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संविधान में ‘सेकुलर’ और बगल में बुलडोजर!

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Hindu: हम हिंदू चाहते क्या हैं?- 4 : ‘पानीपत की तीसरी लड़ाई’, ‘बंटोंगे तो कटोगे’, ‘दुश्मन’ तथा उसकी “प्रकृति और डीएनए” के जुमलों का नतीजा अब लोक व्यवहार में है।

हिंदू सोसायटी में मुसलमान वर्जित तो हिंदू व मुस्लिम अपने-अपने घेटो में गोलबंद होते हुए। हिंदुओं ने मानों मान लिया है मोदीजी, शाहजी, योगीजी और संघ शक्ति से हम हिंदू राष्ट्र हैं।

तभी ‘इस देश में रहना है तो जय श्रीराम’ कहना होगा! वंदे मातरम् कहना होगा। या यह संकल्प कि ‘दुश्मनों’ से हम हमारे पूर्वजों के धर्मस्थानों को खाली कराएंगे आदि-आदि।

एक निश्चय है कि ऐसा कुछ करना है, जिससे हिंदुओं का शौर्य साबित हो। उनकी भुजाओं का लोहा विधर्मी (मुसलमान) मानें।

वे मस्जिदें टूटें, जो मंदिरों को तोड़ कर उनकी जगह बनी हैं और जिनके कारण सनातनियों के पूर्वजों व वंशजों की आत्मा भटक रही है। दुनिया को बतलाना है कि हम बहादुर हैं।

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बेईमानी, झूठ, दोहरेपन से मिलेगी सिद्धि?

आखिर भारत हिंदुओं का अपना घर, घरौंदा है। वे जो चाहेंगे वही होना चाहिए। खासकर तब जब हमें नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, गिरिराज सिंह जैसे योद्धा और राजा व संघ शक्ति प्राप्त है।

वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2014 में सत्ता संभालते ही मुगलकालीन लाल किले पर हिंदू आन-बान-शान की पगड़ी और पोशाक पहन ‘दुश्मनों’ को बतला दिया था वे हिंदुओं की विरासत के पृथ्वीराज चौहान हैं!

वे छप्पन इंची छाती के हैं। डायरेक्ट एक्शन का माद्दा रखते हैं। वे दुश्मन को घर में घुसकर मारते हैं। वे यहूदी देश के नेतन्याहू जैसे शेर हैं।

मतलब असंभव को संभव कर दे सकते हैं। तभी अयोध्या में मस्जिद की जगह मंदिर है और ‘दुश्मन’ घर-घर में चिन्हित है।

देश से घुसपैठियों को निकालेंगे

सो, दो टूक उद्देश्य है? हिंदुओं को रोजी-रोटी, रोजगार, महंगाई जैसी कोई सांसारिक चिंता नहीं है। हिंदू भूखे, नंगे, खैरात की सुकड़ी जिंदगी जी लेंगे।

सब त्याग करके पहले देश से घुसपैठियों को निकालेंगे। बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं को भगाना है। पाकिस्तानियों को दुरूस्त करना है।

समान नागरिक संहिता से ठोक कर उन्हें आधुनिक बनाना है। मदरसे बंद करने हैं। वक्फ बोर्ड की कब्जाई जमीनें खाली करानी हैं आदि, आदि।

वाह! क्या बात है! सब सही। आखिर राजा हिंदू है, प्रजा हिंदू राष्ट्र चाहती है, उन्हें अपनी और भावी पीढ़ियों की आबादी और सुरक्षा की चिंता है तो स्वाभाविक हक है कि वे अपनी मातृभूमि, पितृभूमि, पुण्यभूमि को मनमाफिक बनाने का उद्देश्य धारें।

सवाल है तब बेईमानी क्यों(Hindu) 

सवाल है तब बेईमानी क्यों कर रहे है? क्या झूठ, फरेब से उद्देश्य सधते हैं? उससे क्या दुनिया में हमारे इरादों की वैधानिकता है?

