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अब्राहम की संतानें (यहूदी, ईसाई, मुसलमान) मानव या पशु?

शीर्षक के शब्द भारी व निर्मम हैं। पर यह मानवता के ढाई हजार वर्षों के अनुभवों में उठा एकवाजिब और यक्ष प्रश्न है! जरा गौर करें मानव समाज के ज्ञात इतिहास पर। अब्राहम (अव्राहम अविनु,इब्राहिम) की पैतृक जड़ों से पैदा हुए धर्मों से मानव को क्या अनुभव हुआ? जवाब है लोगों कीदासता, लोगों पर तलवार, हजारों युद्ध, क्रूसेड, जिहाद, औपनिवेशिक गुलामी, महायुद्ध, नरसंहार, तमामतरह की तानाशाही तथा शीतयुद्ध से लेकर ताजा यूक्रेन-रूस युद्ध, यहूदी बनाम फिलस्तीनीलड़ाई का लंबा-चौड़ा शैतानी रिकॉर्ड! ऐसा क्या पृथ्वी पर किसी अन्य धर्म से या पूर्वोतर एशियाईधर्मों-सभ्यताओं, हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख से या ऑस्ट्रेलिया से लातिनी अमेरिका-अमेरिकी महाद्वीप व अफ्रीफी महाद्वीप के कबीलाई इतिहास में कही कोईअनुभव है?

सोचें, किसने भगवान के साथ शैतान पैदा किया? किसने वह परमेश्वर बनाया जो अच्छा है तो बुरा भी!ज्ञात इतिहास का दो टूक यहसत्य है कि मानव चेतना, इंसानी स्वतंत्रता को एक ईश्वर, एक पैगम्बरका बंधुआ बनाने की अब्राहम के धर्मों की जिद्द तलवार की नोंक पर थी न कि बुद्धि, विवेक औरसत्यमेव जयते से। अब्राहम के धर्मों ने न केवल आपस में एक-दूसरे से पशुतापूर्ण व्यवहार किया,परस्पर धर्मांतरण कराया, बल्कि पूरी पृथ्वी पर सभी तरफ जोर-जबरदस्ती, लालच व भ्रष्टआचरण से लोगों का धर्मांतरण कराया। मनुष्यों में धर्म की अफीम बनाई। सामूहिक भेड़चालबनवाई।

सो, किसी भी एंगल में खंगालें, यरूशलम-फिलस्तीन की कथित पवित्र भूमि (“holy land” or“land of milk and honey”) और उसके धर्मों की ढाई-तीन हजार साल पहले की हकीकत और आजकी हकीकत में फर्क कुछ नहीं है। यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के परस्पर रिश्तों में तोधर्म के भीतर भी लोगों के परस्पर नरसंहारों (जैसे मौजूदा यूक्रेन-रूस युद्ध) में वह हुआ जो पृथ्वीकी अन्य सभ्यताओं से बहुत जुदा है। तीनों धर्मों में जिसे जब मौका मिला, वह दूसरे के प्रतिक्रूर रहा। बर्बर हुआ।

प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल बनाम मौजूदा 21वीं सदी का फर्क इस नाते कुछ अलगहै क्योंकि अब टीवी स्क्रीन पर सबकुछ सामने है। इनके रिश्ते पूरी पृथ्वी के आगे लाइव है। दो साल पहलेयूक्रेन में पुतिन का शैतानी तांडव था। अब इजराइल-फिलस्तीन विध्वंस की रणभूमि हैं, जिसमेंयह तय करना मुश्किल है कि मुस्लिम हमास शैतान है या यहूदी देश शैतान है। अमानवीयताओंके लाइव प्रसारण से धरती के घर-घर में विध्वंस, निर्दयता और युद्ध विभीषिकाओं की वेतस्वीरे पहुंची हुई हैं, जिससे यह सवाल उठेगा ही कि यह तो पशुओं से भी गया गुजरा व्यवहारहै। जंगल में जानवर भी कम-ज्यादा ताकत के बावजूद सह-अस्तित्व में जीते हैं, वे ठिकानाबदल लेंगे लेकिन स्थान को लेकर न जिद्द और न संग्राम। जंगल का राजा शेर भी स्थानबदल लेगा। पशु कैसा भी हो वह समय-काल अनुसार स्थान बदलेगा। अपने को एडजस्टकरेगा।

