धर्म में अनुयायी पैगंबर या प्रभु यीशु के प्रति कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, उनका आभार प्रकट करते हैं जबकि हम कलियुगी हिंदुओं में विश्वास चाहना केंद्रित है। अपने देवी-देवताओं के तमाम रूपों के प्रति हम अपनी आस्था निज एजेंडे के अनुसार बनाए होते हैं बावजूद इसके यदि इच्छित फल नहीं मिला तब नियति व कर्मफल जिम्मेवार।

इसी इलहामी मनोदशा को भारत के नेताओं ने खूब भुनाया है। भारत में हिट, सुपरहिट नेता वहीं हुए हैं, जिनकी आस्थावान हिंदुओं में ईश्वर जैसी मार्केटिंग हुई है। गांधी, नेहरू, जयललिता, रामराव आदि सब इलहामी मनोवृत्ति में हमारे माने गए अवतार थे। इन सबके मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मामला इसलिए बेजोड़ है क्योंकि उनमें स्वंय में जहां हर-हर मोदी का विश्वास है वहीं प्रचारक और गुजराती तासीर से बनी मार्केटिंग में अवतारी लीलाओं के जबरदस्त प्रायोजक भी है।

फिर उन्हें यह भी एडवांटेज है जो उनके साथ हिंदुओं के नाम पर हिंदू राजनीति है। इस कारण वे अपने आप आस्थावान हिंदूओं के दिल-दिमाग में हिंदू आईकॉन हैं। ऊपर से वेशभूषा, हाव-भाव, अभिनय, जादू-मंतर याकि मार्केटिंग से हिंदू ह्रदय सम्राट वाली भाव-भंगिमा। फिर सत्ता की ताकत, सत्ता से धर्मादा, सत्ता से मंदिर निर्माण और विधर्मियों को औकात बतलाने के वे तेवर भी हैं, जिससे जहां मोदी है तो मुमकिन की धारणा बनी वहीं लोगों में मन ही मन अवतार का इलहाम बना।

इसीलिए2024 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की अब इस देववाणी के साथ है कि मोदी की गारंटी!

सोचें, और अपने आसपास भी पूछें भारत में कब ऐसा कोई मनुष्य पैदा हुआ जिसने बतौर अवतार प्रजा को यह कह कर बेवकूफ बनाया कि मेरी‘भारत विकसित देश’की गारंटी!

आश्चर्य नहीं हिंदू क्यों सदियों गुलाम रहे। और खासकर उत्तर भारत की गोबर पट्टी के आम हिंदू जन!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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