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बीहड़ (भारत) में बारिश!

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rain: सुध नहीं इसलिए ओझल है अन्यथा मौजूदा भारत बीहड़ है। तभी भारत का हर दिन बीहड़ कथा का दिन है। और कथा दिन में एक नहीं, बल्कि असंख्य। भारत की जमीं, भारत के भूगोल, भारत की आबोहवा, मनुष्यों की दैनंदिनी में कुछ भी अब समतल नहीं है। सब कुछ उबड़ खाबड़, ऊंचा नीचा और लूटखसोट से है। स्वाभाविक जो मनुष्य जिंदगी का हर पहलू सचमुच तकलीफदेह है। किसी भी पहलू में सोचें लोगों की जिंदगी बेबस, बेकाम, बदहाल और लाचार है। गरीबी है, बेराजगारी है, अशिक्षा है और अंधविश्वास है। वही कुप्रथाएं हैं, भूख है, भय है और रामभरोसे की भक्ति है। और सबसे बड़ा त्रासद सत्य है बेबस जिंदगी रोएं तो किसके आगे रोएं!

यदि आप इंसान हैं तो कल्पना करें, उस बैंक मैनेजर और कैशियर की जिनके प्राण पखेरू शुक्रवार की रात (11.50) पुराने फरीदाबाद रेलवे अंडरब्रिज के नीचे बरसाती पानी में फड़फड़ा कर खत्म हुए। इन दोनों ने, इनके परिवार वालों ने या हम सब बीहड़वासियों में क्या यह ख्याल कभी हुआ होगा कि ऐसे भी सड़क पर घुट घुट कर मरा जाता है। मेरे ख्याल से ऐसे जानवर भी नहीं मरता। मेरा साक्षात अनुभव है कि नदी में पानी बढ़ता या बहाव तेज होता है तो पशु स्वंयस्फूर्त बाहर निकल किनारों में दूर जा छुपते हैं।

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तो दोषी कौन? मैनेजर और कैशियर खुद या बीहड़ की व्यवस्था?

फरीदाबाद बीहड़ का राजधानी क्षेत्र है। और वर्ष 2024 के बारिश सीजन में दिल्ली के राजधानी क्षेत्र के क्या हुआ है, इसके ढेरों और इतनी तरह के इतने अनुभव हैं कि अपने अजीत द्विवेदी ने उनका ब्योरा देते हुए लिखा था कि ‘दिल्ली एक जीता जागता नर्क है’। (rain)

पर नर्क और बीहड़ का फर्क होता है। नर्क का एक व्यवस्था विशेष से संचालन है। नर्क उन्हीं के लिए होता है जो पापी हैं और नर्क भोगने के कुकर्म लिए होते हैं। लेकिन भारत के लोग, बीहड़ के लोग, चंबल के लोग तो सरल, भोले, सीधे सादे हैं। ये भला नर्कभोगी क्यों हों? ये तो उस बीहड़ के भोगी हैं जो व्यवस्था के द्वारा, व्यवस्था के लिए, व्यवस्था की भूख और अहंकार का एक एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र से निर्मित है।

याद है दिल्ली के राजेंद्र नगर में इमारत की बेसमेंट में बारिश का पानी भरने से तीन नौजवानों के मरने की घटना? उस घटना का कौन जिम्मेवार ठहरा? ऐसे ही कार में बैठे एचडीएफसी बैंक के मैनेजर और कैशियर की कार में पानी भरने से हुई मौत के लिए तंत्र क्या कभी अपने को जिम्मेवार मान सकता है? कतई नहीं! इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी से ले कर वार्ड का पाषर्द, बीट कॉन्स्टेबल, पटवारी या बाबू बीहड़ के लोगों के प्रति अपने को जवाबदेह समझें, यह संभव ही नहीं है!

