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ट्रंप के जेल जाने के दिन!

अमेरिका को सलाम! उसके लोकतंत्र का फिर यह कमाल जाहिर कि कानून से ऊपर कोई नहीं! निश्चित ही अमेरिका को मशाल लिए लिबर्टी की देवी से स्वतंत्रता, लोकतंत्र, न्यायप्रियता और सत्यता का वरदान प्राप्त है। लगता है न्यूयॉर्क के समुद्री इलाके में स्थापित स्वतंत्रता की देवी अमेरिका की कुल देवी हैं। तभी आश्चर्य नहीं जो न्यूयॉर्क ने अपने शहर के ही डोनाल्ड ट्रंप का वह हस्र किया, जो अमेरिका के इतिहास में किसी पूर्व राष्ट्रपति का नहीं हुआ। वे न्यूयॉर्क की अदालत द्वारा 34 आरोपों में दोषी करार हुए हैं। और जुलाई में उन्हें सजा सुनाई जाएगी। संभवयता जुलाई से ही उनकी जेल सजा शुरू हो। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप बेशर्म हैं। दुनिया के उन बेशर्म अहंकारी, तानाशाह नेताओं के ग्रुप लीडर हैं, जो झूठ और झूठ से बनी सत्ता में अपने-अपने देश को तबाह करते हैं। और लोगों को मूर्ख तथा अंधविश्वासी बनाते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति चार वर्षों में अपना खुद का और अमेरिका का कैसा-क्या कलंक बनाया, यह इतिहास में अंकित है। उन्होंने वह सब किया, जिससे देश के लोग बंटे। देश का मान-सम्मान और रूतबा घटे। लोकतंत्र का बेड़ागर्क हो। लोग मूर्ख बनें। पार्टी बंधुआ बन जाए और दुनिया का सर्वाधिक ताकतवर देश दुनिया का छिछोरा, टुच्चा तथा तुगलकी माना जाना लगे।

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के चार वर्ष लोकतंत्र के हर पैमाने में अमेरिका का कलंक है। ट्रंप की करनियों की वजह से ही आखिर में अमेरिकी जनता ने जनादेश से डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता बाहर किया। लेकिन जनादेश को डोनाल्ड ट्रंप ने नहीं माना। उलटे यह झूठ फैलाया कि चुनाव में धांधली हुई है। छल हुआ है। जाहिर है डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में देश को जहां भक्त बनाम विरोधियों में बांटा वही चुनाव हारने के बाद इसी नैरेटिव में अमेरिकी जनमत को विभाजित किया हुआ है। अमेरिका में ट्रंप के कट्टरपंथी-रूढ़िवादी गोरे भक्त वैसे ही हैं, जैसे भारत में मोदीभक्त अंध कट्टरपंथी हैं।

वह विभाजन न्यूयॉर्क की अदालत की ट्रंप को सजा से और बढ़ेगा। ध्यान रहे डोनाल्ड ट्रंप वापिस रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हैं। रिपब्लिकन पार्टी उनकी जेबी है। इसलिए वे जेल जाएं तब भी वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ेंगे। और डेमोक्रेटिक पार्टी के मौजूदा राष्ट्रपति बाइडेन की लोकप्रियता में जैसी गिरावट है उसमें आंशका है कि सजायाफ्ता कैदी डोनाल्ड ट्रंप कहीं राष्ट्रपति नहीं चुन लिए जाएं।

लेकिन जैसा मैंने ऊपर लिखा है अमेरिका ऐसा वरदान प्राप्त राष्ट्र है जो ऐन वक्त कोई न कोई वह विकल्प, वह रास्ता निकाल लेता है, जिससे लोकतंत्र और विकास दोनों के नए रास्ते खुल जाते हैं। मैंने इस विश्वास के कारण ही पिछले चुनाव में यह अनुमान लगाया था कि कुछ भी हो जाए डोनाल्‍ड ट्रंप चुनाव जीत नहीं पाएंगे। वे हारेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके साथ अमेरिका की एक सभा में यह नारा लगा कर आए थे कि अबकी बार ट्रंप सरकार।

सचमुच अमेरिका में संविधान, चेक-बैलेंस के सिस्टम और संस्थाओं व उद्यमशीलता की स्वतंत्रताओं से बना वह राष्ट्रीय मिजाज और चरित्र है, जिसकी वजह से अमेरिकी लोग हर संकट में, गहरी निराशा के बीच नया विकल्प, नए तरीके, नए शोध-अनुसंधान खोज लेते हैं, जिससे नई शुरुआत स्वयंस्फूर्त देश को संकटों से उबार लेती है। वैश्विक, आर्थिक, लीडरशीप के संकट हों या बदलते वक्त से बनी विकट नई चुनौतियों में अमेरिकी लोग ऐसे कोई नए आइडिया, नई उद्यमशीलता में अपने को बदल डालते हैं, जिससे अपने आप बेड़ा पार हो जाता है। ऐसा राजनीति में है तो वित्तीय, आर्थिक मामलों में भी है।

किसने कल्पना की थी कि ट्रंप जैसे बुलडोज के आगे उदार, बूढ़े नेता जो बाइडेन लोगों की पसंद हो जाएंगे? वे राष्ट्रपति बनेंगे? किसने सोचा था कि चुनाव के बाद अमेरिका के अलग-अलग राज्यों के स्टेट और सिटी अभियोजकों या संघीय सरकार की जांच एजेंसियां तुगलकी राष्ट्रपति की करनियों (विशेषकर मतगणना के समय उनकी दखल की) के इतने मामले खोज लेंगी कि डोनाल्ड ट्रंप उनका सामना करते-करते दिवालिया हो जाएंगे? सही है दिवालिया होने के साथ डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर भक्तों से बेइंतहां चंदा मिल रहा है तो समर्थकों की सहानुभूति भी बढ़ गई है।

