भारत और हम हिंदुओं का क्या होगा, यह अपनी चिंता है! वही दुनिया इस चिंता में है कि अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता का क्या होगा! डोनाल्ड ट्रंप आज शपथ ले रहे हैं और उनके इस मौके पर कनाडा के “हिंसक संघर्षो के अध्येता” होमर-डिक्सन का तीन साल पहले लिखा एक वाक्य मुझे ध्यान आ रहा है। उन्होंने कनाडा के लोगों को चेताया था। उन्होने अखबार ‘ग्लोब एंड मेल’ में लिखा था कि, ‘हमें वह सोचना चाहिए जो आज लग नहीं रहा, दिख नहीं रहा! हमें उन संभावनाओं, सिनेरियो को इसलिए खारिज नहीं करना चाहिए क्योंकि वे हास्यास्पद या कल्पनातीत भयानक लगते हैं’। उनका कहना था, ‘सन् 2014 में भी इस संभावना का मजाक उड़ता था कि डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन सकते हैं! सभी को वह तब बेहूदी, नामुकिन बात लगती थी। पर वे बने’।
होमर-डिक्सन ने तीन साल पहले कनाडा को (लंदन के ‘द गार्डियन’ में भी उनका लेख छपा हैं) चेतावनी दी थी कि सन् 2030 में अमेरिका में दक्षिणपंथी तानाशाही होगी इसलिए कनाडा को अमेरिकी लोकतंत्र के ध्वंस के सिनेरिया में अपने को बचाने की तैयारी करनी चाहिए। एक भयानक तूफान दक्षिण (अमेरिका) से आ रहा है और कनाडा बुरी तरह से तैयार नहीं है। ‘हमने अपने को अंदरूनी मामलों में समेटा हुआ है। हम कोविड की चुनौतियों, सुलह, समझौते, व जलवायु परिवर्तन की चिंताओं में भटके हुए हैं’।
होमर-डिक्सन ने नए ट्रंप प्रशासन के सिनेरियो को बूझते हुए लिखा था कि अमेरिका के भीतर उनका अंदरूनी विरोध जीरो होगा और वे उत्तर के पड़ोसी (कनाडा) को नुकसान पहुचा रहे होंगे। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी को “एक फासीवादी व्यक्तित्व के चंगुल की ऐसी पार्टी बना दिया है, जो लोकतंत्र को खत्म करने के लिए आदर्श औजार जैसी है। और संभव है ट्रंप सिर्फ एक वार्मअप एक्ट हों”। अर्थात उनके बाद ज्यादा अतिवादी दक्षिणपंथी याकि आवारा सांड अमेरिका को तहस-नहस करते हुए होंगे।
होमर-डिक्सन के अनुसार, “2025 तक, अमेरिकी लोकतंत्र में सब गड़बड़ा जाएगा। व्यापक नागरिक हिंसा और घरेलू राजनीतिक अस्थिरता संभव है और देश 2030 तक एक दक्षिणपंथी तानाशाही द्वारा शासित हो सकता है”। ट्रंप प्रशासन कैसे अपनी ताकत से लोकतंत्र की ठोस बुनावट के बावजूद उसमें विध्वंस कर सकता है, इसके पहलुओं पर भी होमर-डिक्सन ने अनुमान लगाए थे।
सोचें, ऐसा हुआ तो दुनिया पर क्या असर होगा? क्या वह भारत की सत्ता के लिए प्रेरणादायी नहीं होगा? यदि डोनाल्ड ट्रंप कनाडा और ग्रीनलैंड को अपने अधीन बना कर ‘अमेरिका फर्स्ट’ का अमेरिकियों में उन्माद बनाएं और धड़ाधड़ लाखों प्रवासियों याकि घुसपैठियों की धरपकड़ कर उन्हें मेक्सिको या कनाडा की सीमाओं में खदेड़ें तो वह उदाहरण भारत सहित सभी देशों के लिए कैसा प्रतिमान होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है! भारत तब क्यों पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं लेगा? यदि अमेरिका एक झटके में दस लाख घुसपैठियों को पकड़ कर उन्हें सीमा पार खदेड़ता है तो भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने तो कानून बनवाया हुआ है, भला तब भारत क्यों मौका चूकेगा? डोनाल्ड ट्रंप जो करेंगे वह यूरोपीय दक्षिणपंथियों या भारत जैसे देशों के लिए हर तरह से प्रेरणा व परेशानी वाला है। सख्ती, नर्मी, उथलपुथल और अस्थिरता के हर पहलू में ट्रंप की रीति नीति जी का जंजाल होगी।
खबर है डोनाल्ड ट्रंप शपथ लेते ही अमेरिका के कई शहरों में छापेमारी करवा गुपचुप आए विदेशियों की धरपकड़ करवाएंगे। देश के भीतर तथा विश्व व्यवस्था में डोनाल्ड ट्रंप सांड, आवारा फितूरी नेता के नाते वे फैसले ले सकते हैं, जिनसे दुनिया में वह होना संभव है, जिसकी कल्पना नहीं है जिस पर सोचना अभी बेहूदा लगेगा।