ठीक विपरीत इजराइल-फिलस्तीन की कथित ‘देवभूमि’ में ढाई हजार वर्षों से क्या हो रहा है?अब्राहम की संतानें, उनके बनाए धर्मों में लगातार लड़ाई है। वही से पूरी दुनिया में लड़ाई का,शैतान और शैतानी संस्कारों का और साधनों को वैश्विक प्रसार हुआ है। कटु सत्य है और यहतीनों धर्मों की किताबों में भी उल्लेखित है कि यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों के देवदूत,पितामह अब्राहम का घर भी कलह, झगड़े का केंद्र था। अब्राहम (कई राष्ट्रों का पिता) मूलतःउर, मेसोपोटामिया का निवासी था। उसे ईश्वर (याहवे) ने सपने में बताया कि इस जगह कोछोड़ों और दूसरी जगह जाओगे तो वहां तुम्हारा देश बनेगा। ध्यान रहे पवित्र किताब ‘तोराह’(ओल्ड टेस्टामेंट की पांच पुस्तकों में पहली) में यहूदियों के परमेश्वर अवतरित होने की कथा है। औरवह अच्छा भी तो बुरा भी। मतलब अनुयायियों के लिए अच्छा तो गैर-अनुयायियों के लिए बुरा।

यहूदी तब मिस्र में ग़ुलाम थे। उन्हें आज़ाद कराने के लिए ईश्वर उस जमीन से गुजरे। उन्होंनेमिस्र के शासकों याकि फराओ पर कहर बरपाया तो अंततः फराओ ने यहूदियों को जाने कीइजाजत दी।अब्राहम की दो पत्नियां, हाजिरा और सारा थी। इनके बेटे इस्माइल और इशहाक थे। इशहाक के बेटेयाकि अब्राहम के पोते का नाम याकूब (इस्रायल) था। उनके 12 बेटों के 12 यहूदी कबीलेबने। याकूब ने सभी यहूदियों को इकठ्ठा किया, इजराइल देश बना। याकूब के एक बेटे का नामयहूदा था और उससे वंशज यहूदी कहलाए। ये यरूशलम और यूदा इलाके में रहते थे। सो,22 सौ सालपहले यहूदी राज्य अस्तित्व में आया। उसके साउल, इशबाल, डेविड व सोलोमन जैसे प्रसिद्ध राजा हुए।

ईसापूर्व 931 में सोलोमन के बाद पतन शुरू हुआ और इलाका इजराइल तथा यूदा में बंटा। कोई दो सौसाल बाद इलाके पर असीरियाई साम्राज्य ने हमला किया। उसका यरूशलम पर कब्जा हुआ।यहूदियों के कबीले तितर-बितर हुए। ईसा के 72 साल बाद रोमन साम्राज्य के हमले के बाद सभी यहूदीइधर-उधर जा बसे। वह यहूदियों के देश छोड़ने का एक्सोडस था। रोमन लोगों ने किंग डेविड कामंदिर भी तोड़ा। उसकी एक दीवार अभी बची हुई है, जिसे वेस्टर्न वॉल कहते है और वह स्थान झगड़ेका मुख्य केंद्र है।

बहरहाल, यहूदियों का दूसरे स्थानों पर जा कर बसना स्थानीय लोगों को पसंद नहीं आया।नतीजतन यहूदियों के खिलाफ दुर्भावना का एंटी सेमिटिज्म पैदा हुआ। इसलिए क्योंकि अब्राहमके बाद से यहूदियों को लेकर फिलस्तीनी क्षेत्र में भी वहम था कि ये चालाक लोग है, सूदखोर हैं और धोखेबाज हैं।यह दुर्भावना फिलस्तीन क्षेत्र में यहूदियों के बीच यहूदी यीशू के बतौर अगले देवदूत के रूप मेंउभरने, उनके सूली पर चढ़ने तथा अनुयायियों द्वारा ईसा धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ बढ़तीगई। उस नाते तथ्य है कि असली झगड़ा यहूदी और ईसाइयों के बीच है। ईसाई समाज औरईसाई देशों में एंटी-सेमिटिज्म याकि यहूदी विरोधी जहर हमेशा रहा। यूरोप में यहूदी सदियों दर-दर भटकते रहे लेकिन न चर्च की उनके प्रति करूणा जागी और न ईसाई शासकों ने उन्हें सम्मान-गरिमा से जीने दिया। यहूदी इतिहासकार बर्नार्ड लुईस का मुस्लिम और यहूदी संबंधों परलिखा यह तर्क मान्य है कि इस्लामी शासकों के अधीन रहने वाले यहूदियों की स्थिति, कभी भी उतनी बुरी नहीं रही।