प्रधानमंत्री से पार्षद की बीहड़ सरंचना के पारिस्थितिकी तंत्र की यही प्रमुख विशेषता है कि यह मालिक सबका है लेकिन जिम्मेवार किसी के प्रति नहीं! इसलिए क्योंकि इन्हें हाथी की, शेर की, सत्ता की सवारी करना आती है मगर उसे साधना, उस पर चाबुक चलाना, उसे अनुशासित और जिम्मेवार रखने का न एबीसी मालूम है, न जरूरत मानते हैं और न हिम्मत है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि बीहड़ के डाकू और बागी आम जनता में मसीहा माने जाते हैं लेकिन उनका मूल सरोकार तो लाठी और व्यवस्था के मनमाने उपयोग का है। अल्टीमेटली तो वे पॉवर की भूख, उसकी कृपा, उसके उपयोग, उसकी भागीदारी से चौबीसों घंटे उसे एन्जॉय करते हैं। उसमें मगन रहते हैं। (rain)

बीहड़ में कोई जिम्मेवार नहीं होता। उसकी व्यवस्था आतंक, खौफ और लूट है। वह नियति में चलता है।

इसलिए बीहड़ में लोग मरें तो मरे कौन काउंटिग करने वाला है? उस पर सोचना ही क्यों! फरीदाबाद की खबर पर एक रिपोर्टर ने लिखा है- यहां के लोगों का कहना है कि बरसात में आए दिन यहां पर ऐसे हादसे होते रहते हैं और शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती है। वहीं इस घटना पर पुलिस का कहना है कि लोग मना करने पर भी मानते नहीं हैं…बैरिकेड लगा दिए गए थे, फिर भी लोग गाड़ी ले जाते रहे। बैंकरों की मौत के बाद भी प्रशासन बेसुध है। अंडरपास में अब भी पानी भरा हुआ है, निगम के गेट पर ताला लगा हुआ है। पुलिस कह रही है कि कोई एफआईआर नहीं की है, इसमें निगम की कोई गलती नहीं है। बैंकरों को मना किया गया था कि ना जाएं लेकिन वो गए। कैशियर विराज गुड़गांव का था। इसलिए उसे पता नहीं था कि ओल्ड फरीदाबाद रेलवे अंडरब्रिज के नीचे इतना पानी होगा जो गाड़ी पानी के अंदर डूब जाए। इसलिए जैसे ही गाड़ी में पानी भरा, विराज ने गाड़ी को बाहर निकालने की कोशिश की लेकिन पानी के कारण गाड़ी ही बंद हो गई। लॉक लग गया। दोनों अंदर ही छटपटाते रहे।

तो दोषी कौन? मरने वाले! इसलिए क्योंकि पहली बात वे बीहड़ में रात को घूम क्यों रहे थे? फिर यह क्यों माना कि महानगर के अंडरपास में इतना पानी भरा नहीं हो सकता? ड्राइवर ने रोड के किनारे की सड़क पर लिखे इस नोटिस को क्यों नहीं पढ़ा (रात को 11.50 बजे, अंधेरे में) कि, सावधान अगर पानी इस लाल रेखा तक पहुंच गया हो तो इस पुल का उपयोग न करें।(rain)

और सबसे बड़ी बात स्यापा ही क्यों करना! बीहड में रह रहे हैं तो जिंदगी और मौत पर क्या सोचना! भारत के बीहड़ में प्रतिदिन असंख्य लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं। बिजली कड़कने से मरते हैं। आंधी से मरते हैं। पानी में डूबने से मरते हैं। सांप काटने से मरते हैं। लावारिस चिकित्सा से मरते हैं। खराब, मिलावटी चीजें खा कर मरते हैं। आत्महत्या से मरते हैं। और हां, पता है धमकियों से भी मरते हैं!

ये धमकियां कहां से आती हैं, बीहड़ में स्थित अलग अलग उप बीहड़ों से। पता है 140 करोड़ लोगों के बीहड़ के भीतर इन दिनों कितने बीहड़ हैं? असंख्य। कोई कहता है मेवात से फोन आते हैं, किसी के अनुसार जामताड़ा क्षेत्र से लेकिन मैंने जितनी बातें सुनी हैं उससे लगता है कि पाकिस्तान, वियतनाम, लाओस, कंपूचिया आदि पूरी दुनिया के लिए ही भारत अब वह बीहड़ है जो स्मार्टफोन से लूटने का आदर्श भूभाग है। मजे से एक झ़टके में लोगों को उल्लू बना कर वसूली की जा सकती है। उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। घर परिवारों में कलह, समाज में बदनामी कराई जा सकती है। सचमुच अकल्पनीय किस्से और अनुभव हैं। और इन पर निश्चित ही सीरिज लिखी जा सकती है।(rain)