इसलिए मुमकिन है अमेरिका आने वाले महीनों में राजनीतिक, संवैधानिक संकटों में फंसे। आखिर सजायाफ्ता व्यक्ति के राष्ट्रपति चुने जाने का अंदेशा (अमेरिका में पार्टी द्वारा नामांकित सजायाफ्ता व्यक्ति राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकता है) है ही। कल्पना करें चुनाव जीत कर जनवरी 2025 में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ली तो क्या होगा? अमेरिका का कैसा मजाक बनेगा। हकीकत है कि रिपब्लिकन पार्टी मौजूदा राष्ट्रपति बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी से अधिक ताकतवर है। सीनेट हो या राज्यों के गर्वनर और संसद के दोनों सदनों की सदस्य संख्या तथा कमेटियों सभी तरफ रिपब्लिकन पार्टी की ज्यादा तूती है। और पार्टी डोनाल्ड ट्रंप के आगे समर्पित। निर्वाचित राष्ट्रपति खुद और अपनी पार्टी से तब कैसी मनमानी करते हुए होंगे? कैसा बदला लेंगे? संविधान और सिस्टम के साथ कैसा खेला करते हुए होंगे!

इसलिए सस्पेंस है कि जेल की सजा के बाद डोनाल्ड ट्रंप के प्रति रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं का रूख बदलेगा या नहीं? राष्ट्रपति पद की उनकी उम्मीदवारी पर पुनर्विचार होगा या नहीं? प्राइमरी चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ आखिर तक मुकाबला करने वाली निकी हेली को क्या उम्मीदवार बनाया जाएगा? यह भी सवाल है कि ट्रंप के जेल जाने के बाद बाइडेन का ग्राफ अपने आप बढ़ता जाएगा या नहीं? अमेरिका के ट्रंपपरस्त मतदाता एक अपराधी को क्या राष्ट्रपति बनाने की हद तक जाएंगे या घर बैठ जाएंगे और बाइडेन वापिस राष्ट्रपति चुन लिए जाएंगे।

हां, जेल कैदी की पोशाक के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप को लोगों ने यदि उन्हे राष्ट्रपति पद के लिए अनफिट नहीं माना तो अमेरिकी लोगों, रिपब्लिकन पार्टी की वैश्विक स्तर पर कैसी भद्द पीटेगी, इसका अनुमान अमेरिका की मुश्किलों का पिटारा है।

सो, अमेरिका का विकट समय आने वाला है। लेकिन फिलहाल अहम बात एक पूर्व राष्ट्रपति और कभी दुनिया के सर्वाधिक ताकतवर नेता को कानून द्वारा अपराधी करार देना है। और यह प्रमाणित होना है कि कानून के आगे सब बराबर।

इससे भी बड़ी एक बात ‘वाशिंगटन पोस्ट’ का यह कमेंट है कि- आशीर्वाद उस ट्रंप जूरी को, फैसले के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी सेवा के लिए! (bless the Trump jury, not for the verdict but for their service)

सटीक टिप्पणी। सचमुच अमेरिकी लोग जब आज दो हिस्सों में बंटे हुए हैं। जब लोगों में इतनी सहमति भी नहीं बनती कि आकाश नीला है या घास हरी है, तब पांच महिलाओं और सात पुरूषों, जो दो महीने पहले तक एक-दूसरे से अपरिचित थे, की जूरी ने कोर्ट की सुनवाई के बाद एक राय से फैसला सुनाया कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोषी हैं।

हम भारतीय अमेरिकी अदालती कार्रवाई की जूरी व्यवस्था से अपरिचित हैं। अमेरिका की अदालत में आरोपी के खिलाफ दोनों तरफ की बहस को सुन कर अभियुक्त के दोषी होने या न होने का फैसला जूरी करती है। इसके सदस्य (ट्रंप की 12 सदस्यों की जूरी में पांच महिला और सात पुरूष) ठोक बजाकर, दोनों पक्षों की सहमति से चुने जाते हैं। समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व वाली इस जूरी का हर सदस्य अराजनीतिक और तटस्थ बैकग्राउंड का होता है। मुकदमे की सुनवाई के बाद सभी सदस्य एक साथ बैठकर, विचार करके निर्णय लेते हैं कि आरोपी दोषी है या नहीं। किसी एक भी सदस्य की असहमति का अर्थ फैसला नहीं। और सोचें, आम लोगों, अराजनीतिक, तटस्थ लोगों की बनी 12 लोगों की एक जूरी ने सर्वानुमति से अदालत में जब 34 आरोपों के एक एक सवाल पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 34 दफा दोषी, दोषी कहा तो वह महज एक आरोपी को दोषी करार देना नहीं था, बल्कि यह बतलाना भी था कि अमेरिका में सब बरबार है। और आम आदमी भी यह अधिकार, यह विवेक, यह निडरता लिए हुए है कि यदि कोई दोषी है तो उसे दोषी करार देने में कोई किंतु-परंतु नहीं। भले वह राष्ट्रपति रहा हो या राष्ट्रपति हो।

तभी तो मेरा मानना है कि अमेरिकियों को स्वतंत्रता, समानता, न्यायप्रियता और सत्यता की देवी का वरदान प्राप्त है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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