सनातन सभ्यता-संस्कृति का मान बन रहा है या बदनामी हो रही है? हमें क्या मुंह में राम और बगल में छुरी का दोहरापन नहीं माना जा रहा है?

इसलिए क्योंकि संविधान सेकुलर है, उसके आगे बार-बार सिर टेकते हैं, जबकि करनी बुलडोजर चलाने की है?

दुनिया देख और जान रही है कि सरकार उन संस्थाओं, उन अदालतों, सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिसों से यह फरेब करा रही है कि वे भले दीन-ईमान, कानूनों की पालना का चोगा पहने हुए हों लेकिन संविधान की कसम के विपरीत निर्णय और आदेश दें।

यह तरीका क्या सत्यमेव जयते का सनातन धर्म है? सनातन धर्मं के आदिग्रंथों में क्या कही लिखा है कि हिंदुओं के पंच परमेश्वर जज राजा के लिए बेईमानी-फरेब से निर्णय करें?

पंच परमेश्वरों को फुसला, ललचा, डरा कर हिंदू राजशाही चले? किस न्याय संहिता में लिखा है कि पंच परमेश्वरों को धर्म उर्फ संविधान उर्फ कानूनों की न्यायमूर्ति नहीं, बल्कि राजा के रथ का पहिया होना चाहिए?

क्या धर्म और न्याय के साथ इस तरह का दुराचार चाणक्य की राजनीति में है?

हम भारत के लोग…

इस सत्य को गांठ बांधना चाहिए कि ‘हम भारत के लोग, जनता द्वारा जनता के लिए’ बने उस संविधान से फिलहाल बंधे हैं, जिसमें ‘सेकुलर’ शब्द है!

जिसके ‘हम भारत के लोग’ में वे ‘कथित दुश्मन’ भी अंग है जिन पर देश के सबसे बड़े प्रांत के मुख्यमंत्री का वक्तव्य है कि, ‘अगर किसी को गलतफहमी है तो याद रखना कि किस प्रकार बाबर के एक सिपाहसालार ने जो कृत्य अयोध्या में किया था, संभल में किया था और जो काम बांग्लादेश में हो रहा है, तीनों की प्रकृति और डीएनए एक जैसा है’।

तो क्या यह बात संविधानसम्मत है? ऐसे ही संभल, अजमेर आदि के विवादों में संविधान और उसका कानून क्या लागू नहीं है?

सोचें, दस वर्षों से हिंदुओं को ‘दुश्मन’ से सचेत की भाषा और तौर तरीकों पर।(Hindu)

एक तरफ ‘भारत के वीर योद्धाओं’ की भुजाओं में बुलडोजर के दम का अहंकार वहीं दूसरी तरफ ‘धर्मनिरपेक्ष’ संविधान को बार-बार माथे पर लगाकर उसकी कसम खाना।

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की पालना की कसम का संविधान तथा दूसरी तरफ अदालतों से मस्जिदों-दरगाहों में शिवलिंग खोजवाना!

संविधान में कानून है कि 1947 के स्टैटस में धर्मस्थानों की यथास्थिति रहेगी। संविधान में न गौवध पर पाबंदी है। न समान नागरिक संहिता है। न इतिहास का बदला लेने या ‘हिंदू राष्ट्र’ का रत्ती भर वैधानिक बीज है।

ईमानदारी का तकाजा क्या

इसलिए ईमानदारी का तकाजा क्या है?  हिंदुओं का कर्तव्य है कि वे अपने घर (भारत) में अपने पूर्वजों (संविधान निर्माताओं) के बनाए संविधान की या तो धर्म (संविधान) पालना करें या उसे खारिज करके संसद से नया संविधान बनाएं।(Hindu)

उसमें नए संकल्प, नए उद्देश्यों की कर्तव्य पालना में भारत राष्ट्र-राज्य की नई रचना बनाएं। जब हिंदुओं को ‘वीर योद्धा’ राजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह तथा राजगुरू संघ परिवार प्राप्त है तो बाधा क्या है ‘दुश्मन’ को तुष्ट करने वाले संविधान में संशोधन या नया बनाने में?