साइबर अपराध की इस अनहोनी आपदा और विपदा के आगे बीहड़ के लोग वैसे ही बेबस, लाचार हैं, जैसे चंबल के अनुभवों में डाकुओं की फिरौती, वसूली, लूट के समय होते थे।

सोच सकते हैं मैं पूर्वाग्रह से नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर ठीकरा फोड़ रहा हूं। लेकिन ईमानदारी से दिल पर हाथ रख, अपने और अपने आसपास के अनुभवों पर गौर करें और सोचें कि पिछले दस वर्षों में कितने नए किस्म के लुटरे बीहड़ के भोले भाले लोगों को लूटने का महाअभियान चलाए हुए हैं? फोन सब तरफ हो रहे हैं, दिल्ली से हो रहे हैं, अलग अलग प्रदेशों और पाकिस्तान, वियतनाम, लाओस जैसे देशों से हो रहे हैं लेकिन हो रहे हैं। और बीहड़ को ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है लेकिन भारत सरकार, प्रदेश सरकार और देश भर के पुलिस कोतवाल, पूरा तंत्र कुछ नहीं कर सकता। सबका एक जवाब है– हम कुछ नहीं कर सकते। कोई कुछ नहीं कर सकता।

यह है डिजिटल क्रांति का सत्य! एक आंकड़े के अनुसार बीहड़ में इस समय 66 करोड़ स्मार्टफोन हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 95 प्रतिशत फोनधारी प्रतिनिधि तीन-चार स्पैम, झूठी, फ्रॉड कॉल रिसीव करते हैं। उन्हें हर दिन कोई 12 फ्रॉड मैसेज मिलते हैं। (rain)

और कौन है इस सबका सिरमौर गैंग लीडर? भारत सरकार! इसलिए क्योंकि बीहड़ के नागरिकों का दस तरह से, आधार कार्ड, किसान कार्ड से लेकर डिजीयात्रा आदि के ढेरों बहानों से डाटा एकत्र कर भारत सरकार ने साइबर डाकुओं के लिए बीहड़ में लूट का काम बहुत आसान बना दिया है। चंबल के बीहड़ में डाकू मान सिंह, मलखान या फूलन को इलाके के पैसे वालों या लूट सकने की संभावना वाले परिवारों का ब्योरा मालूम करने के लिए मेहनत करनी होती थी। लेकिन भारत सरकार ने 140 करोड़ लोगों के आंकड़े, फोटो, हैसियत सबके डाटा एकत्र करके देश दुनिया के साइबर डाकुओं के कंप्यूटरों में सबका अतापता, फोन नंबर, इतिहास और पोल खोली हुई है। और जब ऐसा है तो वे क्यों न उस डाटा का उपयोग करके फेक आईडी, नकली दस्तावेज, नकली आवाज, फेक फोटो-वीडियो आदि सबके जरिए बीहड़ के लोगों को उल्लू बनाने, ठगने का काम करें!

पर इस पर भी क्या रोना! वह वक्त गया जब चंबल में भी सुरक्षा थी। छोटे, आम लोग तब झूठ, लूट से बचे रहते थे। शाम, रात को घर से बाहर नहीं निकलते थे। दिन दोपहरी में भी सावधानी रखते थे। लेकिन मोदी, शाह की डिजिटल क्रांति के विकसित बीहड़ में इस तरह की सावधानियों की भी गुजांइश नहीं है। अब गरीब को भी लोन और पैसे का झांसा दे कर ठगा जा रहा है तो शेष भारत के लोग सीबीआई के डिप्टी एसपी, ईडी अफसर, एसपी, कोतवाल, बैंक मैनेजर आदि उन तमाम नामों की कॉल से धमक रहे हैं, ठगे जा रहे हैं, लूटे जा रहे हैं, जिनकी कुछ भी हैसियत है!

सोचें, इस स्वर्णिम काल पर। पैसे वालों, खाते पीते लोगों को लूटने के बीहड के आला नए नेता-नौकरशाह सिस्टम पर और ऊंचे लोगों के साथ ही बीहड़ में नीचे के लोगों के घर-घर पहुंच रहे फोनों, फरमानों, झांसों, झूठ, लूट की पारिस्थितिकी की जमीनी सच्चाई पर। क्या बीहड़ में कही भी व्यक्ति की जान और माल, नागरिक की अस्मिता, गरिमा, सुरक्षा का क्या कोई मतलब है? (rain)

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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