सचमुच सातवीं शताब्दी में मुहम्मद और इस्लाम के बाद जब मुस्लिम शासन बना तो यहूदीधिम्मी व्यवस्था में मजे से रहते थे। सन् 638 के वक्त में पैगंबर के साथी उमर इब्न अल-खत्ताबके शासन में यहूदियों और मुसलमानों के साझा सैन्य मिशन भी हुए। उमर की मुस्लिम सेना नेकई ईसाई शहरों पर कब्जा किया। यहूदियों ने मदद की क्योंकि वे ईसाई उत्पीड़न से मुक्तिचाहते थे। इतना ही नहीं बाद में खलीफा अब्द अल-मलिक ने यहूदियों को टेम्पल माउंट कासंरक्षक भी बनाया।बावजूद इस सबके यह मानना गलत नहीं है कि यहूदी, ईसाई और मुस्लिम तीनों ने परस्पररिश्तों में वही झगड़े बनाए रखे जो इनके आदि पितामह अब्राहम के घर में था। अब्राहम की दोपत्नियां थी। दोनों अब्राहम से वैवाहिक संबंधों में एक-दूसरे के खिलाफ ईर्ष्या, असुरक्षा, झगड़े वप्रतिस्पर्धा में लड़ती-झगड़ती रहीं। इसके चलते तीनों धर्म के देवदूत अब्राहम खुद ताउम्र मानवीयअसुरक्षाओं के केंद्र थे। कोई आश्चर्य नहीं जो अब्राहम की संतानों से निकले तीनों धर्मों में सहअस्तित्व, सहनशीलता, भरोसा और एक-दूसरे के प्रति आदर के संस्कार नहीं बने। अब्राहम के बेटोंमें शत्रुतापूर्ण रिश्ते रहे। इन धर्मों का ज्ञात इतिहास इन बातों से भरा हुआ है कि भाई ने भाई कोमारा। बेटे ने सुल्तान को मारा तो सुल्तान ने बेटे-बेटियों पर विश्वास नहीं किया। राजा हो यासुल्तान, मौलाना हो या पोप, सभी का व्यवहार इस जिद्द, इस अंधेपन में लगातार अंधा औरबंधा आया है कि उनका कहा, उनका माना अंतिम है। जबकि तीनों धर्म एक ही ईश्वर की पूजाकरते हैं। मतलब एकेश्वरवादी हैं।

दरअसल अब्राहम की कॉमन पैतृक जड़ों से यहूदियों, ईसाईयों, मुसलमानों में हमेशा वहप्रतिस्पर्धात्मक, भावनात्मक जलन और खुन्नस रही है जो अब्राहम की दोनों पत्नियों, हाजिरा औरसारा में थी। उनके बेटे इस्माइल और इशहाक में थी। कथाओं से अब्राहम की विरासत के लिएपरिवार में ही संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का जो भावनात्मक जुनून जाहिर होता है उसका सीधा औरमोटा अर्थ है कि यरूशलम-फिलस्तीन की कथित पवित्र भूमि तब भी कलही थी और आज भीकलही है! वह हमेशा रक्तपात में रंगी रही।किसी भी कोण से जांचें, ज्ञात इतिहास की हर सदी तीनों धर्मो के रक्तपात से भरी मिलेगी।पृथ्वी के पच्चीस सर्वाधिक अत्याचारी-बर्बर बादशाहों व राजाओं की लिस्ट देखें, उसमें ईसाईऔर इस्लामी नामों की बहुलता मिलेगी।

तीनों एकेश्वरवादी धर्मों के इतिहास के ढाई सौ सालके खांचे में यह जान कर दहलेंगे कि 1096 से 1270 के दो सौ वर्षों में बारह दफा क्रूसेड हुए।इस्लाम बनाम ईसाई धर्म ने अपने बादशाहों-राजाओं की तलवारों से असंख्य युद्ध व नरसंहारकरवाए। ऐसा ही इतिहास यूरोपीय पुनर्जागरण से पहले और उसके बाद का भी है। याद करेंमध्यकाल में इस्लाम की तलवार के वैश्विक जुनून को! उसमें रंगे मध्य एशिया के गोरी-गजनवी से ले कर तमाम तरह की सल्तनतों, मंगोलाइड चंगेज खान, नादिरशाह, औरंगजेब कीक्रूरताओं की क्या कोई अनदेखी कर सकता है?

सबसे भयावह बात जो तीनों धर्म लड़ते हुए कभी थकते नहीं है। उनके विस्तार, विकास काआधार तलवार है। लोगों की दासता है, लोगों का शोषण है। सत्य यह भी है युद्ध, विध्वंस,नरसंहार याकि शैतानीपने के तमाम औजार, तलवार से ले कर गोला-बारूद, तोप और एटमबमका ज्ञान-विज्ञान भी अब्राहम की संतानों औरउनके तीनों धर्मों से है!

क्या मैं गलत हूं? इसलिए इस विचार या बहस का अर्थ नहीं है कि मुस्लिम दोषी हैं या यहूदीया ईसाई? ईरान जाहिल है या इजराइल या रूस, यूक्रेन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, यूरोप? एकईश्वर, एक धर्म, एक शासक, एक तानाशाह, एक सर्वशक्तिमान देश की तमाम एकल धारणाएंदरअसल हम होमो सेपियन के सफर का वह बुद्धि विकार है, जिससे मानवता बार-बार अपने कोएनिमल फार्म में पाती है और चिम्पांजी की संतान होने का सत्य उद्घाटित होता रहता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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