सरकार यदि बहुसंख्यक हिंदुओं के वोटों के समर्थन से है तो संसद में ठप्पा लगेगा ही। यों भी हिंदू सरकार को लोकतंत्र के तमाम पंच परमेश्वरों और विरोधियों को तोड़फोड़, लालच और भय दिखा कर काम निकालने की मास्टरी है तो ‘हिंदू राष्ट्र’ के उद्देश्यों में संकोच किसलिए?

बावजूद इसके यदि दोहरेपन की रीति-नीति है तो प्रमाणित यही होता है कि महज हिंदुओं को उल्लू बनाया जा रहा है।

बेचारा आम आस्थावान हिंदू हमेशा की तरह झूठ-फरेब में जीने की नियति का मारा है। तब क्या तो हिंदुओं का उद्देश्य और क्या कौम व राष्ट्र का भविष्य!

हिंदुओं को यह मालूम नहीं…(Hindu)

ऐसा दोहरापन, कौम को बहकाना दुनिया में किसी और धर्म, सभ्यता, संस्कृति के देश में नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा से लेकर पूरी संघ शक्ति यहूदियों और इजराइल पर फिदा है।

क्योंकि वह इस्लाम को उसकी भाषा में जवाब देता है। लेकिन इन्हें और हम हिंदुओं को यह मालूम नहीं है कि वह कौम अपने धर्म-ईमान में ईमानदार है।

वहां मुंह में राम बगल में छुरी का दोहरापन नहीं है। इजराइल निर्माण के पहले दिन से आज तक घोषित एक यहूदी राष्ट्र है।(Hindu)

साथ ही यहूदी धार्मिकता तथा धर्मनिरपेक्षता दोनों के दूध और चीनी के मिक्स की राष्ट्रीय आस्था है!

इजराइल संस्थापक डेविड बेन-गुरियन (गांधी-नेहरू) से मौजूदा प्रधानमंत्री नेतन्याहू (नरेंद्र मोदी) के नेतृत्व में याकि यहूदियों में यह दुविधा नहीं थी कि यहूदी हम पहले हैं या पहले धर्मनिरपेक्ष? ध्यान रहे यहूदियों की तेज बुद्धि की स्थायी वैश्विक धाक है।

इसलिए दुनिया के यहूदियों में अलग-अलग राय, विचारधारा, मिजाज की बहुलता है। इसलिए जब इजराइल बना तो अधिकांश यहूदियों में आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने का आग्रह था, लेकिन राष्ट्र का आधार, मंतव्य धर्म है, इस सत्य को सभी ने अपनाया।

और बिना संविधान बनाए अपने धर्म से जीने को राष्ट्रीय आचरण बनाया। राष्ट्रीय गीत से लेकर राष्ट्र-राज्य के सभी प्रतीकों में धर्म से कौम के गौरव की अभिव्यक्ति हुई।

पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन से लेकर तब तक उदारवादियों का इजराइल में शासन रहा जब तक लिकुड पार्टी के अनुदारवादी बेगिन प्रधानमंत्री नहीं बने।

और सामान्य बात नहीं जो बेगिन ने फिलस्तीनी अराफात के साथ समझौता किया। कैंप डेविड समझौता हुआ।

दूसरे शब्दों में यहूदियों की अलग-अलग राय, अलग-अलग राजनीति के बावजूद राष्ट्र-राज्य का प्राथमिक उद्देश्य इस्लाम की हकीकत, पड़ोस के इरादों में अपनी एकता-अखंडता और अस्तित्व-अस्मिता की सर्वोच्चता है। इसी में स्थायी बुनियादी रीति-नीति और राष्ट्रीय सर्वानुमति।(Hindu)