मैं इस सबको 9/11 की घटना से बनी दिशा में बीसवीं सदी की नियति मानता हूं। हर नस्ल, हर धर्म, हर बड़ा मुल्क, हर बड़ी ताकत तब से अपनी चिंता और अहंकार में है। अपनी सुरक्षा के साथ अपनी वर्चस्वता के उस ख्याल में है, जिसमें मनुष्य की वैयक्तिक जिंदगी, मानवाधिकार, लोकतंत्र सब सेकेंडरी है और प्राथमिकता सामुदायिक सुरक्षा और पहचान विशेष की सर्वोच्चता है। 9/11 से इस्लाम की पहचान व अहंकार का वैश्विक नगाड़ा बजा तो अमेरिकी कमान में पश्चिमी सभ्यता का भी ‘क्रिश्चियन फर्स्ट’ का हुंकारा था। उसका फायदा उठा चीन, राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने चाइनीज सभ्यता की धुरी को वैश्विक बनाया। दूसरे शब्दों में इस्लाम व चीन दोनों ने महायुद्ध के बाद बनी उस वैश्विक व्यवस्था में उथलपुथल की, जिससे बाकी देश, धर्म अपनी अपनी आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चिंताओं में फंसे।
यूरोप, अमेरिका में अलग अलग कारणों से मुसलमानों की घुसपैठ और आतंक की वारदातों ने राष्ट्रवाद भभकाया तो चीन की वैश्विक फैक्टरी के सामानों से बाजारों के पट जाने ने भी देशों में यह बहस बनवाई कि तब हमारा अपना क्या? बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में, सोवियत संघ के ढहने के बाद भूमंडलीकरण की हवा में सब कुछ गांव में सिमटता हुआ था लेकिन इस्लाम और चीन ने इक्कीसवीं सदी में सभ्यताओं के संघर्ष की थीसिस को चलवा दिया!
यह प्रमाणित है कि विश्व की सेहत अमेरिका की छींक से बनती और बिगड़ती है। वहां यदि अनहोनी है तो बाकी देशों में भी वहीं होना है। डोनाल्ड ट्रंप 2016 में अचानक ही राष्ट्रपति बने थे। इस बार भी उनका बनना और छप्पर फाड़ बहुमत से बनना असंभव का संभव है। इसलिए प्रवासियों के खिलाफ वहां का उन्माद, चीन के खिलाफ वहां के पूंजीपतियों का रोना, ‘अमेरिका फर्स्ट’ का भाव सभी देशों में प्रभाव बनाता हुआ है। यूरोप के हर देश में पहुंचा है। एक के बाद एक देश दक्षिणपंथी होते जा रहे हैं। इसलिए आगे के सिनेरियो में ट्रंप का राज यदि ‘चाइना शॉप में बैल’ होना है, सब कुछ बिगड़े सांड के अंदाज में होना है तो बाकी देशों में भी शासकों का अहंकार बढ़ना है।
सवाल है डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के भीतर या विश्व व्यवस्था में, कहां अधिक तोड़फोड़ करेंगें? मेरा मानना है घरेलू लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी तोड़फोड़ अधिक होगी। कल्पना करें, पांच लाख, दस लाख, बीस लाख प्रवासी लोगों को पकड़ कर वे उन्हें अमेरिका से निकालें और ईसाई धर्मांधता में अपने प्रशासन को रंगे, विरोधियों से बदला लें या उन्हें निपटाए तो बवाल अमेरिका के भीतर अधिक होगा या नहीं? कनाडा, ग्रीनलैंड, पनामा नहर इन्हें वे जबरन लें तो उसका विशेष अर्थ नहीं होगा। इसलिए क्योंकि ‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’ का सत्य अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी लागू है। ट्रंप ऐसा करके चीन के शी जिनफिंग, पुतिन को मनमानी याकि ताइवान, यूक्रेन आदि पर कब्जा करने दें तो उससे भी कुछ नहीं बिगड़ना है।
असल बात अमेरिकी व्यवस्था और अमेरिकियों में तानाशाही के पैठने की है। यदि गोरे इसाइयों ने डोनाल्ड ट्रंप को अजैविक भगवान मान लिया और उप राष्ट्रपति वांस, रिपब्लिकन पार्टी ने संसद, सुप्रीम कोर्ट, कार्यपालिका सबको ट्रंप के चरणों में बैठा दिया तो अमेरिका के लोकतंत्र का क्या होगा? वह क्या तब भारत के साथ कंपीट करता हुआ नहीं होगा? हार्वर्ड, बुद्धि, ज्ञान विज्ञान और पश्चिमी सभ्यता के सिरमौर देश के रूप में तब उसका कितना मान बचेगा? उसकी बुद्धि, उसका मीडिया, सोशल मीडिया, नैरेटिव क्या भारत, पाकिस्तान, तुर्की जैसी लोकभावना में बदला हुआ नहीं होगा? डोनाल्ड ट्रंप क्या योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर शासन से प्रेरणा लेते हुए नहीं होंगे? हार्वर्ड में क्या ‘बुलडोजर शासन’ पर रिसर्च नहीं होगी! कह सकते हैं तब भारत निश्चित ही डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का विश्व गुरू होगा!
बेहूदा, फालतू बात! मान सकते है! बावजूद इसके होमर-डिक्सन का यह वाक्य गंभीर है कि, ‘हमें वह सोचना चाहिए, जो आज हमें हास्यास्पद लगे, दिख नहीं रहा हो, लग नहीं रहा हो’!