धर्मनिरपेक्ष यहूदियों की नाराजगी

इजराइल में देश के प्राथमिक धर्म-ईमान, उसकी व्यवस्था, उसके उद्देश्य, लोकतांत्रिक ढांचे की राजनीति और लीडरशीप के आचरण आदि सभी पहलूओं में 1948 से स्पष्टता है।

मौजूदा प्रधानमंत्री नेतन्याहू का नेतृत्व मनमाना रहा है। उनके शासन में धर्मनिरपेक्ष यहूदियों की नाराजगी है।

प्रदर्शन-धरने हुए लेकिन बावजूद इसके वह कुछ भी नहीं है जो पिछले दस वर्षों में भारत की हिंदू राजनीति में कथित हिंदू शक्ति द्वारा हिंदुओं को बांटने के लिए हुआ है।

इसलिए हमास ने सात अक्टूबर 2023 को इजराइलियों पर आतंकी हमला किया तो उस ‘आतंक’ के परिपेक्ष्य (context) में सारे यहूदी, पूरा देश (सेकुलर हो या कट्टरपंथी यहूदी) इस्लाम की प्रकृति के बोध में हमास, हिजबुल्ला, ईरान को सैनिक जवाब देते हुए है।

फिर भले दुनिया उसके सैनिक ऑपरेशन को अमानवीय कहे या नरसंहार! मुझे कभी यह पढ़ने को नहीं मिला कि नेतन्याहू ने सत्ता के अहंकार में अपने राजनीतिक विरोधियों को देशद्रोही कहा।

विपक्ष ने डर में विपक्ष का रोल(Hindu)

ईडी-सीबीआई जैसी संस्थाओं के छापों से उन्हें जेल में डाला। या विपक्ष ने डर में विपक्ष का रोल छोड़ा।

नेतन्याहू के भ्रष्टाचार के विरोध में विपक्ष ने कोताही नहीं बरती तो बदले में उनकी पार्टी ने विरोधियों को अमेरिकी साजिश का मोहरा या देशद्रोही करार नहीं दिया। (जैसे इन दिनों राहुल और सोनिया गांधी को भारत में करार दिया जा रहा है!)

सवाल है क्यों नेतन्याहू ने मोदी-योगी, अमित शाह की तरह अपने देश के सेकुलर यहूदियों को औकात बताने, विरोधी मीडिया को डराने जैसी राजनीति नहीं की?

इसलिए क्योंकि यहूदी इतना बेसिक दिमाग लिए हुए है कि राष्ट्र का अस्तित्व, उसकी एकता-अखंडता जन्मजात इस्लाम से पंगे में घिरी हुई है।(Hindu)

ऐसे में यहूदियों में विभाजकता, व्यवस्था के तेरे-मेरे में बंटे होने की राजनीति से इस्लाम के इरादों के आगे मुकाबला नहीं हो सकेगा।

विषायंतर हो गया है। लब्बोलुआब इजराइल अपने मंतव्य, उद्देश्यों, आचरण में वैसा ही है जैसे इस्लामी देश (धर्म के मंतव्य में सच्चे व खरे) हैं।

जैसे क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूरोपीय देश हैं। भारत ही वह बिरला देश है, जिसका संविधान कुछ कहता है और उसकी अघोषित सभ्यता-संस्कृति, धर्म याकि हिंदुओं की चाहना अलग है। और पाखंड-झूठ व सत्ता भूख में प्रलापी है।

तभी हिंदू भटके या बहके हुए हैं। पूरी कौम का व्यवहार मुंह में राम और बगल में छुरी का बना है। हिंदू विभाजित हैं। प्रजा-व्यवस्था विभाजित है तो एकता-अखंडता भी दांव पर लगा दे रहे हैं।

मातृभूमि की धरोहर की जिस आबादी से देश है उसे पता ही नहीं है कि वे क्या चाह रहे हैं और देश को किधर ले जा रहे हैं? (जारी)

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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